
10 मई 2025 को सीजफायर के बाद भी देश के कई हिस्सों में पाकिस्तान की ओर से ड्रॉन हमले जारी रहे. हालांकि सीजफायर को तोड़ना पाकिस्तान के लिए कोई नई बात नहीं है. पाकिस्तान की ऐसी ही एक नापाक हरकत का गवाह रहा है राजस्थान के जैसलमेर जिले का सीमावर्ती नग्गी गांव.
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मिली करारी हार के बाद पाकिस्तान ने 16 दिसंबर 1971 को अपने 90 हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. सीमा पर तैनात हमारी सेना वापस चौकियों की तरफ लौट रही थी.
सीमा क्षेत्र शांत नजर आ रहा था. उसी दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर कस्बे के पास नग्गी गांव में भारतीय सीमा में घुसकर करीब एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हमारी जमीन पर कब्जा जमा लिया था. 26 दिसंबर को कुछ ग्रामीणों ने उनके खेतों में पाकिस्तानी सैनिक देखकर भारतीय सेना को सूचित किया.

इसके बाद 4 पैरा रेजिमेंट को यह जमीन मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई. पहले 4 पैरा रेजिमेंट के 22 जवान घटना की जानकारी लेने के लिए वहां पहुंचे मगर पाकिस्तानी सेना की ओर से की गई गोलाबारी और भारत की जमीन पर उनकी ओर से बिछाई गई लैंड माइंस की चपेट में आ जाने से 21 जवान शहीद हो गए.

इसके बाद 4 पैरा रेजिमेंट की टुकड़ी ने योजना बनाकर 28 दिसंबर 1971 की रात 3 बजे पाकिस्तानी सेना पर धावा बोला और उन्हें हमारी जमीन से खदेड़ दिया. पाकिस्तानी सेना अपने हथियार छोड़कर पाकिस्तान की तरफ भाग खड़ी हुई. पाकिस्तान के हथियार आज भी नग्गी में बनाए गए वॉर मेमोरियल में रखे हुए हैं. भारतीय सेना की इस दौरान नग्गी गांव के स्थानीय ग्रामीणों ने भी हरसंभव मदद की. यहीं के एक निवासी राधेश्याम बताते हैं, "हमने अपने ट्रेक्टरों के साइंलेसर निकालकर उन्हें खेतों में दौड़ाया. बिना साइलेंसर के जब ट्रैक्टर दौड़ने लगे तो उनसे ऐसी आवाज निकली जैसे कि बहुत सारे टैंक बॉर्डर की तरफ आ रहे हो." उसी दौरान भारतीय सेना की 4 पैरा रेजिमेंट ने पाकिस्तानी सेना पर एक मजबूत हमला किया और महज तीन घंटे में ही उसे वापस पाकिस्तान भागने पर मजबूर कर दिया.

सीजफायर के बाद हुए इस युद्ध के दौरान पाक सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए इससे बटालियन के 3 अधिकारी व 18 जवान शहीद हो गए. नग्गी गांव के पास रेतीले धोरों के बीच हुई यह लड़ाई भारतीय सेना में आज भी अविस्मरणीय पलों में गिनी जाती है. रेतीले धोरों के बीच में होने के कारण यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में सैण्ड ड्यून वार (धोरों की लड़ाई) के नाम से दर्ज है.
इस लड़ाई में जान गंवाने वाले रणबांकुरों की स्मृति में नग्गी गांव में एक स्मारक व मंदिर भी बनाया गया है. सीमा से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित यह स्मारक आज भी युद्ध में प्राण न्योछावर कर चुके वीरों की याद दिलाता है. हर वर्ष 28 दिसंबर को उन शहीदों की स्मृति में यहां मेले का आयोजन किया जाता है.
नग्गी स्मारक पर बने मंदिर में पुजारी का काम देखने वाले मोहन लाल पाकिस्तान की उस नापाक घटना के गवाह रहे हैं. स्मारक के भीतर आज भी मोहन की तस्वीर लगी है. मोहन को भारतीय सेना ने नग्गी गांव में हुई उस लड़ाई का सिटीजन वॉरियर घोषित किया है. पिछले 55 साल से मोहन स्मारक स्थल पर बने मंदिर में पूजा का काम संभालते हैं. मोहन कहते हैं, ‘‘उस वक्त मेरी उम्र यही कोई 15-16 साल की थी. हमने भी सेना की उस समय खूब मदद की थी. सेना को चाय, नास्ता, पानी पहुंचाने संबंधी तमाम गतिविधियां हम ग्रामीणों ने ही संभाली थीं.’’