जुलाई की 18 तारीख को झारखंड के दुमका में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वह मुहर्रम के जुलूस में फिलिस्तीन का झंडा लहरा रहा था. इसके अलावा पिछले एक हफ्ते में बिहार के दरभंगा और नवादा से भी 4 लोगों को फिलिस्तीन का झंडा लहराने की ही वजह से गिरफ्तार किया जा चुका है.
ऐसी ही घटनाएं देश के दूसरे हिस्सों में भी दर्ज की गईं जिसके बाद लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि क्या भारत में फिलिस्तीन का झंडा लहराना कोई जुर्म है जो इतनी गिरफ्तारियां की जा रही हैं! इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के अलावा यह भी जानना जरूरी है कि फिलिस्तीन पर भारत सरकार का क्या रुख है.
क्या है पूरा मामला?
झारखंड का मामला अपनी तरह का पहला नहीं है. इससे पहले मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर से भी लोगों को फिलिस्तीन का झंडा लहराने की वजह से गिरफ्तार कर पुलिस पूछताछ कर चुकी है.
कुछ मामलों में इस तरह की घटना की शिकायतें बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों जैसे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों की ओर से की गईं और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और यूएपीए के तहत मामले दर्ज किए गए.
इसी तरह मध्य प्रदेश के खंडवा में 17 जुलाई को मुहर्रम जुलूस के दौरान कथित तौर पर फिलिस्तीनी झंडा फहराने के आरोप में तीन लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई मामला दर्ज नहीं किया गया. खंडवा के एसपी मनोज राय ने मीडिया को बयान दिया कि बजरंग दल के जिला अध्यक्ष की ओर से मोघाट रोड पुलिस स्टेशन में शिकायत की गई थी.
जम्मू-कश्मीर में, लगभग आठ लोगों को कथित तौर पर फिलिस्तीन और हिजबुल्लाह के समर्थन में नारे लगाने और मुहर्रम जुलूस के दौरान झंडे लहराने के लिए हिरासत में लिया गया और यूएपीए की धारा 13 के तहत केस दर्ज किया गया. इसमें उन्हें सात साल की सजा हो सकती है.
झारखंड वाली घटना पर दुमका एसपी पीताम्बर सिंह ने मीडिया से कहा, "हर काम के लिए एक खास जगह होती है. कोई ऐसा काम नहीं कर सकता जिससे दूसरों की भावनाएं आहत हों. सरकार ने एक व्यवस्था बनाई हुई है जो लोगों को हिंसक और भड़काऊ काम करने से रोकता है."
क्या कहते हैं कानूनविद?
इस मामले को लेकर जब हमने सुप्रीम कोर्ट के क्रिमिनल डिफेंस लॉयर शैलेन्द्र प्रताप सिंह से बात की तो उनका कहना था कि फिलिस्तीन का झंडा लहराना कानूनी रूप से गलत नहीं है क्योंकि आईपीसी की धारा 505(2), जो अब भारतीय न्याय संहिता 353(2) बन गई है, दो समुदायों के बीच द्वेष फैलाने पर लगाई जाती थी. इस धारा के मुताबिक भी किसी दूसरे देश का झंडा लहराना गलत नहीं है. हां अगर झंडा लहराने के साथ किसी समुदाय को उकसाया जाता है, तब इस धारा का इस्तेमाल होता है.
शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा, "इन मामलों में मैंने देखा कि पुलिस यूएपीए के साथ ही भारतीय न्याय संहिता 353(2) का भी इस्तेमाल कर रही है जो कि कानूनी रूप से तर्कसंगत नहीं है. मान लीजिए अगर फुटबॉल विश्वकप देखने के दौरान हम अर्जेंटीना का झंडा लहराते हैं, सड़कों पर आकर ख़ुशी मनाते हैं तो इसपर कोई केस थोड़ी बनता है. ठीक यही मामला फिलिस्तीन के झंडे के साथ है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र में भारत का यही रुख रहा है कि इजराइल-फिलिस्तीन के बीच संतुलित होकर चलना है. इसका हालिया उदाहरण है इजराइल-गाजा के बीच चल रहा संघर्ष जिसमें भारत ने हमास के हमले की निंदा करने के साथ ही इजराइल के हमले को भी गलत बताया था."
इस पूरे घटनाक्रम पर चर्चित वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने ‘द हिन्दू’ अखबार को दिए बयान में कहा, "जिस देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, उसका झंडा लहराना कोई अपराध नहीं है. फिलिस्तीन का दूतावास दिल्ली में स्थित है, केवल झंडा लहराना कोई आपराधिक कृत्य नहीं हो सकता."
पूर्व आईपीएस अफसर आरके विज ने भी इस मामले पर यही कहा कि एफआईआर को तभी उचित ठहराया जा सकता है, जब फिलिस्तीन का झंडा लहराने से हिंसा भड़काने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या समाज के वर्गों के बीच हिंसा या नफरत भड़काने की गुंजाईश हो. भाकपा(माले) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने फिलिस्तीनी झंडे लहराने के आरोप में बिहार और अन्य जगहों पर गिरफ्तार लोगों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की मांग की है.
भारत और फिलिस्तीन के कैसे रहे हैं संबंध?
तो क्या ऐसा मान लिया जाए कि फिलिस्तीन का झंडा लहराना देश में जुर्म के बराबर है? विदेश मंत्रालय के बयान इसकी तस्दीक तो नहीं करते. 17वीं लोकसभा में लोकसभा एमपी बदरुद्दीन अजमल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से सवाल किया था कि क्या भारत ने फिलिस्तीन पर अपना रुख बदल दिया है और हाल के इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध में इजरायल को अपना समर्थन दिया है.
इसके जवाब में 2 फरवरी, 2024 को विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने जवाब दिया था, "फिलिस्तीन के प्रति भारत की नीति लंबे समय से स्थाई और सुसंगत रही है. हमने सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना की दिशा में बातचीत के माध्यम से 'टू स्टेट सॉल्यूशन' का समर्थन किया है, जो इजरायल के साथ शांति से रह सके." यह जवाब विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर भी मौजूद है.
और यह रुख भारत सरकार ने कोई नया नहीं अपनाया है. ऐतिहासिक रूप से, भारत एक देश के रूप में फिलिस्तीन के निर्माण का दृढ़ समर्थक रहा है. यहां तक कि जब पिछले तीन दशकों में भारत के इजरायल के साथ संबंध प्रगाढ़ हुए हैं, तब भी नई दिल्ली ने फिलिस्तीन के प्रति अपनी नई साझेदारी और ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखा है.
जब नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को एक यहूदी राज्य, एक अरब राज्य और एक अंतरराष्ट्रीय शहर (जेरूसेलम) में बांटने के प्रस्ताव पर मतदान शुरू करवाया, तो भारत ने पाकिस्तान और अरब ब्लॉक के साथ मिलकर इसके खिलाफ मतदान किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक फिलिस्तीन में आकर बसने वाले जायनिस्ट (यहूदियों का एक धड़ा जो अपने धर्म को ही राष्ट्रीयता मानता है और अपने लिए इजरायल के निर्माण का कट्टर समर्थक है) की तुलना अविभाजित भारत की मुस्लिम लीग से की थी.
देश के पहले प्रधानमंत्री का रुख यह था कि विभाजन की भयावहता से गुज़रने के बाद भारत को फिलिस्तीन के विभाजन का समर्थन नहीं करना चाहिए. लेकिन जब मई 1948 में इजरायल राज्य की घोषणा की गई, तो भारत ने तुरंत एक व्यवहारिक रुख अपनाया. 1950 में भारत ने इजरायल को मान्यता तो दी, लेकिन पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने से पहले ही रुक गया. कोल्ड वॉर के दौरान, गुटनिरपेक्षता का समर्थक भारत फिलिस्तीन मुद्दे के सबसे मुखर समर्थकों में से एक था.