पिछले 25 सालों में भारत में कई रेलवे स्टेशनों पर भगदड़ की घटनाएं देखने को मिली हैं. जैसे, 2002 में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़, 2004 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, 2013 में इलाहाबाद या फिर 2017 में मुंबई के एलफिंस्टन रोड स्टेशन पर मची भगदड़ इनमें कुछ प्रमुख उदाहरण हैं. इन सभी हादसों में 60 से ज्यादा लोग मारे गए.
यहां सवाल है कि अगर इन हादसों से भारतीय रेलवे ने कुछ भी सबक सीखा, तो वो सारे सबक 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कहां गायब हो गए, जहां मची भगदड़ में 18 लोग मारे गए. इन मृतकों में पानीपत की एक आठ साल की बच्ची पूजा कुमारी थी, तो टिकरी का एक 12 साल का लड़का नीरज भी था जो पहली बार महाकुंभ जाने के लिए उत्साहित था.
हादसे के दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हजारों की संख्या में यात्रियों की भीड़ मौजूद थी, जिनमें से ज्यादातर प्रयागराज महाकुंभ जाने के लिए ट्रेनों का इंतजार कर रहे थे. लोग 'प्रयागराज एक्सप्रेस' का इंतजार कर रहे थे, जो कि एक रेगुलर ट्रेन है. तभी दूसरे प्लेटफॉर्म पर एक स्पेशल (अस्थायी) ट्रेन 'प्रयागराज स्पेशल' आई. इन दोनों ट्रेनों का नाम मिलता-जुलता होने से लोगों में गफलत पैदा हुई, और लोग उस प्लेटफॉर्म की ओर भागे जिधर स्पेशल ट्रेन आने वाली थी.
रेलवे का कहना है कि इस नई (प्रयागराज स्पेशल) ट्रेन के आने की कोई 'अचानक' घोषणा नहीं की गई और न ही इसका प्लेटफॉर्म बदला गया. लेकिन ड्यूटी पर मौजूद रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के एक इंस्पेक्टर ने हादसे की जांच के लिए गठित दो सदस्यीय इंक्वायरी कमिटी को बयान दिया है कि स्पेशल ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला गया था, और इसकी वजह से ही भीड़ उमड़ी. हालांकि, रेलवे इस बात से इनकार करता रहा है.
रेलवे बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा है, "मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की गई है और प्रोटोकॉल के अनुसार स्टेशन पर मौजूद सभी कर्मचारियों, जैसे निरीक्षकों और अधिकारियों से प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों का विवरण और रिपोर्ट मांगी जाएगी. इसके बाद समिति द्वारा रिपोर्ट क्षेत्रीय रेलवे को सौंपी जाएगी."
रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि प्रयागराज एक्सप्रेस का इंतजार कर रहे कुछ लोगों, संभवतः अनारक्षित यात्रियों ने स्पेशल ट्रेन पकड़ने का फैसला किया, क्योंकि यह पहले रवाना होने वाली थी और इसमें उन्हें सीट कब्जाने का बेहतर मौका मिलता.
अब तक की जांच में रेलवे ने पाया है कि करीब 25 लोगों का एक समूह, जिनमें से कुछ के कंधों पर भारी सामान था, स्पेशल ट्रेन में चढ़ने के इरादे से नई दिल्ली स्टेशन के प्लेटफार्मों को जोड़ने वाले फुटब्रिज की ओर सीढ़ियां चढ़ने लगा. जांच के मुताबिक, इन सीढ़ियों पर थके हुए यात्री भी आराम कर रहे थे जो कि भारत भर में रेलवे स्टेशनों पर एक आम स्थिति है.
लेकिन हुआ यूं कि भीड़-भाड़ में भारी सामान लेकर ऊपर चढ़ रहे एक यात्री का पैर फिसला और वह नीचे आ गिरा. इससे तुरत-फुरत में अफरा-तफरी मच गई. अब सीढ़ी पर जो यात्री आराम कर रहे थे, उनको कुचलते हुए भीड़ आगे भाग रही थी. इस भगदड़ में 18 लोग मारे गए.
अधिकारियों ने बताया कि यह सबकुछ चंद मिनटों में हुआ. महाकुंभ की जबरदस्त भीड़ के बीच यात्रियों को सीढ़ियों पर आराम करने की अनुमति क्यों दी गई, यह उन कई सवालों में से एक है, जिस पर जांच समिति अब विचार कर रही है.
इस बीच, रेलवे ने भारत भर के 60 स्टेशनों पर समर्पित 'होल्डिंग जोन' बनाने का फैसला किया है, जिसमें नई दिल्ली भी शामिल है जहां अक्सर भीड़भाड़ रहती है. होल्डिंग जोन, असल में यात्रियों को ट्रेन आने से पहले प्लेटफॉर्म पर पहुंचने से रोकने के लिए बनाए जाते हैं. जहां सामान्य स्थिति में यात्री ट्रेन का इंतजार प्लेटफॉर्म पर करते हैं, वहीं होल्डिंग जोन बनने से वो तबतक प्लेटफॉर्म पर नहीं पहुंचते, जबतक ट्रेन नहीं आ जाती.
महाकुंभ में आने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रयागराज और उसके आसपास के स्टेशनों पर होल्डिंग एरिया और कलर-कोडेड मार्ग संकेतक पहले ही लागू किए जा चुके हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इंडिया टुडे को बताया, "हम भीड़भाड़ से निपटने के लिए एक मैनुअल भी बनाएंगे और इन स्टेशनों पर यात्रियों से फीडबैक लेंगे."
नई दिल्ली में रेल भवन मुख्यालय में एक 24x7 'वॉर-रूम' है, जिसमें प्रमुख स्टेशनों और ट्रेनों की आवाजाही पर बड़ी स्क्रीन से निगरानी की जाती है. यह महाकुंभ की भीड़ को प्रबंधित करने के लिए रेलवे का प्रमुख केंद्र रहा है. वैष्णव यहां शीर्ष अधिकारियों के साथ काफी समय बिता रहे हैं. प्रयागराज के नौ स्टेशनों पर करीब 1,186 सीसीटीवी कैमरे (जिनमें 764 नए कैमरे शामिल हैं) लगाए गए हैं, जिनमें से कई में फेशियल रिकग्निशन (चेहरे की पहचान) की सुविधा भी है.
हालांकि, ये तमाम कैमरे और वॉर रूम स्क्रीन दिल्ली में भगदड़ की त्रासदी को नहीं रोक पाए. रेलवे बोर्ड के एक अधिकारी ने अपने फोन पर फुटेज दिखाते हुए कहा, "सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि घटना से ठीक पहले दोनों प्लेटफॉर्म पर शांति का माहौल था और वहां कोई भीड़ भी नहीं थी."
केंद्र सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने यहां तक संकेत दिया है कि भीड़ "अफवाहों" के कारण घबरा गई और ट्रेन की ओर भागी. पीआईबी ने त्रासदी के बाद जारी बयान में कहा, "भारतीय रेलवे आम जनता से अपील करता है कि वे अफवाहों का शिकार न बनें, जैसा कि नई दिल्ली स्टेशन पर हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना में देखा गया."
सामान्य दिनों में करीब 5 हजार लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अनरिजर्वड टिकट बुक कराते हैं, लेकिन 15 फरवरी की उस मनहूस दिन सामान्य से 2600 से अधिक लोगों ने अनारक्षित टिकट बुक कराए थे. इसकी वजह से अतिरिक्त भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पांच अतिरिक्त स्पेशल ट्रेनें चलानी पड़ीं.
देश के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में शुमार नई दिल्ली से रोजाना करीब 5 लाख यात्री ट्रैवल करते हैं. कहा जाता है कि इसकी क्षमता एक बार में लगभग 50,000 लोगों को समाहित करने की है. इस पैमाने को देखते हुए यात्रियों ने अक्सर पाया है कि प्लेटफॉर्म को जोड़ने वाला फुटब्रिज संकरा है, और विपरीत दिशाओं में जाने वाली भीड़ को अलग करने वाले डिवाइडर के कारण जगह और भी कम हो जाती है, खासकर तब जब लोगों की भीड़ काफी ज्यादा होती है.
महाकुंभ में लाखों तीर्थयात्रियों को हफ्तों तक बिना किसी परेशानी के ले जाने के बाद, क्या स्टेशन अधिकारियों ने लापरवाही बरती? यह एक ऐसा सवाल है जिसकी जांच इंक्वायरी कमिटी करेगी. अधिकारियों ने कहा कि 15 फरवरी की भगदड़ के पीछे की वजहों की जांच करते समय बुनियादी ढांचे के पहलुओं की भी समीक्षा की जाएगी.
कुंभ और महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा लोगों का जुटान माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसमें कई त्रासदियां हुई हैं. पिछले महीने महाकुंभ में भगदड़ मचने से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई. सबसे घातक भगदड़ 1954 में इलाहाबाद में हुई थी, जिसमें करीब 800 लोग मारे गए थे. तब मौनी अमावस्या के उस शुभ दिन करीब 50 लाख लोग इकट्ठा हुए थे.
भारत में भीड़भाड़ वाले धार्मिक स्थलों पर भगदड़ में लोगों का मरना, जितना सामान्य समझा जाता है, उससे यह कहीं ज्यादा आम बात है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 से 2018 के बीच 68 भगदड़ की घटनाएं हुईं, जिनमें 327 लोग मारे गए.
कुंभ जैसे बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों के लिए भारत में किसी भी अन्य परिवहन व्यवस्था में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को लाने-ले जाने की व्यवस्था नहीं है, जितनी रेलवे ने की है. 3,100 स्पेशल ट्रेनें, 10,000 रेगुलर ट्रेनें, प्रयागराज इलाके में नौ स्टेशन, 13,000 रेलवे कर्मचारी और 1,000 सफाई कर्मचारियों के साथ रेलवे ने इस महाकुंभ के लिए जो व्यवस्था की है, वह इससे पहले कभी नहीं हुआ. अधिकारियों ने बताया कि अब तक करीब 9 करोड़ लोगों को प्रयागराज लाया या ले जाया जा चुका है.
लेकिन ये संख्याएं उन 18 यात्रियों के परिवारों के लिए कोई मायने नहीं रखतीं, जो नई दिल्ली स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते हुए मारे गए. विपक्ष, जैसा कि अनुमान था, वैष्णव पर निशाना साध रहा है. 2013 में इलाहाबाद में भगदड़ के बाद समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने कुंभ आयोजन समिति के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था.
क्या इस बार भी कोई कार्रवाई होगी? वैष्णव ने सतर्कता बरतते हुए कहा, "जांच पूरी होने दीजिए. उसके बाद ही हम कुछ कह सकते हैं."