"इस समय रात के दो बजकर 51 मिनट हुए हैं. सुहानी समझी जाने वाली रात को जैसे बुखार हो रहा है. वह इस समय उपद्रव के मूड में है. चांद जैसे डरा हुआ है और तारे पसीने से तरबतर. नल में पानी ऐसे आ रहा है, जैसे किसी खौलते कड़ाहे से पाइप जोड़ दिये गए हों. पानी बदन पर ऐसे गिरता है, जैसे अभी झुलसा कर ही मानेगा. रात मानों अपने स्वभाव से बिछड़कर दोपहर की जात का हिस्सा हो गई है. रात की काली जुल्फ को जैसे सूरज ने चराग जलाने के लिए रख लिया है. रात अब किसी सुकून का नाम नहीं, किसी गुनहगार का गांव हो गई है. इस रात को हुआ क्या है और यह किससे खफा है!"
जरा ठहरिए, सवाल पूछतीं ये पंक्तियां किसी साहित्यिक किताब का अंश नहीं, बल्कि 20 जून को वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन का लिखा सच है जो दिल्ली समेत देश के अन्य शहरों में गर्म रातों यानी 'वॉर्म नाइट' का जीवंत बखान कर रही हैं. कम से कम दिल्ली में 18 जून तक तो यही कहानी रही है. इसी दिन देश की राजधानी में साल 1969 के बाद सर्वाधिक न्यूनतम तापमान (35.2 डिग्री से.) दर्ज किया गया. दिल्ली में जहां दिन की गर्मी लोगों का खस्ताहाल किए हुए है, वहीं अब रात में भी लोगों को चैन नहीं. ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर लोगों को वॉर्म नाइट से चिंतित होने की जरूरत क्यों है?
इस साल के फरवरी-मार्च में ही भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने चेता दिया था कि इस बार रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ने वाली है. अप्रैल से लोगों को इसका असर भी महसूस होने लगा. मई-जून में आयोजित हुए लोकसभा चुनाव में लोगों ने तपती गर्मी में वोट डाले. यहां अगर सिर्फ जून की बात की जाए तो अभी इसे खत्म होने में दसेक दिन बाकी हैं. पर अब तक इसमें सात लू वाले दिन (हीटवेव) दर्ज किए जा चुके हैं. ऊपर से रात में बढ़ता तापमान अब एक नई आफत को दावत दे रहा है.
जून में दिल्ली अब तक लगातार छह 'वॉर्म नाइट' की मार झेल चुकी है. हालात की त्रासदी इस बात से भी समझी जा सकती है कि 12 मई के बाद दिन के दौरान चढ़ा तापमान कभी भी रातों में 40 डिग्री के नीचे नहीं आया. इसमें 19 जून को ही जाकर बदलाव हुआ जब मौसम ने थोड़ी नरमी दिखाई. लेकिन फिर भी रातों में ये 32 डिग्री से ऊपर ही रहा. अगर बात 1969 से 2024 के बीच की जाए तो इससे पहले सर्वाधिक न्यूनतम तापमान 23 मई, 1972 को दर्ज किया गया था. उस दिन यह 34.9 डिग्री रिकॉर्ड किया गया. अब यहां आगे बढ़ने से पहले थोड़ा 'वॉर्म नाइट' के बारे में जान लेते हैं.
आईएमडी के मुताबिक, वॉर्म नाइट या गर्म रातें वे होती हैं जिनमें रात का न्यूनतम तापमान, सामान्य से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस तक अधिक होता है. जब यह अंतर 6.4 डिग्री से भी ज्यादा होता है तो उसे गंभीर वॉर्म नाइट माना जाता है. हालांकि दोनों ही स्थितियों के लिए पूर्व निर्धारित शर्त यह है कि दिन के दौरान तापमान 40 डिग्री या उससे अधिक होना चाहिए.
19 जून को दिल्ली का न्यूनतम तापमान सामान्य से 8 डिग्री अधिक था. जबकि अधिकतम तापमान 43.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो सामान्य से 5 डिग्री अधिक है. आमतौर पर जून महीने का औसत न्यूनतम तापमान 27.5 डिग्री रहता है. अब यहां एक सवाल उठता है कि आखिर इससे लोगों को चिंतित होने की जरूरत क्यों है?
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में दिल्ली सरकार में एक डॉक्टर बताते हैं, "मई के आखिरी हफ्ते में ही तापमान अपने चरम पर पहुंच गया था. इसके बावजूद अगर हीट स्ट्रोक के मामले अब ज्यादा दर्ज किए जा रहे हैं तो इसका कारण रात के तापमान में बढ़ोतरी है. और अभी इससे कोई राहत नहीं मिलने वाली है."
वे आगे बताते हैं, "इसके अलावा रात में घर बाहर की तुलना में ज्यादा गर्म होते हैं. दिन के समय जब बाहर ज्यादा गर्मी होती है तो लोग बाहर खुले में रहते हैं. और रात में जब उन्हें घर के अंदर रहना पड़ता है, इस दौरान भी तापमान में कोई बहुत ज्यादा गिरावट नहीं होती है."
हालांकि आईएमडी ने अभी तक जून की इस जबरदस्त गर्मी का विस्तार में अध्ययन नहीं किया है. लेकिन सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि 2011 के बाद यह पहली बार है जब देश की राजधानी में जून में सबसे ज्यादा न्यूनतम तापमान वाले दिन दर्ज किए गए हैं. 1 से लेकर 19 जून की अवधि में 12 दिन ऐसे रहे हैं जब न्यूनतम तापमान 30 डिग्री से अधिक रहा है. इससे पहले 2018 में इस तरह के 10 दिन रिकॉर्ड किए गए थे.
कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि 'अर्बन हीट आइलैंड' शहरों में तापमान में बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण है. दरअसल, यह एक स्थानीय घटना है जो मुख्य रूप से अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में देखने को मिलती है. इन क्षेत्रों में घनी इमारतें होती हैं जबकि हरे-भरे क्षेत्र कम होते हैं. इनकी तुलना में वैसे शहर जो अपेक्षाकृत अधिक खुले और हरे-भरे होते हैं वहां तापमान कम रहता है.
उदाहरण के लिए दिल्ली का रिज इलाका और हरियाली से भरपूर लुटियन दिल्ली को ही लीजिए. यहां पिछले कई दशकों से दिल्ली के अधिक शहरीकृत पॉकेट की तुलना में कम अधिकतम और न्यूनतम तापमान दर्ज किया जाता रहा है. अध्ययन बताते हैं कि इन क्षेत्रों के कंक्रीटीकरण के चलते गर्मी फंस के रह जाती है. और इसकी वजह से कुछ किलोमीटर के भीतर ही तापमान में 2 से 4 डिग्री तक बदलाव हो सकता है.