नरेंद्र मोदी की सरकार के केंद्र में आने के बाद से ही इस बात पर बहस तेज है कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में 'बहस' और 'चर्चा' की गुंजाईश कम होती जा रही है. चाहे वह नागरिकता संशोधन बिल (अब सीएए) को संसद में पास करवाना हो या कृषि बिल (जो बाद में वापस ले लिए गए), केंद्र सरकार की बहुत आलोचना हुई. कुछ महीनों पहले प्यू रिसर्च सेंटर ने भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें भारत में ऑटोक्रेसी या अधिनायकवाद की धमक महसूस किए जाने जैसी बातें लिखी गई थीं.
अब आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि लोकतंत्र के मूल स्तंभ माने जाने वाले 'चर्चा' और 'बहस' की गुंजाईश भारत में कम होती जा रही है. लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर नजर रखने वाली प्रतिष्ठित संस्था पीआरएस की रिसर्च के मुताबिक, 2023 में 10 राज्यों में पेश किए गए ₹18.5 लाख करोड़ के कुल बजट का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा बिना चर्चा के पारित कर दिया गया था.
पांच राज्यों में, लोक लेखा समिति (पीएसी), जो राज्य सरकारों के खातों की जांच करती है, ने इस वर्ष कोई रिपोर्ट पेश नहीं की. इसके अलावा, पांच राज्य विधानसभाओं ने सभी विधेयकों को पेश किए जाने वाले दिन या अगले दिन पारित कर दिया. 2023 में 20 राज्यों में 84 अध्यादेश भी लाए गये. ये आंकड़े क्या कहते हैं?
पीआरएस ने विधानसभाओं को बिल पास करने में लगने वाले समय पर जब गौर किया तो पाया कि ज्यादातर विधेयकों को न्यूनतम चर्चा के बाद पारित कर दिया गया. आंकड़ों की बात करें तो 44 प्रतिशत बिल या तो उसी दिन पारित कर दिए गए जिस दिन उन्हें पेश किया गया था, या उसके अगले दिन. ऐसा नहीं है कि 2023 में अचानक से ऐसा कोई ट्रेंड देखा गया हो. 2022 में यह आंकड़ा 56 प्रतिशत था तो 2021 में 44 प्रतिशत.
राज्यों का अगर नाम लेकर बात करें तो पंजाब, गुजरात, झारखंड, मिजोरम और पुदुचेरी में सभी 100 प्रतिशत विधेयक या तो पेश होने वाले दिन या उसके अगले दिन पारित कर दिए गए. 2023 में 28 में से 13 विधानसभाओं में पेश होने के महज 5 दिन के भीतर ही सभी विधेयकों ने कानून का रूप ले लिया. केरल और मेघालय ऐसे राज्य थे जिनकी विधानसभाओं ने अपने 90 प्रतिशत से ज्यादा विधेयक पारित करने में 5 दिन से ज्यादा लगाए. इसके अलावा राजस्थान की विधानसभा ने भी अपने 55 प्रतिशत विधेयकों को पारित करने से पहले चर्चा के लिए औसतन 5 दिनों से अधिक समय दिया.
किसी भी राज्य के सबसे अहम विधेयकों में बजट शामिल होता है जिसपर गहन चर्चा के बाद ही मुहर लगाई जाती है. मगर 10 राज्यों के लाखों करोड़ के बजट को पास करने से पहले उसपर चर्चा करने में भारी कंजूसी देखी गई. जिन राज्यों के आंकड़ों के आधार पर पीआरएस ने यह बात कही उसमें मध्य प्रदेश, केरल, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना शामिल हैं.
इन 10 राज्यों के बजट के 36 प्रतिशत हिस्से पर बिना चर्चा के ही वोटिंग हो गई. मध्य प्रदेश के 3.14 लाख करोड़ रुपए के बजट का 85 प्रतिशत हिस्सा बिना चर्चा के स्वीकार कर लिया गया. इसी तरह केरल में 78 प्रतिशत, झारखंड में 75 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 74 प्रतिशत बजट बिना चर्चा के पारित कर दिया गया.
कायदे से होता यह है कि जब वित्त मंत्री बजट की घोषणा करते हैं तो उसपर पहले चर्चा होती है. इसके बाद जितना पैसा सरकार की ओर से मांगा जाता है उसपर समितियां कटौटी का प्रस्ताव देती हैं, अगर उसकी गुंजाईश हो. इसके बाद फिर से चर्चा होती है और तमाम मंत्रालयों के खर्चे पर वोटिंग की जाती है.
इसके अलावा एक लोक लेखा समिति (पीएसी) होती है जो राज्य सरकारों के खातों और राज्यों के सीएजी रिपोर्ट की जांच करती है. इसके अध्यक्ष आमतौर पर नेता प्रतिपक्ष या विपक्ष के कोई दूसरे वरिष्ठ नेता होते हैं. फिलहाल कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी इस संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं.
लोक लेखा समिति सरकारी खर्चे की जांच करती है. ऐसा केवल तकनीकी अनियमितताओं का पता लगाने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि पैसों की बर्बादी, नुकसान, भ्रष्टाचार, फिजूलखर्ची, अक्षमता और निरर्थक खर्चों के मामलों को सामने लाने में भी इस समिति का बड़ा हाथ होता है.
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की एनुअल रिव्यू ऑफ स्टेट लॉज़ 2023 के मुताबिक, 2023 में पीएसी ने 24 बैठकें कीं और 13 राज्यों में औसतन 16 रिपोर्ट पेश कीं. मगर इन 13 राज्यों में से पांच में - बिहार, दिल्ली, गोवा, महाराष्ट्र और ओडिशा - पीएसी ने कोई रिपोर्ट पेश नहीं की. चिंताजनक बात यह है कि महाराष्ट्र में पीएसी ने पूरे साल के दौरान न तो बैठक की और न ही कोई रिपोर्ट जारी की. इसके उलट, तमिलनाडु में पीएसी ने 95 और हिमाचल प्रदेश में 75 रिपोर्टें पेश कीं. उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों में पीएसी की 50 या उससे अधिक बैठकें हुईं, लेकिन बिहार में एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की गई.
बात करें राज्यपालों की ओर से जारी किए जाने वाले अध्यादेशों की तो पीआरएस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 20 राज्यों की ओर से कुल 83 अध्यादेश जारी किए गए थे. इनमें उत्तर प्रदेश में नए विश्वविद्यालयों, उत्तराखंड में सरकारी परीक्षाओं, और महाराष्ट्र में अपार्टमेंट्स के स्वामित्व को लेकर ऐसा किया गया था. ध्यान रहे कि अध्यादेश जारी करने में भी किसी भी तरह की चर्चा नहीं की जाती, बल्कि मंत्रिमंडल की सलाह पर केवल एक हस्ताक्षर से राज्यपाल या राष्ट्रपति ऐसा कर सकते हैं. सबसे ज्यादा अध्यादेश निकालने वाले राज्यों में यूपी (20), आंध्र प्रदेश (11) और महाराष्ट्र (9) शामिल हैं.