ठीक आठ महीने पहले 18 दिसंबर को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बातचीत के लिए बीजिंग गए थे. यह यात्रा रूसी शहर कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बातचीत के दौरान द्विपक्षीय वार्ता तंत्र को पुनर्जीवित करने पर बनी सहमति के कुछ ही हफ़्ते बाद हुई थी.
वांग यी बातचीत आगे बढ़ाने के लिए 18 अगस्त को नई दिल्ली पहुंचे, और यहां आकर उन्होंने डोभाल से कहा कि वे भारत-चीन सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर “स्थिरता बहाल होते देखकर उत्साहित हैं.” इस पर डोभाल ने भी प्रतिक्रिया दी कि “सकारात्मक प्रगति” दिख रही है और सीमाएं शांत हैं. शांति और सौहार्द कायम है.
वांग यी ने माना कि हालिया वर्षों में भारत और चीन को कुछ झटके लगे हैं और ये दोनों देशों के लोगों के हित में नहीं हैं. इस पर, डोभाल ने उम्मीद जताई कि विशेष प्रतिनिधि स्तर की 24वें दौर की वार्ता भी “पिछले दौर की तरह ही सफल” होगी, और मोदी की आगामी चीन यात्रा के संदर्भ में इन चर्चाओं को महत्वपूर्ण बताया. डोभाल की यह टिप्पणी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में प्रस्तावित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में मोदी की भागीदारी को लेकर भारत की ओर से पहली आधिकारिक घोषणा थी.
बहरहाल, नई दिल्ली की तरफ से द्विपक्षीय संबंधों को लेकर अत्यधिक सतर्कता बरती जा रही है क्योंकि भारतीय सेना का अब भी यही मानना है कि 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ और फिर गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खून संघर्ष के कारण टूटे भरोसे को फिर से बहाल करना आसान नहीं है.
चीनी सेना सीमा पर टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी प्रक्रिया से संतुष्ट है, वहीं भारतीय पक्ष एलएसी विवाद को ‘तीन डी’ दृष्टिकोण के जरिये सुलझाने पर जोर दे रहा है- डिसइंगेजमेंट (सैन्य वापसी), डि-एस्कलेशन (तनाव घटाना) और डी-इंडक्शन (पुनर्बहाली न करना)
पिछले साल अक्तूबर में तनाव वाले स्थानों पर एकदम आमने-सामने आ गए सैनिकों के पीछे हटने के साथ सैन्य वापसी प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी. हालांकि, तनाव घटाने और सैनिकों की पूर्ण वापसी पर अभी बातचीत जारी है, और भारत एलएसी पर तनाव कम करने के लिए इन क्षेत्रों में प्रगति पर जोर दे रहा है.
रक्षा सूत्रों का दावा है कि चीनी सेना ने अपने सैनिकों को शांतिकाल वाली स्थिति या 2020 से पहले जैसी स्थिति में लाने का कोई संकेत नहीं दिया है. हालांकि, अग्रिम मोर्चे के सैनिक टकराव वाले बिंदुओं से पीछे हट गए हैं लेकिन चीनी सेना ने अभी तक एलएसी के नजदीकी स्थानों से अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाया है. यही वजह है कि दोनों पक्ष सीमा पर महत्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति (प्रत्येक पक्ष के 50,000 से 60,000 सैनिक) बनाए हुए हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) भारत की पूरी तरह से तनाव घटाने की मांग पर सहमत होने को तैयार नहीं है और दोहरे इस्तेमाल वाले सीमावर्ती बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखने के साथ एलएसी पर अग्रिम ठिकानों पर तैनाती बनाए हुए है.
18 अगस्त को वांग यी के साथ अपनी बैठक के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन को एलएसी पर तनाव घटाने की प्रक्रिया को “आगे” बढ़ाना होगा. जयशंकर ने ये सुझाव भी दिया कि दोनों देशों को अपने “पारस्परिक” रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए तीन सिद्धांतों- एक-दूसरे का सम्मान, पारस्परिक संवेदनशीलता और आपसी हितों- का पालन करना चाहिए.
जयशंकर ने यह भी कहा, “मतभेद न तो विवाद में बदलने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धात्मक टकराव में.” उन्होंने आगे कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में परस्पर शांति और सौहार्द बनाए रखने की क्षमता ही द्विपक्षीय संबंधों में किसी भी सकारात्मक प्रगति का आधार है. उन्होंने कहा कि भारत और चीन अपने रिश्तों के एक कठिन दौर से गुजर चुके हैं और अब आगे बढ़ना चाहते हैं. साथ ही जोड़ा, “इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से स्पष्ट और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है.”
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, चीन ने भारत को उसकी तीन प्रमुख चिंताओं को दूर करने का आश्वासन दिया है, जिसके तहत उर्वरक, दुर्लभ खनिज और सुरंग खोदने वाली मशीनों की आपूर्ति की जाएगी. इन प्रतिबद्धताओं को द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने और आर्थिक सहयोग के माध्यम से भरोसा बहाली के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा.
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, रेन्यूएबल ऊर्जा पहलों और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की भारत की बढ़ती आवश्यकता के बीच यह घटनाक्रम खासा मायने रखता है. इन चुनौतियों के समाधान के जरिये दोनों देश अधिक स्थिर और सहयोगात्मक संबंधों को बढ़ावा देना चाहते हैं, जिससे अन्य क्षेत्रों में भी बेहतर रिश्ते बहाल होने की राह खुल सकती है. बैठक मतभेदों को दूर करने और सहयोग के अवसरों की खोज में पारस्परिक रुचि को दर्शाती है.