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राम मंदिर आंदोलन में निहंग सिखों की क्या थी भूमिका?

सिखों में धर्म की रक्षा के लिए तैयार किए गए लड़ाके निहंग खुद को 'गुरू' की फौज कहते हैं

राम मंदिर के निर्माण में निहंग सिखों का योगदान 165 साल से भी ज्यादा पुराना है
राम मंदिर में राम लला की मूर्ति और एक निहंग सिख
अपडेटेड 23 जनवरी , 2024

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 22 जनवरी को पूरा हो चुका है. इस आयोजन के लिए बतौर मुख्य यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरे देश से अलग-अलग हस्तियां अयोध्या में मौजूद रहीं. वहीं दूसरे धर्मों को मानने वाले कई लोगों में भी प्राण प्रतिष्ठा आयोजन का उत्साह देखने को मिला.

मिसाल के तौर पर इस आयोजन से कुछ ही दिन पहले 17 दिसंबर को निहंग सिख, बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने 22 जनवरी के दिन दुनिया भर से अयोध्या आने वाले भक्तों के लिए लंगर सेवा चलाने का ऐलान किया था. बाबा हरजीत सिंह ने कहा कि ऐसा वे अपने पूर्वज बाबा फकीर सिंह खालसा की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं.

रसूलपुर के पूर्वजों ने 165 साल पहले यानी साल 1858 में निहंग सिखों के एक दल के साथ बाबरी मस्जिद में घुसकर हिंदू प्रतीकों को स्थापित किया था. इस घटना को राम मंदिर आंदोलन की कड़ी में पहली एफआईआर के रूप में दर्ज किया गया था और यह 2019 में सुप्रीम कोर्ट के 1,045 पेज के फैसले में एक अहम सबूत भी मानी गई.

अगर 'निहंग सिखों' की बात करें तो ये सिखों का एक लड़ाका वर्ग है. यह एक अलग तरह का ढीला और गहरे नीले रंग का चोगा धारण किए रहते हैं. इनकी पहचान एक अलग, ऊंची और गोल चक्र लगी हुई खास तरह की पगड़ी से होती है. निहंग सिखों को तलवार चलाने, लड़ाई करने और मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग भी दी जाती है. ये खुद को गुरु की फौज बताते हैं. साथ ही ये गुरुग्रंथ साहिब के अलावा दशम ग्रंथ साहिब को भी अपने गुरुद्वारों में रखते हैं.

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इनकी सिख धर्म के अंदर ही अपनी कुछ अलग से प्रथाएं भी हैं. 'निहंग' शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा से हुई है. इसका अर्थ होता है मगरमच्छ या तलवार. वहीं संस्कृत में भी निहसंका नाम का एक शब्द आता है जिससे निहंग शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है. इस शब्द का अर्थ  'निडर' होता है.

अब आते हैं राम मंदिर मामले में निहंग सिखों के योगदान पर. सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के दौरान, हिंदू पक्ष ने 28 नवंबर, 1858 की एक रिपोर्ट पेश की थी. इसे तब अवध में तैनात थानेदार शीतल दुबे ने तैयार किया था. रिपोर्ट में उस घटना के बारे में बताया गया था जब निहंग सिख बाबा फकीर सिंह खालसा ने बाबरी मस्जिद के अंदर हवन और पूजा का आयोजन किया था. 

रिपोर्ट के मुताबिक, बाबा फकीर सिंह 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की शान में नारे लगाते हुए मस्जिद के अंदर घुस गए और 'राम' का प्रतीक खड़ा कर दिया. उन्होंने मस्जिद की दीवारों पर 'राम-राम' भी लिखा. बाबा फकीर सिंह जब अनुष्ठान कर रहे थे उस वक्त उनके 25 निहंग साथी मस्जिद के बाहर खड़े होकर किसी को भी परिसर में घुसने से रोक रहे थे. उन्होंने मस्जिद के अंदर एक मंच भी बनवाया जिस पर भगवान राम की मूर्ति रखी गई थी. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1 दिसंबर, 1858 को अवध के थानेदार की तरफ से 'मस्जिद जन्म स्थान' के भीतर रहने वाले बाबा फकीर सिंह को बुलाने के लिए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि वे बाबा फकीर सिंह के पास एक समन लेकर गए थे और उनको रुकने के लिए चेतावनी भी दी थी. 

अयोध्या से सिखों का जुड़ाव निहंगों से पहले का भी है. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले के दौरान पेश किए गए सबूतों में बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले 1510-11 ईस्वी में गुरु नानक देव की राम जन्मभूमि स्थल की यात्रा के बारे में बताया गया था. उस वक्त बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं हुआ था. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 'विवादित धार्मिक स्थल' पर अपने फैसले में भी इस घटना पर गौर फरमाया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 1528 ईस्वी से पहले भी तीर्थ यात्री इस स्थान के दर्शनों के लिए आते थे. 

बाबा फकीर सिंह खालसा के आठवें वंशज, बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर के मुताबिक "बाबा फकीर सिंह ने अपने जत्थे के साथ भगवान राम के जन्मस्थान को उस स्थान से मुक्त कराया जहां कभी बाबरी मस्जिद थी. उस मामले में दर्ज की गई एफआईआर महत्वपूर्ण सबूत बन गई जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया.'' 

फकीर सिंह आगे यह भी कहते हैं, "गुरु तेग बहादुर दिल्ली के चांदनी चौक गए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए खुद को बलिदान कर दिया. हमारे पूर्वज उनके नक्शेकदम पर चले और हम भी वही कर रहे हैं. इसके जरिये, हम उन लोगों का मुंह भी बंद करना चाहते हैं जो विदेशों में बैठे हैं और हमारे देश को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं. हम एक संदेश देना चाहते हैं कि हम एक हैं. हम सनातनी हैं.'' 

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