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राजनाथ सिंह के किंगदाओ दौरे से भारत-चीन रिश्तों में नई शुरुआत की उम्मीद क्यों दिख रही है?

गलवान झड़प ने भारत-चीन संबंधों को पूरी तरह से बदल दिया था. लगभग पांच साल तक सभी राजनीतिक और सैन्य संवाद ठप रहे. ऐसे में कई वजहों से राजनाथ सिंह का चीन दौरा बेहद अहम है

राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
अपडेटेड 18 जून , 2025

24-25 जून को चीन के किंगदाओ शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक हो रही है. इसमें शामिल होने के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी जा रहे हैं.

2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद पहली बार भारत की ओर से कोई केंद्रीय मंत्री चीन के दौरे पर जा रहा है. गलवान घाटी झड़प ने भारत-चीन संबंधों को पूरी तरह से बदल दिया था. इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच लगभग पांच साल तक सभी राजनीतिक और सैन्य संवाद ठप रहे.

गलवान झड़प में 20 भारतीय और बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए थे. हालांकि, चीनी सैनिकों के मारे जाने का डेटा अब भी अस्पष्ट है. यह 1967 के बाद दोनों देशों के बीच सबसे गंभीर सीमा टकराव था.

अक्टूबर 2024 में एक महत्वपूर्ण सीमा समझौते के बाद यह पहला मौका होगा, जब औपचारिक तौर पर भारतीय मंत्री चीन के किंगदाओ शहर में उपस्थिति होंगे. रक्षा मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह की चीन यात्रा प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.

यह दौरा दोनों देशों के बीच सकारात्मक आशावाद का संकेत देता है जो लंबे समय से अविश्वास और सैन्य तनाव से ग्रस्त रहा है.

गलवान झड़प के बाद LAC पर भारी संख्या में सैन्य तैनाती की वजह से राजनयिक संपर्क नहीं हो रहा था, जिससे दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी भी देखने को मिल रही थी.  

पिछले अक्टूबर में कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ता के बाद दोनों पक्ष सीमित गश्त फिर से शुरू करने और संवेदनशील टकराव बिंदुओं से धीरे-धीरे सेना वापस बुलाने पर सहमत हुए. हालांकि, यह समझौता पूरी तरह से सीमा विवाद को हल करने से चूक गया, लेकिन इसने सीमा पर 2020 से पहले की स्थिति जरूर बहाल की.

इस समझौते ने नए सिरे से बातचीत का रास्ता साफ किया. साथ ही दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं के लिए एक बार फिर से माहौल तैयार किए.

अभी कुछ समय पहले ही आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लाओस गए थे. चीनी रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के साथ राजनाथ सिंह की बातचीत ने रक्षा वार्ता जारी रखने की नींव रखी थी. यही वजह है कि अब SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय बैठक पर बारीकी से नजर रखी जा रही है.

SCO में राजनाथ सिंह की उपस्थिति और यह दौरा इस बात का भी लिटमस टेस्ट है कि दोनों देशों के संबंधों में हाल ही में आई नरमी को बरकरार रखा जा सकता है या नहीं.

किंगदाओ में होने वाली चर्चा को असल मायने में दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की प्रक्रिया के अगले कदम के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, राजनाथ सिंह का चीन दौरा यह दिखाता है कि भारत और चीन इस बात से सहमत हैं कि दोनों देशों के बीच अनियंत्रित प्रतिद्वंद्विता इस पूरे क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरनाक हो सकती है.

खास बात है कि यह द्विपक्षीय बातचीत इस्लामाबाद के साथ बीजिंग की बढ़ती रक्षा साझेदारी के समय में हो रही है. चीन पिछले कुछ समय से पाकिस्तान को आधुनिक हथियारों की लगातार सप्लाई कर रहा है.

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य टकराव के दौरान चीन का पाकिस्तान को समर्थन नई दिल्ली के लिए एक परेशान करने वाली बात है. चीन-पाकिस्तान के रक्षा संबंध को अक्सर "सदाबहार रणनीतिक साझेदारी" के रूप में देखा जाता है. हाल के वर्षों में आपसी भू-राजनीतिक हितों से प्रेरित होकर यह और भी ज्यादा गहरा हुआ है.

एशिया में भारत के प्रभाव को कम करने के साथ ही दक्षिण एशिया में अमेरिकी उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए चीन और पाकिस्तान की यह दोस्ती मजबूत हो रही है. इस वर्ष SCO की अध्यक्षता करने वाले चीन ने भारत के रक्षा मंत्री को राजनाथ सिंह को निमंत्रण, भेजकर यह दिखाने की कोशिश की है कि वह यूरेशियाई सुरक्षा और शांत में अहम भूमिका निभाना चाहता है.  

SCO की इस बैठक से भारत के सामने अवसर और दुविधा दोनों की स्थिति है. यह भारत के लिए अपनी सुरक्षा चिंताओं के साथ ही साथ क्षेत्रीय मुद्दे पर बात रखने का एक बेहतर मंच है. लेकिन, इसके लिए भारत को अपने प्रतिद्वंद्वी देश चीन और पाकिस्तान के साथ एक मंच पर बैठकर बात करनी होगी.

भारत और पाकिस्तान दोनों 2017 में SCO के पूर्ण सदस्य बन गए. इसकी स्थापना 2001 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना , कजाकिस्तान , किर्गिस्तान , रूस और ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी. ईरान जुलाई 2023 में और बेलारूस जुलाई 2024 में समूह में शामिल हुआ.

बढ़ती शत्रुता के बावजूद एक ही मेज पर भारतीय और पाकिस्तानी रक्षा मंत्रियों की उपस्थिति मंच के विरोधाभासों को भी दिखाती है. भारत-चीन संबंधों में हाल ही में जो सुधार हुआ है, वह सैन्य वार्ता से अब आगे बढ़ गया है.

उच्च स्तरीय कैबिनेट मंत्री की यात्राओं के साथ दोनों देश एक दूसरे में दोबारा से विश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. 2025 की गर्मियों में कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना एक विशेष रूप से प्रतीकात्मक कदम था, जो लंबे समय से भारत की मांग थी. भारत की मांग को पूरा करके चीन ने साकारात्मक प्रतिक्रिया दिया.  

प्रत्यक्ष हवाई संपर्क को फिर से शुरू करने के लिए दोनों देशों के बीच चर्चा हो रही है. भारत और चीन उड़ानों को बहाल करने के लिए "सैद्धांतिक रूप से" सहमत हैं.

भारत के पूर्वोत्तर में बाढ़ प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयरिंग को फिर से शुरू किया जा रहा है. इसके अलावा दोनों देश वीजा प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और सांस्कृतिक, शैक्षणिक और मीडिया संपर्क बढ़ाने के प्रयासों में लगे हुए हैं.

ये कदम दोनों देशों के एक साझा मान्यता को दर्शाते हैं कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए व्यापक जुड़ाव की आवश्यकता है. यह सिर्फ सीमा पर तनाव कम करने से संभव नहीं होगा.  

जनवरी में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बीजिंग यात्रा के बाद भारत में पूर्व राजदूत रहे चीनी उप विदेश मंत्री सन वेइदोंग की हाल की भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच सकारात्मक संबंधों को मजबूत करने में मदद की है.

सन वेइदोंग ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की और विदेश सचिव-उप मंत्री तंत्र की सह-अध्यक्षता की, जिसने द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति की समीक्षा की और व्यापार, संपर्क और क्षेत्रीय मुद्दों पर जुड़ाव को गहरा करने के तरीकों की खोज की.

भारत अधिक संतुलित और पारदर्शी आर्थिक संबंध के लिए जोर दे रहा है. इस बात की काफी संभावना है कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच बाजार तक पहुंच आसान बनाने के लिए बातचीत होगी. इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाने पर भी बातचीत हो सकती है.  

राजनाथ सिंह की यात्रा वैश्विक उतार-चढ़ाव के बीच एक अलग तरह की भूराजनीतिक स्थिति के बीच हो रही है. एक ओर यूक्रेन में युद्ध जारी है. पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ रहा है और इंडो-पैसिफिक में अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता चरम पर है.

भारत की विदेश नीति ने एक ओर अमेरिका और उसके क्वाड भागीदारों के साथ अपने संबंधों को बेहतर किया है. वहीं, दूसरी तरफ रूस के साथ मजबूत रक्षा और ऊर्जा सहयोग बनाए रखा है.

इस तरह देखें तो चीन के साथ जुड़ाव रणनीतिक तौर पर अहम होने से ज्यादा मतभेदों को खत्म करने की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए. SCO भारत को चीन के साथ बहुपक्षीय रूप से जुड़ने, अपनी क्षेत्रीय पहचान को पेश करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक उपयोगी मंच प्रदान करता है कि दोनों देशों के बीच तनाव ज्यादा नहीं बढ़े.

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस साल के अंत में तियानजिन में होने वाले आगामी SCO शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है, लेकिन उनकी भागीदारी की पुष्टि अभी नहीं हुई है.

अगर वे इसमें शामिल होते हैं, तो यह संबंधों को स्थिर करने के एक साल के प्रयासों का परिणाम हो सकता है. हालांकि, इसमें भी कोई दो राय नहीं कि सीमा विवाद अभी भी अनसुलझा है और भारत का रुख दृढ़ है.

सीमा विवाद को सुलझाए बिना रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते हैं. हालांकि, भारत फिलहाल चीन के साथ सीमा विवाद को पीछे छोड़कर आर्थिक और बहुपक्षीय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है.  

यही वजह है कि राजनाथ सिंह की यात्रा इस बात का सबूत है कि दोनों पक्ष आपसी अविश्वास के बावजूद बातचीत करने के लिए तैयार हैं. यह टकराव से सतर्क संवाद की ओर व्यापक बदलाव को दर्शाता है. अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव के बीच एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियों के बीच मामूली सी भी नरमी की अपनी अहमियत है.

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