मान लीजिए आप हीरे की जूलरी खरीदने के लिए किसी सराफा दुकान में जाते हैं. अगर दुकानदार बिना 4C सर्टिफिकेशन के आपको जूलरी देता है तो क्या आप उसे खरीदेंगे? इसका जवाब काफी हद तक नहीं होगा.
लैब में बने हीरों की वजह से प्राकृतिक हीरा इंडस्ट्री खतरे में है. यही वजह है कि प्राकृतिक हीरा इंडस्ट्री से जुड़े लोग चाहते हैं कि लैब में बने हीरे को 4C सर्टिफिकेट नहीं दिया जाए.
दुनिया की सबसे बड़ी हीरा ग्रेडिंग एजेंसी जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका ने घोषणा की है कि अब लैब में बने हीरे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त 4C ग्रेडिंग प्रणाली के तहत सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा.
दरअसल, लैब में बने हीरे की कीमत प्राकृतिक हीरों की तुलना में एक तिहाई या इससे भी कम होती है. हालांकि, इस साल के अंत में लैब में बने हीरों पर रिसर्च के बाद जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका (GIA) रिपोर्ट जारी करेगी. इस रिपोर्ट में लैब में बने हीरे को ‘प्रीमियम’ और ‘स्टैंडर्ड’ दो श्रेणियों में बांटा जाएगा. अगर लैब में बने हीरे की गुणवत्ता बिल्कुल खराब होगी तो उसे कोई ग्रेड नहीं दिया जाएगा.
हीरे की क्वालिटी और मूल्य 4C के आधार पर तय किया जाता है- कलर, कटिंग, क्लैरिटी और कैरेट वेट. दुनिया भर में हीरे की ग्रेडिंग के लिए कई टॉप एजेंसियां हैं, जिनमें से जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका (GIA), इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (IGI) और होगे राड वूर डायमंड (HRD) सबसे प्रतिष्ठित हैं.
IGI और HRD संस्थान विशेष रूप से यूरोप और एशिया में महत्व रखते हैं, जबकि GIA को वैश्विक स्वीकृति प्राप्त है.
लैब में बने हीरों की ग्रेडिंग बंद करने का यह फैसला प्राकृतिक हीरे से तुलनात्मक तौर पर उसकी वैल्यू को कम करने के लिए लिया जा रहा है. इंस्टीट्यूट ऑफ डायमंड्स के बिक्री प्रमुख हेनरी स्मिथ ने कहा है, “GIA का यह कदम सिर्फ लैब में बने हीरे का सर्टिफिकेशन खत्म होने तक ही नहीं है, बल्कि GIA द्वारा लैब में बने हीरे के लिए एक अलग ग्रेडिंग सिस्टम को अपनाना प्राकृतिक हीरा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उठाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है.”
हेनरी स्मिथ के मुताबिक, प्राकृतिक हीरे पृथ्वी पर पाए जाने वाले दुर्लभ खजाने हैं जो धरती के अंदर अरबों वर्षों के दौरान अत्यधिक गर्मी और दबाव से बनते हैं. वहीं, प्रयोगशाला में महज कुछ ही सप्ताह में हीरे बना दिए जाते हैं. ऐसे में हजारों साल में बने प्राकृतिक हीरे और कुछ दिनों या सप्ताह में बने लैब वाले हीरे को एक सामान 4C ग्रेडिंग देना सही नहीं है.
हेनरी स्मिथ के मुताबिक, “इससे प्राकृतिक हीरे की वैल्यू और दुर्लभता की गलत व्याख्या होती है. GIA का कदम एक अधिक सटीक और पारदर्शी वर्गीकरण प्रणाली का समर्थन करता है. यह फैसला दोनों उत्पादों की वैज्ञानिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर लिया गया है.”
पिछले दो वर्षों में वैश्विक तौर पर प्राकृतिक हीरे की कीमतों में 30 फीसद की अभूतपूर्व गिरावट देखी गई है. कोरोना महामारी और उसके बाद आर्थिक मंदी के कारण बिक्री में ये गिरावट आई है. बाजार में प्राकृतिक हीरे के स्टॉक की अधिकता है, जबकि मांग सुस्त है. ऐसा इसलिए क्योंकि नए और मध्यम स्तर के खरीदार लैब में बने हीरे खरीद रहे हैं.
प्राकृतिक हीरा उद्योग इस बात को लेकर असमंजस में है कि इस विध्वंसकारी तकनीक का जवाब कैसे दिया जाए. लैब में हीरा बनाने वाली यह तकनीक सदियों पुराने, अरबों डॉलर के हीरे के खनन, व्यापार, पॉलिशिंग और बेहतरीन आभूषण बिक्री उद्योग को जड़ से उखाड़ फेंकने की ओर इशारा कर रही है.
वहीं, दूसरी तरफ लैब में बने हीरे की बिक्री में आई गिरावट को देखते हुए सूरत में प्रमुख हीरा कारोबारियों ने सैकड़ों कारीगरों के वेतन और काम के घंटों में आधे से ज्यादा की कटौती कर दी है. इस वजह से सूरत में एक सामाजिक-आर्थिक मानवीय संकट पैदा हो गया है. दुनिया भर में बिकने वाले हर 10 में से नौ हीरे को सूरत में ही पॉलिश किया जाता है.
भारत के आभूषण व्यापार से जुड़ी सबसे बड़ी सरकारी संस्था जेम एंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (GJEPC) के अध्यक्ष किरीट भंसाली कहते हैं, “GIA ने लैब में बनाए जाने वाले हीरे के लिए 4C ग्रेडिंग के बजाय वर्णनात्मक शब्दों (डिस्क्रिप्टिव टर्म) का उपयोग करने के लिए कहा है. इससे प्राकृतिक और लैब में बने हीरे के बीच अंतर साफ पता चलेगा. इतना ही नहीं इससे यह भी स्पष्ट होगा कि प्रयोगशाला में तैयार किए गए हीरों का मूल्यांकन कैसे किया जाता है. लैब में बनाया जाने वाला हीरा प्राकृतिक हीरों के लिए विकसित मानकों से अलग है. हीरा व्यापार के क्षेत्र में प्रमुख केंद्र होने की वजह से भारत के लिए प्राकृतिक और प्रयोगशाला में तैयार हीरों के लिए यह स्पष्टता काफी जरूरी है.”
भंसाली का कहना है कि इससे प्राकृतिक और लैब में बने हीरों को लेकर पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ावा मिलेगा. भारत में लैब में हीरा बनाने वाले कारोबार से जुड़े लोग GIA के इस फैसले से निराश हैं.
लैब ग्रोन डायमंड काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन शशिकांत शाह ने कहा है, "हम अपने प्रोडक्ट को प्रमाणित करने और अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए GIA के अलावा अन्य ग्रेडिंग एजेंसियों जैसे- IGI आदि से संपर्क करेंगे. घरेलू बाजार के लिए जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (GII) जैसी भारतीय ग्रेडिंग एजेंसियों को बढ़ावा मिलेगा."
शशिकांत शाह के मुताबिक GIA का यह कदम प्राकृतिक हीरा उद्योग में पनपी घबराहट को उजागर करता है क्योंकि प्राकृतिक हीरे की कीमतों में वैश्विक गिरावट देखने को मिल रही है. इतना ही नहीं प्राकृतिक हीरे के कारोबार से जुड़े व्यपारियों को सैकड़ों करोड़ रुपए डूबने का डर सता रहा है.