राजनीति में सही समय का बहुत महत्व होता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर यह कौन जान सकता है. यही कारण है कि एक रेलवे पुल का उद्घाटन भले ही सामान्य सा लगने वाला काम हो, लेकिन अगर राजनेता सही समय पर इसका उद्घाटन करें तो यह लोगों के बीच शक्तिशाली राजनीतिक संदेश दे सकता है.
अप्रैल की 6 तारीख यानी उत्तर भारत के लाखों लोगों के लिए पवित्र ‘राम नवमी’ के दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के तटीय शहर रामेश्वरम की यात्रा की. इस दौरान उन्होंने नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया.
यह भारत के पहले वर्टिकल-लिफ्ट रेलवे समुद्री पुल का औपचारिक उद्घाटन था, जो रामेश्वरम द्वीप को भारतीय मुख्य भूमि से जोड़ने वाला 2 किलोमीटर लंबा एक आकर्षक ढांचा है.
इस पुल का उद्घाटन जिस खास मौके पर हुआ है, उसकी वजह से इसका महत्व सिर्फ भौतिक संपर्क से कहीं ज्यादा है. इसकी प्रतीकात्मकता को नजरअंदाज करना मुश्किल है.
रामनवमी के दिन प्रधानमंत्री देश के दक्षिणी छोर पर थे और वे भगवान राम और विकास का एक ही सांस में आह्वान कर रहे थे. ऐसे समय में जब राजनीतिक चर्चा 'उत्तर-दक्षिण विभाजन' की बातों से भरी हुई है.
दशकों तक देश के धार्मिक पर्यटन में एक महत्वपूर्ण जगह और हिंदू परंपरा में एक पूजनीय स्थान रामेश्वरम 1914 में बने प्रतिष्ठित पंबन ब्रिज के माध्यम से शेष भारत से जुड़ा था.
यह पुराना ढांचा और भारत का पहला समुद्री पुल, चक्रवातों, जंग और अनगिनत मानसूनी ज्वारों का सामना करते हुए एक सदी से भी अधिक समय तक खड़ा रहा. हालांकि, समय के साथ यह पुल कमजोर हुआ और इसके रखरखाव की जरूरत महसूस हुई. इस पुल से होकर गुजरने वाली ट्रेनें और माल वाहन गाड़ियों में कमी आई.
अब प्रधानमंत्री मोदी ने जिस नए पुल का उद्घाटन किया है, वह हर लिहाज से पुराने पुल की तुलना में बेहतर है. इस पुल का स्ट्रक्चर 143 खंभों पर करीब 2.07 किलोमीटर तक लंबा है, इसे बनाने में करीब 550 करोड़ रुपए की लागत आई है. यह पुल भारत में पहली बार 72.5 मीटर तक का वर्टिकल-लिफ्ट स्पैन पेश करता है.
यही वजह है कि अब इस पुल के बीच के हिस्से को 17 मीटर तक ऊपर उठाया जा सकता है, जिससे बड़े जहाज इसके नीचे से गुजर सकते हैं. इससे पुल के पास से होकर समुद्री जहाज अब किनारे स्थित पोर्ट तक आ सकेंगे. इस तरह लंबे समय से चली आ रही इस समस्या का समाधान हो गया है.
नया पुल बनने से पहले जहाजों को उस होकर पास कराने के लिए मैनुअल तरीके से स्पैन को उठाया जाता था, जिसमें अक्सर देरी होती थी. नया लिफ्ट स्पैन एक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल प्रणाली द्वारा संचालित होता है, जिसे केंद्रीय ऑपरेटर कक्ष में बैठे इंजीनियर आसानी से ऑपरेट कर सकते हैं.
पुल का डिजाइन टिकाऊ है क्योंकि इसके निर्माण में स्टेनलेस स्टील का उपयोग किया गया है. पॉलीसिलोक्सेन कोट इसे मजबूत बनाने के साथ ही नमकीन हवाओं से भी बचाता है. नए पुल की संरचना 160 किमी प्रति घंटे तक रेल की गति को संभाल सकती है.
भले ही इस पुल को शुरू कर दिया गया हो, लेकिन इसकी सिग्नलिंग अपग्रेडेशन का काम पूरा होने तक ट्रेन की गति 80 किमी प्रति घंटा ही रहेगी. चूंकि यह पुल यात्रियों और माल ढुलाई दोनों के लिए उपयोगी है, इसलिए यह पुल रामेश्वरम, रामनाथपुरम जिले और तमिलनाडु के दक्षिणी तट के लिए आर्थिक विकल्प प्रदान करता है.
इसके शुरू होने से आसपास के लोगों के लिए अपार संभावनाएं पैदा होंगी. बेहतर रेल संपर्क होने से यहां तीर्थयात्रा पर्यटन, मछली पकड़ने के साथ ही तटीय व्यापार पर निर्भर क्षेत्र को लाभ पहुंचेगा.
पंबन ब्रिज के पुराना होने की वजह से न सिर्फ यात्रा बल्कि माल ढुलाई में भी बाधाएं आती थीं. नया पुल संभवतः तेज, सुरक्षित और अधिक विश्वसनीय है. रामनाथस्वामी मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा का समय कम हो सकता है. राज्य के इस हिस्से में कार्गो दक्षता बढ़ सकती है.
भले ही यह पुल आसपास के लोगों के लिए आर्थिक तौर पर बेहद मददगार साबित होगा, लेकिन इसके उद्घाटन किए जाने के समय ने ये स्पष्ट कर दिया है कि इसका प्रतीकवाद भी राजनीतिक है.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पुल को "राष्ट्रीय एकता का प्रतीक" बताया है. ऐसा करके केंद्र सरकार ने पुल को न केवल इंजीनियरिंग की सफलता के रूप में बल्कि वैचारिक इरादे के बयान के रूप में भी पेश किया है. इसके जरिए तमिलनाडु सरकार की उत्तर और दक्षिण की राजनीति को भी जवाब देने की कोशिश की है.
केंद्र और तमिलनाडु के बीच यह तनाव नया नहीं है. तमिलनाडु सरकार काफी समय से नई दिल्ली के सांस्कृतिक केंद्रीकरण के रूप में किए जाने वाले किसी भी प्रयास का विरोध करती रही है. खासकर हिंदी और राष्ट्रीय पहचान को आकार देने के मामले में तमिलनाडु सरकार कड़ा विरोध जताती रही है.
इसके बदले में मोदी सरकार ने धार्मिक प्रतीकों के साथ बुनियादी ढांचे के निवेश के माध्यम से राज्य में पैठ बनाने की कोशिश की है. रामेश्वरम जैसे स्थलों का सावधानीपूर्वक चयन किया है जो अखिल भारतीय हिंदू चेतना के साथ प्रतिध्वनित होते हैं.
पीएम मोदी के भाषण में भगवान राम और इस क्षेत्र के आध्यात्मिक इतिहास का बार-बार जिक्र किया गया, जिसमें रामायण के भूगोल की सूक्ष्मता से प्रतिध्वनि की गई. राम नवमी पर उद्घाटन ने पौराणिक कथाओं और आधुनिकता के बीच पीएम मोदी के जरिए एक सीधी रेखा खींचने के प्रयास को ही रेखांकित किया.
प्रधानमंत्री की ओर से राजनीतिक पर्यवेक्षकों के लिए यह संदेश स्पष्ट था कि इस पुल ने भौगोलिक स्थानों को जोड़ने से कहीं ज्यादा काम किया, इसने अलग-अलग कहानियों को जोड़ा है. उन्होंने इस पुल को विभाजन पर एकता की, आर्थिक प्रगति को आधार देने वाली आध्यात्मिक जड़ों की जीत बताने की कोशिश की है.
हालांकि, इन सबके बावजूद न्यू पम्बन ब्रिज का मूल्यांकन अंततः इसकी कार्यक्षमता के आधार पर किया जाएगा. यह परियोजना फरवरी 2020 में शुरू हुई और इसे पूरा होने में चार साल से अधिक का समय लगा.
इसमें अप्रत्याशित समुद्री परिस्थितियों और तेज धाराओं के कारण देरी हुई. फिर भी अंतिम परिणाम को भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण अभियान में एक मील का पत्थर माना जा रहा है. यह पुल एकीकरण का स्थायी प्रतीक बनेगा या केंद्रीय संदेश का विवादित चिह्न बना रहेगा, यह हमेशा की तरह, सार्वजनिक स्मृति और राजनीतिक पर निर्भर करेगा.
- अभिषेक जी. दस्तीदार