अगस्त 2024 से मार्च 2025 के बीच कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंसियों ने मिलकर एक गोपनीय खुफिया रिपोर्ट तैयार की है. इसमें बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथी गतिविधियों के फिर से बढ़ने की चिंताजनक जानकारी सामने आई है. यह देश में लोकतांत्रिक बदलाव और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है.
सोशल मीडिया विश्लेषण, खुफिया जानकारी और जमीनी निगरानी के आधार पर, रिपोर्ट में बांग्लादेश की राजधानी ढाका और इसके आसपास कट्टरपंथी समूहों के फिर से एकजुट होने की बात कही गई है. यह एक सुनियोजित कोशिश है, जिसका मकसद अप्रैल 2026 में घोषित आम चुनावों से पहले बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता को बिगाड़ना है.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने अप्रैल 2026 की शुरुआत में बांग्लादेश में राष्ट्रीय चुनावों की घोषणा की है. खुफिया रिपोर्ट बताती है कि एक कट्टर इस्लामी नेटवर्क, जो हिजब उत-तहरीर, इस्लामिक स्टेट और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम से जुड़ा है, खासकर राजधानी ढाका के युवाओं और धार्मिक कट्टरपंथियों के बीच अपने बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण कर रहा है. माना जाता है कि यह नेटवर्क तथाकथित 'तौहीदी जनता' (कट्टरपंथियों का जत्था जिनका कोई खास संगठन नहीं है) को जुटाने के पीछे मुख्य ताकत है, जो हाल ही में मजारों (सूफी तीर्थस्थलों), अल्पसंख्यक समुदायों और सरकारी संस्थानों पर हमलों के लिए जिम्मेदार है.
खुफिया अधिकारियों ने आगाह किया है कि ये समूह खतरनाक स्तर के समन्वय के साथ काम कर रहे हैं, शाहबाग पुलिस स्टेशन, आरएबी मुख्यालय और यहां तक कि काशिमपुर जेल के सामने नाकाबंदी कर रहे हैं, इसके अलावा प्रोथोम एलो और द डेली स्टार जैसे मेनस्ट्रीम अखबारों के दफ्तरों पर धावा बोल रहे हैं. पिछले छह महीनों में बांग्लादेश भर में 50 से अधिक सार्वजनिक "धार्मिक" सेमिनार आयोजित किए गए हैं, जो सिर्फ कहने को आध्यात्मिक कार्यक्रम हैं. हकीकत में ये क्षेत्रीय कट्टरपंथी सेल के लिए नए सदस्यों की पहचान, परख और भर्ती के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.
खुफिया एजेंसियों को और भी अधिक चिंता इस बात की है कि देश भर में 18 से 20 जिमखानों और मार्शल आर्ट केंद्रों की व्यवस्थित ढंग से स्थापना की गई है. ये केवल फिटनेस सेंटर नहीं हैं, ये चरमपंथियों के लिए वैचारिक प्रशिक्षण और ट्रेनिंग सेंटर के रूप में काम करते हैं. नए भर्ती हुए, खासकर निराश युवा पुरुष जो ज्यादातर रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से हैं, उन्हें कट्टरपंथी इस्लामी नेटवर्क की सेवा के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है जो बांग्लादेश के नाजुक राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ना चाहते हैं.
वैचारिक मोर्चे पर, तीन कट्टरपंथी उपदेशक - इनायतुल्लाह अब्बासी, अबू तोहा मुहम्मद अदनान और रफीकुल इस्लाम मदनी - नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा को बढ़ावा देने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं.
खुफिया रिपोर्टों से पता चलता है कि वे मुफ्ती हारुन इजहार के इर्द-गिर्द एकजुट हो गए हैं, जो पहले हिफाजत-ए-इस्लाम से जुड़े एक जाने-माने चरमपंथी थे और जिन्हें 2021 में गिरफ्तार किया गया था. पिछले साल अगस्त से, इन उपदेशकों ने ग्रामीण जिलों में बड़े पैमाने पर यात्रा की है, खुले तौर पर मुफ्ती इजहार के इस्लामी पुनरुत्थान के आह्वान का समर्थन किया है और लोकलुभावन बयानबाजी का इस्तेमाल करके खुद को धर्मनिरपेक्ष देश के विरोध में "असली मुसलमानों" की आवाज के रूप में पेश किया है.
इस उभरते हुए इकोसिस्टम के साथ चरमपंथियों से सहानुभूति रखने वाले मीडिया कर्मियों की भूमिका बेहद चिंताजनक है. रिपोर्ट में एक लोकप्रिय बांग्ला अखबार से जुड़े पत्रकार को इजहार के नेटवर्क का मुख्य प्रचारक और समर्थक बताया गया है. यह पत्रकार अखबार के संपादक और एक बांग्लादेशी विचारक के करीबी है और उसने कथित तौर पर मेनस्ट्रीम मीडिया में इस्लामी हिंसा की खबरों को दबाने का काम किया है. वह विवादास्पद यूट्यूबर इलियास हुसैन के साथ मिलकर भ्रामक नैरेटिव भी बनाता है, जो बांग्लादेश को चरमपंथ से मुक्त दिखाती हैं. जबकि इस दावे के खिलाफ सबूत लगातार बढ़ रहे हैं.
खुफिया रिपोर्ट में हेल्थ केयर, शिक्षा, डिजिटल कंटेंट क्रिएशन और धार्मिक शिक्षा जैसे अलग-अलग व्यावसायिक क्षेत्रों में शामिल 15 लोगों की पहचान की गई है, जो हिजब उत-तहरीर और इस्लामिक स्टेट से जुड़े संगठनों के लिए गुप्त भर्तीकर्ता और प्रचारक के रूप में काम कर रहे हैं. भर्ती करने वाले लोग अक्सर बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (बीयूईटी) और निजी विश्वविद्यालयों सहित कुलीन संस्थानों से लिए जाते हैं, जहां उन्हें "स्लीपर एजेंट" और "आइडियोलॉजिकल मल्टीप्लायर्स" के रूप में काम करने के लिए तैयार किया जाता है.
रिपोर्ट में इन नेटवर्कों के इरादों के बारे में तीन परस्पर विरोधी लेकिन आपस में जुड़ी परिकल्पनाएं बताई गई हैं. पहली यह कहती है कि चरमपंथी जानबूझकर अराजकता फैला रहे हैं ताकि आगामी चुनाव में देरी या रुकावट हो और गुप्त सैन्य या वैचारिक कब्जे के लिए अनुकूल स्थिति बन जाए. दूसरी परिकल्पना यह है कि ये समूह किसी पावरफुल इंटेरेस्ट ग्रुप, जिनका शायद विदेशी लिंक है, के इशारे पर काम कर रहे हैं, जो तय समय पर चुनाव रोकना चाहता है ताकि उनके रणनीतिक हितों के लिए अनुकूल अस्थायी स्थिति बनी रहे. तीसरी, लंबी अवधि की रणनीति में लगातार प्रचार और धमकी के जरिए बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को कमजोर करना शामिल है.
बीएनपी की अनुमानित सीटों की संख्या को कम करके और उसे स्थिर सरकार बनाने में असमर्थ करके, इस्लामी गुट संसद में अधिक प्रभाव हासिल करना चाहते हैं, खासकर यूनुस सरकार के प्रस्तावित सुधारों के तहत, जो विपक्ष को अधिक शक्ति देते हैं. समय के साथ, यह बांग्लादेश की राजनीतिक व्यवस्था पर कानूनी और निर्वाचन प्रक्रियाओं के जरिए धीरे-धीरे इस्लामी नियंत्रण का रास्ता खोल सकता है.
भारत बांग्लादेश के साथ 4,096 किलोमीटर की खुली सीमा साझा करता है और जाहिर है कि यह उसके लिए बड़ी चिंता की बात है. पड़ोसी देश में इस्लामी चरमपंथ का फिर से उभरना सीमा सुरक्षा, पश्चिम बंगाल और असम में सांप्रदायिक सौहार्द, और सीमा पार आतंकवाद के लिए तुरंत खतरा पैदा करता है. बांग्लादेश में लोगों को कट्टर बनाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल खासकर अल्पसंख्यक-बहुल संवेदनशील जिलों में, आसानी से दोहराया जा सकता है. भारतीय खुफिया अधिकारियों ने सीमा पर वैचारिक प्रभाव के संकेतों और संभावित घुसपैठ के रास्तों की जांच को पहले ही चेतावनी के रूप में चिह्नित कर लिया है.
इन खतरों के बीच, अंतरिम यूनुस सरकार का रवैया काफी नरम रहा है. राष्ट्रीय और विदेशी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा बार-बार चेतावनी देने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित संगठनों से खुले तौर पर जुड़े प्रमुख लोग बिना रोक-टोक काम कर रहे हैं. सार्वजनिक सेमिनार, भड़काऊ भाषण और रणनीतिक भर्ती अभियान बेरोकटोक जारी हैं. हालांकि यूनुस ने अप्रैल 2026 में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन उनकी सरकार का बढ़ते चरमपंथ पर सख्ती न करना उनकी प्राथमिकताओं और राजनीतिक गणनाओं पर गंभीर सवाल उठाता है.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह नरमी शक्तिशाली धार्मिक समूहों को नाराज करने या चुनाव से पहले विवाद से बचने की अनिच्छा से आती है. दूसरों को डर है कि अंतरिम सरकार का कुछ हिस्सा इस्लामवादियों को अवामी लीग और बीएनपी दोनों के खिलाफ एक ताकत के रूप में देख सकता है.
संयुक्त खुफिया रिपोर्ट एक चेतावनी के साथ खत्म होती है कि अगर बांग्लादेश और उसके क्षेत्रीय साझेदारों द्वारा तुरंत और समन्वित कार्रवाई नहीं की गई, तो इस्लामी पुनरुत्थान बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष शासन और लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण में वर्षों की प्रगति को उलट सकता है. भारत के लिए, यह रिपोर्ट एक सख्त रिमाइंडर है कि क्षेत्रीय अस्थिरता का अगला चरण उसकी पश्चिमी सीमा से नहीं, बल्कि पूर्वी सीमा से पैदा हो सकता है.
- अर्कमय दत्ता मजूमदार.