राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में की थी. उसके बाद से कई मौके ऐसे आए जब संघ के अंदर यह बात चली कि मुस्लिम समाज से उसके संबंध कैसे रहेंगे. कई बार यह सवाल भी उठा कि क्या मुस्लिम समाज के लोगों को संघ में शामिल करना है. खास तौर पर उस दौर में जब संघ की सहायता से बनी जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हो गया था और 1977 से केंद्र की जनता सरकार में संघ से निकले हुए नेता शामिल थे. लेकिन इस बारे में कोई औपचारिक निर्णय नहीं हो पाया.
पिछले कुछ सालों में संघ की तरफ से मुस्लिम समाज के साथ संवाद कायम करने की कोशिशें हो रही हैं. इसी कड़ी में 24 जुलाई, 2025 को दिल्ली के हरियाणा भवन में RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की. इसमें शामिल लोगों की मानें तो यह बैठक तकरीबन साढ़े तीन घंटे तक चली.
इस बैठक में RSS की तरफ से मोहन भागवत के अलावा दत्तात्रेय होसबाले, कृष्ण गोपाल, इंद्रेश कुमार और राम लाल जैसे संघ के शीर्ष पदाधिकारी शामिल हुए. वहीं मुस्लिम समाज से ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी सहित तकरीबन 60 मुस्लिम प्रतिनिधि शामिल हुए. इस आयोजन को 'संवाद' का नाम दिया गया. बताया जा रहा है कि यह बैठक करीब तीन घंटे चली.
हाल के वर्षों में संघ ने सामाजिक समरसता और सभी समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में पहल की है. 2022 में मोहन भागवत ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं के साथ पहली बार ऐसी प्रमुख बैठक की थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद, हिजाब विवाद और जनसंख्या नियंत्रण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा हुई थी. उस समय मुस्लिम समाज की तरफ से दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और वरिष्ठ नेता शाहिद सिद्दीकी जैसे लोग शामिल हुए थे.
2022 में ही मोहन भागवत ने दिल्ली की एक मस्जिद और आजाद मार्केट के एक मदरसे का दौरा किया था. इसके अलावा उन्होंने जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के निमंत्रण पर एक रात्रिभोज में भी भाग लिया था. उसके बाद से संघ ने अपनी सहयोगी संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद को अपेक्षाकृत अधिक संगठिनत और नियमित बनाया है.
इस बैठक के बारे में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर कहते हैं, ''यह बैठक सामाजिक समरसता और संवाद की दिशा में एक सकारात्मक कदम है. यह बैठक समाज के सभी वर्गों के साथ व्यापक संवाद की एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसका मुख्य उद्देश्य देशहित में सभी लोगों को एकजुट कर मिलकर काम करना है. चर्चा सकारात्मक रही और यह संवाद भविष्य में भी जारी रहेगा ताकि हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच गलतफहमियां दूर हो सकें और राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिले.''
इस बैठक के बारे में संघ के एक अन्य पदाधिकारी बताते हैं, ''बैठक का प्रमुख उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच गलतफहमियों को दूर करना, विश्वास और सहयोग को मजबूत करना और सामाजिक एकता का माहौल बनाना था. यह बैठक संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी, क्योंकि संघ इस वर्ष अपनी विचारधारा और सेवा कार्यों को देश के हर गांव और बस्ती तक पहुंचाने की योजना बना रहा है. मोहन भागवत ने इस बैठक में कहा कि भारत के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, एक ही पूर्वजों की संतान हैं और देश की मजबूती के लिए एकजुटता आवश्यक है.''
हरियाणा भवन में आयोजित इस बैठक में कई संवेदनशील और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई. बैठक में शामिल लोगों की मानें तो इसमें मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों को उन बातों पर बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जिन पर यह समाज असहज महसूस कर रहा है. इसके बाद बैठक में वक्फ बोर्ड, लिंचिंग, मदरसों की स्थिति और पहलगाम जैसे मुद्दों पर विस्तृत बातचीत हुई.
बैठक में शामिल एक व्यक्ति ने बताया, ''मुस्लिम प्रतिनिधियों ने अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से रखा. जबकि संघ के नेताओं ने इन मुद्दों पर अपनी स्थिति और समाधान के लिए सुझाव प्रस्तुत किए और कहा कि इस संवाद को बरकरार रखना है. मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर फिरोज बख्त अहमद ने कहा कि दोनों समुदायों के बीच बेहतर तालमेल के लिए गलतफहमियों को दूर करना जरूरी है. मुस्लिम समुदाय को भारत में किसी भी तरह के भय की आवश्यकता नहीं है और हिंदुओं को भी मुस्लिमों पर भरोसा करना चाहिए.''
सूत्रों की मानें तो बैठक में यह भी सहमति बनी कि मंदिर-मस्जिद विवाद जैसे मुद्दों को बार-बार उठाने के बजाय, अतीत को पीछे छोड़कर एक नए भारत के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए. ध्यान रहे कि भागवत ने पहले भी इस तरह के विवादों पर चिंता जताते हुए कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दों को उठाकर 'हिंदुओं के नेता' बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है. इस बैठक में भी इस बात पर जोर दिया गया कि धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ाने के बजाय संवाद और सहयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
संघ की मुस्लिम समाज से संवाद की पहल इसके पहले तक उसकी सहयोगी संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के माध्यम से होती आई है. इसकी शुरुआत 2002 में हुई थी. इसके कर्ताधर्ता इंद्रेश कुमार हैं. इस मंच ने 'एक राष्ट्र, एक ध्वज, एक राष्ट्रगान' की भावना को बढ़ावा देने के लिए कई अभियान चलाए हैं. 2023 में इस मंच ने वक्फ कानून के लाभों का प्रचार-प्रसार करने के लिए देशभर में 100 से अधिक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
मुस्लिम समाज से संघ की तरफ से सक्रिय संवाद की पहल का एक संकेत जानकार यह निकाल रहे हैं कि संघ न केवल सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना चाहता है बल्कि राजनीतिक स्तर पर भी मुस्लिम समुदाय के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है. यही वजह है कि इस बैठक के राजनीतिक मतलब भी निकाले जा रहे हैं. कुछ लोगों का तर्क है कि वक्फ कानून में संशोधन को लेकर मुस्लिम समुदाय में केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रति कुछ नाराजगी है और इस बैठक से उस नाराजगी को कम करने की कोशिश की गई है.
हालांकि, संघ की तरफ से इसके राजनीतिक निहितार्थ के बातों को खारिज किया जा रहा है और ये कहा जा रहा है कि उनका मुख्य उद्देश्य सामाजिक सौहार्द्र और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है. संघ ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि संवाद की यह श्रृंखला आगे भी बरकरार रहेगी.