
पैसा बनाने का सबसे आसान तरीका... तुरंत कमाई शुरू...ज़ीरो इन्वेस्टमेंट डबल इन्कम...ये ऐसे कीवर्ड हैं जो इंसान का फौलादी ध्यान खींचने का सबसे ताकतवर चुम्बक हैं. अब अगर आपके सोशल मीडिया पर ये चुम्बक दिख जाएं तो आप क्या करेंगे? एक बार ठहर कर कम से कम देखना तो ज़रूर चाहेंगे.
बस यहीं से खेल शुरू होता है. और इस खेल में खिलाड़ी आप नहीं, करारे-करारे 500 और 100 के नोटों के बंडल होते हैं. सुनने में ये जितना गैर-कानूनी और बड़ा काम लगता है, इसे इस तरह पेश किया जाता है कि ये करने में बेहद आसान लगे.
ये नकली नोटों का धंधा है, जो आते-आते अब इन्स्टाग्राम पर आ चुका है. इन्स्टा पर अनगिनत फ़र्ज़ी अकाउंट हैं जो ‘एक का सात’, ‘तीन का दस’, ‘पांच का पंद्रह’ और ‘दस का सौ’ जैसे दावों और वादों के साथ आपको बुलाते हैं. ये सब नकली के बदले असली के भाव हैं. जैसे, ‘एक का सात’, मतलब एक नोट असली दो और सात नोट नकली लो. यानि अगर आप सौ के नोटों का एक बंडल मतलब दस हज़ार देते हैं तो बदले में आपको सात बंडल यानि सत्तर हज़ार के नकली नोट मिलेंगे.
सुनने में स्कीम कितनी मज़ेदार और लप्प से पकड़ लेने लायक लग रही है न? क्योंकि आपको इसके लिए कुछ करना नहीं है, बस स्क्रीन पर दिया नंबर डायल करना है. उधर से बताया जाएगा कि नकली नोट आप तक कैसे पहुंचेंगे.

अब समझिए असली खेल
इन वीडियोज़ में बंडल के बंडल नोट गिनते हाथ दिखेंगे, काले शीशों वाली बड़ी गाड़ियों से उतरते तथाकथित माफ़िया दिखेंगे, महंगी घड़ियां और महंगे मोबाइल थामे नोट उड़ाते लोग दिखेंगे. ये सब इतना ज्यादा दिखेगा कि अपने मोबाइल के पीछे किसी अकेले कमरे में जीवन सुधारने की कोशिशें करके हार चुका और अब टाइम पास कर रहा शख्स ये सोचने लगेगा कि ऐसी शानदार जिंदगी जीने से उसे कौन रोक रहा है. फिर आप दिए गए नंबर पर फोन करते हैं और उधर से पता चलता है कि नकली नोटों के ‘असली से भी असली’ बंडल आपको आपके दरवाज़े पर ही डिलीवर कर दिए जाएंगे. बदले में आपको एक दिए गए खाते में मांगी गई रकम जमा करवानी होगी.
अब सवाल उठता है कि ये नकली नोट ‘असली से भी असली’ हैं ये कैसे तय किया जाए. इसके लिए इन प्रोफाइल्स पर अनगिनत वीडियो हैं जिनमें नकली नोटों को ‘करेंसी काउंटिंग मशीन’ से निकाला जा रहा होगा. इन मशीनों में एक फ़ीचर होता है नकली नोट पहचानने का. वीडियो में बार-बार उस मशीन से नकली नोट की गड्डी को डालकर दिखाया जाएगा कि इन्हें मशीन भी नहीं पकड़ पा रही.
ख़रीदार का भरोसा जमाने के लिए इन नोटों से पेट्रोल पम्प पर गाड़ी में पेट्रोल भराते और दुकानों से सामान लेते हुए वीडियो बनाए जाते हैं. इससे वीडियो देख रहे इंसान को भरोसा होता है कि नकली नोट कहीं भी पकड़े नहीं जाएंगे. इसी भरोसे पर इन नकली नोटों को खरीदने का प्रोसेस शुरू होता है.
इन सप्लायर्स से हमने बातचीत की
इंडिया टुडे ने इस मामले को गहराई से समझने की कोशिश की. हमने इस मामले में शुरुआत से शुरुआत की. सबसे पहले ऐसी प्रोफाइल्स मार्क की गईं. क्योंकि ये प्रोफाइल्स लगातार रिपोर्ट होने की वजह से कुछ ही दिनों में बंद हो जाती थीं इसलिए इनके स्क्रीनशॉट लिए गए. इन प्रोफाइल्स पर डायरेक्ट मैसेज (डीएम) किए गए और बतौर ख़रीदार आगे बात करने की इच्छा जताई गई.

इंडिया टुडे की आधी से ज्यादा रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हुईं और प्रोफाइल होल्डर्स ने अपने पर्सनल कांटेक्ट मुहैया करवाए. लेकिन कमोबेश सभी की एक ही शर्त थी, डायरेक्ट सिम कॉल पर बात नहीं होगी. बात करने के लिए WhatsApp को ही सभी जगह प्राथमिकता दी गई. वजह?
क्योंकि आम नेटवर्क कॉल की तुलना में WhatsApp कॉल ज़्यादा सुरक्षित मानी जाती है. इसकी दो वजहें हैं? एक तो WhatsApp की कॉल को रिकॉर्ड करना मुश्किल है, दूसरा इसका सर्विलांस तब तक भारतीय सुरक्षा एजेंसियां नहीं करतीं जब तक मामला राष्ट्रीय सुरक्षा को ‘बड़ा ख़तरा’ वाला ना हो. तो सभी ने इंटरनेट कॉल पर ‘आगे की बातचीत’ के लिए हामी भरी. बातचीत शुरू हुई.
क़रीब डेढ़ दर्जन लोगों से बातचीत के बाद जो पहली चीज़ पता चली वो ये थी कि इनमें से 99 फ़ीसद सप्लायर दो राज्यों से हैं. महाराष्ट्र और राजस्थान.
इन दोनों राज्यों में भी क़रीब सत्तर फ़ीसद सप्लायर महाराष्ट्र से हैं. महाराष्ट्र के ही सप्लायर सबसे ज्यादा एक्टिव भी हैं. इस बारे में पूछने पर भारतीय सुरक्षा एजेंसी की FICN विंग (Fake Indian Currency Note) के साथ काम करने वाले एक अधिकारी बताते हैं, "भारत में नकली नोटों के दो बड़े एंट्री पॉइंट्स हैं. पहला इंडो बांग्लादेश बॉर्डर से सटे बंगाली इलाके, ये पुराने नेपाली रूट्स की तुलना में तस्करों के लिए आसान साबित हुए हैं. दूसरे हैं इंडो पाकिस्तान बॉर्डर के राजस्थान वाले इलाके. राजस्थान के इस एंट्री पॉइंट का असर महाराष्ट्र में दिखता है क्योंकि यहां ‘ह्यूमन इंटेलिजेंस’ बहुत सटीक काम नहीं कर पाती."

क्या निकला पड़ताल में
इन्स्टाग्राम पर मौजूद महाराष्ट्र और राजस्थान के इन ‘डिजिटल गैंग्स’ से हमने संपर्क किया. हमने जानना चाहा कि असली नोट लेकर कहां आना होगा ताकि उसके बदले हमें तय रेट के नकली नोट मिल सकें. आपको जानकार हैरानी होगी कि ज़्यादातर सप्लायर्स का कहना था कि कहीं आने की ज़रूरत नहीं. उनके हिसाब से उनका अपना डिलीवरी सिस्टम है जो आपका पैकेज आपके दरवाज़े तक लाकर देगा.
हमारा शक यहीं से शुरू हुआ. क्योंकि ये दूध, अंडे या टमाटर की क्विक डिलीवरी तो नहीं जो बिना जाने परखे कोई किसी के दरवाज़े तक दे जाए. क्या हो अगर नकली नोट मंगवाने वाला सुरक्षा एजेंसियों का कर्मचारी हो और इस नेटवर्क को धर दबोचने के लिए ये एक जाल हो. इन सप्लायर्स की बातचीत में इतना कॉन्फिडेंस आख़िर कहां से आ रहा है? इन्हें ये तक जानने की ज़ेहमत नहीं उठानी है कि जिससे बात हो रही है वो असली ख़रीदार है भी या नहीं?
इस सवाल का जवाब हमें FICN विंग के उन्हीं अधिकारी ने दिया. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि जो सप्लायर वाक़ई नकली नोट के धंधे में हैं वो ख़रीदार पर इतनी आसानी से भरोसा नहीं करते. बल्कि वो किसी को असली के बदले नकली नोट की डील ही ऑफर नहीं करते. इन सप्लायर्स का SOP (स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीज़र) ये होता है कि मान लीजिए राजस्थान के झालवाड़ा में नकली नोट का पिक-अप पॉइंट है जहां से नोट बाज़ार में जाते हैं.
लोकल बॉस वहां की आबादी के स्कूल जाने वाले और बेहद कम पैसों पर काम करने वाले बेरोज़गार लड़कों को कम पर रखते हैं. उन्हें दो चार हज़ार के नकली नोट देकर आस-पास के इलाकों में भेज दिया जाता है जहां वो पांच सौ के नोट से कोई छोटा सामान ख़रीदते हैं. अगर लड़के ने सौ रुपए में सिगरेट का एक पैकेट ख़रीदा या एक लीटर पेट्रोल मोटरसाइकिल में भरवाया तो बाकी बचे नोट अपने आप असली हो गए. सामान मिल गया वो अलग. ये काम वो एक ही दुकान या पेट्रोल पम्प पर बार-बार नहीं करते. इसके लिए फल या फूल की मंडियां या चिकन शॉप्स जैसी रैंडम दुकानों को निशाना बनाया जाता है जो अगले दिन थोक मार्केट में वो नोट देकर सामान ले आए.
अधिकारी बताते हैं कि जब तक वो नकली नोट बैंक के किसी जानकार अधिकारी के सामने से नहीं गुज़रता, तब तक उस नोट का पकड़ा जाना मुमकिन नहीं है. राजस्थान या महाराष्ट्र में ऐसे अनगिनत गैंग्स हैं जो हर कुछ दिन पर लोकेशन और गैंग मेंबर बदल लेते हैं. लोकल मार्केट में नकली नोट खपाने के उनके पास सैकड़ों तरीके होते हैं. वो इन्स्टाग्राम पर आकर किसी के घर नकली नोट का बंडल भेजने का खतरा क्यों मोल लेंगे?

इसका क्या जवाब है?
ये जायज़ सवाल हमने एक सप्लायर से पूछा. उसका कहना था कि ‘ये भरोसे का काम है. अगर आपको भरोसा नहीं है तो आगे बात करने का कोई फायदा नहीं. हम सब मैनेज करके चलते हैं’
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) से जुड़े अभिजीत साहा बताते हैं कि भारत सरकार नकली नोट की जानकारी देने वाले को कुछ राशि बतौर प्रोत्साहन देती है ऐसा DRI की स्कीम के तहत किया जाता है. पिछले साल महाराष्ट्र और राजस्थान से कई फोन कॉल ऐसे आते थे जो किसी खंडहर या सुनसान जगह नकली नोट होने का दावा करते थे और बदले में पकड़ी गई रकम का एक तय प्रतिशत इनाम में चाहते थे. ये असल में एजेंसी के साथ किया जा रहा फ्रॉड था जिसे समय रहते हमने डीकोड कर लिया. साधारण कागज पर बेहद साधारण प्रिंटिंग मशीन से छापे गए ऐसे नोट किसी काम के नहीं होते. इन्हें पहली नज़र में ही पकड़ा जा सकता है. शायद इसी तरह की ठगी लोगों के साथ सोशल मीडिया के जरिए भी की जा रही हो.
अब जब हमने इन गिरोहों के सप्लायर्स से कहा कि ये नोट काम के होंगे ही ये कैसे पता चलेगा? तो इन सप्लायर्स ने अलग-अलग समय पर वीडियो कॉल फ़िक्स कीं. दूसरी तरफ से कॉल पर उन नोट गिनने की मशीनों से नोटों को निकाला गया जिनमें नकली नोट पहचानने का फ़ीचर भी होता है. नकली नोटों के बंडलों में से कोई भी बंडल उठाकर इन मशीनों में डाला गया और सभी नोट इस मशीन की गिनती में पार हो गए.
आम इन्स्टाग्राम यूज़र यहीं फंस जाता है. जब वो ताबड़तोड़ मशीनों से पास होते हुए नोट देखता है तो उसे भरोसा हो जाता है कि अब उसका नसीब बदलने से कोई नहीं रोक सकता. इसी वजह से आम यूज़र इन नकली नोटों के ऑर्डर दे डालता है.

दूसरी तरफ से बाक़ायदा स्कैनर या पेमेंट करने के लिए एक नंबर दिया जाता है. उसके बाद जब ख़रीदार एक छोटी रकम ऑर्डर करने के लिए तैयार हो जाता है तो डिजिटल पेमेंट की जाती है. अब समझ लें कि दस हज़ार रुपए की पेमेंट के बाद ख़रीदार को तय रेट के हिसाब से नकली नोटों के बंडल की ‘होम डिलीवरी’ होनी होती है. लेकिन इसके बाद सप्लायर कुछ बहाने बनाता है और ख़रीदार को बताता है कि डिलीवरी तभी होगी जब ज्यादा रकम के नकली नोट खरीदे जाएंगे. अब जब डील करने की इच्छा वाला शख्स कुछ रकम दे चुका होता है तो वो डील पूरी करना चाहता है. कई बार कुछ और रकम सप्लायर होने का दावा करने वाले शख्स को भेजी जाती है.
और इसके बाद ख़रीदार नकली नोटों के बंडल का इंतेज़ार करता है. और दुखद बात ये है कि उसका ये इंतेज़ार कभी खत्म नहीं होता. उसके बताए पते पर कभी कोई पैकेज डिलीवर नहीं होता. जिस नंबर से लगातार बात होती थी वो अब ‘स्थायी रूप से सेवा में नहीं होता’. सिवाय एक फोन नंबर के उस गैंग तक पहुंचने का कोई और तरीका भी नहीं.
तमाम तरह के डिजिटल फ्रॉड के बीच ये एक नए किस्म का फ्रॉड है जिसमें एक प्रोडक्ट सामने दिखाई देता है. और जब ये प्रोडक्ट नए करारे नोटों के बंडल हों तो कहने ही क्या. इंडिया टुडे की इस पड़ताल में ऐसा एक भी ख़रीदार नहीं मिला जिसने इन्स्टाग्राम से नकली नोट ख़रीदें हों और आगे भी ख़रीदना चाहता हो. जैसे ही इन गैंग्स से इस बारे में सवाल पूछे गए कि हमें कुछ ऐसे लोगों से मिलवाया जाए जिनके यहां इन नोटों की होम डिलीवरी हुई हो, तो इन गैंग्स के लोग इस सवाल को टालने लगे. हर कोई तुरंत पेमेंट करवाने पर आमादा था जैसे कोई फ़ेक कॉलर आपका ओटीपी जानने को आमादा होता है.
इसलिए आपकी फीड में आ रही इन रील्स से बचकर रहें. नकली नोट ख़रीदने की मंशा से किसी सप्लायर से संपर्क करना भी वित्तीय अपराध है. अपराधों के इस अनंत जाल में फंसकर कंगाल होने या जेल जाने से बचने में ही भलाई है.