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सेना ने धूमधाम से पिछले साल 'अपाचे स्क्वाड्रन' बनाया, लेकिन इसमें एक भी अपाचे हेलिकॉप्टर नहीं !

अमेरिका की कंपनी बोइंग को तीन-तीन के बैच में कुल 6 अपाचे हेलिकॉप्टर भारत को देने थे, लेकिन ये सेना को अब तक नहीं मिल पाए हैं

अपाचे हेलिकॉप्टर
अपडेटेड 16 जून , 2025

भारतीय सेना का 451 एविएशन स्क्वाड्रन, जिसे मार्च 2024 में राजस्थान के जोधपुर में बड़ी उम्मीदों के साथ बनाया गया था, आज भी खाली पड़ा है. वजह है अमेरिका से खरीदे गए छह अपाचे AH-64E अटैकर हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी में बार-बार हो रही देरी. 2020 में 600 मिलियन डॉलर (लगभग 4100 करोड़ रुपये) की डील के तहत ये हेलीकॉप्टर मई-जून 2024 तक भारत आने थे, लेकिन अब तक एक भी हेलीकॉप्टर नहीं आया.

यह देरी न सिर्फ सेना की वॉर एफ़िशिएन्सी पर असर डाल रही है, बल्कि रक्षा सौदों में जवाबदेही और आत्मनिर्भरता पर भी सवाल उठा रही है. हालिया पाकिस्तान विवाद और चार दिनों तक चली हवाई जंग के बाद तो ये मामला और ज़रूरी हो जाता है.

क्यों है अपाचे ‘हवाई जंग का कारसाज़’?

जब बात जंग के मैदान में हवाई शक्ति की आती है, तो अपाचे हेलीकॉप्टर का नाम सबसे पहले लिया जाता है. बोइंग AH-64 अपाचे, जिसे दुनिया का सबसे आधुनिक हमलावर हेलीकॉप्टर माना जाता है. यह स्पीड, एक्यूरेसी और फ़ायर पावर का अनूठा जोड़ है. यह हेलीकॉप्टर न सिर्फ सैन्य रणनीति का ज़रूरी हिस्सा है, बल्कि मॉडर्न एयर वॉरफ़ेयर की तकनीकी क्रांति का प्रतीक भी है. बनने के बाद दशकों से अपाचे को जंग के मैदान का “आसमानी टैंक” कहा जाता रहा है. आसान भाषा में जान लेते हैं कि अपाचे हेलीकॉप्टर क्या है, इसे किसने बनाया, और इसकी खासियतें क्या हैं.

अपाचे हेलीकॉप्टर क्या है?

अपाचे AH-64 एक ट्विन-इंजन, दो सीटों वाला हमलावर हेलीकॉप्टर है, जिसे मुख्य रूप से बख्तरबंद वाहनों, दुश्मन के ठिकानों और ग्राउंड कॉम्बैट फ़ोर्स को तबाह करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. यह दिन-रात और किसी भी मौसम में मिशन पूरा करने में सक्षम है. अपाचे को पहली बार 1975 में अमेरिकी सेना के लिए बनाया गया था, और तब से ये खाड़ी युद्ध, अफगानिस्तान और इराक जैसे कई युद्धों में अपनी ताकत साबित कर चुका है.

इस हेलीकॉप्टर की सबसे बड़ी खासियत इसकी फ़ायर पावर और एडवांस टेक्नीक है. यह AGM-114 हेलफायर मिसाइलें, हाइड्रा-70 रॉकेट्स और 30mm M230 चेन गन से लैस है. इसका टारगेट एक्विजिशन एंड डेजिग्नेशन साइट (TADS) सिस्टम पायलट को रात में भी सटीक निशाना लगाने में मदद करता है. अपाचे 16 हेलफायर मिसाइलें, 76 हाइड्रा रॉकेट्स और 1,200 राउंड की 30mm चेन गन ले जा सकता है. यह टैंक, बंकर और हल्के बख्तरबंद वाहनों को आसानी से खत्म कर सकता है.

इसका लॉन्गबो रडार 8 किलोमीटर तक के टार्गेट को स्कैन कर सकता है. अपाचे का बख्तरबंद कॉकपिट और ज़रूरी हिस्से छोटे हथियारों और मिसाइलों से बचाव के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. दो जनरल इलेक्ट्रिक T700 टर्बोशाफ्ट इंजनों की मदद से अपाचे 293 किमी/घंटा की रफ्तार से उड़ सकता है और तंग इलाकों में तेजी से मैन्यूवर कर सकता है. 

अपाचे का सबसे ताज़ा वर्जन, AH-64E “गार्जियन” के नाम से जाना जाता है. गार्जियन अपाचे ड्रोन को कंट्रोल करने और रियल-टाइम खुफिया जानकारी साझा करने की कैपिसिटी से लैस होता है.

अपनी अचूक फायर पावर के लिए जाना जाता है अपाचे 'गार्जियन'

बोइंग का ‘ऑनर बैज’ है अपाचे

अपाचे हेलीकॉप्टर को बोइंग कंपनी बनाती है, जो दुनिया की सबसे बड़ी एयरोस्पेस और डिफेंस कंपनियों में से एक है. बोइंग की स्थापना 1916 में विलियम बोइंग ने की थी, और यह कंपनी फाइटर जेट, कमर्शियल प्लेन (जैसे 737 और 787 ड्रीमलाइनर), और सैन्य हेलीकॉप्टरों के लिए जानी जाती है. लेकिन अपाचे का बेसिक मॉडल मूल रूप से ह्यूजेस हेलीकॉप्टर्स ने बनाया था. 1984 में ह्यूजेस को मैकडॉनेल-डगलस ने खरीद लिया, और 1997 में मैकडॉनेल-डगलस का बोइंग में मर्जर हो गया. तब से बोइंग ने अपाचे के डिज़ाइन, प्रोडक्शन और अडवांसमेंट का जिम्मा संभाला है.

बोइंग ने अब तक 2,500 से ज्यादा अपाचे हेलीकॉप्टर बनाए हैं, जो अमेरिका, भारत, नीदरलैंड्स, इज़रायल, सऊदी अरब और 16 अन्य देशों की सेनाओं में तैनात हैं. भारत ने 2015 में वायुसेना के लिए 22 अपाचे और 2020 में सेना के लिए 6 अपाचे खरीदने की डील की, जिनमें से वायुसेना के हेलीकॉप्टर 2019-2021 में डिलीवर हो चुके हैं.

भारत के लिए कितने ज़रूरी हैं अपाचे?

भारत ने अपाचे हेलीकॉप्टरों को अपनी रक्षा रणनीति का ज़रूरी हिस्सा बनाया है. वायुसेना के 22 अपाचे हेलीकॉप्टर पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं पर तैनात हैं, जबकि सेना के लिए 6 अपाचे जोधपुर के 451 एविएशन स्क्वाड्रन में तैनात होने थे. ये हेलीकॉप्टर रेगिस्तानी इलाकों में बख्तरबंद खतरों से निपटने और सीमा पर क्विक एक्शन के लिए जरूरी हैं. 

बोइंग के सामने भी हैं चुनौतियां

हालांकि बोइंग ने अपाचे को एक भरोसेमंद वॉर प्लेटफ़ॉर्म बनाया है, लेकिन कंपनी हाल के वर्षों में विवादों में भी घिरी है. 2018 और 2019 में बोइंग 737 मैक्स के दो हादसों में 346 लोग मारे गए, जिसके बाद कंपनी की सुरक्षा और क्वालिटी कंट्रोल पर सवाल उठे. 2024 में अलास्का एयरलाइंस के 737 मैक्स 9 का दरवाजा हवा में फट गया, और व्हिसलब्लोअर जॉन बार्नेट ने बोइंग पर कमजोर पुर्जे लगाने के आरोप लगाए. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अपाचे हेलीकॉप्टरों में भी बिजली जनरेटरों की खराबी की शिकायतें आईं, जिसके कारण भारत को डिलीवरी में देरी का सामना करना पड़ रहा है. ये घटनाए बोइंग के कॉरपोरेट कल्चर और सप्लाई चेन की कमियों को उजागर करती हैं.

दुश्मन को चकमा देने के मामले में अपाचे का लाजवाब माना जाता है

क्यों ज़रूरी है अपाचे की डील पूरी करना

अपाचे AH-64E को दुनिया का सबसे उन्नत हमलावर हेलीकॉप्टर माना जाता है. ये लॉन्गबो फायर कंट्रोल रडार, AGM-114 हेलफायर मिसाइलें, हाइड्रा-70 रॉकेट्स और 30mm चेन गन से लैस है. भारतीय सेना के लिए ये हेलीकॉप्टर खासतौर पर रेगिस्तानी इलाकों में बख्तरबंद खतरों से निपटने के लिए बनाए गए हैं, जहां भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बना रहता है. ये हेलीकॉप्टर भारतीय वायुसेना के 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों के बेड़े को भी राहत देने वाले थे, जो 2019-2021 में शामिल किए गए थे. इमरजेंसी में सेना के पास अपने हेलिकॉप्टर होंगे तो वायु सेना अपनी अपाचे फ्लीट का इस्तेमाल अपने हिसाब से कर पाएगी. 

जोधपुर के 451 एविएशन स्क्वाड्रन को इन हेलीकॉप्टरों के साथ पश्चिमी सीमा पर कॉम्बैट और जासूसी मिशनों को मजबूत करना था. खासकर मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ा था. लेकिन डिलीवरी में देरी ने इस स्क्वाड्रन को बेकार छोड़ दिया है, जिसके पायलट और ग्राउंड क्रू अमेरिका में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर चुके हैं और अब हेलीकॉप्टरों का इंतजार कर रहे हैं.

देरी के पीछे कमज़ोर सप्लाई चेन या लापरवाही?

2020 में भारत और अमेरिका ने 600 मिलियन डॉलर की डील साइन की थी. इस डील के तहत 6 अपाचे हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी दो बैचों में होनी थी- पहले तीन मई-जून 2024 तक, और बाकी तीन जुलाई 2024 तक. लेकिन सप्लाई चेन में रुकावटों और ‘तकनीकी समस्याओं’ के चलते डिलीवरी पहले दिसंबर 2024 तक बढ़ी, और अब अंदाजा लगाया जा रहा है कि पहला बैच जुलाई 2025 तक आ सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अमेरिका में बोइंग कंपनी को बिजली जनरेटरों में खराबी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण अमेरिकी सेना के अपाचे हेलीकॉप्टरों में हाल के हादसों के बाद सभी डिलीवरी रोक दी गई हैं.

इसके अलावा, भारत को अमेरिका के डिफेंस प्रायोरिटीज एंड अलोकेशन सिस्टम्स प्रोग्राम (DPAS) में कम प्राथमिकता मिलने से भी शुरुआती देरी हुई. हालांकि ये मुद्दा अप्रैल-मई 2024 में कूटनीतिक बातचीत से हल हो गया था. उसके बाद भी बोइंग की ओर से नए डिलीवरी टाइम की कोई साफ जानकारी नहीं मिली है, जिससे भारतीय सेना की अपाचे स्क्वाड्रन में हताशा होना बहुत अस्वाभाविक नहीं कहा जाएगा.

भारतीय वायु सेना से रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर डी. आर नेगी इंडिया टुडे को बताते हैं, “इस तरह के बाकी रक्षा सौदों में भी एक चीज़ बड़ी चिंता है. बात ये है कि इस सौदे में देरी के लिए कोई दंडात्मक प्रावधान (पेनल्टी क्लॉज) शामिल नहीं है. बिना पेनल्टी क्लॉज के भारत के पास बोइंग पर दबाव बनाने का कोई ठोस तरीका नहीं है. इससे न सिर्फ डिफेंस डील में जवाबदेही की कमी उजागर होती है, बल्कि भारत की रणनीतिक तैयारियों पर भी सवाल उठते हैं. कोई भी ये सुनकर हैरान होगा कि 600 मिलियन डॉलर की डील, और 15 महीने बाद भी एक हेलीकॉप्टर नहीं.”

अप अपाचे अटैकर में इतना ज्यादा गोला बारूद लादकर लैस किया जाता है.

भारतीय वायुसेना पहले ही 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कर रही है, जो पठानकोट और जोरहाट में तैनात हैं. लेकिन सेना का अपना स्क्वाड्रन अभी तक नाकाम है. इस बीच सेना अपने स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) प्रचंड पर निर्भर है. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने बनाया है. हालांकि प्रचंड को हाई अल्टीट्यूड वाले मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है. और इसी वजह से ये अपाचे की फायर पावर का पूरी तरह विकल्प नहीं है. कुछ विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि भारत को प्रचंड पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए ताकि विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता कम हो. 

स्वदेशी पर ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत?

ये देरी भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के लिए भी एक सबक है. हाल के वर्षों में भारत ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसका नतीजा हैं तेजस फाइटर जेट और प्रचंड हेलीकॉप्टर. लेकिन अपाचे जैसे एडवांस हेलीकॉप्टरों की देरी दिखाती है कि विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता अभी भी एक कमजोरी है. रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में 156 प्रचंड हेलीकॉप्टरों के लिए HAL को टेंडर जारी किया है, जिसकी लागत 50,000 करोड़ रुपये है. यह कदम भारत की रक्षा क्षमताओं को स्वदेशी बनाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है.

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