scorecardresearch

राज्यसभा में प्रियंका चतुर्वेदी तो लोकसभा में अवधेश प्रसाद, किन नियमों के तहत अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे ये सांसद ?

हाल ही में शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी राज्यसभा का संचालन करती नजर आई थीं, और इस पर सोशल मीडिया पर काफी बतकही भी हुई. 31 जुलाई को सपा सांसद अवधेश प्रसाद भी लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान नजर आए. सवाल है कि आखिर किन नियमों के तहत इन्हें मिली सदन के संचालन की जिम्मेदारी

(बाएं) शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और सपा सांसद अवधेश प्रसाद
(बाएं) शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और सपा सांसद अवधेश प्रसाद
अपडेटेड 1 अगस्त , 2024

कमोबेश हर नई चीज को देखकर आश्चर्य में पड़ जाने और कई बार उससे आहत हो जाने वाले हमारे देश में जब 25 जुलाई को शिवसेना (उद्धव गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारी संभाली, तो सोशल मीडिया पर कुछ लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ. मामला इतना बढ़ा कि प्रियंका ने न सिर्फ एक्स (ट्विटर) पर एक यूजर को तगड़ी फटकार लगाई, बल्कि उसके खिलाफ संसदीय विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की बात भी कही.

इधर, 31 जुलाई को एक बार फिर सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो क्लिप खूब वायरल हुए, जिनमें समाजवादी पार्टी (सपा) के फैजाबाद से सांसद अवधेश प्रसाद अपने जन्मदिन पर लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करते नजर आ रहे थे. सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे खूब शेयर भी किया. वहीं कुछ लोगों में ये जिज्ञासा भी पैदा हुई कि आखिर अवधेश या प्रियंका किन नियमों के तहत सदन का संचालन कर रहे हैं? ऐसे में आइए समझते हैं कि इससे जुड़े नियम क्या कहते हैं.

दरअसल, देश के संविधान का जब निर्माण हो रहा था, तब इसके निर्माताओं ने लोकसभा और राज्यसभा, इन दोनों को यह सुविधा दी कि वे सदन के सुचारु रूप से संचालन के लिए अपने नियम-कायदे बना सकते हैं. इसी के तहत, संविधान का अनुच्छेद 118 (1) इन दोनों सदनों को ये नियम बनाने की छूट देता है. जहां राज्यसभा ने 2 जून, 1964 को सदन की संचालन प्रक्रिया और कार्यवाही से जुड़ी अपनी नियम-पुस्तिका लागू की, वहीं लोकसभा में यह करीब 10 साल पहले (1954) ही अस्तित्व में आ गई थी.

एक्स यूजर की टिप्पणी का स्क्रीनशॉट
एक्स यूजर की टिप्पणी का स्क्रीनशॉट

बहरहाल, जुलाई की 25 तारीख को जब शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी संसद के बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में सदन का संचालन कर रही थीं, तो इधर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों के लिए यह काफी चौंकाने वाला था. मि. सिन्हा नाम के एक एक्स यूजर ने प्रिंयका की एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा, "स्पीकर की कुर्सी के लिए सबसे शर्मनाक क्षण...क्या पतन है..वह वहां कैसे पहुंची???"

इस एक्स यूजर की ये अपमानजनक बातें प्रियंका को नागवार गुजरीं. उन्होंने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा, "इसकी नीचता देखो. हालांकि यह ट्ववीट न सिर्फ संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन और लैंगिक भेदभाव के बारे में है, बल्कि माननीय उपराष्ट्रपति पर भी आरोप लगाने के बारे में है, जो सदन के सभापति हैं. मैं माननीय सभापति से अनुरोध करूंगी कि वे इस पॉ पॉ ब्रिगेड चैंपियन के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव की अनुमति दें, जिसे यह भी पता नहीं है कि राज्यसभा में सभापति होते हैं, न कि स्पीकर."

वास्तव में, प्रियंका उस दिन पूरी तरह नियमों और अथॉरिटी के मुताबिक ही इस ऊपरी सदन का संचालन कर रही थीं. राज्यसभा में कार्य-प्रक्रिया और संचालन की नियम पुस्तिका के रूल 8 (1) के मुताबिक, राज्यसभा के सभापति (जो कि उपराष्ट्रपति होता है) समय-समय पर इस सदन से अधिकतम छह सदस्यों का चुनाव वाइस-चेयरमैन के एक पैनल के लिए करते हैं. 

जब सदन में सभापति और उपसभापति दोनों ही किन्हीं कारणवश गैर-मौजूद रहते हैं, तब इनकी गैर-हाजिरी में इस पैनल से कोई एक सदस्य उनकी जगह पर सदन का संचालन करता है. यानी राज्यसभा के सभापति द्वारा पैनल में जो लोग चुने गए होते हैं, वे अधिकृत और सक्षम पीठासीन अधिकारी होते हैं, और वे सदस्य ही सभापति और उपसभापति की गैर-मौजूदगी में सदन की कार्यवाही का संचालन सुनिश्चित करते हैं.

फिलहाल प्रियंका चतुर्वेदी भी इसी पैनल का हिस्सा हैं, और यही वजह है कि उन्होंने 25 जुलाई को इस ऊपरी सदन के संचालन की जिम्मेदारी संभाली. इस पैनल के सदस्यों का कार्यकाल तब तक जारी रहता है जब तक कि नया पैनल नामित नहीं हो जाता. हालांकि संसदीय नियमों में इस पैनल से जुड़ने की योग्यता के मानदंड स्पष्ट रूप से नहीं बताए गए हैं, लेकिन सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें संसदीय प्रक्रियाओं की अच्छी समझ हो.

आइए अब लोकसभा में चलते हैं कि आखिर अवधेश प्रसाद किन नियमों के तहत पीठासीन अधिकारी की कुर्सी पर विराजमान हुए. करीब दो-एक महीने पहले समाजवादी पार्टी के इस फैजाबाद के सांसद की लोकसभा में डिप्टी-स्पीकर पद के लिए उम्मीदवारी की बातें जोरों पर थीं. लेकिन इन अटकलों-संभावनाओं के बीच लोकसभा के मौजूदा अध्यक्ष ओम बिरला ने एक जुलाई को घोषणा की कि अवधेश प्रसाद को पैनल ऑफ चेयरपर्सन (पीठासीन अधिकारियों की जमात) का सदस्य बनाया जाता है.

दरअसल, राज्यसभा की तरह ही लोकसभा की नियम-पुस्तिका में भी यह व्यवस्था है कि इस निचली सदन में संचालन और कार्यवाही संबंधी कामों में स्पीकर की सहायता के लिए एक पैनल ऑफ चेयरपर्सन होगा. लोक सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 9 (1) के मुताबिक, जो स्पीकर होंगे, वे समय-समय पर इस सदन के सदस्यों में से अधिकतम दस लोगों का चुनाव एक पैनल के लिए करेंगे. जब लोकसभा में कार्यवाही के दौरान स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों ही किन्हीं कारणवश सदन में मौजूद नहीं रहेंगे, तब इस पैनल में से कोई एक सदस्य सदन के संचालन का जिम्मा संभालेगा. 

एक जुलाई को स्पीकर बिरला ने 9 लोगों को पैनल ऑफ चेयरपर्सन के लिए चुना था. इनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जगदंबिका पाल, पीसी मोहन, संध्या रे, और दिलीप सैकिया थे, तो वहीं कांग्रेस से कुमारी शैलजा और द्रविण मुनेत्र कजगम (द्रमुक) से ए राजा थे. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से डॉ. काकोली घोष दस्तीदार को चुना गया, जबकि तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) से कृष्णा प्रसाद टेनेटी सिलेक्ट हुए. 

इन सभी के अलावा समाजवादी पार्टी से अवधेश प्रसाद को चुना गया था. और यही वजह है कि 31 जुलाई को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की गैर-मौजूदगी में अवधेश प्रसाद लोकसभा में पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभा रहे थे. आने वाले समय में बाकी और लोग भी इस भूमिका में दिख सकते हैं.

Advertisement
Advertisement