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'जगन्नाथ धाम' शब्द का ट्रेडमार्क क्यों लेना चाहती है ओडिशा सरकार?

ओडिशा सरकार जिन शब्दों का ट्रेडमार्क कराने जा रही है, उनमें 'जगन्नाथ धाम', 'श्री मंदिर', 'पुरुषोत्तम क्षेत्र', 'नीलाचल धाम', 'बड़ा डंडा', 'महाप्रसाद' और 'नीला चक्र' भी शामिल हैं

पुरी का जगन्नाथ धाम मंदिर (फाइल फोटो)
पुरी का जगन्नाथ धाम मंदिर (फाइल फोटो)
अपडेटेड 29 मई , 2025

ओडिशा सरकार ने पुरी के प्रतिष्ठित जगन्नाथ मंदिर से जुड़े प्रमुख धार्मिक शब्दों का ट्रेडमार्क लेने फैसले पर आगे बढ़ने का मन बना लिया है. ओडिशा सरकार का यह कदम पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी के लिए राजनीतिक रूप से वरदान साबित हो सकता है.

इसकी वजह यह है कि ओडिशा सरकार ने ट्रेडमार्क कराने का यह फैसला पश्चिम बंगाल के दीघा में ‘जगन्नाथ धाम’ के नाम से एक नया मंदिर बनाने के बाद लिया है. दीघा में बने एक नए मंदिर का नाम ‘जगन्नाथ धाम’ रखे जाने को लेकर काफी विवाद हुआ था.

पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस मुद्दे को मुखर रूप से उठाया था. उन्होंने ममता बनर्जी सरकार पर किसी दूसरे जगह की संस्कृति और पहचान को अनुचित तरीके से अपनाने का आरोप लगाया था.

29 अप्रैल 2025 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दीघा में बने जगन्नाथ मंदिर को सोने से बनी झाड़ू दान की थी. इतना ही नहीं 30 अप्रैल 2025 को उन्होंने मंदिर के उद्घाटन से पहले यज्ञ में भाग लिया था.

इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और कानूनी जवाबी कदम उठाते हुए ओडिशा में मोहन चरण माझी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने ‘पुरी’ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण शब्दों का ट्रेडमार्क लेने के लिए औपचारिक रूप से कदम उठाए हैं.

ओडिशा सरकार जिन शब्दों का ट्रेडमार्क कराने जा रही है, उनमें 'जगन्नाथ धाम', 'श्री मंदिर', 'पुरुषोत्तम क्षेत्र', 'नीलाचल धाम', 'बड़ा डंडा', 'महाप्रसाद' और 'नीला चक्र' शामिल हैं.

यह घटनाक्रम जगन्नाथ परंपरा पर ओडिशा की सांस्कृतिक संप्रभुता को मजबूत कर सकता है. भले ही जगन्नाथ मंदिर को लेकर ओडिशा की ओर से आपत्ति दर्ज कराने के बावजूद अब तक पश्चिम बंगाल सरकार ने चुप्पी साधे रखी हो. लेकिन, ओडिशा के ट्रेडमार्क कराने के फैसले से बंगाल सरकार के साथ कानूनी टकराव की संभावना बढ़ गई है.
 
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी ने इस निर्णय की पुष्टि की और कहा कि संरक्षित शब्दों की सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया चल रही है.

उन्होंने कहा, "एक बार जब हम इन शब्दों को लेकर ट्रेडमार्क का अधिकार प्राप्त कर लेंगे, तो फिर अगर इन शब्दों का कोई भी अनधिकृत उपयोग करेगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी."

अरविंद पाढ़ी के मुताबिक, ये नाम महज लेबल नहीं हैं, बल्कि जगन्नाथ परंपरा की पूजा पद्धति, इतिहास और पवित्र अनुष्ठान से जुड़ी अभिव्यक्तियां हैं, जिनमें से कई शब्दों का उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है.

पिछले महीने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दीघा जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया और तब से ही यह विवाद शुरू हुआ है. उद्घाटन के वक्त ममता बनर्जी ने इस जगह को 'जगन्नाथ धाम' बताया था.

उनके इस बयान पर ओडिशा में तीखी प्रतिक्रिया हुई. ओडिशा ने बंगाल सरकार पर हिंदू धर्म के 'चार धामों' में से एक ‘पुरी’ में स्थित ‘जगन्नाथ धाम’ की धार्मिक और सांस्कृतिक पवित्रता को कम करने का आरोप लगाया.

एसजेटीए के एक अधिकारी ने कहा, "पुरी के अलावा किसी दूसरी जगहों के संदर्भ में 'जगन्नाथ धाम' नाम का इस्तेमाल करना सदियों पुरानी पवित्र परंपरा को कमजोर करता है."

इस मामले को लेकर दोनों राज्यों के बीच धार्मिक और राजनीतिक तनाव तेजी से बढ़ रहे हैं. सीएम माझी ने ममता बनर्जी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगा और साथ ही संयम बरतने का आग्रह किया.

इस बीच पुरी मंदिर के एक सेवादार, जिसने दीघा में रुद्राभिषेक अनुष्ठान का नेतृत्व किया था, उसे निलंबित कर दिया गया है. जगन्नाथ धाम मंदिर में रखी नवकलेबर की मूर्तियों को बनाने के लिए एक विशेष प्रकार की नीम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, जिसे 'दारु ब्रह्म' कहते हैं. पश्चिम बंगाल के जगन्नाथ धाम मंदिर में अनुष्ठान कराने वाले पुरी के सेवादार पर इस लकड़ी को चुराने का भी आरोप है.

मंदिर शब्दावली को ट्रेडमार्क कराने के लिए अब केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के ‘उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग’ (DPIIT) में आवेदन कराने की तैयारी चल रही है.

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन अपने आवेदन का समर्थन करने के लिए अभिलेखीय दस्तावेजों, ऐतिहासिक अभिलेखों और शास्त्रों के साक्ष्यों को जुटा रही है.  

इस योजना को ओडिशा के धार्मिक विद्वानों, सांस्कृतिक इतिहासकारों और यहां तक ​​कि पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देब का भी समर्थन प्राप्त है. गजपति महाराज दिव्यसिंह देब जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष भी हैं.

इस सांस्कृतिक दावे के अलावा इस वक्त पुरी के जगन्नाथ धाम में 27 जून को होने वाली भव्य रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं. श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति की एक उच्च स्तरीय बैठक में वार्षिक रथ उत्सव के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए कई अहम फैसले लिए गए हैं.  

इनमें से कुछ प्रमुख फैसले इस तरह हैं- समर्पित 'पहांडी दल' (मूर्तियों को रथों पर ले जाने के लिए जिम्मेदार दल) का गठन, गैर-सेवकों के रथों तक पहुंचने पर प्रतिबंध लगाना और संरचनाओं के ऊपर मोबाइल फोन पर पूर्ण प्रतिबंध शामिल हैं.

समिति ने पवित्र रत्न भंडार (मंदिर का खजाना) के आसपास सुरक्षा उपायों की भी समीक्षा की और गर्भगृह में भीड़ को रोकने के लिए दान पेटी (हुंडी) को दूसरी जगह रखने को लेकर चर्चा की.

इसके अलावा, श्री मंदिर और गुंडिचा मंदिर के आसपास की इमारतों की ऊंचाई कम करने के लिए भी शहरी विकास विभाग को एक प्रस्ताव भेजा जा रहा है. इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि मंदिर कैंपस में अनुष्ठान की शुद्धता बनी रहे और ज्यादा से ज्यादा दूरी के लोग इस पूजा पाठ को देख सकें.

रथ यात्रा की तारीख करीब आने के साथ ही पूरे पुरी शहर में धार्मिक भावनाएं चरम पर हैं. ओडिशा द्वारा पवित्र शब्दावली को ट्रेडमार्क करने का फैसला मंदिर से जुड़े शब्दावलियों के केवल कानूनी सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि इसे पड़ोसी राज्य द्वारा सांस्कृतिक अतिक्रमण के प्रयासों को रोके जाने के साझा प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.

इस विवाद की वजह से पश्चिम बंगाल में सुवेंदु अधिकारी को ऐसा मुद्दा हाथ लगा है जिसपर वे राजनीतिक रूप से ममता बनर्जी को घेर सकते हैं. इसके जरिए वे बंगाल सरकार पर न केवल राजनीतिक अवसरवाद का आरोप लगा सकते हैं, बल्कि सदियों पुरानी आध्यात्मिक विरासत को अपवित्र करने का आरोप भी लगा सकते हैं.

- अकर्मय दत्ता मजूमदार

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