प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से एक साथ मिले तो उनकी तस्वीरों पर दुनियाभर में काफी चर्चा हुई. लेकिन इसके दो दिन बाद ही जिन तस्वीरों और वीडियो ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा वे थीं चीन के सैन्य शो की. दरअसल इनके जरिए चीन ने अपनी बढ़ती सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया था.
दुनियाभर के विश्लेषकों और विशेषज्ञों के लिए 3 सितंबर को बीजिंग में आयोजित हुई विशाल सैन्य परेड एक साफ संदेश थी : चीन एक उभरती महाशक्ति है जिसे डराया नहीं जा सकता. तियानआनमेन स्क्वायर पर खड़े शी जिनपिंग, जिनके साथ रूस, उत्तर कोरिया और ईरान के नेता मौजूद थे, ने ऐलान किया कि चीन को “कभी भी दबाया नहीं जा सकेगा.”
दुनिया भर के दर्शकों के लिए यह 70 मिनट का प्रदर्शन, जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें, रोबोटिक ‘वुल्फ’ स्काउट्स, स्टेल्थ ड्रोन और परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें थीं, चौंकाने वाला था. लेकिन नई दिल्ली में इसे अलग नजर से देखा गया. वहां इसे अजेय ताकत का सबूत कम और चीन की बेचैनी और उसके सैन्य ढांचे की कमजोरी की झलक ज्यादा माना गया.
चीन ने अपने ताजा मिसाइल जखीरे का प्रदर्शन किया, जिनमें परमाणु इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें डीएफ-5सी और डीएफ-61, मध्यम दूरी की डीएफ-26डी ‘गुआम किलर’ और हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइलें वाइजे-15, वाइजे-17, वाइजे-19 और वाइजे-20 शामिल थीं. जमीनी फौज ने एडवांस 99बी टैंक और मॉड्यूलर पीएचएल-16 रॉकेट लॉन्चर दिखाया.
डायरेक्ट एनर्जी लेजर हथियार और अत्याधुनिक ड्रोन भी शोकेस किए गए, जिनमें पानी के नीचे इस्तेमाल होने वाला परमाणु हथियार से लैस एजेएक्स 002 और बिना पाइलट वाला कॉम्बैट एरियल व्हीकल जीजे-11 (‘लॉयल विंगमैन’) शामिल था. परेड में फ्रंटलाइन निगरानी और सटीक हमलों के लिए बनाए गए रोबोटिक ‘वुल्व्ज’ (भेड़िये) भी पेश किए गए.
भारत की रणनीतिक बिरादरी लंबे समय से कहती रही है कि ऐसी सैन्य परेडें असल जंग की तैयारी से ज्यादा राजनीति का प्रदर्शन होती हैं. पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के पास भले ही हथियारों का चमकदार जखीरा हो, लेकिन उसके भीतर गहरी ढांचागत कमजोरियां हैं. ऊपर से नीचे तक सख्त कमांड सिस्टम फ्रंटलाइन पर पहल को रोकता है और फैला हुआ करप्शन खरीद-फरोख्त और तैयारियों को खोखला कर चुका है.
शी जिनपिंग के चुने हुए कई जनरल रिश्वत और भाई-भतीजावाद के आरोपों में हटाए जा चुके हैं, जिससे सिस्टम की सड़ांध साफ दिखती है. भारतीय रणनीतिकारों के लिए यह सिर्फ सैद्धांतिक चिंता नहीं है. ऐसा दुश्मन, जहां अविश्वास और कमजोर कमांड चेन हों, अप्रत्याशित होता है, शोर मचाने और दिखावा करने में सक्षम, लेकिन जरूरी नहीं कि असल जंग में नतीजे भी उतने ही मजबूत दे पाए.
बीजिंग की परेड में सबसे ज्यादा जोर रणनीतिक डिटरेंस पर थाः परमाणु मिसाइलें, लंबी दूरी के रॉकेट और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल जो अमेरिका और गुआम को निशाना बना सकते हैं. लेकिन भारत के नजरिए से यह संदेश कई परतों वाला है. चीन का न्यूक्लियर ट्रायड और मिसाइल जखीरा वॉशिंगटन को रोकने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है. लेकिन यह यह भी दिखाता है कि बीजिंग असल युद्ध से ज्यादा डिटरेंस पर भरोसा करता है, यानी उसे लगातार पारंपरिक जंग लड़ने की अपनी क्षमता पर भरोसा नहीं है.
चीन पर नजर रखने वाले जानकार कहते हैं कि PLA की असल जंग लड़ने की तैयारी अभी भी शक के घेरे में है. वजह है उसका टॉप-डाउन कमांड सिस्टम, जिसमें ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी (जंग के दौरान रणनीति बदलने को लेकर लचीलापन) की कमी है, जो पश्चिमी सेनाओं में साफ दिखती है. इसके अलावा, यह भी संदेह है कि नई टेक्नॉलॉजी असली जंग में कैसी परफॉर्म करेगी.
इसके उलट, भारत की सेनाओं के पास कम संसाधन होने के बावजूद दशकों का कॉम्बैट अनुभव है, चाहे करगिल की ऊंचाई वाली लड़ाई हो या कश्मीर और नॉर्थईस्ट में काउंटर-टेरर ऑपरेशंस. ऑपरेशनल एडेप्टेबिलिटी, सख्त ट्रेनिंग और मैदान में हालात के मुताबिक इम्प्रोवाइज करना भारतीय सेना की ताकत है. PLA के पास भले ही आधुनिक हथियार हों, लेकिन उसने आखिरी बार 1979 में वियतनाम के खिलाफ जंग लड़ी थी- जिसे जीत से ज्यादा नाकामी के लिए याद किया जाता है.
फिर भी, भारत चीन के बढ़ते सैन्य जखीरे को हल्के में नहीं लेता. ड्रोन, लेज़र सिस्टम और स्टेल्थ प्लेटफॉर्म्स की नुमाइश बीजिंग के आधुनिकीकरण अभियान के पैमाने की याद दिलाती है. ये क्षमताएं दक्षिण चीन सागर, ताइवान और यहां तक कि LAC जैसे विवादित इलाकों में बैलेंस बदल सकती हैं. नई दिल्ली के लिए संदेश साफ है कि चीन की कमजोरियों को नजरअंदाज करने से ज्यादा जरूरी है अपनी तैयारी और तेज करना.
यही वजह है कि भारत अगली पीढ़ी के हथियारों और प्लेटफॉर्म्स पर जोर दे रहा है. राफेल जेट्स की तैनाती, तेजस एमके2 का विकास और फ्रांस के साथ मिलकर भविष्य के एएमसीए स्टेल्थ फाइटर के लिए इंजन प्रोजेक्ट इसी दिशा में कदम हैं. नौसेना मोर्चे पर भी नई दिल्ली क्वाड पार्टनर्स- जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका- के साथ सहयोग मजबूत कर रही है, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बैलेंस बना रहे. इसी बीच इंडियन नेवी में नए फ्रिगेट्स और एयरक्राफ्ट कैरियर्स शामिल किए जा रहे हैं. हर फैसले पर चीन फैक्टर की छाया साफ दिखती है.
सैन्य रणनीतिकार मानते हैं कि नई दिल्ली के लिए सबसे अहम सबक यह है कि चीन का दिखावा उसकी अजेयता नहीं है. परेड में दिखाए गए हथियार असली जंग की तैयारी, जॉइंट ऑपरेशंस और लॉजिस्टिक्स की कमियों को नहीं छिपा सकते. साथ ही, भारत को बीजिंग की अनिश्चितता से सतर्क रहना होगा. दबाव में फंसी PLA कभी भी LAC या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अचानक कुछ आक्रामक हरकत कर सकती है.
आखिरकार, शी जिनपिंग की ये परेड दुनिया में कुछ हलचल जरूर लाई होगी, लेकिन भारत ने इसे अलग नजरिए से पढ़ा. यह महत्वाकांक्षा और असुरक्षा का मिला-जुला प्रदर्शन था, यह याद दिलाने वाला कि PLA, अपनी तमाम मिसाइलों और ड्रोन के बावजूद, अभी यह जंग का दैत्य नहीं है जैसा चीन दावा करता है. नई दिल्ली के लिए रास्ता साफ हैः सतर्क रहना, साझेदारियां मजबूत करना और अपनी तैयारी को और धार देना. भारत मानता है कि ये असली जंग की कसौटी पर अनुभव और हौसला दिखावे से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं.