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सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट कैसे काम करता है, भारत में कब शुरू होगा?

सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट को टेलीकॉम की अगली क्रांति कहा जा रहा है

रिलायंस जियो भारत में सबसे पहले सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराएगी
रिलायंस जियो भारत में सबसे पहले सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराएगी
अपडेटेड 7 नवंबर , 2023

इंडिया मोबाइल कांग्रेस में टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो ने 'जियो स्पेस फाइबर' सेवा शुरू करने की अपनी योजना की घोषणा की है. बीते 27 अक्टूबर को मोबाइल कांग्रेस का उद्घाटन करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिलायंस जियो के चेयरमैन आकाश अंबानी ने दिखाया कि यह सेवा कैसे काम करेगी. 

इसके लिए कंपनी ने जियो स्पेस फाइबर के जरिए देश के दूर-दराज के चार क्षेत्रों को जोड़ा. गुजरात के गिर नेशनल पार्क, छत्तीसगढ़ के कोरबा, ओडिशा के नबरंगपुर और असम के ओएनजीसी-जोरहाट को आपस में जोड़कर यह दिखाया गया कि यह इंटरनेट सेवा कैसे काम करेगी. 

कंपनी का दावा है कि इससे देश के दूर-दराज के इलाकों को फास्ट इंटरनेट सेवा मिल पाएगी. सैटेलाइट के माध्यम से काम करने वाली इस सेवा के बारे में कंपनी का दावा है कि देश के दुर्गम इलाकों मेंगीगाबाइट यानी जीबी वाली स्पीड से इंटरनेट की सेवा मिल पाएगी. टेलीकॉम सेक्टर में स्पेस इंटरनेट को अगली बड़ी क्रांति के तौर पर देखा जा रहा है. 

क्या है सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा?

बिल्कुल सरल भाषा में समझें तो मौजूदा मोबाइल सेवाओं के लिए भी सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है. वॉयस कॉल के अलावा इंटरनेट के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल होता है. लेकिन सैटेलाइट के सिग्नल से मोबाइल को जोड़ने के लिए मोबाइल टावर्स जरिया बनते हैं. इन्हें बीटीएस यानी बेस टर्मिनल स्टेशन कहते हैं. 

मौजूदा टावर्स की समस्या यह है कि इनका दायरा सीमित होता है. बीटीएस की रेंज कितनी होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि एंटीना की उंचाई कितनी है. सामान्य तौर पर 40 मीटर के एंटीना का इस्तेमाल होता है और इसके माध्यम से अधिकतम 27 किलोमीटर के दायरे में मोबाइल सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं.

इसके मुकाबले नई सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा कुछ-कुछ उसी तकनीक पर काम करेगी जिस तकनीक पर टेलीविजन की डीटीएच सेवा काम करती है. उपभोक्ताओं को एक इलेक्ट्रॉनिकमॉडम मिलेगा जो सीधे जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (पृथ्वी की स्थिर कक्षा) और मीडियम अर्थ ऑर्बिट (मध्यम कक्षा) में भेजे गए सैटेलाइट से जुड़े ग्राउंड टर्मिनल्स के साथ जुड़कर तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं दूर-दराज के इलाकों में उपलब्ध कराएगा. 

जियो की सेवाएं मीडियम अर्थ ऑर्बिट में स्थित सैटेलाइट्स के माध्यम से मुहैया कराई जाएंगी. हालांकि, इस सेवा की लैटेंसी थोड़ी अधिक होती है. लैटेंसी का मतलब उस देरी से है जो डाटा को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में होती है. जियो ने भारत में यह सेवा उपलब्ध कराने के लिए लग्जेमबर्ग की कंपनी एसईएस के साथ मिलकर एक साझा उपक्रम बनाया है. इसका नाम है जियो एसईएस टेक्नोलॉजी लिमिटेड. अंतरिक्ष में एसईएस के 70 से अधिक सैटेलाइट काम कर रहे हैं और इनके माध्यम से ही जियो भारत में सैटेलाइट आधारित फास्ट इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने की योजना पर काम कर रही है.

आम लोगों को क्या फायदे होंगे?

ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से इस तकनीक को बेहद क्रांतिकारी माना जा रहा है क्योंकि इसके माध्यम से इंटरनेट सेवाएं उन क्षेत्रों में पहुंच सकेंगी जहां मौजूदा टेक्नोलॉजी के माध्यम से इंटरनेट सेवाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. 

दूर-दराज के क्षेत्रों में केबल के माध्यम से ब्रॉडबैंड सेवाएं मुहैया कराना काफी खर्चीला भी है. यही समस्या मोबाइल टावर लगाने को लेकर भी है. अब भी देश के कई दुर्गम इलाके ऐसे हैं जहां टावर लगाना और उसे चलाना काफी मुश्किल काम है क्योंकि टावर चलाने के लिए बिजली उपलब्ध नहीं है. अगर जेनरेटर लगाया जाए तो हर दिन तेल ले जाना काफी मुश्किल और खर्चीला है.

टेलीकॉम कंपनियों की एक समस्या यह है कि इन क्षेत्रों में अगर वे इतने पैसे खर्च करते भी हैं तो कम आबादी होने की वजह से इन इलाकों से उनकी आमदनी काफी कम होती है. कुल मिलाकर दुर्गम इलाकों में सेवा विस्तार करना टेलीकॉम कंपनियों के लिए घाटे का सौदा है. सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट टेक्नोलॉजी से इन इलाकों में बहुत कम खर्च में फास्ट इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी.  

आपदा की स्थिति में अक्सर यह देखा जाता है कि टावर गिर जाते हैं और टेलीकॉम सेवाएं प्रभावित हो जाती हैं. लेकिन सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट टेक्नोलॉजी के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं या अन्य आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में संचार सेवाओं को बहाल रखा जा सकेगा. इससे राहत और बचाव कार्यों में काफी मदद मिलेगी. दुर्गम इलाकों में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध होने से इन क्षेत्रों में इंटरनेट आधारित शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाना भी आसान होगा.

कौन-कौन सी कंपनी भारत में ऐसी सेवाएं ला रही हैं?

रिलायंस जियो भारत की पहली कंपनी होगी जो आम उपभोक्ताओं को सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएगी. इंडिया मोबाइल कांग्रेस में ही टेलीकॉम कंपनी एयरटेल के सुनील भारती मित्तल ने भी कहा कि उनकी कंपनी भी 'वनवेब' के नाम से ऐसी सेवा शुरू करने की योजना पर काम कर रही है. वैश्विक स्तर पर यह सेवा मुहैया कराने का काम एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स कर रही है. इस सेवा का नाम 'स्टारलिंक' है. 

स्टारलिंक की सेवाएं अभी भारत में लॉन्च नहीं हुईं लेकिन दुनिया के 70 से अधिक देशों में एलन मस्क की कंपनी सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध करा रही है. दुनिया भर में इसके ग्राहकों की संख्या 20 लाख से अधिक हो गई है. इसी तरह की सेवा एमेजॉन कंपनी 'प्रोजेक्ट कूपर' के माध्यम से मुहैया कराने की योजना पर काम कर रही है. स्टारलिंक और प्रोजेक्ट कूपर की लिए हजारों की संख्या में सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे जाने हैं.

भारत में यह सेवा कब लॉन्च होगी?

जियो ने इंडिया मोबाइल कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के चार दूरस्थ इलाकों को सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट सेवाओं से जोड़कर दिखाया. लेकिन कंपनी इसे आम लोगों को कब तक लॉन्च करेगी, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है. कंपनी का कहना है कि सरकार जैसे ही उसे स्पेक्ट्रम देगी, उसके तुरंत बाद जियो यह सेवा लॉन्च कर सकती है. कंपनी सूत्रों के हवाले से मीडिया में जो खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक जियो 2024 की शुरुआत में अपनी यह सेवा लॉन्च कर सकती है.

सुनील भारती मित्तल ने इंडिया मोबाइल कांग्रेस में यह कहा कि वनवेब अपनी सेवाएं इसी साल नवंबर में लॉन्च करने वाली है. आने वाले महीनों में स्टारलिंक और प्रोजेक्ट कूपर की सेवाएं भी भारत में लॉन्च होने की उम्मीद है. एलन मस्क की स्टारलिंक ने यह सेवा लॉन्च करने के लिए जरूरी मंजूरी हासिल करने का आवेदन टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पास भेजा है. उम्मीद है कि जियो और एयरटेल की सेवा लॉन्च होते ही स्टारलिंक को भी भारत सरकार अपनी सेवाएं लॉन्च करने की मंजूरी देगी.

कितने पैसे खर्च करने होंगे?

जियो ने अपनी इन सेवाओं की प्राइसिंग के मामले में भी कहा है कि वह कंपेटेटिव प्राइसिंग में यकीन करती है और इस सेवा के लिए भी उसकी रणनीति यही रहेगी. जियो ने अपने बयान में कहा है कि वह 'हाइली अफोर्डेबल' यानी अत्याधिक किफायती दरों पर ये सेवाएं उपलब्ध कराएगी. वन वेब अपनी सेवाओं के लिए भारत में ग्राहकों से कितने पैसे लेगी,इसे लेकर भी स्पष्टता नहीं है. हालांकि, वन वेब अपनी सेवाओं के लिए कनाडा में ग्राहकों से हर महीने तकरीबन 1,050 रुपये ले रही है. स्टारलिंक की सेवाएं इससे काफी महंगी हैं. अमेरिका में स्टारलिंक अपने ग्राहकों से तकरीबन 9,000 रुपए हर महीने ले रही है. लेकिन भारत में जिस तरह से जियो ने वॉयस कॉल, मोबाइल इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की दरों उठा-पटक मचाई है, उसी तरह की उम्मीद सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट सेवाओं में भी की जा रही है.

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