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भाजपा के लिए नई सोशल इंजीनियरिंग करेगा संघ! लेकिन ये है क्या?

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने यूपी प्रवास के दौरान खींचा संघ के कार्यक्रमों का खाका. हिंदू समुदाय के बीच जातिगत विभाजन को पाटने की बनी रणनीति

मोहन भागवत: फाइल फोटो
मोहन भागवत: फाइल फोटो
अपडेटेड 24 अप्रैल , 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत का 3 अप्रैल से वाराणसी से शुरू हुआ प्रवास 21 अप्रैल को अलीगढ़ में संपन्न हुआ. इस दौरान भागवत कानपुर और लखनऊ भी पहुंचे. संघ प्रमुख 14 साल के अंतराल पर अलीगढ़ पहुंचे थे. 

वैसे तो संघ प्रमुख का यह प्रवास मुख्यरूप से आरएसएस के शताब्दी वर्ष की तैयारियों से जुड़ा था लेकिन समाज के अलग-अलग तबकों से सीधे संवादकर मोहन भागवत ने यूपी की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थ‍िति‍यों की जमीनी जानकारी लेने की पूरी कोशि‍श की. 

शताब्दी वर्ष में संघ कार्य की गति तेज करने के लिए शाखाओं की संख्या बढ़ाने का मंत्र भागवत ने दिया. भागवत का यूपी प्रवास उस वक्त हुआ जब प्रदेश के साथ देश में भी वक्फ संशोधन बिल के विरोध में आवाज तेज हो रही है और यूपी की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) ने राणा सांगा विवाद के जरिए दलितों के ध्रुवीकरण की कोशिश शुरू की है. इस लिहाज से भागवत का हालिया दौरा यूपी में संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की दिशा में सहायक साबित हो सकता है. 

जानकारों के मुताबिक संघ यूपी के मद्देनजर अपने क्रियाकलापों में वैचारिक और रणनीतिक दोनों तरीकों में महत्वपूर्ण बदलाव कर सकता है. खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद राजनीतिक मंथन के मद्देनजर, जिसमें भाजपा को विपक्ष के पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) पर आधारित चुनावी नैरेटिव से झटका लगा है, खासकर यूपी में जहां पार्टी के सांसदों की संख्या 62 से गिरकर 33 हो गई है. भाजपा की कट्टर प्रतिद्वंद्वी और यूपी में मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी की संख्या 5 से बढ़कर 37 हो गई है. 

आरएसएस से जुड़े लोगों के मुताबि‍क संघ हिंदू समुदाय के भीतर जातिगत रेखाओं को धुंधला करने के लिए नई सोशल इंजीनियरिंग 'जातिवादी हिंदू से राष्ट्रवादी हिंदू' पर कार्य कर रहा है. इस नैरेटिव को पहले ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उजागर किया है, जिन्होंने हाल ही में एक स्पष्ट आह्वान “एक कुआं, एक मंदिर, एक श्मशान” के जरिए किया. 

अलीगढ़ की अपनी यात्रा के दौरान भागवत ने कथित तौर पर आरएसएस स्वयंसेवकों से समाज के सभी वर्गों तक सक्रिय रूप से पहुंचने और जमीनी स्तर पर एकता बनाए रखने के लिए कहा. विशेषज्ञ इसे सावधानीपूर्वक तैयार किया गया संकेत बताते हैं, जो न केवल गहरा प्रतीकात्मक है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी जुड़ा हुआ है. डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, “एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान के जरिए संघ खासकर गांवों में हिंदू जातियों में विभाजन खत्म कर सामाजिक सामंजस्य स्थापित करना चाहता है. यह हिंदू जातियों को एकजुट करने की रणनीति भी है.” 

संघ कार्यकर्ताओं को न केवल मंडल बल्कि शाखा और टोली स्तर पर भी अभियान चलाने के लिए कहा गया है. यूपी प्रवास के दौरान मोहन भागवत ने संघ कार्यकर्ताओं से 'पंच परिवर्तन'  पर काम करने के लिए भी कहा - सामाजिक सद्भाव, कुटुंब प्रबोधन (परिवार प्रबंधन), पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और नागरिक कर्तव्य.

यूपी में गर्मी के साथ राजनीतिक तापमान भी बढ़ रहा है जब सपा पीडीए की रणनीति में दलितों से जुड़े मुद्दों को काफी आक्रमकता के साथ उठा रही है. इससे हिंदू मतदाताओं के बीच जातिगत विभाजन और गहराने का खतरा है. वहीं, भाजपा, जिसे जमीनी स्तर पर आरएसएस का समर्थन प्राप्त है, समुदाय आधारित एकीकरण की ओर चर्चा को मोड़ने का प्रयास कर रही है. वह खुद को जातिगत आधार पर हिंदुओं को एकजुट करने में सक्षम एकमात्र ताकत के रूप में पेश कर रही है. 

सत्तारूढ़ भाजपा ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के पक्ष में एक सुनियोजित और आक्रामक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है, जो हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने की एक स्पष्ट विभाजनकारी रणनीति है, साथ ही एक ऐसे मुद्दे से ध्यान भटकाना है, जिससे वह स्पष्ट रूप से असहज है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वक्फ संशोधन अधिनियम का समय जानबूझकर और रणनीतिक है, क्योंकि विपक्ष जाति जनगणना के मुद्दे पर पिछड़े मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है. भाजपा इस कानून को दशकों से चली आ रही कथित तुष्टिकरण की राजनीति के लिए एक सुधारात्मक उपाय के रूप में पेश कर रही है जबकि विपक्ष इस कानून की आलोचना "मुस्लिम विरोधी" के रूप में कर रहा है. 

उत्तर प्रदेश में, भाजपा 21-22 अप्रैल को क्षेत्रीय स्तर पर और 23-24 अप्रैल को जिला स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित कर रही है. मुस्लिम विद्वानों, शिक्षकों, प्रभावशाली लोगों और पेशेवरों को शामिल करते हुए टाउनहॉल कार्यक्रम 25, 28 और 29 अप्रैल को शहरों में आयोजित किए जाएंगे. 26-28 अप्रैल को घर-घर जाकर अभियान चलाए जाएंगे, जबकि 2-3 मई को "नागरिक संवाद" (नागरिक संवाद) होगा. महिला और युवा विंग भी मई की शुरुआत में केंद्रित आउटरीच कार्यक्रमों का नेतृत्व करेंगे. भाजपा के अभियान के समानांतर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), जो कि भाजपा का वैचारिक अभिभावक है, हालांकि वक्फ अधिनियम के साथ जुड़ा नहीं है, जातिगत भेदभाव को कम करके हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए एक व्यापक वैचारिक अभियान में लगा हुआ है. 

आरएसएस से जुडे स्वयंसेवकों के मुताबिक संघ के शताब्दी वर्ष कार्यक्रमों के तहत विजय दशमी के बाद हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए पूरे साल कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इसके तहत घर-घर संपर्क, हिंदू सम्मेलन होंगे. सद्भाव बैठकों के सहारे दलित और पिछड़े समाज के लोगों को संघ से जोड़ने का कार्य होगा. यह कार्य विजय दशमी 2026 तक चलेगा. इसी दौरान प्रदेश में पंचायत चुनाव होंगे. इन कार्यक्रमों का असर जहां पंचायत चुनावों को प्रभावित करेगा वहीं 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर दिखाई देगा. 

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