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पाकिस्तान-चीन से समुद्र में मिल रही कड़ी टक्कर; कितनी तैयार है भारतीय नौसेना?

1999 में भारत ने 2030 तक 24 पनडुब्बियां बनाने का लक्ष्य रखा. इनमें से 6 परमाणु संचालित हमलावर पनडुब्बियां भी शामिल हैं. हालांकि, यह लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है

सबमरीन  (Photo: Getty)
सबमरीन (Photo: Getty)
अपडेटेड 24 जून , 2025

भारत के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक बड़ी उपलब्धि रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा को काफी हद तक कमजोर कर दिया.

भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान की ओर से आने वाली लगभग सभी मिसाइलों को नष्ट कर दिया. साथ ही जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख बुनियादी ढांचे को भी काफी नुकसान पहुंचाया.

मतलब साफ है कि इस ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना की ताकत और खासियतें अब दुनिया के सामने आ गई हैं. दुश्मन से छिपकर ऑपरेशन करने की खास तकनीक, बिल्कुल निशाने पर हमला करने वाले सटीक हथियार, अलग-अलग सैन्य साधनों का एक साथ इस्तेमाल, मुश्किल हालात में अपने लोगों को बचाने के साथ ही किसी भी वक्त और कहीं भी ऑपरेशन की क्षमता के कारण भारतीय सेना ने यह उपलब्धि अपने नाम की है.

सैन्य विश्लेषकों का मानना ​​है कि भारतीय वायु सेना (IAF) की तरह ही भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शक्ति भी पानी में अपनी मजबूत ताकत दिखा सकती है. पनडुब्बी पानी के भीतर छिपकर दुश्मनों पर घातक हमला कर सकती है. यही वजह है कि हर देश अपने नौसेना बेड़े में पनडुब्बियों की संख्या बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

भारतीय नौसेना की पनडुब्बियां पाकिस्तानी नौसेना को समुद्र में एंट्री करने से पहले ही रोकने में सक्षम है. अगर जंग की स्थिति में भारतीय सेना ऐसा करती है तो इससे महत्वपूर्ण समय में युद्ध सामग्री, हथियार और अन्य सामानों की आपूर्ति पाकिस्तान को नहीं हो पाएगी. इससे पाकिस्तानी सरकार और सेना की क्षमता गंभीर रूप से बाधित होगी.

भारतीय नौसेना के पास रूसी, जर्मन और फ्रांसीसी डिजाइन वाली विभिन्न प्रकार की पनडुब्बियों के संचालन का अनुभव है. शांति और युद्ध दोनों ही स्थिति में भारत नौसेना के बेहतर इस्तेमाल को समझता है. भारतीय नौसेना आधुनिक युद्ध में पनडुब्बियों की निर्णायक भूमिका को अच्छी तरह जानती है.

मध्य पूर्व में इजराइल, अमेरिका और ईरान के बीच चल रहे मौजूदा संघर्ष ने इस बात को और भी दुनिया का ध्यान दिलाया है कि जंग की स्थिति में किसी देश के लिए पनडुब्बियां कितनी महत्वपूर्ण हैं.

भारतीय नौसेना की पनडुब्बी क्षमता

भारतीय नौसेना अपने प्रभावशाली इतिहास के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है. 1999 में भारत ने 2030 तक 24 पनडुब्बियां बनाने का लक्ष्य रखा. इनमें से 6 परमाणु संचालित हमलावर पनडुब्बियां भी शामिल हैं.

इस योजना के शुरू हुए 30 साल हो चुके हैं. भले ही भारत की यह योजना अपने अंतिम चरण में है, लेकिन यह अब भी लक्ष्य से बहुत पीछे है. अब तक केवल 6 स्कॉर्पीन-श्रेणी की पनडुब्बियां (प्रोजेक्ट-75) बनाई गई हैं, जिनमें से आखिरी, INS वागशीर इस साल जनवरी में कमीशन हुई.

30 साल पहले शुरू हुई इस योजना का मकसद

इस योजना का मकसद स्वदेशी जहाज निर्माण को बढ़ावा देना है. साथ ही इस योजना के जरिए आयात पर निर्भरता कम करना है. इस योजना के जरिए पनडुब्बियों को बनाने में पहले विदेशी तकनीक का उपयोग करना और फिर स्वदेशी विकास की योजना को आगे बढ़ाना था, ताकि भारतीय नौसेना को हिंद महासागर और उससे आगे मजबूत पनडुब्बी ताकत मिले.

हालांकि, धीमी खरीद, बजट की कमी और परिचालन चुनौतियों ने इस योजना को पूरी तरह से प्रभावित किया है.

‘नौसेना’ पनडुब्बी योजना वर्तमान समय में किस स्थिति में है?

आज भारतीय नौसेना के पास केवल 19 पनडुब्बियां हैं. इनमें 16 पारंपरिक, 2 परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां (SSBNs) और एक लीज पर ली गई परमाणु हमलावर पनडुब्बी है.

हालांकि, यह 24 पनडुब्बियों के लक्ष्य से अब भी कम है. भारत के पास ज्यादातर पारंपरिक पनडुब्बियां 30 साल पुरानी हैं और तीन परमाणु पनडुब्बियां पाकिस्तान और चीन की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए काफी नहीं हैं.

प्रोजेक्ट-75 इंडिया, जिसे P-75(I) के नाम से भी जाना जाता है. इसके तहत 6 नई पीढ़ी की पारंपरिक पनडुब्बियां बनानी हैं, जो एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम से लैस होंगी.

यह प्रोजेक्ट अभी अंतिम मूल्यांकन चरण में अटका हुआ है. मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) और जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) इस प्रोजेक्ट के लिए एकमात्र दावेदार हैं, क्योंकि लार्सन एंड टुब्रो (L&T) का प्रस्ताव नियमों के अनुरूप नहीं था.

समय पर इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी नहीं मिली, जिसके कारण 10 साल पहले इसकी अनुमानित लागत 43,000 करोड़ रुपये से बढ़कर अब 70,000 करोड़ रुपये हो गई है. यही वजह है कि इसे भारत का सबसे महंगा रक्षा सौदा बताया जा रहा है.

इस योजना के तहत बनाई जाने वाली AIP (एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन) पनडुब्बी, पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की तुलना में पानी के अंदर अधिक समय तक रह सकती हैं. यह सिस्टम पनडुब्बियों को कमसे-कम दो हफ्ते से ज्यादा समय तक पानी के भीतर रहने की क्षमता देता है, जो दूर-दराज के समुद्री ऑपरेशनों के लिए जरूरी है.

यह प्रोजेक्ट आगे क्यों नहीं बढ़ा?

रक्षा मंत्रालय ने जनवरी 2025 में इस प्रोजेक्ट के लिए कंपनियों को बोली लगाने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन इसके बाद कोई प्रगति नहीं दिखाई. L&T और स्पेन की नावांतिया कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को लेकर अपनी बोली खारिज होने पर सवाल उठाए हैं. नावांतिया कंपनी का कहना है कि उसका तीसरी पीढ़ी का AIP सिस्टम 2027 तक तैयार होगा.

प्रोजेक्ट की क्या चुनौतियां हैं?

P-75I की शुरुआत 2007 में हुई, लेकिन नौसेना की सख्त शर्तों के कारण कई वैश्विक निर्माताओं ने इसे अव्यवहारिक माना. फ्रांस, स्पेन और रूस जैसे देशों की कंपनियां या तो बाहर हो गईं या उनकी तकनीक शर्तों को पूरा नहीं कर सकीं.

प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं होने पर क्या आपात उपाय किए जा रहे हैं?

पनडुब्बियों की कमी को जल्दी पूरा करने के लिए नौसेना तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खरीद पर विचार कर रही है, जिनमें 60 फीसदी स्वदेशी तकनीक होगी. इसमें DRDO की तकनीक भी शामिल है.

इस सौदे को जुलाई 2023 में मंजूरी मिली थी और यह जल्द पूरा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट को लेकर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नौसेना को इन सभी प्रोजेक्ट्स पर एक साथ काम करना होगा, न कि एक-दूसरे के विकल्प के रूप में.

डिफेंस एक्सपर्ट का कहना है कि पुरानी पनडुब्बियां जल्द काम के लायक नहीं रहेंगी. नई पनडुब्बी बनाने में 7 से 9 साल लगते हैं. ऐसे में भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए, विदेशी कंपनियों को पूरी तकनीक और डिजाइन हस्तांतरित करना चाहिए.

समुद्र में पाकिस्तान और चीन से मिल रही चुनौती

पाकिस्तान अपनी समुद्री ताकत बढ़ा रहा है. अप्रैल में चीन ने पाकिस्तान को दूसरी हैंगोर-श्रेणी की पनडुब्बी दी, जो आधुनिक हथियारों और सेंसर से लैस है.

चीन और पाकिस्तान के बीच 5 अरब डॉलर का 8 पनडुब्बियों का सौदा हुआ है, जिससे पाकिस्तान अगले दशक में भारत से आगे निकल सकता है. चीन भी अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह विकसित कर रहा है और उसकी नौसेना तेजी से बढ़ रही है, जिसके पास 2035 तक 80 पनडुब्बियां होने की संभावना है.

ऐसे में साफ है कि भारतीय नौसेना को अपनी पनडुब्बी ताकत बढ़ाने के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे, वरना क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ सकता है.
 

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