
21 जून 2025 को अमेरिका ने वॉर हिस्ट्री में दर्ज किया जाने वाला एक बड़ा ऑपरेशन किया. ‘मिडनाइट हैमर’ नाम के इस ऑपरेशन में अमेरिका ने ईरान के तीन मुख्य न्यूक्लियर साइट्स- फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमला बोला. एयर बेस से हज़ारों मील दूर हुए इस मिशन में 125 फाइटर जेट्स ने हिस्सा लिया जिसमें 6 B-2 स्पिरिट बॉम्बर्स सबसे कारगर साबित हुए. इन बॉम्बर्स ने मिसौरी के व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस से उड़ान भरी. साथ में 30 क्रूज मिसाइलें भी दागी गईं, जो पानी के नीचे से चलीं और अंडरग्राउंड न्यूक्लियर प्लांट्स को निशाना बनाया.
इस हमले के बाद से ही B-2 स्पिरिट बॉम्बर्स के बारे में पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हुई. दुनिया की सबसे बेहतरीन वॉर मशीनरी कहे जाने वाले इस बॉम्बर एयरक्राफ्ट के बनने की कहानी भी अपने आप में कम रोचक नहीं है.
B-2 स्टेल्थ बॉम्बर, जिसे नॉर्थ्ररॉप B-2 स्पिरिट के नाम से जाना जाता है यूनाइटेड स्टेट्स एयर फ़ोर्स का एक ऐसा हथियार है जो अपनी स्टेल्थ तकनीक (रडार से छुपे रहने) और फायर पावर के लिए मशहूर है. इसे बनाने वाली कंपनी Northrop Grumman and partners की वेबसाइट के मुताबिक यह एक हैवी कॉम्बैट बॉम्बर है जो दुश्मन की किसी भी तरह के एयर डिफेंस को भेदने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी अनूठी फ्लाइंग विंग टेक्नीक और प्रपल्शन इसे रडार से छिपाने में मदद करती है. अब आते हैं इसकी शुरुआत पर कि ये विमान कैसे बना और आज भी क्यों खास माना जाता है.

शुरुआत और डिज़ाइन
बीसवीं सदी में कई दशकों का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका और रूस (तब सोवियत संघ) के बीच चले कोल्ड वॉर की भेंट चढ़ गया. दोनों ही एक दूसरे पर बढ़त लेने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे. अनगिनत जासूसी और अनैतिक प्रयोगों से भरे इस दौर ने साबित किया कि ‘जंग में सब जायज़ है’.
किसी भी देश के पास तीन तरह के आर्म्ड फ़ोर्सेज़ होते हैं. जल, थल और वायु. कोल्ड वॉर के दौरान जल और थल का तो मामला उन्नीस बीस ही ठहर रहा था दोनों तरफ लेकिन बात आकर अटक जा रही थी एयर फ़ोर्स पर. आज की तरह तब भी मिलिट्री सुप्रिमेसी का मतलब एयर पावर ही होता था. रूस एयर पावर में भी अमेरिका पर बीस ही पड़ रहा था. और इससे आगे बढ़ने के लिए अमेरिका को चाहिए थी हवा में लड़ने वाली एक ऐसी फायर मशीन जिसका तोड़ किसी के पास ना हो.
दोनों तरफ दोनों देशों के अनगिनत जासूस फैले हुए थे इसलिए सबको सबके इरादे पता चल जाते थे. जैसे ही सोवियत को ये भनक लगी कि अमेरिका एक ऐसा बॉम्बर बनाने की तैयारी में है जिसे दुनिया का कोई रडार नहीं पकड़ सकता तो सोवियत ने भी साथ ही इसकी तैयारी शुरू कर दी.
यह बॉम्बर एक साइंस फिक्शन सरीखा था. इसे बनाने वाले भी कह रहे थे कि इस बॉम्बर को बनाना असंभव को संभव करने जैसा था. लेकिन नामुमकिन को मुमकिन करने से ही दुनिया के सारे आविष्कार पैदा हुए हैं और अमेरिका ने अपने इंजीनियर्स से कह दिया था कि चाहे इस बॉम्बर को बनाने में कई पीढ़ियां लग जाएं लेकिन अमेरिका यह हथियार बना कर ही दम लेगा. एक ऐसा सुपर वेपन जो जब भी अपने हैंगर से निकलेगा दुश्मन के पास सिर्फ दो ही विकल्प बचे रहेंगे. पहला, इंतज़ार और दूसरा अपने ईश्वर से प्रार्थना.
B-2 का काम 1981 में शुरू हुआ. जब नॉर्थरॉप की टीम ने लॉकहीड/रॉकवेल के डिज़ाइन से बेहतर ब्लूप्रिंट बनाकर इसका काम शुरू किया. इसे "स्पिरिट" नाम दिया गया और इसका मकसद था कि यह ऊंचाई से उड़ान भरने के बजाय निचले स्तर पर गाइडेंस फॉलो करते हुए दुश्मन के इलाके तक पहुंचे. क्योंकि तब तक रडार से बचने की यही हाइपोथिसिस इंजीनियर्स के पास थी. लेकिन इसमें बार-बार पकड़े जाने और नुक्सान झेलने का खतरा बहुत था.
इसलिए 1980 के दशक के मध्य में डिज़ाइन में बदलाव की वजह से पहली उड़ान में दो साल की देरी हुई और लागत में करीब 1 अरब डॉलर का इजाफा हुआ. 1989 तक इस पर शोध और विकास में 23 अरब डॉलर खर्च हो चुके थे. इस प्रोजेक्ट में एमआईटी के इंजीनियरों ने भी योगदान दिया और इसकी तकनीक ने बाद में एडवांस्ड टैक्टिकल फाइटर प्रोग्राम को भी जन्म दिया जिसमें लॉकहीड मार्टिन एफ-22 जैसे विमान बने.

इतिहास और उपयोग
B-2 की पहली उड़ान 17 जुलाई 1989 को हुई और ये 1997 में सर्विस में आया. इसे मूल रूप से सोवियत संघ के खिलाफ न्यूक्लियर हमले के लिए बनाया गया था, लेकिन कोल्ड वॉर खत्म होने के बाद इसका इस्तेमाल नॉन न्यूक्लियर ट्रेडिशनल हथियारों के लिए हुआ. इसका पहला युद्ध अभियान 1999 के कोसोवो युद्ध में देखा गया जहां इसने गैर-न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल किया. इसके बाद यह इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, यमन और हाल ही में 2025 में ईरान में भी इस्तेमाल हुआ. आज 2024 तक अमेरिकी वायु सेना के पास 19 B-2 हैं, क्योंकि एक 2008 में और दूसरा 2022 में एक एक्सीडेंट में तबाह हो गया था. इसे 2032 तक इस्तेमाल करने की योजना है, जिसके बाद B-21 रेडर इसे रिप्लेस करेगा.
B-2 का सफर आसान नहीं रहा. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1984 में एक कर्मचारी ने सोवियत संघ को इससे जुड़ी सीक्रेट फाइल्स बेचने की कोशिश की. 2005 में एक इंजीनियर को चीन को डेटा देने के लिए गिरफ्तार किया गया. इसकी कहानी हम आगे पढेंगे. शुरू में 132 B2 बनाने की योजना थी लेकिन कोल्ड वॉर के बाद इसे 21 तक सीमित कर दिया गया.
इसकी एक वजह थी भारी लागत. हर विमान की कीमत 1997 में 737 मिलियन डॉलर थी और पूरे प्रोग्राम की औसत लागत 2.1 अरब डॉलर प्रति विमान रही. इसकी बेतहाशा लागत और बेहद महंगी सर्विसिंग की ज़रूरतों पर बार-बार विपक्ष की तरफ से सवाल उठाए गए.
तकनीकी खूबियां
B-2 एक सबसॉनिक विमान है जिसमें दो पायलट होते हैं. इसका वजन 166,000 किलोग्राम तक हो सकता है और ये 50,000 फीट की उंचाई तक उड़ सकता है. बिना रुकावट 6,000 नॉटिकल मील (11,000 किमी) की दूरी तय कर सकता है और हवा में ईंधन भरने के साथ 10,000 नॉटिकल मील (19,000 किमी) तक जा सकता है. ये 80 Mk 82 JDAM जीपीएस-गाइडेड बम या 16 B83 न्यूक्लियर बम ले जाने में सक्षम है. यह इकलौता ऐसा विमान है जो एयर टू सर्फेस मिसाइल्स को स्टेल्थ मोड में ले जा सकता है.
B-2 स्टेल्थ बॉम्बर तकनीक और सैन्य शक्ति का एक अद्भुत नमूना है. ये दुनिया का इकलौता बॉम्बर है जिसमें पायलट के लिए बंक बेड, माइक्रोवेव और मिनी फ्रिज भी होता है. क्योंकि इस बॉम्बर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा देर तक हवा में रहने के लिए किया जाता है इसलिए इसमें दो पायलटों के लिए वॉशरूम की सुविधा भी होती है. अभी हालिया इरान हमले में 6 बॉम्बर हवा में करीब 37 घंटे तक लगातार उड़कर मिशन पूरा करके लौटे हैं.

B2 बॉम्बर का इंडिया कनेक्शन
अमेरिका की इस ऐतिहासिक वॉर मशीन को बनने में भारत का कनेक्शन भी रहा है. इस कनेक्शन का नाम है नोशीर गोवाडिया. भारतीय मूल का वो जीनियस इंजीनियर जिसने B-2 स्टेल्थ बॉम्बर के बनने में अहम भूमिका निभाई. एक समय नोशीर के पास टॉप सिक्योरिटी क्लीयरेंस थी, इसका मतलब नोशीर इस सीक्रेट मिशन की हर फ़ाइल एक्सेस कर सकते थे.
आपको ये पढ़कर लगता होगा कि दुनिया का सबसे ताकतवर फाइटर बॉम्बर बनाने में इतना अहम काम करने की वजह से अमेरिका ने नोशीर को जबरदस्त इनाम इकराम दिया होगा. लेकिन ये जानकर हैरानी होती है कि नोशीर इस समय अमेरिका की एक जेल में 33 साल की उम्रकैद काट रहे हैं. वजह जानने से पहले नोशीर की कहानी शुरू से समझ लेते हैं.
क्या है नोशीर की पूरी कहानी?
नोशीर शेरियारजी गोवाडिया का जन्म 11 अप्रैल 1944 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था. बचपन से ही उनकी प्रतिभा ने जलवा कायम कर लिया था. उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में करियर बनाया. 1960 के दशक में नोशीर अमेरिका चले गए और नॉर्थरॉप (अब नॉर्थरॉप ग्रुम्मन) कंपनी में शामिल हुए जहां उन्होंने 1968 से 1986 तक काम किया. इस दौरान उन्होंने B-2 स्पिरिट बॉम्बर के स्टेल्थ प्रपल्शन सिस्टम को डिजाइन करने का काम किया जो इस विमान को रडार और ‘हीट सेंसर’ से बचाने में मदद करता है.
उनकी इस तकनीक ने अमेरिकी वायु सेना को एक अनोखा हथियार दिया, जो दुश्मन की नजरों से छिपकर हमला कर सकता है. लेकिन बाद में गोवाडिया को कुछ अजीब वजहों से कंपनी से निकाल दिया गया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि उस समय गोवाडिया एक रेयर किस्म के ब्लड कैंसर से जूझ रहे थे जिसे उन्होंने बाकी लोगों से छुपाए रखा. हालांकि इसमें भी कितनी सच्चाई है ये आज भी मालूम नहीं चला है.
गोवाडिया का नया सफर
1986 में नॉर्थरॉप से निकाले जाने के बाद गोवाडिया ने अपनी कंसल्टेंसी कंपनी शुरू की, लेकिन 1997 में उनकी सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई. इसके बाद वे आर्थिक परेशानियों से जूझने लगे. इसकी एक वजह गोवाडिया खुद थे क्योंकि उनका खर्च उनकी आमदनी पर भारी पड़ रहा था. हवाई के माउइ में गोवाडिया ने एक आलीशान बंगला ख़रीदा था जिसका बैंक लोन उनसे चुकाया नहीं जा रहा था. गोवाडिया को जैसी उम्मीदें थीं वैसी डिफेंस डील उनकी कंपनी कहीं कर नहीं पाई. इसकी एक वजह उनका सिक्योरिटी क्लियरेंस रद्द किया जाना भी था.
रूस तो इस प्रोजेक्ट को असंभव मानकर चुपचाप बैठ गया था लेकिन चीन ने अमेरिका का पीछा कभी नहीं छोड़ा. चीन लगातार इस प्रोजेक्ट पर नजर जमाए हुआ था. उसे पता था कि इस प्रोजेक्ट में गोवाडिया ने ऐसी भूमिका निभाई थी कि अगर उन्हें अपनी तरफ कर लिया जाए तो चीन को ‘स्टेल्थ टेक्नीक’ (रडार से छुपे रह सकने की क्षमता) को समझकर इसी टक्कर का बॉम्बर बना सकता है.
2003 में चीन ने अपनी चाल चली. और चीन के झांसे में गोवाडिया फंस गए. कहा जाता है कि 2003 में पैसों की तंगी के चलते उन्होंने चीनी अधिकारियों के साथ सीक्रेट डील कर ली. एफबीआइ के डीक्लासिफाइड डाक्यूमेंट्स बताते हैं कि गोवाडिया ने 2003 से 2005 के बीच दो साल में 6 बार चीन की यात्रा की. गोवाडिया ने वहां B-2 की स्टेल्थ तकनीक की जानकारी साझा की जिसमें प्रपल्शन तकनीक और रडार से बचने वाले हिस्सों के डिजाइन शामिल थे. बदले में उन्हें कम से कम 110,000 डॉलर मिले जो उन्होंने अपने कर्ज को चुकाने के लिए इस्तेमाल किया.

और जब अमेरिका को ये पता चला
2005 में गोवाडिया के बैंक खातों में आया पैसा अमेरिकी राजस्व अधिकारियों और एफबीआई के शक के दायरे में आ गया. 13 अक्टूबर 2005 को एफबीआई ने हवाई के बंगले पर छापा मारा और सीक्रेट डाक्यूमेंट्स बरामद किए. इसके बाद लंबी जांच और मुकदमे के बाद 2010 में गोवाडिया को 14 आरोपों, जिसमें जासूसी और हथियार निर्यात नियंत्रण अधिनियम का उल्लंघन शामिल था, में दोषी ठहराया गया. जनवरी 2011 में उन्हें 33 साल की जेल की सजा सुनाई गई.
अदालत में बताया गया कि सैन्य विशेषज्ञ ये मानते हैं कि गोवाडिया की जानकारी से चीन ने अपनी H-20 स्टेल्थ बॉम्बर तकनीक को मजबूत किया जो अब अमेरिका के लिए चिंता की बात है. आज गोवाडिया कोलोराडो की फ्लोरेंस जेल में सजा काट रहे हैं.हालांकि नोशीर गोवाडिया के बेटे मेहर गोवाडिया ने मीडिया से लगातार कहा है कि उनके पिता निर्दोष हैं और इस मामले में सारा खेल ‘सीआइए का किया हुआ’ है.