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जो लिथियम भंडार भारत को दुनिया के टॉप 10 देश में शामिल करा सकता है, उसे निकालने को कोई तैयार क्यों नहीं?

जम्मू-कश्मीर में मिला यह लिथियम भंडार इस खनिज के उत्पादन में भारत को दुनिया के टॉप 10 देश में शामिल करा सकता है

लिथियम खनिज, सांकेतिक तसवीर
लिथियम खनिज, सांकेतिक तसवीर
अपडेटेड 2 अगस्त , 2024

जुलाई की 25 तारीख को खनन मंत्रालय ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में मौजूद खनिज लिथियम ब्लॉक की नीलामी रद्द कर दी. इसके पीछे वजह यह बताई गई कि इसके लिए निवेशकों ने पर्याप्त रुचि ही नहीं दिखाई. यह लगातार दूसरी बार था जब नीलामी रद्द करनी पड़ी.

इससे पहले इसी साल 13 मार्च को पहली नीलामी रद्द कर दी गई थी, क्योंकि नियमों के मुताबिक पहले दौर में तीन से कम निवेशकों ने बोली लगाई थी. इस बोली प्रक्रिया के रद्द होने के अगले ही दिन खनन मंत्रालय ने एक बार फिर से लिथियम ब्लॉक को नीलामी के लिए रखा था, लेकिन अब इसे भी रद्द करना पड़ा है.

भारत की इस लिथियम महत्वाकांक्षाओं को लगातार लगते झटके के बाद, अब यहां कुछ सवाल मौजूं हो उठते हैं कि बार-बार आखिर क्यों ये नीलामी प्रक्रिया रद्द हो जा रही है, क्यों इसकी नीलामी के लिए निवेशक उत्साहित नहीं हैं, जबकि न्यू एनर्जी के लिए लिथियम एक बेहतर विकल्प के रूप में दुनिया भर के सामने उभरा है.

करीब डेढ़ साल पहले (फरवरी 2023 में) तत्कालीन खनन सचिव विवेक भारद्वाज ने जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में लिथियम भंडार मिलने की घोषणा की थी. तब उन्होंने इसका अनुमानित भंडार करीब 59 लाख टन बताया था. किसी संसाधन के अनुमानित आंकड़े से मतलब उस खनिज संसाधन से है जिसकी मात्रा, गुणवत्ता और खनिज संरचना का केवल अस्थायी रूप से मूल्यांकन किया जाता है.

बहरहाल, रियासी जिले में मिले तब इतने बड़े डिपॉजिट के बारे में कहा गया कि यह विश्व के सबसे बड़े भंडारों में से है. अब भंडार तो मिल गया, लेकिन इसको हासिल करना भी जरूरी था.

खनन मंत्रालय ने नवंबर, 2023 में इसके लिए पहली नीलामी रखी. शर्त यह थी कि पहले राउंड में कम से कम तीन खरीदार (या कहिए बोलीकर्ता) बोली प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और 13 मार्च को यह पहली नीलामी रद्द कर दी गई. इसके बाद अगले ही दिन, खनन मंत्रालय ने एक बार फिर लिथियम ब्लॉक को दूसरी बार नीलामी के लिए सामने रखा. इस बार बोलियां प्राप्त करने की आखिरी तारीख 14 मई थी.

लेकिन इस बार भी यह बोली प्रक्रिया परवान न चढ़ सकी, और 25 जुलाई को खनन मंत्रालय ने इसे लगातार दूसरी बार रद्द कर दिया. इस बार तो बोली प्रक्रिया में यह नियम भी नहीं था कि कम से कम तीन खरीदार या बोलीकर्ताओं की संख्या अनिवार्य होगी. बावजूद इसके दूसरे प्रयास में भी कोई योग्य बोलीकर्ता नहीं मिला.

दरअसल, खनिज (नीलामी) नियम, 2015 के मुताबिक, अगर नीलाम किया जा रहा खनिज ब्लॉक कम से कम तीन तकनीकी रूप से योग्य बोलीदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में विफल रहता है, तो इसे दूसरे प्रयास के रूप में फिर से नीलामी में रखा जा सकता है. और ऐसी नीलामी के लिए बोली को "तकनीकी रूप से योग्य बोलीदाताओं की संख्या तीन से कम होने पर भी दूसरे दौर में जारी रखना" जरूरी है.

बहरहाल, इधर खनन मंत्रालय से जब इस बाबत टिप्पणी मांगी गई तो कहा गया, "देश में पहली बार महत्वपूर्ण खनिजों की नीलामी की जा रही है. किसी भी अन्य नीलामी की तरह, महत्वपूर्ण खनिजों की नीलामी में भी अपेक्षित संख्या में प्रतिक्रिया मिल भी सकती है और नहीं भी." मंत्रालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लिथियम ब्लॉक के संबंध में मंत्रालय इस बात की समीक्षा कर रहा है कि इसमें अब आगे क्या काम करने की जरूरत है.

नीलामी से निवेशक क्यों दूरी बनाए हुए हैं?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, खनन उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि रियासी में जो लिथियम अयस्क मौजूद हैं, वो हार्ड रॉक पेगमाटाइट डिपॉजिट के रूप में हैं. हार्ड रॉक पेग्माटाइट के बारे में बात करें तो यह एक प्रकार की आग्नेय चट्टान है जिसे हार्ड रॉक लिथियम डिपॉजिट के रूप में भी जाना जाता है. इस तरह के भंडार से लिथियम का निकालना, और उसकी प्रोसेसिंग काफी चुनौती भरी और खर्चीली होती है.

इसके अलावा खनन मंत्रालय के निविदा दस्तावेजों में जो अविकसित खनिज रिपोर्टिंग मानक इस्तेमाल किए गए हैं, उससे भी निवेशक हतोत्साहित हैं. खनन मंत्रालय के एक दस्तावेज के मुताबिक जब पहली बार नीलामी की प्रक्रिया हो रही थी, तो उस समय बोलीकर्ताओं की कई शिकायतें सामने आईं. इनमें से कुछ प्रमुख सवाल थे, जैसे कि बोली दस्तावेज में ब्लॉक के बारे में सीमित जानकारी होना, और ब्लॉक का आकार इतना छोटा होना कि वहां आधुनिक खनिज प्रणाली-आधारित उपकरणों का इस्तेमाल करना मुश्किल साबित हो सकता है.

साथ ही, बोलीकर्ताओं ने खनन मंत्रालय से यह भी जानना चाहा कि अगर उनकी तरफ से इन अयस्कों से लिथियम निकालने और उसकी प्रोसेसिंग की व्यवहारिकता का आकलन करने के लिए कोई अध्ययन किया गया हो तो उनके साथ साझा किया जाए. इस पर मंत्रालय ने 'नहीं' में जवाब दिया. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत का जो मौजूदा संसाधन वर्गीकरण कानून है, वह मुख्य रूप से संयुक्त राष्ट्र के 'फ्रेमवर्क क्लासिफिकेशन फॉर रिसोर्सेज' (यूएनएफसी) पर आधारित है.

यूएनएफसी किसी खनिज के आर्थिक मूल्य को निर्धारित करने के लिए सीमित मात्रा में ही जानकारी उपलब्ध कराता है. जबकि आर्थिक मूल्य के नजरिए से बोलीकर्ताओं के पास जानकारी प्रचुर मात्रा में होनी जरूरी है, क्योंकि खनिज निकालने की प्रक्रिया काफी महंगी और मुश्किल भरी होती है. सपाट अर्थ में कहें तो उन्हें निवेश के बाद उसमें लाभ दिखना जरूरी है. इसके अलावा विश्व भर में अभी लिथियम खनिज के दामों में गिरावट हो रही है, और बोलीकर्ता अपना मार्जिन कम नहीं होने देना चाहते. यह भी एक वजह है कि वे इससे दूरी बनाए हुए हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक, निजी बोलीकर्ताओं को इस क्षेत्र में आकर्षित करने के लिए सरकार को यूएनएफसी के बजाय सीआरआईआरएससीओ (खनिज भंडार अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टिंग मानकों के लिए समिति) को अपनाना चाहिए, जो खनिज भंडारों की रिपोर्टिंग मानकों के लिए एक विश्व भर में मान्य निकाय है.

लिथियम को सबसे ज्यादा मांग वाले खनिजों में क्यों गिना जाता है

लिथियम (Li), जिसे रिचार्जेबल बैटरी की उच्च मांग के कारण कभी-कभी 'व्हाइट गोल्ड' के नाम से भी जाना जाता है, एक नरम और चांदी जैसी-सफेद धातु है, जिसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बैटरी, ऊर्जा भंडारण प्रणालियों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में बड़े पैमाने पर किया जाता है. चिली, ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना लिथियम रिजर्व वाले शीर्ष देश हैं.

अगर भारत के संबंध में बात की जाए तो रियासी जिले में लिथियम भंडार मिलने से पहले तक हमारे पास इस खनिज की सीमित मात्रा उपलब्ध थी, और फिलहाल इस्तेमाल के लिए भारत मुख्य तौर पर आयात पर निर्भर है. हालांकि अब इस भंडार के मिलने के बाद भारत संभवत: दुनिया का सातवां सबसे बड़ा लिथियम भंडार वाला देश है.

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