अमेरिका चाहता है कि भारत अब रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, जबकि भारत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. अमेरिका ने रूसी तेल खरीदने के कारण भारत पर अतिरिक्त 25 फीसद टैरिफ लगाया, जिसके कारण भारत से अमेरिका जाने वाले सामानों पर फिलहाल ट्रंप सरकार कुल 50 फीसद टैरिफ वसूल रही है.
इन सबके बावजूद भारतीय कंपनियां रूस से तेल खरीद रही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि रूसी तेल खरीदने से भारत को फायदा हुआ और विदेशी मुद्रा की भी बचत हुई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मुताबिक, पिछले 39 महीने में भारतीय रिफाइनरियों को कम-से-कम 12.6 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ है.
इसका मतलब ये हुआ कि तीन साल से कुछ ज्यादा समय में भारतीय कंपनियों ने रूसी तेल से 1.10 लाख करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है. अगर हम हर मिनट के हिसाब से देखें तो कंपनियों को एक मिनट में करीब साढ़े 6 लाख रुपए का मुनाफा हुआ है.
रिपोर्ट की मानें तो अगर नई दिल्ली ने रूसी तेल खरीदने के लिए उचित कदम नहीं उठाया होता, तो वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें संभवतः काफी ज्यादा होतीं. इससे भारत का तेल आयात बिल भी बढ़ जाता, क्योंकि भारत में इस्तेमाल होने वाले तेल का ज्यादातर हिस्सा दूसरे देशों से आयात होता है.
इस नजरिए से देखा जाए, तो भारत के लिए अनुमानित बचत व्यापार आंकड़ों के विश्लेषण से कहीं ज्यादा होगी. ये अनुमानित बचत इस बात पर निर्भर करेगी कि अगर भारत ने पश्चिमी देशों के कहने पर रूसी तेल आयात करना बंद कर दिया होता तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कितनी बढ़ जातीं.
मुनाफा कमाने वाली बात पर भारत सरकार ने क्या कहा?
1 सितंबर 2025 को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 'द हिंदू अखबार' में प्रकाशित एक लेख में कहा कि भारत रूस से कच्चा तेल मुनाफा कमाने के लिए नहीं खरीद रहा है, बल्कि इसके आयात से वैश्विक बाजार में तेल की कीमत स्थिर करने में मदद मिली है.
उनकी यह टिप्पणी अमेरिका की आलोचना के बाद आई है, जिसने यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखने के लिए भारत पर निशाना साधा था. वाशिंगटन का तर्क है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूसी तेल खरीदकर मुनाफा कमा रहा है. पुरी ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि भारत के ऊर्जा व्यापार ने वैश्विक अनिश्चितता के दौर में तेल की कीमतों को कंट्रोल में रखा है. मंत्री ने आगे कहा कि भारत के दखल के बिना, वैश्विक तेल की कीमतें और भी ज्यादा बढ़ सकती थीं और यह 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती थीं.
अगर भारतीय कंपनियों को तेल से मुनाफा तो क्यों नहीं घट रहीं तेल की कीमतें?
भले ही रूसी तेल खरीदने से भारतीय रिफाइनरी मुनाफा कमा रही हों, लेकिन यह सच है कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें पिछले दो वर्षों से लगभग स्थिर हैं. वैश्विक कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों में गिरावट के बावजूद खुदरा दामों में कमी नहीं आ रही. वैश्विक ब्रेंट क्रूड की कीमतें 2022 के ₹100+ प्रति बैरल से घटकर वर्तमान में ₹72-75 प्रति बैरल पर हैं. वहीं, खुदरा तेल की कीमत पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में मार्च 2024 से कमी नहीं की गई है. तेल पर यह टैक्स केंद्र सरकार वसूलती है.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट मुताबिक, पिछले दशक में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 25 फीसद की गिरावट आई है, लेकिन इसी अवधि के दौरान भारत में पेट्रोल की कीमतों में लगभग 30 फीसद की वृद्धि हुई है.
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आखिरी बार कटौती मार्च 2024 में हुई थी, जब आम चुनावों से ठीक पहले कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई थी. इससे पहले, लगभग दो साल तक कीमतें अपरिवर्तित रहीं.
तेल की कीमतें कम करने को लेकर कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री यानी CII के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जी ने बीते दिनों कहा, "ईंधन की कीमतें ज्यादा होने से महंगाई बढ़ती है. एक्साइज ड्यूटी कम करने से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी, खासकर निम्न आय वर्ग के लोगों को फायदा होगा. सरकार को घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए दखल देना चाहिए."
अब सवाल उठता है कि आखिर तेल की कीमत कम क्यों नहीं हो रहीं, तो इसके जवाब में तेल एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा एक इंटरव्यू में बताते हैं, "लॉकडाउन जैसी स्थितियों में मांग घटी, लेकिन सरकार राजस्व के लिए तेल पर टैक्स बढ़ाती है. हालांकि, एक बार दाम बढ़ने पर बाद में क्रूड ऑयल सस्ता होने पर भी दाम नहीं घटते, क्योंकि इस पैसे से सरकार राजकोषीय घाटा (सरकार को मिलने वाला पैसा और उसके खर्चा का अंतर) कवर करती है."
तनेजा का कहना है कि सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को कम करना प्राथमिकता है. यही वजह है कि महंगाई और राजस्व के बीच फंसी सरकार तेल की कीमत कम करने पर फैसला लेने से बचती है.
'सिर्फ कच्चे तेल की कीमत से नहीं तय होती घरेलू ईंधन की कीमतें'
इन्फोमेरिक्स वैल्यूएशन एंड रेटिंग्स लिमिटेड के डॉ. मनोरंजन शर्मा ने बताया कि तेल की कीमत नहीं घटने के पीछे कई वजह हैं. भारत में कच्चे तेल की कीमतों और ईंधन की कीमतों के बीच सीधा संबंध नहीं है. शर्मा ने बताया, "कीमत नहीं कम होने की असल वजह इस बिजनेस की बारीकियों में छिपी हैं. इनमें एलपीजी की उच्च अंडर-रिकवरी, इन्वेंट्री घाटा और अपर्याप्त ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन यानी GRM शामिल हैं. इन सभी वजहों से तेल मार्केटिंग कंपनियों के मार्जिन कम हो जाते हैं."
उन्होंने आगे कहा कि कच्चे तेल को रिफाइनरी स्टेशन से लेकर फिर ईंधन स्टेशनों तक पहुंचाने की लागत, डीलर कमीशन, केंद्र और राज्यों का टैक्स, विनिमय दर में बदलाव और वैश्विक आपूर्ति-मांग की समस्याओं को ध्यान में रखकर तेल की कीमत तय होती हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि कच्चे तेल की कीमत कम होना खुदरा कीमतें घटाने के लिए एक कारक होना चाहिए, लेकिन घरेलू ईंधन की कीमतें तय करने में यह एकमात्र कारक नहीं है.