scorecardresearch

भारत में जहां सबसे ज्यादा रोजगार, वहां महिलाएं नहीं कर पा रहीं काम! क्या हैं मुश्किलें?

ब्लू-ग्रे कॉलर नौकरियां अक्सर इनफॉर्मल से फॉर्मल सेक्टर की नौकरियों में प्रवेश का जरिया होती हैं. भारत में 80 फीसदी रोजगार यही हैं लेकिन एक ताजा सर्वे से पता चला है कि महिलाओं को यहां काम करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है

MP Wheat Procurement Women Job Opportunity
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 1 अगस्त , 2025

अगर घरेलू आमदनी ठीक-ठाक बढ़ जाए तो भारतीय महिलाएं आमतौर पर वर्कफोर्स से बाहर हो जाती हैं. सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया जाने लगता है और घरेलू कामकाज और देखभाल की जिम्मेदारियां महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता और वित्तीय स्वतंत्रता पर हावी होने लगती हैं.

इस तर्क के लिहाज से देखें तो कम आय वाले घरों में ज्यादा कामकाजी महिलाएं होनी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हैं. और यहीं पर ‘ब्लू-ग्रे कॉलर वर्कफोर्स 2025 में महिलाओं की स्थिति’ रिपोर्ट के नतीजे काफी हैरान करने वाले आंकड़े सामने रखते हैं. उदयती फाउंडेशन और फ्लेक्सी-स्टाफिंग कंपनी क्वेस कॉर्प की ये रिपोर्ट 10,620 वर्तमान और 1,575 पूर्व महिला कर्मचारियों को लेकर सर्वे पर आधारित है.

शोध बताता है कि ब्लू-ग्रे कॉलर भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी में मामूली वृद्धि हुई है, जो 2020-21 में 16 फीसद से बढ़कर 2023-24 में 19 फीसद हो गई है. यह स्थिति तब है जब इस क्षेत्र में तेज गति से विकास हुआ है. औपचारिक ब्लू-ग्रे कॉलर रोजगार 1.2 करोड़ से बढ़कर 2 करोड़ से ज़्यादा हो गए हैं.

सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि एक साल से भी कम समय से काम कर रही महिलाओं में से 52 फीसद से ज्यादा अगले 12 महीनों के भीतर नौकरी छोड़ना चाहती हैं. महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर काम करने वाले संगठन उदयती फाउंडेशन की संस्थापक सीईओ पूजा शर्मा गोयल कहती हैं, “ऐसा नहीं हैं कि महिलाएं काम करने के लिए आगे नहीं आ रहीं. बल्कि वे जल्द से जल्द नौकरी छोड़ने की भी योजना बनाने लगती है.”

समस्या सप्लाई की नहीं है क्योंकि महिलाएं तो काम करना चाहती हैं; असल दिक्कत मांग पक्ष की है. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि वर्क प्लेस पर महिलाओं के लिए सम्मानजनक और सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने वाला बुनियादी ढांचा ही मौजूद नहीं है.

सर्वेक्षण में शामिल आधी से ज्यादा (57 फीसद) महिलाओं ने बताया कि उनके लिए कार्यस्थल तक आना-जाना सबसे बड़ी चुनौती है. इनमें 11 फीसद ने बताया कि काम पूरा करके लौटने के दौरान उन्हें असुरक्षित या कम उपलब्ध सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करनी पड़ी, जिस कारण अंततः उन्हें नौकरी छोड़ना ही बेहतर विकल्प लगा. यह बात खासकर इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि 61 फीसद महिलाएं वर्क प्लेस तक आने-जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल पर निर्भर हैं.

खुदरा क्षेत्र में सर्वे में शामिल करीब 20 फीसद महिलाओं ने कहा कि उन्हें अलग वॉशरूम जैसी बुनियादी स्वच्छता सुविधाएं तक मिलना मुश्किल है; 22 फीसद ने वर्क प्लेस पर असुरक्षित महसूस करने की बात कही, और सीसीटीवी और पर्याप्त रोशनी जैसे बुनियादी सुरक्षा उपायों के अभाव वाले वर्क प्लेस के संबंध में यह धारणा काफी ज्यादा (33 फीसद) थी.

इसके अलावा संस्कृति और संरचनात्मक व्यवस्था से जुड़े मुद्दे भी सामने आए—सर्वे में शामिल 28 फीसद महिलाओं ने कार्य संस्कृति और काम के घंटे अनियमित होने जैसी समस्याओं से जूझने की बात कही और 29 फीसद ने माना कि अपनी नौकरी से असंतुष्ट हैं. प्रबंधन की तरफ से किसी तरह का लचीलापन न दिखाना और अपमानजनक व्यवहार करना भी एक प्रमुख चुनौती बनकर उभरा. 24 फीसद महिलाओं ने बताया कि उन्होंने खराब प्रबंधकीय व्यवहार के कारण नौकरी छोड़ी.

गोयल इसे बाकायदा उदाहरण के साथ स्पष्ट करती हैं. उदयती फाउंडेशन ने फार्मा कंपनियों के साथ मिलकर ग्रे-ब्लू कॉलर भूमिकाओं में ज्यादा महिलाओं की नियुक्ति के लिए काम करना शुरू किया तो कई महिलाओं ने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की भूमिका लेने से इंकार कर दिया. वजह? इस क्षेत्र में आने पर उन्हें एक लंबा वक्त सड़कों पर घूमते गुजारना पड़ता, रोजाना 14-15 डॉक्टरों के पास जाना पड़ता था, और हर जगह साफ-सुथरे वॉशरूम की सुविधा भी नहीं थी. भारत में शहरी विकास के नियोजन में अब भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता.

गोयल का कहना है, “शहरी बुनियादी ढांचे से लेकर वर्क प्लेस तक सब कुछ पुरुषों को ध्यान में रखकर पुरुष ही डिजाइन करते हैं. अगर हम चाहते हैं कि बड़ी संख्या में महिलाएं वर्क फोर्स में शामिल हों और टिकी भी रहें तो बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करना सबसे ज्यादा जरूरी है.” जाहिर है कि सुरक्षित परिवहन, साफ-सफाई, बच्चों की देखभाल और किफायती छात्रावास कुछ ऐसी बुनियादी सुविधाएं हैं जो किसी महिला के लिए वर्क प्लेस के अनुभव को बेहतर या बदतर बना सकती हैं.

बहरहाल, यह समझना भी उतना ही जरूरी है कि ये कर्मचारी कौन हैं. ब्लू-ग्रे कॉलर नौकरियां अक्सर अनौपचारिक से औपचारिक रोजगार में प्रवेश का साधन होती हैं. न्यूनतम प्रशिक्षण की आवश्यकता वाली ये नौकरियां 15,000 से 21,000 रुपये के बीच सैलरी देती हैं. 

ग्रे कॉलर नौकरियों में शारीरिक श्रम और तकनीकी ज्ञान का समावेश होता है लेकिन इसके लिए कॉलेज की डिग्री की जरूरत नहीं होती. जबकि ब्लू कॉलर नौकरियों में ज्यादातर शारीरिक श्रम शामिल होता है. इनके बीच की रेखाएं धुंधली हैं लेकिन इन भूमिकाओं में इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, हाउसकीपिंग स्टाफ, डेंटल असिस्टेंट, फील्ड सर्विस एजेंट, निर्माण श्रमिक, चौकीदार, स्टॉक और इन्वेंट्री कीपर शामिल होते हैं. ये नौकरियां अक्सर कम आय वाले परिवारों की महिलाएं करती हैं, जिनमें कई 10वीं/12वीं पास हैं या औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और पॉलिटेक्निक से प्रशिक्षित हैं.

औपचारिक ब्लू-ग्रे कॉलर रोजगार अब भारत के कुल वर्कफोर्स का 80 फीसद से अधिक हिस्सा है. और अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक 9 करोड़ नई नौकरियों में से 70 फीसद इसी क्षेत्र में होंगी. अब, समय आ गया है कि नीतियों और नियमों के जरिये उन्हें वो मान्यता और समर्थन मुहैया कराया जाए, जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है.

Advertisement
Advertisement