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लोकसभा चुनाव 2024 : क्या है इस बार युवाओं की राय?

इंडिया टुडे से बातचीत में देश के युवाओं ने इस बार के लोकसभा चुनाव में वोट की तैयारी करते समय अपनी उम्मीदों और चाहतों के बारे में क्या बताया

मिष्ठी अग्रवाल (27), उद्यमी, नई दिल्ली
मिष्ठी अग्रवाल (27), उद्यमी, नई दिल्ली
अपडेटेड 3 मई , 2024

—चुमकी भारद्वाज

युवा देश की जनसंख्या के लाभ का प्रतिनिधित्व करते हैं. देश में 18 वर्ष से 29 वर्ष की उम्र के युवाओं की संख्या 21 करोड़ है, या वे कुल मतदाताओं का पांचवां हिस्सा हैं. वे देश का भविष्य हैं, और उस भविष्य के लिए आपके पास क्या नजरिया है, वही उनका ध्यान खींचेगा और शायद उनका वोट भी दिलाएगा. देश में 18वीं लोकसभा के चुनाव में हर राजनैतिक दल युवा वोटरों को लुभाने के लिए एक-दूसरे के साथ होड़ कर रहा है.

लेकिन देश का युवा क्या चाहता है? इसी युवा आवाज की गूंज सुनने के लिए इंडिया टुडे के संवाददाताओं ने देश के विभिन्न क्षेत्रों—गुजरात के खेड़ा से लेकर मणिपुर के कांगपोकपी, केरल के तिरुवनंतपुरम से लेकर कश्मीर के बारामूला तक की खाक छानी. इस दौरान समाज के विभिन्न वर्गों और विभिन्न पेशों से जुड़े छात्र, डॉक्टर, इंजीनियर, उद्यमी, वकील, किसान, खिलाड़ी, यहां तक कि कलाकार, फ्लोरल डिजाइनर और डिलिवरी एजेंट से बातचीत की गई. उन सभी में सामूहिक राजनैतिक चेतना और लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी की भावना साझा है.

अयोध्या में राम मंदिर और जातिगत जनगणना को लेकर उनकी अपनी राय है. साथ ही, देश के लोकतंत्र पर कथित खतरे पर भी वे अपनी बात जाहिर करते हैं. वे अपनी क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, धार्मिक या जातिगत पहचान पर जोर देने में कतई संकोच नहीं करते, लेकिन समावेशी आर्थिक विकास और अधिक रोजगार के अवसर भी चाहते हैं. उनमें बेचैनी है, फिर भी वे उम्मीद और दृढ़ निश्चय से भरे हैं, और दूसरों के प्रति संवेदनशील भी हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे राजनैतिक बिरादरी को वादों और उसे पूरा करने के लिए जवाबदेह ठहराने को तैयार हैं. तो आइए सुनिए कि अगले पन्नों में वे क्या कहते हैं.

सिद्धांत का खांटी नेता चाहिए

प्रसिद्ध रेस्तरां चेन बीकानेरवाला की चौथी पीढ़ी की उद्यमी मिष्ठी के लिए सबसे ज्यादा मायने यही रखता है कि नेता महिला सशक्तीकरण, स्त्री-पुरुष समानता बढ़ाने वाली पहल को प्राथमिकता दें और छोटे व्यवसायों के विकास के अनुकूल माहौल तैयार करें. 93˚ कॉफी रोस्टर्स के साथ खुद के दम पर अपना उद्यम खड़ा करने वाली मिष्ठी अग्रवाल राजनैतिक विकल्पों को लेकर उतनी ही गंभीर हैं, जितनी कॉफी के शौकीनों के लिए अपने उद्यम के तहत पेश मिश्रणों को तैयार करने को लेकर.

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका से प्रबंधन में मास्टर डिग्री हासिल करने वाली मिष्ठी भारत में विशेष कॉफी रोस्टर बनाने वाली एकमात्र महिला हैं. वे इसके लिए प्रमाणित क्यू ग्रेड हासिल कर चुकी हैं और अधिकृत एससीए ट्रेनर हैं. उनमें महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति और जुनून न केवल अपने उद्यम को लेकर नजर आता है, बल्कि मतदान के पसंद-नापसंद को भी प्रभावित करता है. वे कहती हैं, "मेरे लिए कृषि, आर्थिक विकास, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण और स्वास्थ्य सेवा वगैरह अहम हैं."

हालांकि, उन्होंने अपनी राजनैतिक प्राथमिकता किसी नेता विशेष पर केंद्रित नहीं कर रखी है, लेकिन मानती हैं कि नेता ऐसा होना चाहिए जो देश के भविष्य को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण रखता हो. साथ ही ईमानदार, उदार और सही मायने में सबके कल्याण की प्रतिबद्धता रखने वाला हो.

मिष्ठी कहती हैं, "अपना वोट देते समय मैं उम्मीदवार की प्रोफाइल, योग्यता, अनुभव और ट्रैक रिकॉर्ड सहित कई प्रमुख बातों पर गौर करती हूं. निर्वाचित प्रतिनिधि देश के विकास को लेकर मेरे व्यक्तिगत मूल्यों, प्राथमिकताओं और आकांक्षाओं पर खरा उतरे, यह तय करने के लिए पार्टी की विचारधारा, नीतियां और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता का आकलन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. ऐसे प्रतिनिधियों को चुना जाना चाहिए, जो अपने मतदाताओं के लिए एक आदर्श हों और उनकी उम्मीदों और अपेक्षाओं को पूरा करने वाले हों." 

शांति की उम्मीद

—कौशिक डेका

मौजूदा वक्त में मणिपुर में रहना मुश्किल हो गया है. तब तो और भी जब आप देश के सबसे छोटे समुदायों में से एक से आते हों. ओबेद खराम उस खराम जनजाति से हैं जिसके 1,200 से भी कम सदस्य हैं. मणिपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्र ओबेद बहुत वंचित महसूस करते हैं.

ओबेद खराम (23), छात्र, मणिपुर
ओबेद खराम (23), छात्र, मणिपुर

उनके समुदाय को आदिवासियों के लिए चलाई जा रही बहुत-सी जनकल्याण योजनाओं में बमुश्किल कोई हिस्सा मिलता है. कांगपोक्पी जिले के तुईनसेनफई गांव के खराम कहते हैं,"बड़े आदिवासी समूह सारे फायदे ले जाते हैं. हम प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते."

वे ऐसे नेता को वोट देंगे जो जातीय संघर्ष का हल खोजे और संसद में मणिपुर की आवाज उठा सके. वे पूर्वोत्तर पर केंद्र की तरफ से दिए जा रहे विशेष ध्यान को स्वीकार करते हैं, पर उनके हृदय में एक गहन पीड़ा है. खराम अफसोस के साथ कहते हैं,"जातीय संघर्ष से सब कुछ ठप हो गया है. समुदायों के बीच नफरत और अविश्वास है. फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 11 महीनों में एक बार भी मणिपुर की यात्रा करने का समय नहीं मिल सका."

नए नजरिए की जरूरत

—अनिलेश एस. महाजन

जसकरनप्रीत अपने पिता के साथ अमृतसर के बाहरी इलाके में पांच एकड़ जमीन पर खेती करते हैं जबकि उनके छोटे भाई तीन साल पहले इंग्लैंड चले गए और वहां ड्राइवर का काम करते हैं. वे कहते हैं,"कोई बाहर नहीं जाना चाहता. अगर हम यहां ज्यादा कमा सकें तो उसे ही तवज्जो देंगे." वे यह भी कहते हैं कि पंजाब में कृषि क्षेत्र को ज्यादा विविधता अपनाने और ऊंचे रिटर्न के लिए मार्केटिंग के बेहतर तंत्र और बुनियादी ढांचे की जरूरत है. जसकरनप्रीत कहते हैं,"हमारा राज्य काफी मंथन जैसी स्थिति से गुजर रहा है. सालों से हमें नाकाम करते आ रहे नेता पुरानी पार्टियों और विचारधाराओं को छोड़ रहे हैं और कृषि आय या तो ठहर गई है या घट रही है."

वे इस पर भी अफसोस जाहिर करते हैं कि इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कोई मंच नहीं है. किसान यूनियन इन दिनों ऐसे कानून की मांग कर रही हैं जो उपज की खरीद के लिए एमएसपी को अनिवार्य बना दे जबकि किसानों पर अधिक पानी की खपत वाली फसलों खासकर धान को छोड़कर दूसरी फसल अपनाने का दबाव है. आप, कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा सरीखी पार्टियां समाधान की पेशकश जरूर करती हैं, पर जसकरनप्रीत कहते हैं कि किसानों को नहीं पता कि किस पर भरोसा किया जाए.

नए भारत का नजरिया

—सुहानी सिंह

मिहिर रंजन मानते हैं कि पांच साल पहले वे 'बेखबर' फर्स्ट-टाइम वोटर थे. लेकिन अब वह बदल गया है. पिछले साल हांगझोउ में भारत की नुमाइंदगी करने वाली लीग ऑफ लीजेंड्स ई-स्पोर्ट्स (या इलेक्ट्रॉनिक स्पोर्ट्स) टीम का हिस्सा रह चुके और शिक्षक पिता के बेटे रंजन अब विदेश मंत्री एस. जयशंकर के भाषणों का अनुसरण करते हैं: "जटिल भूराजनैतिक परिदृश्य पर रास्ता बनाता मजबूत, शक्तिशाली और अपनी बात दमदारी से रखने वाला रवैया."

वे किसी भी पार्टी/नेता से ऐसी 'महत्वाकांक्षी दूरदृष्टि' की मांग करते हैं जो भारत को 'अगली महाशक्ति बनने के लिए तैयार' करे और अगर जाति गैर-बराबरी को कम कर सके तो जाति जनगणना का समर्थन करे. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकसित भारत भी 'आकर्षक शब्द' लगता है और वे इस विचार का समर्थन करते हैं.

रंजन इससे पूरी तरह सहमत नहीं कि प्रभावी विपक्ष नहीं है, पर उन्हें लगता है कि वे 'असंगठित' रूप में सामने आते हैं. वे कहते हैं,"ऐसा कोई नेतृत्व नहीं है जिसके पीछे एकजुट हुआ जाए और बहुत ज्यादा अंदरूनी खींचतान है." उन्हें लगता है कि राहुल गांधी अहम मुद्दे उठाते हैं, पर अनुभव करते हैं कि उन्हें इस धारणा से जूझना होगा कि वे अभी पीएम बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं.

उम्र से परे उद्यमिता

—एम. जी. अरुण

दिल्ली के विकास पुरी में रहने वाले कृतार्थ के लिए सुशासन या अच्छा राजकाज प्रमुख चुनावी मुद्दा है. उद्यमी होने के नाते वे पारदर्शिता को अहम मानते हैं. यही नहीं, देश को उन्हें मौका देना चाहिए जो जिंदगी में देरी से उद्यमिता में आना चाहते हैं. कृतार्थ को इसका बेहतर पता है क्योंकि वे सेवानिवृत्त लोगों के लिए भारत का पहला जॉब पोर्टल लॉन्च कर चुके हैं.

वरिष्ठ नागरिक रमेश विज के साथ उन्होंने 2017 में हम एजटेक की स्थापना की. यह देश का पहला समुदाय की ताकत से संचालित वन-स्टॉप उद्यम है और सेवानिवृत्त लोगों और 'सीनेजर्स' के दैनिक कामों, जानकारियों और साहचर्य से जुड़ी जरूरतें पूरी करता है. यह भारत के 30 शहरों में पचास लाख रिटायरीज के डेटाबेस होने का दावा करता है.

उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग सरीखी एजेंसियों ने कुछ प्रक्रियाएं तय की हैं. पर चीजें अब भी धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं. "छोटे और मध्यम उद्यम से शुरू करके टेक कंपनी बनने तक प्रमुख चुनौतियों में से एक पारदर्शिता है." मल्होत्रा मानते हैं कि नीतियां ऐसी होनी चाहिए जिनका लक्ष्य सपने साकार करने में उद्यमियों की मदद करना हो. वोट वे उन लोगों को देंगे जो उनकी राय को सुगम बनाने में मदद कर सकते हैं.

खरी-खरी बातों से सामना

—धवल एस. कुलकर्णी

डिब्बावाले शंकर किशन खोंडगे टिफिन बॉक्स पहुंचाने वाले तकरीबन 1,500 लोगों में से एक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि मुंबई में हजारों लोग अपने दफ्तर में घर का बना भोजन कर सकें. खोंडगे अपनी पत्नी अंकिता और नवजात बेटी रावी के साथ मुंबई के मुलुंड में रहते हैं.

शंकर किशन खोंडगे (27), डब्बावाला
शंकर किशन खोंडगे (27), डब्बावाला

उनका कहना है कि उनका फैसला बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी, तथा शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते निजीकरण और उनके नतीजतन स्कूल फीस में वृद्धि सरीखे कारकों से प्रभावित होगा. उनका कहना है, "हम यह जानना चाहते हैं कि अच्छे स्कूल और अस्पताल क्यों नहीं बनाए जा सकते."

1.54 लाख करोड़ रुपए के वेदांता-फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर प्लांट जैसी परियोजनाओं के महाराष्ट्र से गुजरात शिफ्ट होने से भी वे परेशान हैं. दरअसल, वेदांता-फॉक्सकॉन का प्लांट उनके गांव के पास तालेगांव में ही लगने वाला था. वे बताते हैं, "उस परियोजना से गांव के युवाओं को मदद मिलती." उनका कहना है कि मुंबई में झुग्गियों में पानी की आपूर्ति एक ज्वलंत मसला है और वहां सड़कें भी न के बराबर हैं.

जवाबदेही पर जोर

—रोहित परिहार

प्रबंधन में स्नातक डिग्री और मानव संसाधन में एमबीए करने के बाद अमन चौधरी ने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए पर्यटन उद्योग का रास्ता चुना. छह साल विदेश में काम करते हुए विकसित भारत के प्रति उनके विजन ने आकार लिया. 

उत्साही मतदाता चौधरी केंद्र में एक अदद जिम्मेदार सरकार चाहते हैं और फिलहाल मौजूद विकल्पों को देखते हुए उनका स्पष्ट मानना है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नेतृत्व कर सकते हैं. वे कहते हैं, "मोदी जी ने देश को सही रास्ते पर रखा है लेकिन अब वक्त आ गया है कि वे अपना उत्तराधिकारी तैयार करना शुरू करें."

जहां तक वोट का सवाल है तो चौधरी उम्मीदवारों को उनके वादों और यात्रा तथा पर्यटन उद्योग के लिए उनकी पार्टी के कामकाज के आधार पर चुनेंगे. इस लिहाज से वे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार की सराहना करते हैं जिसने देश के पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहन दिया है. तीन तलाक और धारा 370 हटाने को सही बताते हुए उनका मानना है कि जातीय जनगणना और मुफ्त की रेवड़ियों के विपक्ष के वादों का मतदाताओं पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.

चाहिए एक धर्मनिरपेक्ष भारत

—मोअज्जम मोहम्मद

बांदीपोरा जिले के एक किसान के पुत्र इशफाक हुसैन कावा एक कश्मीरी गायक हैं, जो 2017 में अपना गीत इंटरनेट पर वायरल होने के बाद से घाटी में खासे लोकप्रिय हो गए थे.

हालांकि, वे यह तय नहीं कर पा रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी में कौन ज्यादा बेहतर विकल्प है. लेकिन बस इतना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री ऐसा होना चाहिए जो मुद्दों को धर्म के चश्मे से न देखे. शायद इसीलिए वे भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार से खुश नहीं हैं. उन्हें लगता है कि उसने सांप्रदायिक तनाव बढ़ाया है. उनकी अपील है, "नई सरकार को मुसलमानों और हिंदुओं के बीच टकराव खत्म करना चाहिए."

रोजगार सृजन पर भी वे मोदी सरकार के प्रदर्शन को अच्छा नहीं मानते. उनके मुताबिक, उन्होंने जब पहली बार वोट डाला था तब भी बेरोजगारी के मुद्दे ने ही चयन को प्रभावित किया था. वे कहते हैं, "मेरा वोट उसी पार्टी को जाएगा जो बेरोजगारी, नशाखोरी और सुरक्षा पर ध्यान देगी." उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से नौकरियों में स्थानीय लोगों का विशेषाधिकार छिन गया है.

रोजगार की दरकार

—शिवकेश

पारुल रापड़िया सोनीपत के टीकाराम गर्ल्स कॉलेज से एम.कॉम कर रही हैं. जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर, गन्नौर कस्बे के पास शेखपुरा गांव में काफी समय वे लाइब्रेरी में बिताती हैं. प्रदेश के बिजली विभाग की ओर से गांव में बनवाई गई यह लाइब्रेरी उनके जैसे युवाओं के लिए वरदान बन गई है. 

पर सरकारी नौकरी की प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते हुए उन्हें एक बात की बहुत फिक्र सता रही है: "एक तो जॉब हैं नहीं, जो हैं भी उनके लिए एग्जाम में पेपर लीक हो जाते हैं, फिर सालों तक उनके केस चलते रहते हैं." डीटीसी की क्लस्टर बस में कंडक्टर पिता और गृहिणी मां की संतान पारुल अभी हाल तक मुख्यमंत्री रहे मनोहरलाल खट्टर की सरकार से खासी नाराज हैं. उनके गांव के आसपास बाइक के पीछे ट्रॉली जोड़कर एक साथ 6-7 लोगों को सफर करते देखा जा सकता है.

पारुल रापड़िया (22), छात्रा, एम.कॉम (प्रथम वर्ष)
पारुल रापड़िया (22), छात्रा, एम.कॉम (प्रथम वर्ष)

तभी तो वे कहती हैं कि सड़कें और ट्रांसपोर्ट यहां बड़ी समस्या है. ई-रिक्शा वगैरह से पहले गन्नौर आएं, फिर ट्रेन पकड़कर सोनीपत. कॉलेज गन्नौर में होता तो 6,000 की आबादी वाले उनके गांव से पढ़ाई के लिए और भी युवा खासकर लड़कियां निकल पातीं. हॉस्पिटल भी गन्नौर में, वह भी छोटा-सा है. 

वे कहती हैं, "हरियाणे से कहीं अच्छा विकास योगी (आदित्यनाथ, यूपी) सरकार ने किया है." वे याद करती हैं कि पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने विकास किया था पर अपने इलाके रोहतक में, इधर उतना नहीं.

पहली बार वोट डालने जा रहीं पारुल का नजरिया साफ है: रोजगार को जो तवज्जो देगा, उसे ही वोट देंगी क्योंकि ग्रेजुएशन कर चुके उनके भाई प्रिंस को भी अब नौकरी की तलाश है. प्रोग्रेसिव सोच वाले परिवार से होने के कारण जल्दी शादी-ब्याह के दबाव से वे फिलहाल बची हुई हैं.

आर्थिक विकास के लिए वोट

—राहुल नरोन्हा

छत्तीसगढ़ निवासी कबीर चंद्राकर के किसान माता-पिता चाहते थे कि वे शिक्षा हासिल करें ताकि उन्हें कोई अच्छी नौकरी मिल सके. मगर चंद्राकर का मन खेती में लगा और इंग्लैंड से एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद वे प्रगतिशील खेती करने के लिए भारत लौट आए. अपने परिवार की 45 एकड़ कृषि भूमि को बढ़ाने के लिए 30 वर्षीय चंद्राकर ने पट्टे पर और जमीन ली तथा आज वे करीब 120 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं.

दो एकड़ को छोड़कर जिस पर वह आम का उत्पादन करते हैं, अधिकांश अमरूद के बागान हैं. ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं कि रायपुर जिले के मुजगहन गांव के निवासी चंद्राकर चाहते हैं कि सियासी दलों के पास ऐसी नीतियां हों जो किसानों के लिए फायदेमंद हों. उनका कहना है, "आर्थिक प्रगति देश के भविष्य की कुंजी है और मैं उसी पार्टी को वोट दूंगा जो आर्थिक विकास के लिए बेहतर योजना लेकर आएगी." वे यह भी चाहते हैं कि भावी सरकारें जलवायु परिवर्तन के मसले का समाधान करें. वे कहते हैं, "छत्तीसगढ़ में सरकारें धान के लिए बढ़ी हुई कीमत की पेशकश कर रही हैं. इससे मोनोकल्चर यानी एक ही तरह की फसल की खेती को बढ़ावा मिल रहा है और आखिरकार इसका नकारात्मक असर पड़ेगा." रायपुर में 7 मई को मतदान है.

शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाएं सुधरें

—पुष्यमित्र

बिहार के सबसे पिछड़े इलाके कोसी के ग्रामीण इलाके में गरीब परिवार से निकल कर इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुंचने वाली दिया ठाकुर इस साल 19 साल की हो रही हैं. वे पहली दफा इस लोकसभा चुनाव में वोट डालने जा रही हैं. कम उम्र और पिछड़े इलाके से होने के बावजूद दिया राजनैतिक रूप से काफी सजग हैं. वे सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर की बेहतरी का मुद्दा उठाती हैं. वे कहती हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों से ज्यादा वेतन मिलता है, फिर वहां पढ़ाई का स्तर क्यों खराब रहता है. सरकारी स्कूलों में तो गरीब तबके के बच्चे ही पढ़ते हैं.

वहां का एजुकेशन लेवल बेहतर होना ही चाहिए. "मुझे खुद आठवीं के बाद सरकारी स्कूल में पढ़ना पड़ा. मैंने देखा है, वहां के बच्चे अंग्रेजी के शब्द इज की भी स्पेलिंग नहीं बता पाते थे." वे कहती हैं, आजकल हिंदू-मुसलमान के बीच बहुत ज्यादा तनाव है. "रामनवमी में मैंने देखा है, मेरे साथी दूसरे धर्म के लोगों को गालियां देते हैं. यह ठीक नहीं है. इसके अलावा सरकारी अस्पतालों की स्थिति भी बेहतर होनी चाहिए. ताकि गरीब लोग बेहतर इलाज करा सकें. हमारा परिवार अभी भी सरकारी अस्पतालों पर निर्भर है."

हर वोट की अहमियत

—अमिताभ श्रीवास्तव

पटना निवासी 23 वर्षीया फरह नाज 1 जून को पहली बार संसदीय चुनाव के लिए मतदान करेंगी, मगर उनमें राष्ट्रीय राजनीति की गहरी समझ है. वे राजनीति में पक्षपातहीन रुख की हिमायती हैं और हर वोट की अहमियत पर जोर देती हैं. 2020 के बिहार विधानसभा के लिए मतदान कर चुकीं फराह कहती हैं, "हर वोट मायने रखता है. सामाजिक परिवर्तन मतदान के जरिए सामूहिक चयन पर ही निर्भर है."

वे 2024 के आम चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी की जंग के तौर पर पेश किए जाने के खिलाफ हैं. उनके अनुसार, इस नैरेटिव का मकसद असल में देश में बेरोजगारी, सांप्रदायिक सद्भाव, लोकतांत्रिक संस्थानों के कथित रूप से कमजोर होने और अभिव्यक्ति की आजादी की हिफाजत सरीखे मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाना है.

वे मानती हैं कि जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से कुछ वोट प्रभावित हो सकता है, मगर उन्हें इस पर शक है कि इससे बहुमत के फैसले पर असर पड़ेगा. वे किसी एक नेता का समर्थन करने से बचती हैं. वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भरोसा जताती हैं जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय ने शराब घोटाले में गिरफ्तार किया है. साथ ही वे प्रधानमंत्री मोदी के 'विकसित भारत' पहल की भी सराहना करती हैं. हालांकि, विपक्षी इंडिया ब्लॉक को वे महज अस्थायी चुनावी गठबंधन मानती हैं और उसे कोई खासा तवज्जो नहीं देतीं.

घोषणापत्र पर नजर

—जुमाना शाह

गुजरात निवासी 30 वर्षीय नीरव कुमार संचानिया ने बीते एक दशक से अपने मताधिकार के प्रयोग का कोई अवसर नहीं छोड़ा है. उनका दावा है कि वे हर बार सोच-समझकर कोई विकल्प चुनने की कोशिश करते हैं. अपना वोट देने से पहले वे पार्टियों की ओर से जारी चुनावी घोषणापत्रों को पढ़ते हैं ताकि देश और समाज के प्रति उनके विजन को समझ सकें.

मतदाता के रूप में उनका बर्ताव असल में उनके समग्र अध्ययनशील स्वभाव के अनुरूप है—संचानिया ने अपने बढ़ई पिता को एक पखवाड़े तक चले उद्यमिता कार्यक्रम के नामांकन में मदद की जिससे उन्हें पांच साल पहले अपनी खुद की राशन की दुकान खोलने में मदद मिली. उन्होंने खुद भी कौशल विकास मंत्रालय के लिए आइआइएम की ओर से संचालित विशेष दो-वर्षीय एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम पूरा किया.

उस प्रोग्राम में सरकारी विभाग में एक फेलोशिप भी मिलती है और इसके तहत संचानिया पारंपरिक शिल्प में कारीगरों को प्रशिक्षण देकर सुजानी हस्तकला को पुनर्जीवित करने के भरुच के कलेक्टर की पहल का हिस्सा बन गए हैं. उस समूह ने इस महीने अपनी कला के लिए जीआई टैग हासिल किया है.

परखने में सावधानी

—रिद्धि काले

जब करण नागपाल 18 वर्ष के हुए तब वे अपेक्षाकृत गैर-पारंपरिक करियर-फ्लोरल डिजाइन की राह बनाने में व्यस्त थे. अब 25 वर्ष के हो चुके नागपाल के पिता लाइब्रेरियन हैं और मां बीमा एजेंट. वे पहली बार वोट देंगे. नागपाल हर पार्टी/व्यक्ति का गुणों के आधार पर आकलन करने में विश्वास करते हैं. नागपाल के मुताबिक, यह सामूहिक लक्ष्य है कि देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने. 

करण नागपाल, फ्लोरल डिजाइनर, दिल्ली
करण नागपाल, फ्लोरल डिजाइनर, दिल्ली

वे कहते हैं, "हमारे देश में मंदिर और मूर्तियां बनाने से भी बड़े मसले हैं. मैं हरेक पार्टी की देश की आर्थिक वृद्धि, नीतियों, शैक्षणिक संस्थाओं, अस्पतालों और बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित योजनाओं को देखना और परखना चाहूंगा."

वे मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक छवि सुधरी है पर देश में लोकतंत्र की मौजूदा हालत 'थोड़ी डराने वाली' है—दोनों ही मसले उनके फैसले को प्रभावित करेंगे. उन्हें युवाओं के लिए इंटर्नशिप के अधिकार और 30 लाख सरकारी नौकरियों की कांग्रेस की गारंटी अच्छी दिखती है. जिन मसलों पर उन्होंने अभी तक राय नहीं बनाई है, वे हैं देशव्यापी जातिगत जनगणना, चुनावी बॉन्ड और 'एक देश, एक चुनाव'.

इंसाफ के साथ

—जीमॉन जैकब

डॉक्टर माता-पिता की सबसे बड़ी संतान एस. फरजीन रोज तिरुवनंतपुरम में सरकारी लॉ कॉलेज में लेजिस्लेटिव लॉ की अंतिम वर्ष की छात्रा हैं और राजनीति में उनकी मजबूत प्रतिबद्धताएं हैं. फरजीन देश के हालात से नाखुश हैं और कहती हैं कि शोषितों को न्याय न मिलने और संविधान के प्रति कानून निर्माताओं की उपेक्षा पर उनको गुस्सा आता है.

वामपंथी विचारों वाली रोज का मानना है कि राहुल गांधी युवा भारत के सपनों को पूरा कर सकते हैं और उम्मीद करती हैं कि इंडिया गठबंधन चुनाव बाद के परिदृश्य में एकजुट हो जाए. इस चुनाव में कांग्रेस के मौजूदा सांसद शशि थरूर और भाजपा के राजीव चंद्रशेखर के मुकाबले फरजीन की पसंद पण्यन रवींद्रन हैं जो तिरुवनंतपुरम से भाकपा के उम्मीदवार हैं. वे कहती हैं कि पण्यन जैसे नेताओं को गरीबों की आवाज के लिए संसद में होना चाहिए.

फरजीन कानून पढ़ाना चाहती हैं. उनका मानना है कि कानूनी जागरूकता लोगों को अपने और दूसरों के अधिकारों के संरक्षण में मदद करती है. जीसुइट प्रीस्ट स्टैन स्वामी, जिनका जेल में देहांत हो गया और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी.एन. साईबाबा की गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) ऐक्ट के तहत गिरफ्तारी की तरफ इशारा करते हुए वे कहती हैं, "देर से मिला इंसाफ उनके लिए अच्छा नहीं होता जो सत्ता में बैठे लोगों को चुनौती देते हैं."

स्टार्ट-अप की सहायता की जाए

—अजय सुकुमारन

गगना गणेश को अपने बिजनेस का आइडिया पहली बार सिंगापुर में ग्रेजुएशन करने के दौरान आया था. अगले ढाई वर्षों में उन्होंने अपना उद्यम ग्रैब मी स्थापित करने से पहले सॉफ्टवेयर फर्म जोहो और एडटेक स्टार्ट-अप अनएकेडमी में काम किया. ग्रैब मी एक पैकेज्ड फूड ब्रांड है, जो छोटे (बाइट साइज) पैक में स्नैक्स बेचता है. उनकी सात सदस्यीय टीम बेंगलोर के 120 सुपरमार्केट को अपना स्नैक्स उपलब्ध कराती है.

गगना गणेश (24), उद्यमी, बेंगलोर
गगना गणेश (24), उद्यमी, बेंगलोर

गगना का मानना है कि नई सरकार को बेरोजगारी दूर करने पर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए. वे इसके लिए बड़ी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां स्थापित करने और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने का सुझाव देती हैं. गगना कहती हैं, "दूसरी प्राथमिकता स्टार्ट-अप को बेहतर सहयोग होना चाहिए." उनका कहना है कि हालांकि, स्टार्ट-अप इंडिया जैसी सरकारी वेबसाइटों पर योजनाओं का ब्योरा उपलब्ध है लेकिन इनका लाभ कैसे उठाया जाए, इसके बारे में लोगों को जानकारी बहुत कम है.

गगना कहती हैं, "किसी योजना का लाभ हासिल करने के लिए जब आप बैंक पहुंचते हैं तो पता चलता है कि उन्हें योजना का पता ही नहीं है. वहां मदद करने वाला कोई नहीं है." वे कहती हैं कि स्टार्ट-अप अपने स्तर पर "चीजों का पता लगाते हैं और फिर उन्हें आजमा के देते हैं और इस दौरान गलतियां होती हैं और सुधारी जाती हैं, जो समय खपाऊ होता है."

दमखम की खातिर

—प्रदीप आर. सागर

मयंक राठौड़ ने भी हल्के हरे रंग की वर्दी पहनने का सपना देखा, अपने पिता की तरह, जो भारतीय सेना की 14 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में काम करने के बाद अब सेवानिवृत्त हैं. राठौड़ पिता-पुत्र राजस्थान के नागौर जिले के एक गांव के किसान हैं. थोड़ी आय के बावजूद मयंक ने जयपुर के आर्मी स्कूल से पढ़ाई की क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वे अच्छी तालीम हासिल करें. अग्निवीर की परीक्षा की तैयारी करते हुए मयंक का दिन सुबह 6 बजे दौड़ने और कसरत से शुरू होता है और फिर कोचिंग सेंटर जाते हैं. राज्य विधानसभा चुनाव में उन्होंने पहली बार वोट दिया.

मयंक मानते हैं कि अग्निवीर योजना सेना में जाने के अभिलाषी युवाओं के साथ न्याय नहीं करती. चार साल बाद अगर कोई शॉर्ट लिस्ट नहीं होता, तो उसके करियर की संभावनाएं धुंधली पड़ जाती हैं. मयंक मोदी सरकार के विकास के कामों और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से प्रभावित हैं, पर उन्हें लगता है कि मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों को ज्यादा मदद की जरूरत है.

कक्षा 8 में पढ़ने वाला उनका छोटा भाई भी सेना में जाना चाहता है. मयंक कहते हैं, "पिता मुझे अच्छी शिक्षा दे पाए और सारी बचत उन्होंने इस पर खर्च कर दी. लेकिन अब वे सेवानिवृत्त हैं. अगर मैं करियर में रच-बस नहीं जाता, तो उन्हें बुरा लगेगा. सेना में शामिल होना मेरा जुनून है, लेकिन अग्निवीर योजना से मेरी संभावनाएं सीमित हो जाती हैं."

खेल भावना से

—सुहानी सिंह

विश्व चैंपियन और कंपाउंड तीरंदाजी में कई एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता ओजस प्रवीण देवताले 19 अप्रैल को पहली बार वोट देने जा रहे हैं. वे कहते हैं, "मेरे पैरेंट्स ने कहा कि हर वोट कीमती है, इसलिए वोट जरूर देना चाहिए, चाहे जिसे भी दीजिए." वोट देने के लिए वे खेल के विकास और किए गए वादों को तवज्जो देंगे.

ओजस प्रवीण देवताले (21), अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज
ओजस प्रवीण देवताले (21), अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज

बतौर पूर्णकालिक तीरंदाज इस स्नातक के पास राजनीति में ज्यादा दिमाग लगाने का वक्त नहीं. पर उनके मुताबिक, वे राजनैतिक घटनाओं और सरकारी योजनाओं से वाकिफ रहने की कोशिश करते हैं. वे खेलों के प्रदर्शन में भारत के बढ़ते कद का हवाला देते हैं. मसलन, हांग्जू में 2023 के एशियाई खेलों में देश के पदक 100 का आंकड़ा पार कर गए. इनमें देवताले के भी तीन स्वर्ण पदक थे और इसके अलावा खेल में बढ़ा हुआ निवेश उनके लिए गर्व की बात है.

वे कहते हैं, "पहले हमें ज्यादा पदक नहीं मिलते थे, लेकिन अब आप नतीजे देख सकते हैं." देवताले का सुझाव है कि देश भर में "स्पोर्ट्स पार्क" बनाए जाएं, जहां बच्चे खेल सकें और लोग व्यायाम कर सकें.

सपने की खातिर

—प्रदीप आर. सागर

बोधिसत्व संघप्रिय ने महज 22 वर्ष की उम्र में ओडिशा के संबलपुर में अपने दो दोस्तों के साथ एक ड्रोन कंपनी बनाई थी. आइजी ड्रोन्स की शुरुआत तो 2018 में दो ग्राहकों के साथ हुई लेकिन अब कंपनी भारतीय सेना सहित 300 से ज्यादा ग्राहकों को अत्याधुनिक ड्रोन मुहैया कराती है.

संबलपुर के बुर्ला में वीर सुरेंद्र साई प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से बी.टेक करने वाले बोधिसत्व का मानना है कि वोट करना हर किसी का दायित्व है. वे पिछले 10 वर्ष में मोदी सरकार की नीतियों की सराहना करते हैं और स्टार्ट-अप इंडिया की पहल को लाजवाब बताते हैं, जिससे 1,00,000 से ज्यादा स्टार्ट-अप को मदद मिली है.

वे कहते हैं, "कौशल मिशन, देश भर में डिजिटलीकरण और समावेशी विकास की नीतियां प्रशंसनीय हैं." बोधिसत्व को लगता है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से चुनावी प्रक्रिया व्यवस्थित होगी, प्रशासनिक बोझ कम होगा, जिससे कार्यकुशलता और जवाबदेही बढ़ेगी. बतौर उद्यमी बोधिसत्व ने पिछले दशक में भारत को लेकर दुनिया की धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव महसूस किया है. "सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी, पर्यावरण के मुद्दों और भू-राजनैतिक तनाव जैसी चुनौतियों के बावजूद, भारत की छवि विकास की दिशा में प्रयासरत देश की बनी हुई है."

सपने न तोड़े जाएं

—आनंद चौधरी

अंशु चौधरी पिछले तीन साल से जयपुर में रहकर स्टॉफ सेलेक्शन कमिशन कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल (एसएससी-सीजीएल) प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. इस अवधि में वे दो-तीन बार प्रतियोगी परीक्षा में भाग ले चुके हैं लेकिन रैंक कम होने के कारण उनका चयन नहीं हो पाया. झुंझुनूं जिले के भड़ौंदा खुर्द गांव के रहने वाले अंशु के पिता सीमांत किसान हैं. 

खेती में इतनी आमदनी नहीं है कि वे अंशु और उसकी बहन (जो नीट की तैयारी कर रही है) का कोचिंग का खर्चा उठा सकें. दोनों की पढ़ाई पर हर माह तकरीबन 25-30 हजार रुपए का खर्चा आता है. अंशु कहते हैं, "अगर इस साल भी मेरा किसी प्रतियोगी परीक्षा में चयन नहीं हुआ तो तय मानिए कि मुझे भी अब जिंदगी भर पिता की तरह खेतों में काम करना होगा." 

वे कहते हैं, "आगामी सरकार से मेरी एक ही अपेक्षा है कि वह युवाओं के सपनों को चकनाचूर करने की जगह उन्हें पूरा करे. ज्यादा से ज्यादा नौकरियों के अवसर पैदा करे ताकि मुझ जैसे ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं का नौकरी का सपना पूरा हो सके." 

फ्री राशन से आगे सोचे सरकार

—आशीष मिश्र

सहारनपुर में नकुड़ तहसील के गांव सरसावा के रहने वाले अमित कुमार के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी 15 वर्ष की उम्र में ही आ गई थी जब 2017 के दिसंबर महीने में उनके पिता की मौत हो गई थी. अमित उस वक्त हाइस्कूल में थे. वे लकड़ी की नक्काशी के पुश्तैनी काम में लग गए. सहारनपुर की ही एक कंपनी में लकड़ी के नक्काशीदार फर्नीचर बनाने के काम में पारंगत हो ही रहे थे कि 2020 में कोरोना लहर ने सारा काम-धंधा बंद कर दिया. लॉकडाउन में काम नहीं रहा तो अमित मजदूरी करने लगे. उन्होंने गांव के ही कुछ गरीब युवाओं की एक टोली बनाई.

अमित कुमार (21), कृषि मजदूर, नकुड़, उत्तर प्रदेश
अमित कुमार (21), कृषि मजदूर, नकुड़, उत्तर प्रदेश

गन्ना और गेहूं की कटाई के लिए बड़े किसानों को सेवाएं देने लगे. अमित बताते हैं, "कृषि कार्य में मजदूरी आज भी एक मजबूरी का व्यवसाय है, उन लोगों के लिए जिनके पास आजीविका का कोई और साधन नहीं है. सरकार के पास भी कृषि मजदूरों के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं है." अमित को लगता है कि लॉकडाउन में फ्री राशन बांटकर केंद्र सरकार ने अच्छा कदम उठाया था लेकिन यह उन लोगों को मिलना चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत हो, न कि सबको. अमित का मानना है कि "केंद्र की फ्री राशन योजना ने बड़ी संख्या में गांव में ऐसे बेरोजगार युवाओं की फौज तैयार कर दी है जो फ्री राशन, सरकारी मकान और अन्य योजनाओं का लाभ लेकर आगे बढ़ने की नहीं सोचते. आने वाले समय में यह देश में एक बड़ी समस्या को जन्म देगा."

मजबूत हो विपक्ष

—अमरनाथ के. मेनन

एक रीटेल फार्मेसिस्ट के चार भाई-बहनों में से दूसरे नंबर के मोहम्मद इमरान का जन्म और पालन-पोषण हैदराबाद में हुआ. उनकी नजर में "वोट देने का मतलब सशक्त होना है." मतदान को लेकर शहरी मतदाताओं की उदासीनता को वे एक बड़ी समस्या मानते हैं. इमरान के मुताबिक, "हमारा संविधान मौलिक अधिकार और नेताओं को चुनने की आजादी देता है. मैं वोट जरूर दूंगा और दोस्तों को भी इसके लिए प्रेरित करूंगा. मतदान को लेकर मेरी पसंद राष्ट्रीय स्तर पर शांति और आर्थिक विकास पर आधारित है."

वाद-विवाद प्रतियोगिता के इस विजेता के लिए स्पष्टवादी कांग्रेस सांसद शशि थरूर को पसंद करना हैरानी की बात नहीं. उनके मुताबिक, किसी पार्टी का प्रधानमंत्री पद का चेहरा कोई मायने नहीं रखता क्योंकि "हमारे देश में संघीय ढांचा है, वन-मैन शो नहीं." इमरान के लिए वैश्विक स्तर पर भारत की छवि और देश में बेरोजगारी की समस्या गंभीर मुद्दे हैं.

वे कहते हैं, "दुनिया भर में एक सकारात्मक, विश्वसनीय छवि बनाने में बहुत समय और बड़े प्रयास लगते हैं. भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना जा रहा है और उसने वैश्विक स्तर पर तालिका में ऊंचा स्थान हासिल करने में सफलता भी पाई है. पर ऐसी मिसालें भी हैं जिसमें भारत को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. स्थानीय/क्षेत्रीय विरोध प्रदर्शनों ने सरकार के कामकाज/नेताओं के बयानों पर सवालिया निशान लगाए हैं." इमरान इंडिया ब्लॉक को एक जरूरत बताते हुए कहते हैं, "हमें एक सशक्त और प्रभावशाली विपक्ष की जरूरत है."

जमीन से जुड़े मसलों पर नजर

—सोनाली आचार्जी

अनुराधा जांगड़ा के लिए चुनाव देश और अपने भविष्य का जायजा लेने का समय है. इसके बावजूद कि वे ऐसे कैंपस की छात्रा हैं जहां भाजपा-विरोधी नारे आम बात हैं, जांगड़ा केवल जमीनी हकीकत पर यकीन करती हैं. वे कहती हैं, "महामारी और कई लड़ाइयों के बावजूद बुनियादी ढांचे में सुधार और सुख-सुविधाओं की उपलब्धता के लिहाज से देश की आर्थिक वृद्धि प्रभावशाली रही है." जांगड़ा का मानना है कि वोट थोड़े वक्त जिंदा रहने वाले विवादों से प्रभावित नहीं होने चाहिए. 

अनुराधा जांगड़ा (25), पीएचडी छात्रा, जेएनयू
अनुराधा जांगड़ा (25), पीएचडी छात्रा, जेएनयू

वे बताती हैं, "मुझे जो अपील करता है, वह लंबी शेल्फ लाइफ वाली चीज है, जैसे तमाम क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का बढ़ना. महिलाओं के मुद्दों पर मोदी सरकार का फोकस मुझ सहित अन्य लोगों की राय को उसके पक्ष में झुका सकता है."

दूसरा कारक विदेश नीति है. वे कहती हैं, "भारत की बहुपक्षीय और कूटनीतिक पहुंच बढ़ी है. वैश्विक मामलों में सार्थक प्रभाव डालने की क्षमता अब भारत के पास पहले से कहीं ज्यादा है." सरकार के कामकाज की मुख्य बात जी20 की अध्यक्षता और खास तौर पर वहां बनी सर्वानुमति थी. वे कहती हैं, "सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं सर्वसम्मति से इस पर सहमत हुईं. लेकिन लोकप्रिय और अहम होने की कीमत के लिहाज से भारत की बढ़ती प्रोफाइल के खामियाजे भी हैं."

छोटे व्यवसायों को बड़ी मदद जरूरी

—सोनल खेत्रपाल

हाल में नोएडा आकर रहना शुरू करने के साथ लंकापल्ली राजेंद्र भरत ने यह पक्का किया है कि उनका मतदाता कार्ड अपडेट हो जाए क्योंकि वे अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने को लेकर पूरी तरह कृतसंकल्प हैं. खुद एक स्टार्ट-अप के संस्थापक हैं और देशभर में छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों की स्थिति को लेकर खासे चिंतित हैं. भरत कहते हैं, "जीएसटी और डिजिटलीकरण के उपायों ने व्यापार संबंधी औपचारिकताओं को तो बढ़ावा दिया है लेकिन यह सब छोटे उद्यमियों के लिए अव्यावहारिक बना हुआ है."

भरत स्थानीय शासन से जुड़े मुद्दों और विभिन्न संस्थानों की स्वायत्तता को बेहद अहम मानते हैं. उन्हें लगता है कि अभी इन्हें बेजा दखल का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें उम्मीद है कि जीतने वाली पार्टी कुछ बदलाव लाएगी और जमीनी स्तर पर बुनियादी तौर पर परिवर्तन पक्का करने के लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण करेगी. उनकी नजर में नई सरकार की शीर्ष तीन प्राथमिकताएं आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे का विकास, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करना होना चाहिए. उनके मतदान करने का आधार क्या होगा? इसके जवाब में भरत ने कहा, "अगर मुझे उम्मीदवारों में कोई उपयुक्त विकल्प नजर नहीं आया तो मैं नोटा को चुन सकता हूं."

भरत राजनैतिक खबरों पर बारीकी से नजर रखते हैं, वे किसी विशेष न्यूज चैनल पर भरोसा नहीं करते. लेकिन अपने मिलने वालों के साथ अक्सर राजनीति पर चर्चा करते रहते हैं. वे कहते हैं, "मजदूर से लेकर ज्वेलर और कारोबारियों तक अनेक लोगों से मिलता हूं, उनके साथ होने वाली बातचीत के जरिए मुझे जमीनी हकीकत का पता लगता रहता है."

प्रभावी हो समाधान

—प्रशांत श्रीवास्तव

सर्वजीत ने हमेशा अर्धसैनिक बल सेना में जाने का सपना देखा था लेकिन 2022 में यह ध्वस्त हो गया जब सरकार ने अग्निपथ योजना शुरू कर दी. इसके तहत केवल चार साल के लिए जवानों को नियुक्त किया जाएगा. उन्होंने पिछले साल स्नातक किया है और अभी इस उम्मीद के साथ रक्षा सेवा संबंधी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं कि किसी न किसी में सफल हो जाएंगे. 

वे कहते हैं, "सार्वजनिक क्षेत्र (रक्षा सहित) में इन दिनों नौकरियां बहुत कम हैं. हमें खुद को सीमित अवसरों का लाभ उठाने के लिए तैयार करना होगा. मैं समाज के कमजोर वर्ग से आता हूं इसलिए हमारे पास विकल्प और भी कम हैं. मुझे परीक्षा उत्तीर्ण करनी ही होगी...अन्यता मेरे पास खेती ही एकमात्र विकल्प होगा."

सर्वजीत इस चुनाव में पहली बार अपना वोट डालने वाले हैं. न तो वे जाति-धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण में भरोसा करते हैं और न ही नया राम मंदिर उनके लिए कोई बड़ा मुद्दा है. बेरोजगारी की और ध्रुवीकरण की राजनीति से नाराज सर्वजीत का कहना है कि वे बदलाव के लिए वोट करेंगे. 

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