भारत में वायु प्रदूषण न सिर्फ लाखों लोगों की अकाल मौत की वजह बन रहा है बल्कि इससे देश को अरबों डॉलर का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. मेडिकल जर्नल लैंसेट की 29 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल भारत में 2010 के मुकाबले 2022 में हवा में PM2.5 कणों की मात्रा 38 फीसदी ज्यादा हो चुकी थी और यह 17 लाख से ज्यादा लोगों के लिए वक्त से पहले मौत की वजह बनी.
PM2.5 वे छोटे-छोटे कण होते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. ये मानव बाल से भी 30 गुना ज्यादा छोटे होते हैं और सांस के जरिए फेंफड़ों के साथ-साथ खून में मिल सकते हैं. लैंसेट की इस रिपोर्ट – द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025 – को 71 संस्थानों के 128 एक्सपर्ट और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने तैयार किया है.
इसी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते बेवक्त हुई मौतों की वजह से भारत को 339.4 अरब डॉलर का नुुकसान हुआ है. यह 2022 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 9.5 फीसदी है.
हाल ही में स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2025 रिपोर्ट आई थी और इसमें दावा किया गया था कि प्रदूषित हवा की वजह से 2023 में भारत में 20 लाख लोगों की मौत हुई है. हालांकि केंद्र सरकार ने इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह आंकड़ा 'वास्तविक आंकड़ों' पर आधारित’ नहीं है और जिस सांख्यिकीय मॉडल के जरिए यह आंकड़ा निकाला गया है उसकी अपनी कमियां हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में वायु प्रदूषण से संबंधित 7,52,000 यानी 44 फीसदी मौतें जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल) के उपयोग के कारण हुईं. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कोयले के कारण 3,94,000 मौतें हुईं, जिनमें से मुख्यतः बिजली संयंत्रों में इसके उपयोग से हुईं, जबकि सड़क परिवहन में पेट्रोल के उपयोग से 2,69,000 मौतें हुईं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 2022 तक, भारत में कुल ऊर्जा आपूर्ति के 46 फीसदी और कुल बिजली के 72 फीसदी के लिए कोयले का इस्तेमाल किया गया. कुल ऊर्जा आपूर्ति में रेन्यूएबल ऊर्जा का योगदान 2 फीसदी था.

