विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने भारतीय उच्च शिक्षा में एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किया है. इसके तहत देश भर के विश्वविद्यालयों को एक वर्ष में दो बार छात्रों को प्रवेश देने की अनुमति दी गई है. यानी अब रेगुलर छात्र भी देश भर के विश्वविद्यालयों में जुलाई-अगस्त सत्र के अलावा जनवरी-फरवरी में भी एडमिशन ले सकेंगे.
यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि छमाही आधार पर ये प्रवेश मॉडल विभिन्न विश्वविद्यालयों में अगले शैक्षणिक सत्र 2025-26 से शुरू होगा. यह प्रवेश के पारंपरिक मानदंडों को बदलने का प्रयास करेगा, जिससे छात्रों को संभावित रूप से काफी फायदा होने वाला है.
मौजूदा समय में यूजीसी का जो नियम है उसके मुताबिक रेगुलर मोड कार्यक्रमों के लिए छात्रों को साल में सिर्फ एक बार, एक ही शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश मिलता है. और यह सत्र जुलाई या अगस्त में शुरू होता है. लेकिन यूजीसी के हालिया फैसले से छात्रों को अब साल में दो बार प्रवेश मिलना मुमकिन हो सकेगा. जुलाई-अगस्त के अलावा छात्र अब जनवरी या फरवरी शैक्षणिक सत्र में प्रवेश ले सकते हैं.
इस फैसले से देश भर के विश्वविद्यालयों को अनुमति होगी कि वे रेगुलर छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी कार्यक्रमों में छमाही आधार पर प्रवेश दे सकेंगे. हालांकि ये विश्वविद्यालयों के ऊपर होगा कि वे यूजीसी के नए नियम अपनाते हैं या नहीं. यूजीसी ने कहा है कि विश्वविद्यालयों के लिए नई प्रणाली को अपनाना अनिवार्य नहीं है. अब यहां कुछ स्वाभाविक सवाल उठते हैं. जैसे, यूजीसी की इस नई प्रणाली से छात्रों को कैसे लाभ पहुंच सकता है, इसे व्यावहारिक रूप से लागू करने में क्या कठिनाइयां आएंगी?
दरअसल, यूजीसी ने पिछले साल ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ओडीएल) और ऑनलाइन मोड के लिए छमाही आधार पर प्रवेश की अनुमति दी थी. इसमें जनवरी और जुलाई के रूप में दो प्रवेश चक्र थे. इस ट्रायल पीरियड के दौरान यूजीसी ने पाया उसकी इस पहल से करीब पांच लाख उन छात्रों को लाभ हुआ, जिन्हें अगर ये व्यवस्था (छमाही आधार पर एडमिशन की) नहीं मिलती तो उन्हें प्रवेश के लिए पूरे एक साल तक इंतजार करना पड़ता.
यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार के मुताबिक, ओडीएल और ऑनलाइन कार्यक्रमों में छात्रों की इस "जबरदस्त प्रतिक्रिया और रुचि" को देखते हुए यूजीसी परिषद् ने मई में एक बैठक की. इस बैठक में परिषद् ने निर्णय लिया कि अब उच्च शिक्षण संस्थानों में भी, जो छात्रों को रेगुलर मोड कार्यक्रम पेश करते हैं, इस छमाही आधार पर प्रवेश नीति को विस्तारित किया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में जगदीश कुमार ने बताया, "इस नई प्रवेश नीति से उन छात्रों को लाभ हो सकता है जो स्वास्थ्य समस्याओं, बोर्ड परीक्षा के नतीजों में देरी या व्यक्तिगत कारणों से जुलाई/अगस्त सत्र में प्रवेश लेने से चूक गए थे. साल में दो बार प्रवेश का विकल्प होने के कारण उन्हें फिर से आवेदन करने से पहले पूरे एक साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा."
कुमार ने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालयों ने छमाही आधार पर प्रवेश प्रणाली को अपनाया है. और भारतीय संस्थानों में यह प्रणाली "उनके बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग और स्टूडेंट एक्सचेंज को बढ़ा सकती है." इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस प्रणाली से 'सकल नामांकन अनुपात' (जीईआर) को बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है. जीईआर से मतलब है - उच्च शिक्षा के लिए पात्र आयु वर्ग की आबादी में नामांकित छात्रों की संख्या का अनुपात.
हालांकि विश्वविद्यालयों में नई प्रवेश नीति अनिवार्य नहीं है. लेकिन अगर कॉलेज छात्रों की संख्या बढ़ाना चाहें या फिर उभरते क्षेत्रों में नए कार्यक्रम शुरू करना चाहें, तो इसके लिए उन्हें छूट होगी. इसे लागू करने के लिए संस्थानों को यूजीसी के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा. और उसके मुताबिक ही उन्हें साल में दो बार प्रवेश की सुविधा देने के लिए अपने नियमों में संशोधन करना होगा.
हालांकि इसे लागू करने के पीछे कुछ वाजिब सवाल भी हैं. मसलन, प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिए जाने वाले एडमिशन को लेकर यूजीसी ने क्या उपाय किए हैं. इसके अलावा बुनियादी संरचनाओं की जरूरत, पर्याप्त फैकल्टी की उपलब्धता, कर्मचारियों की व्यवस्था, ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इस नई प्रवेश नीति की राह में रोड़ा बन सकते हैं.
प्रवेश परीक्षा वाले सवाल पर जगदीश कुमार कहते हैं, "पीएचडी में प्रवेश के लिए अभी सभी विश्वविद्यालय जुलाई में प्रवेश देते हैं. हम साल में दो बार यूजीसी-नेट की परीक्षा आयोजित कर रहे हैं. इसलिए विश्वविद्यालय अब पीएचडी कार्यक्रमों में साल में दो बार प्रवेश देना शुरू कर सकते हैं. स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के लिए सीयूईटी (पीजी) अनिवार्य नहीं है. यह केवल एक विकल्प है और कई विश्वविद्यालय अपनी खुद की प्रवेश परीक्षा या स्नातक कार्यक्रमों में अंकों के आधार पर प्रवेश देते हैं. अब वे मास्टर कार्यक्रमों में नई नीति के तहत प्रवेश दे सकते हैं."
उन्होंने कहा कि इसी तरह स्नातक कार्यक्रमों के लिए सीयूईटी (यूजी) सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए ही अनिवार्य है. अगर कोई विश्वविद्यालय दूसरे सत्र में यूजी कार्यक्रम शुरू करना चाहता है, तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है. हालांकि विश्वविद्यालयों को अपनी बुनियादी संरचना जरूरतों, फैकल्टी की उपलब्धता पर काम करना पड़ सकता है. और समय के साथ इसकी योजना बनानी पड़ सकती है.
जगदीश कुमार के मुताबिक, उच्च शिक्षण संस्थान नई प्रवेश नीति की उपयोगिता का ज्यादा से ज्यादा लाभ तभी ले सकते हैं जब वे फैकल्टी सदस्यों, कर्मचारियों और छात्रों को बदलाव के लिए पर्याप्त रूप से तैयार करें."