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गोरखपुर रेलवे भर्ती बोर्ड में कैसे चलता था नौकरी के बदले लेनदेन का नेटवर्क?

गोरखपुर रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (RRB) में साल 2018–19 की भर्तियों के दौरान हुई कथित अनियमितताओं की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है और इस दौरान पैसे के बदले नौकरियां दिलाने वाले नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है

 RRB Gorakhpur
सीबीआई RRB गोरखपुर में 2018-19 की भर्तियों में भ्रष्टाचार की जांच कर रही है
अपडेटेड 13 अगस्त , 2025

गोरखपुर रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (RRB) में साल 2018-19 की भर्तियों के दौरान हुई कथित अनियमितताओं की जांच में अब सीबीआई-लखनऊ के पास आ गई है. इस मामले में पहले छोटे-मोटी शिकायतें दर्ज हुईं, उसके बाद आरोप इस कदर गंभीर हो गए कि एफआईआर दर्ज कर कई पूर्व अधिकारियों सहित नामज़द अभियुक्तों की गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हुआ. इस दौरान पूरी भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर बड़े सवाल उठ गए हैं.

सीबीआई लखनऊ की टीम ने पूर्वोत्तर रेलवे के उप मुख्य सतर्कता अधिकारी (लेखा) जेए वैन्ड्रीन की शिकायत पर 5 अगस्त को ही धोखाधड़ी और अपने पद का दुरुपयोग कर धन उगाही के आरोप में रेलवे भर्ती बोर्ड गोरखपुर कार्यालय के पूर्व चेयरमैन पीके राय के साथ ही चार और लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है.

इन चार लोगों में इंजीनियरिंग विभाग में तकनीशियन विनय कुमार श्रीवास्तव, कार्मिक विभाग में कार्मिक सहायक वरुण राज मिश्रा, बाहरी व्यक्ति सूरज कुमार श्रीवास्तव शामिल हैं. 48 घंटे बाद 7 अगस्त को लखनऊ से गोरखपुर पहुंची सीबीआई की सात सदस्यीय टीम ने चार जगहों पर छापेमारी की. 

सीबीआई की टीम रेलवे भर्ती बोर्ड के पूर्व चेयरमैन के गांव कसिहरा भी पहुंची. यह सिद्धार्थनगर के खेसरहा थाना में आता है. घर को खंगालने के बाद टीम उनके पिता को गाड़ी में साथ लेकर चली आई. जानकारों का कहना है कि गोरखपुर पादरी बाजार स्थित निवास पर पूर्व चेयरमैन के नहीं मिलने पर सीबीआई ने उनके पिता से भी पूछताछ की थी. सीबीआई के पहुंचने पर पूर्व चेयरमैन घर से फरार हो गए थे. 

दूसरे दिन 8 अगस्त को भी सीबीआई टीम ने आरोपित रेलकर्मियों से पूछताछ की. बयान लेने के बाद टीम संबंधित डॉक्यूमेंट को अपने साथ लेकर लखनऊ रवाना हो गई. हालांकि उप मुख्य सतर्कता अधिकारी ने 07 जनवरी 2025 को ही सीबीआई से शिकायत कर मुकदमा दर्ज कर जांच के लिए आग्रह किया था. इसके बाद सीबीआई ने अपने स्तर पर सात महीने मामले की जांच की और अब पुख्ता सबूत हासिल हो गए तो आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई शुरू की. 

सीबीआई को सौंपे गई उप मुख्य सतर्कता अधि‍कारी की जांच रिपोर्ट में 18 अभ्यर्थियों की ओर से लिखित शिकायत का जिक्र किया गया है. इन अभ्यर्थियों से सीबीआई की टीम ने संपर्क साधकर पूछताछ की है. जानकारी के मुताबिक कुछ अभ्यर्थियों ने पूर्व में रुपये की मांग को लेकर पूर्व चेयरमैन के खास रेलकर्मी से हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध करा दी है. इसके अलावा पूर्व चेयरमैन जब से गोरखपुर RRB में तैनात रहे, उस दौरान उनके बैंक खातों के लेन-देन का ब्योरा भी जुटा लिया था. बताया जा रहा है कि सीबीआई ने रेलवे विजिलेंस की जांच रिपोर्ट का पूरा अध्ययन करने के बाद सर्च वारंट लेकर पूर्व चेयरमैन और दोनों रेलकर्मियों के आवास पर छापेमारी की.  

सूत्रों के मुताबिक पूर्वोत्तर रेलवे में वर्ष 2018-19 में सहायक लोको पायलटों (एएलपी) की भर्ती के साथ ही नियुक्ति में फर्जीवाड़ा शुरू हो गया था. रेलवे भर्ती बोर्ड ने शुरुआत में ही रिक्त पद से दोगुनी भर्ती के लिए विज्ञापन निकाल दिया. 1681 अभ्यर्थियों की परीक्षा के बाद भर्ती शुरू हुई तो फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ. पारंपरिक भर्ती की तुलना में भर्ती की प्रक्रिया लंबित-पैनलिंग और दस्तावेजों की जांच में सामने आ रही दिक्कतों से परेशान होकर अभ्यर्थियों ने शिकायतें करना शुरू कर दिया.  

स्थानीय अभ्यर्थियों का आरोप था कि पैनल सूची जानबूझकर रोकी जा रही थी ताकि चयनित उम्मीदवार दबाव में आकर वसूली में भाग लें. यह सिलसिला शरीर में कैंसर की तरह धीरे-धीरे बढ़ता चला गया. “हमने शुरू में सोचा ये सामान्य देरी है” एक पीड़ित उम्मीदवार ने ‘इंडिया टुडे’ को बताया. “लेकिन जब पैनल तीन से चार महीने तक नहीं आया, और दबाव उन्हीं एक-दो लोगों के माध्यम से बढ़ा तब हम समझ गए कि यह सिर्फ देरी नहीं, बल्कि वसूली की तैयारी की जा रही है.”

सीबीआई को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक रेलवे में सहायक लोको पायलट और तकनीशियन की भर्ती में दो रेलकर्मियों और एक बाहरी युवक की तिकड़ी मशहूर थी. यह तिकड़ी अभ्यर्थियों से संपर्क साधकर सौदा तय कराती और पूर्व चेयरमैन पी. के. राय खुद हिसाब-किताब रखते थे. विभाग में तैनात उनका एक खास बाबू ही अभ्यर्थियों का पैनल तैयार करवाता था. जो अभ्यर्थी डील के मुताबिक चढ़ावा पहुंचा देते थे, उनका नाम नियुक्ति के लिए जारी पैनल में दर्ज हो जाता था. जो आनाकानी करते थे, उनका मामला लंबित कर दिया जाता था. 

उप मुख्य सतर्कता अधिकारी की 19 पेज की जांच रिपोर्ट में लिखा गया है कि बिना किसी उचित कारण के योग्य अभ्यर्थियों के पैनल में देरी की जाती थी. जिन अभ्यर्थियों ने RRB कार्यालय से संपर्क किया, उन्हें तकनीशियन विनय कुमार श्रीवास्तव और कार्यालय सहायक वरुण राज मिश्रा तत्कालीन चेयरमैन प्रवीण कुमार राय से मिलवाते थे. तत्कालीन चेयरमैन खुद उनके आवेदन रखते थे. इसके बाद अभ्यर्थियों को अज्ञात मोबाइल नंबरों से कॉल जाती और उन्हें वॉट्सएप के माध्यम से संपर्क करने के लिए कहा जाता था. 

संपर्क होने पर पैनल में शीघ्रता से शामिल होने के लिए उन पर पैसे देने का भी दबाव डालते थे, जिन अभ्यर्थियों ने पैसे दिए, उनका पैनल में सफलतापूर्वक नाम शामिल कर लिया गया, जबकि जिन्होंने भुगतान करने से इनकार कर दिया, उनके पैनल में शामिल होने में देरी हुई. जांच रिपोर्ट में एक अभ्यर्थी सत्यजीत सिंह के बयान का जिक्र भी है जिसमें तत्कालीन चेयरमैन से मिलने के बाद सत्यजीत ने विनय कुमार श्रीवास्तव से मुलाकात की और उन्होंने सत्यजीत सिंह को बताया कि अभिषेक उर्फ सूरज कुमार श्रीवास्तव नामक व्यक्ति से मिल लें.

अभिषेक ने मुलाकात के दौरान रुपये की मांग की और 85,000 रुपये सत्यजीत से लिए गए. जांच रिपोर्ट के मुताबिक RRB दफ्तर में नियुक्ति के लिए पैनल में शामिल अभ्यर्थियों से तीन से पांच लाख रुपये की मांग की जाती थी. इसके बाद सौदेबाजी की जाती थी. इस पूरे गड़बड़झाले में पूर्व चेयरमैन के एक करीबी रिश्तेदार का भी नाम आ रहा है. जब भी अभ्यर्थी हंगामा करते थे, वह उनके बीच जाकर उन्हें समझाता और उनका नाम और नंबर नोट कर लेता. इसके बाद अभ्यर्थियों के पास फोन जाने लगता था. 

रेलवे भर्ती बोर्ड कार्यालय में भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ तो रेलवे बोर्ड ने नवंबर 2022 में तत्कालीन चेयरमैन पी. के. राय को हटा दिया. उनके हटने के बाद भी फर्जीवाड़ा पर अंकुश नहीं लगा. नए चेयरमैन की नियुक्ति के बाद भी कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी चलती रही. वर्ष 2024 में भी नियुक्ति में धांधली होती रही. हद तो तब हो गई जब कार्यालय अधीक्षक चंद्र शेखर आर्य ने अपने बेटे राहुल प्रताप और निजी सचिव (द्वितीय) राम सजीवन ने अपने बेटे सौरभ कुमार को बिना फार्म भरे, परीक्षा दिए और मेडिकल टेस्ट के ही मॉडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली में फिटर बना दिया. 

गोरखपुर रिक्रूटमेंट बोर्ड में तैनात एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, “फर्जीवाड़ा के खेल में रेलकर्मियों के अलावा कर्मचारी नेताओं और कुछ बाहरी दलालों की भूमिका भी संदिग्ध रही है, जो अधिकारियों के दफ्तरों और कर्मचारियों के टेबल पर बैठकी करते रहे और पैसे का लेन-देन कराते रहे. धांधली का आलम यह है कि अभी भी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है.” 

गोरखपुर RRB का यह मामला न सिर्फ एक भर्ती घोटाले की कहानी है; यह रेलवे भर्ती प्रक्रिया की उन ढॉंचागत कमियों की पहचान भी है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी से जन्म लेती हैं. जब तक सिस्टम में डिजिटलीकरण, स्वतंत्र सत्यापन और ऑडिट लॉग जैसी संस्थागत सुरक्षा तंत्रों को मज़बूती से लागू नहीं किया जाता तब तक भर्ती प्रक्रिया में सुधार अधूरा ही रहेगा.

भर्ती प्रक्रियाओं में सुधार के दावे जो आश्वासन से आगे न बढ़ सके 

डिजिटली ऑडिट-लॉग्स: प्रत्येक पैनल निर्माण/फ़ाइल हस्तांतरण का समय-स्टैम्पेड रिकॉर्ड होना चाहिए.

तीसरे पक्ष सत्यापन: नियुक्ति से पहले दस्तावेज़ी सत्यापन किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सुनिश्चित होना चाहिए.

प्रकाशन और आपत्ति प्रक्रिया: पैनल और चयन सूची समय पर डिजिटल माध्यम से प्रकाशित की जाएं, साथ ही उम्मीदवारों का आपत्ति दर्ज करने का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम उपलब्ध हो.

तकनीकी निगरानी: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस-आधारित असामान्यता पहचान प्रणाली लागू हो जो किसी गड़बड़ी को समय रहते पहचान सके.

कानूनी सख्ती: दोषी पाए जाने पर निलंबन, आपराधिक मुकदमे और सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित की जाए.

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