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जजों और वकीलों के लिए चैट जीपीटी कितना मददगार?

अदालती कामकाज में चैट जीपीटी का इस्तेमाल अभी सीमित तौर पर हो रहा है हालांकि इस बात को खुलकर स्वीकार करने वाले कम हैं

'टेक्नोलॉजी ऐंड एनालिटिक्स फॉर लॉ ऐंड जस्टिस' किताब के कवर की तस्वीर
'टेक्नोलॉजी ऐंड एनालिटिक्स फॉर लॉ ऐंड जस्टिस' किताब के कवर की तस्वीर
अपडेटेड 16 अक्टूबर , 2023

बच्चों के होमवर्क से लेकर मार्केट रिसर्च तक, इन दिनों चैट जीपीटी का इस्तेमाल कहां नहीं हो रहा. ऐसे में जज और वकील भी इससे अछूते नहीं है. न्यायिक कामकाज में चैट जीपीटी का इस्तेमाल अभी सीमित तौर पर हो रहा है पर इस बात को खुलकर स्वीकार करने वाले कम हैं. दूसरी तरफ न्यायिक कामकाज में चैट जीपीटी के इस्तेमाल के आलोचक और समर्थक दोनों की संख्या बढ़ रही है. 

पहली बार, 28 मार्च 2023 को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश अनूप चित्कारा ने जून 2020 में दंगा, बलवा के आरोप में गिरफ्तार शख्स की जमानत याचिका पर फैसले के लिए चैट जीपीटी (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद ली और बाद में अपने अनुभव और पूर्व में आए फैसलों के आधार पर उस आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी.

चैट जीपीटी ने भी उस अपराध के जघन्य होने की दलील दी थी. हालांकि इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया हुई थी. चैट जीपीटी का कोर्ट में इस्तेमाल पहली बार औपचारिक चर्चा में तब आया जब दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश जस्टिस राजीव शकधर से एक मंच पर इससे जुड़ा सवाल पूछा गया और उन्होंने बेबाकी से इसका जवाब दिया. यह मौका था 13 अक्टूबर को दिल्ली आईआईटी में 'टेक्नोलॉजी ऐंड एनालिटिक्स फॉर लॉ ऐंड जस्टिस' नामक किताब के विमोचन का. इस दौरान ग्रुप डिस्कशन भी हुआ.

लॉ फर्म शारदुल अमरचंद मंगलदास की सीनियर एसोसिएट रवीना ललित ने पुस्तक पर ग्रुप डिस्कशन की शुरुआत करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर से पहला सवाल किया कि हम तकनीक के दुरुपयोग के बारे में लगातार सुन रहे हैं. चैट जीपीटी से लीगल पिटीशन तैयार की जा रही है. इस पर जस्टिस शकधर ने मैरिटल रेप के एक वाकये का जिक्र करते हुए जवाब दिया, "मैरिटल रेप के मामलों को अब अलग नजरिए से देखने की जरूरत थी. कानूनी पहलू से देखेंगे तो नाबालिग पत्नी से यौन संबंध रेप की श्रेणी में आएंगे. हमने इस पर चैट जीपीटी की राय ली. हमारे साथी जज की राय थी कि इस प्रावधान के हिसाब से फैसला होना चाहिए, मेरी राय इससे अलग, इसे खारिज करने की थी. चैट जीपीटी से पूछा तो उसने भी प्रावधान से अलग जाने की राय जाहिर की. फिर भी मैं कहूंगा कि इंसानी संवेदनशीलता हमेशा मशीनों और तकनीक से आगे रहेगी." जस्टिस शकधर ने कहा, "टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग हो रहा है. लेकिन यह हमें आगे बढ़ने से नहीं रोकता."

अदालती कामकाज पर पैनी नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि ऑर्डर लिखवाने के लिए चैट जीपीटी का इस्तेमाल अभी नहीं हो रहा है. मुख्य रूप से कानूनी सूचनाएं हासिल करने के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है. चैट जीपीटी का उपयोग रिसर्च असिस्टेंट के तौर पर हो रहा है. वकीलों में भी इसका उपयोग बढ़ रहा है. चैट जीपीटी से याचिका लिखवाने या ऑर्डर लिखवाने का कोई उदाहरण  पता नहीं चला है. लेकिन अगर चैट जीपीटी की भाषा में फेरबदल कर ऐसा किया गया है तो इसे पकड़ पाना भी मुश्किल होगा. हालांकि इसका पूरे न्यायिक कामकाज पर गंभीर असर होगा.  

तकनीक का दुरुपयोग हमेशा चिंता का विषय है. कार्यक्रम के दौरान जस्टिस शकधर ने एक वाकया साझा किया, "एक साथी जज ने आकर समस्या बताई कि एक ऑर्डर उनके नाम से जारी हो गया है और उस तारीख में वे कोर्ट में थे ही नहीं. जब हमने जांच की तो कि जिस आदमी ने यह काम किया उसने तारीख तो बदल दी लेकिन डिजिटल सिग्नेचर की तारीख ऑर्डर की तारीख से मेल नहीं खाती थी."

ये तमाम बातें 'टेक्नोलॉजी ऐंड एनालिटिक्स फॉर लॉ ऐंड जस्टिस' नामक किताब के विमोचन के मौके पर हो रही थीं. इसके संपादक आईआईटी के प्रोफेसर नोमेश भोजकुमार बोलिया और कानूनी क्षेत्र में रिसर्च करने वाली संस्था दक्ष के प्रोग्राम डायरेक्टर सूर्य प्रकाश बी.एस. हैं. पुस्तक में कानून और तकनीक के जानकारों के करीब दो दर्जन लेख हैं. यह पुस्तक न्याय और कानून के क्षेत्र में विभिन्न नई तकनीकों के इस्तेमाल, इस्तेमाल की गुंजाइश पर गहन दृष्टि डाली गई है. इनमें प्रमुख हैं- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स का न्याय में इस्तेमाल, डाटा माइनिंग, मशीन लर्निंग, प्रिडिक्टिव एनालिसिस आदि. इसमें कोविड के बाद अदालतों और न्यायिक क्षेत्र में आए तकनीकी बदलावों को विस्तार से समझाया गया है.  

सूर्यप्रकाश ने कार्यक्रम में कहा, "सरकार को डेटा एनालिसिस करना चाहिए और प्रक्रियाएं सरल करने का प्रयास करना चाहिए. आने वाले दिनों में तकनीक का इस्तेमाल काफी दिलचस्प होने वाला है. हालांकि लीगल एकेडेमिया की तकनीक में दिलचस्पी अपेक्षाकृत कम दिखती है लेकिन प्रौद्योगिकी से जुड़े लोग न्यायिक क्षेत्र में बदलाव ला रहे हैं. तकनीक की मदद जटिलता से निपटने में की जा सकती है." 

प्रो. बोलिया ने बताया कि आप कोर्ट जाएं या न जाएं अदालत आप की जिंदगी पर असर डालती हैं. इसी विचार ने अदालत में तकनीक के इस्तेमाल के बारे में पुस्तक की अवधारणा को जन्म दिया. तकनीक में इंसानी पक्ष पूरी तरह प्रक्रिया से अलग हो जाता है. तकनीक का इस्तेमाल कहां करना चाहिए और कहां नहीं करना चाहिए इसकी स्पष्ट सीमारेखा तय होना चाहिए.

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