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क्या हिंदू विरोध पर टिकी है दक्षिण भारत की राजनीति; केरल के मुख्यमंत्री के किस बयान पर मचा बवाल?

केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने सनातन धर्म को जातियों में बांटने वाला धर्म बताया है, लेकिन सनातन धर्म पर इस तरह के बयान देने वाले वह पहले नेता नहीं हैं

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन 92वें शिवगिरी तीर्थयात्रा सत्र के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन 92वें शिवगिरी तीर्थयात्रा सत्र के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में।
अपडेटेड 2 जनवरी , 2025

दिसंबर की 31 तारीख को केरल के वर्कला शहर में स्थित शिवगिरी मठ में एक बैठक आयोजित हुई. इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने सनातन धर्म को लेकर जो बातें कही, अब उसपर कोहराम मचा हुआ है. BJP नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने मुख्यमंत्री विजयन के बयान पर कहा, "क्या सनातन धर्म के अलावा पिनाराई विजयन में किसी दूसरे धर्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत होगी?"

कांग्रेस और BJP दोनों ही दलों ने मुख्यमंत्री से माफी मांगने की मांग की है. इसके जवाब में मुख्यमंत्री विजयन ने कहा, “सनातन धर्म पर दिए बयान पर मैं अब भी कायम हूं.” इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर सीएम विजयन के किस बयान पर इतना बवाल मचा है और क्या सच में दक्षिण भारत की राजनीति हिंदू विरोध पर टिकी है?

सीएम विजयन ने क्या कहा था

वर्कला में सीएम पिनराई विजयन ने कहा, "समाज सुधारक श्री नारायण गुरु का नाम सनातन धर्म से जोड़ा जा रहा है, जो सही नहीं है. उन्होंने सनातन धर्म के वर्णाश्रम व्यवस्था यानी जातियों में बांटने वाली व्यवस्था को चुनौती दी. नारायण गुरु ने एक तरह से सनातन धर्म का पुनर्निर्माण किया. उन्होंने धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी विचार को कायम रखा. उन्होंने इतना कुछ सनातन धर्म को बदलने के लिए किया, लेकिन इसके बावजूद उनका नाम इस धर्म से जोड़ा जाता है, जो एक तरह से उनका अपमान है.”

इसके आगे विजयन ने बताया कि नारायण गुरु ने सनातन से हटकर 'एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर' की सोच को आगे बढ़ाने का काम किया था. यह दुख की बात है कि एक समाज सुधारक को धार्मिक गुरू के तौर पर पेश करने की कोशिश हो रही है.

केरल के सीएम विजयन के बयान पर BJP के दो बड़े नेताओं ने हमला किया है...

केरल के वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा, "विजयन ने इस तरह का बयान देकर पूरे श्री नारायणिया समुदाय यानी हिंदू एझावा समुदाय का अपमान किया है. ये समुदाय परंपरागत रूप से वामपंथी समर्थक है, जिसके बावजूद उन्होंने इनका अपमान किया. CM विजयन सनातन धर्म को घृणित धर्म मानते हैं. उनकी बातें डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के रुख को आगे बढ़ाती है कि सनातन धर्म को खत्म किया जाना चाहिए. क्या विजयन में किसी अन्य धर्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत होगी?"

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, "नया साल शुरू हो गया है, लेकिन उनकी मानसिकता वही है- सनातन का अपमान करना. केरल के मुख्यमंत्री का बयान हाल में सनातन धर्म के खिलाफ दिए जाने वाले दूसरे नेताओं के बयानों की एक लंबी श्रृंखला का ही हिस्सा है.”

वहीं, कांग्रेस नेता वी.डी. सतीशन ने मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के सनातन धर्म पर दिए गए बयान की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि यह सनातन धर्म को संघ परिवार तक सीमित करने का प्रयास है. सनातन धर्म एक सांस्कृतिक विरासत है. इसमें अद्वैत, 'तत त्वम् असि', वेद, उपनिषद और उनका सार समाहित है. 

दक्षिण भारत के राजनेता 'सनातन' पर विवादित बयान देते रहे हैं

1944 में पेरियार जब आंबेडकर से मिले तो उन्होंने कहा, “द्रविड़िस्तान का विचार पूरे भारत में लागू होना चाहिए, क्योंकि ब्राह्मणवाद पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक समस्या है.”

1944 में ही तिरुचि में द्रविड़ कड़गम स्टेट कॉन्फ्रेंस में प्रमुख तमिल नेता सीएन अन्नादुरई ने कहा, “भविष्य में हिंसक क्रांतियों को रोकने के लिए भारत को नस्लीय रूप से बांटना जरूरी है.” उनके इस बयान को भी सनातन धर्म के खिलाफ माना गया था. 

करुणानिधि ने कथित तौर पर एक बार कहा था, “क्या हिंदुओं का कोई धर्म है? हिंदू कौन है? अगर आप कुछ राइट विंग के लोगों से पूछेंगे तो वे बताएंगे कि हिंदू का असली मतलब चोर है.”

सनातन के खिलाफ बयान देने वाले नेता करुणानिधि ,अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लालकृष्ण आडवाणी के साथ (फाइल फोटो)
सनातन के खिलाफ बयान देने वाले नेता करुणानिधि ,अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लालकृष्ण आडवाणी के साथ (फाइल फोटो)

अब हाल कि राजनीति में सनातन के खिलाफ दिए गए ऐसे बयानों के बारे में जानते हैं…

तारीख- 12 सितंबर 2022, जगह- चेन्नई
DMK नेता ए. राजा ने कहा, “जब तक तुम हिंदू हो, तब तक तुम शूद्र हो. जब तक तुम शूद्र हो, तब तक तुम वेश्या पुत्र हो. सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि अगर आप ईसाई, मुस्लिम या पारसी नहीं हैं, तो आपको हिंदू होना चाहिए. ऐसा अत्याचार किसी और देश में देखा है क्या?” 

तारीख- 2 सितंबर 2023, जगह- चेन्नई
DMK नेता उदयनिधि स्टालिन ने कहा, “सनातन धर्म लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने वाला विचार है. इसे खत्म करना मानवता और समानता को बढ़ावा देना है. जिस तरह हम मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं, उसी तरह सिर्फ सनातन धर्म का विरोध करना ही काफी नहीं है. इसे समाज से पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए.”

2022 की तस्वीर में DMK नेता उदयनिधि अपने पिता तमिलनाडु के CM स्टालिन और मां दुर्गा स्टालिन के साथ दिख रहे हैं. (फाइल फोटो)
2022 की तस्वीर में DMK नेता उदयनिधि अपने पिता तमिलनाडु के CM स्टालिन और मां दुर्गा स्टालिन के साथ दिख रहे हैं.

क्या दक्षिणी भारत में हिंदू और 'सनातन' धर्म के विरोध पर टिकी है राजनीति? 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक दक्षिणी भारत में DMK पार्टी को सनातन धर्म के विरोध करने वाली पार्टी के तौर पर जाना जाता है. यह पार्टी दर्जनों बार यहां चुनाव जीत चुकी है. मजे की बात तो ये है कि हिंदू देवताओं को पूजने वाले और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग भी इन्हें वोट करते हैं. 

इसकी वजह यह है कि आजादी के बाद दक्षिणी भारत के नेताओं ने सनातन धर्म की जाति प्रथा के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है. वो भेद-भाव के खिलाफ बोलते हैं. वो इतिहास में दलित महिलाओं के स्तन पर लगाए जाने वाले कर के खिलाफ बोलते थे. इससे दलित समुदाय के बीच स्वाभाविक तौर पर इन नेताओं के लिए सहानुभूति थी. ये सनातन के सामाजिक बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाकर हिंदुओं का भी समर्थन हासिल करते रहे हैं. 

इसे ऐसे समझिए कि भारत सरकार के आंकड़ों में द्रविड़ समुदाय को हिंदू कैटेगरी में रखा गया है, लेकिन जब बात दक्षिणी राज्यों में राजनीति की हो, तो यह वर्ग ब्राह्मणों के विरोध में खड़ा नजर आता है. इस एजेंडे पर चलकर मिली कामयाबी के दम पर द्रविड़ पार्टियां चेन्नई से दिल्ली तक की सियासत में दखल रखती हैं. यही वजह है कि दूसरे राज्यों के लोगों को ऐसा लगता है कि दक्षिणी राज्यों में सनातन धर्म के विरोध में राजनीति टिकी है. 

हिंदू और सनातन विरोधी राजनीति की दक्षिणी भारत में शुरुआत कैसे हुई? 

1904 की बात है. दक्षिणी भारत के नेता वेंकट रामास्वामी यानी ईवी रामास्वामी उर्फ पेरियार काशी गए हुए थे. इस दौरान उन्हें काफी भूख लगी थी. खाना खाने के लिए वह ब्राह्मण का वेश बनाकर एक भंडारे में पहुंच गए, लेकिन उनकी बड़ी मूछों से गेटकीपर पहचान गया कि वे ब्राह्मण नहीं हैं.

इसके बाद उसने पेरियार को धक्के मारकर वहां से निकाल दिया. पेरियार को उस वक्त बाहर फेंका हुआ खाना खाना पड़ा. उस समय तक भंडारों में केवल ब्राह्मणों को ही जाने की अनुमति थी. कहा जाता है कि इस घटना ने उन्हें नास्तिक होने के लिए प्रेरित किया.

1919 में उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कट्टर गांधीवादी और कांग्रेस के साथ की. वो छुआछूत मिटाने के लिए काम करने लगे. उन्होंने 1924 में केरल में हुए वाइकोम सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई. इसका मकसद दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाना था. यहां सवर्णों से दलितों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाए रखनी होती थी. उन्होंने इसके खिलाफ भी आवाज उठाई. इससे वे दक्षिण भारत में दलित समुदाय के नेता बन गए. 

पेरियार ने 1944 में आत्म-सम्मान आंदोलन और जस्टिस पार्टी को मिला कर द्रविड़ कड़गम बनाई. द्रविड़ कड़गम ने दलितों के बीच छुआछूत के लिए जोरदार लड़ाई लड़ी. इस तरह पेरियार की तरह दूसरे नेताओं ने भी दक्षिणी भारत में सनातन की बुराईयों के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया. धीरे-धीरे यहां की राजनीति में सनातन की बुराईयों के खिलाफ बोलने वाले नेता सत्ता में आए और लोगों के बीच उनकी पैठ मजबूत हुई. 

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