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गणतंत्र दिवस 2024 : साल 1929 में लाहौर में ऐसा क्या हुआ, जिसने रखी आधुनिक भारत की नींव 

इतिहासविद् हारुन खालिद के मुताबिक यह लाहौर का अधिवेशन ही था जिसने 1929 में ही भारत के गणराज्य बनने और उसकी आधुनिकता के बीज बोए थे

नई दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस की पहली परेड (Photo Credit: Wikimedia Commons)
नई दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस की पहली परेड (Photo Credit: Wikimedia Commons)
अपडेटेड 26 जनवरी , 2024

एक कहावत है कि 'जिन लाहौर नई वेख्या, वो जम्याई नई'. मतलब कि जिसने लाहौर नहीं देखा वो इस दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ. पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा शहर कभी अविभाजित भारत के पंजाब का हिस्सा हुआ करता था. इस शहर के बारे में किताबों से लेकर फिल्मों तक में कई सारी कहानियां सुनी और सुनाई गईं. पर इस शहर में घटने वाली कहानियों के तार भारत के गणतंत्र दिवस से भी सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. 

लाहौर में बहने वाली रावी नदी का तट गवाह है उस ऐतिहासिक घटना का जब कांग्रेस ने 1929 में 'पूर्ण स्वराज' हासिल करने का संकल्प अपनाया. ये वही तारीख थी जिस दिन हम भारत का गणतंत्र दिवस मनाते हैं यानी 26 जनवरी. लेकिन 'पूर्ण स्वराज' का आखिर मतलब क्या था? 

इतिहासविद् हारुन खालिद के शब्दों में भारत के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू के लिए 'पूर्ण स्वराज' का मतलब देश की आर्थिक संरचनाओं में समाजवादी बदलाव था. नेहरू के लिए यह न केवल औपनिवेशिक राज्य को उखाड़ फेंकना था, बल्कि एक नई आर्थिक नीति, राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार, अभिजात वर्ग से लेना और वंचितों को वितरित करना भी था. 

हारुन खालिद के मुताबिक यह लाहौर का अधिवेशन था जिसने 1929 में ही भारत के गणराज्य बनने और उसकी आधुनिकता के बीज बोये थे. तत्कालीन अधिवेशन में नेहरू को अध्यक्ष चुना गया. साथ ही कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल में बढ़ते मध्यमवर्गीय परिवारों के सदस्य भी शामिल हुए थे. यह वर्ग औपनिवेशिक शासन के दौरान शिक्षा के मौकों का फायदा उठा रहा था. साथ ही उस वक्त अलग-अलग धर्म और संप्रदाय के लोग भी इस 'पूर्ण स्वराज' के संकल्प के साथ जुड़े हुए थे. इन सभी के लिए इसका मतलब सरकारी विभागों में बेहतर पद और एक स्वतंत्र राष्ट्र था जहां उन्हें नौकरशाही में सही प्रतिनिधित्व मिल सके. इस बात की पुष्टि आरसी अग्रवाल की किताब 'भारतीय संविधान का विकास तथा राष्ट्रीय आंदोलन में भी मिलता है. 

लाहौर अधिवेशन में आर्य समाजी भी शामिल थे. जिनके लिए 'पूर्ण स्वराज' उस गौरवशाली हिंदू अतीत का पुनरुद्धार था जो अंग्रेजों से पहले मुगलों और अन्य मुस्लिम शासकों सहित विदेशियों के प्रभाव से भटक गया था. इन सभी को एक धागे से जोड़ कर रखने वाले गांधी थे, जो उस वक्त भारत के सबसे लोकप्रिय नेता भी थे. लेकिन 'पूर्ण स्वराज' को लेकर गांधी का अपना एक नजरिया था. उनके अनुसार जहां एक ओर यह राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता था, वहीं दूसरी ओर इसका मतलब खुद पर नियंत्रण भी था. गांधी के मुताबिक बिना खुद पर नियंत्रण किये पूर्ण स्वराज का कोई मतलब नहीं था. 

लेकिन यहां पर यह सवाल उठना भी लाजमी है कि आखिर यह घटना 26 जनवरी के दिन आने वाले गणतंत्र दिवस से कैसे जुड़ती है? इसका जवाब है कि लाहौर अधिवेशन के दौरान ली गई पूर्ण स्वराज की प्रतिज्ञा को ही पहले भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाना था. पर भारत को आजादी मिली 15 अगस्त 1947 के दिन. हालांकि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था पर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 26 जनवरी के ऐतिहासिक महत्व की वजह से 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू करने वाले दिन के तौर पर चुना गया.

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