भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला मई 2025 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरेंगे. अपने 14 दिन की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शुभांशु अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में ‘साइनोबैक्टीरिया’ पर प्रयोग करेंगे.
अगर यह प्रयोग सफल होता है तो अगले साल होने वाले ‘गगनयान’ मिशन के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इसकी मदद से अंतरिक्ष यात्रा के दौरान जीवन रक्षक प्रणाली विकसित करने में भारत को बड़ी सफलता मिलेगी.
शुभांशु शुक्ला जिस मिशन के तहत स्पेस स्टेशन जा रहे हैं, उसे इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेश (ISRO), नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी मिलकर अंजाम दे रही हैं.
दुनिया की ये तीन बड़ी स्पेस रिसर्च एजेंसी मिलकर “एक्सिओम मिशन- 4” (Ax-4) के तहत 4 अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस भेज रही है. इस मिशन की सफलता अंतरिक्ष में मानव उड़ान की यात्रा को प्रोत्साहित करने के साथ ही सुरक्षित बनाने के लिए काम करेगी.
अमेरिकी निजी स्पेस रिसर्च कंपनी ‘एक्सिओम स्पेस’ भविष्य में एक कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. अगर शुभांशु को स्पेस भेजे जाने वाला Ax-4 मिशन सफल होता है तो यह ‘एक्सिओम स्पेस’ की योजना के लिए बड़ी जीत होगी.
Ax-4 मिशन को नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा, जो अमेरिका के फ्लोरिडा में स्थित है. इस मिशन में चार एस्ट्रोनॉट्स ISS पर जाएंगे.
इस मिशन के दौरान प्रकाश संश्लेषक बैक्टीरिया की दो प्रजातियों “क्रोकोक्सीडियोप्सिस” और “साइनोबैक्टीरिया” पर रिसर्च किया जाएगा. प्रयोग का मकसद यह पता करना है कि इन बैक्टीरिया का माइक्रोग्रैविटी और स्पेसक्राफ्ट मिशन में इस्तेमाल करना संभव है या नहीं.
स्पेस स्टेशन पर जाने वाले सभी अंतरिक्ष यात्रियों को रिसर्च के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है. भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला स्पेस में “क्रोकोक्सीडियोप्सिस” और “साइनोबैक्टीरिया” की वृद्धि, बायोकेमिकल एक्टिविटी और उसकी कोशिकीय प्रतिक्रियाओं पर अध्ययन करेंगे.
साइनोबैक्टीरिया क्या है?
साइनोबैक्टीरिया प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन बनाने में सक्षम सूक्ष्म जलीय जीव है. इस बैक्टीरिया के परीक्षण का उद्देश्य कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल कर सांस लेने योग्य हवा उत्पन्न करने की क्षमता को परखना है.
यह रिसर्च ISS पर किए गए पूर्व प्रयोगों पर आधारित है. दरअसल, इस प्रयोग के जरिए यह जानने की कोशिश भी की जा रही है कि अगर स्पेस में इंसानी शरीर के DNA को नुकसान पहुंचता है तो इस साइनोबैक्टीरिया में उसकी मरम्मत करने की क्षमता है या नहीं है.
मिशन Ax-4 के दौरान ये भी पता लगाया जाएगा कि धरती और अंतरिक्ष में साइनोबैक्टीरिया की क्षमता एक जैसी होती है या अलग-अलग.
इस मिशन से भारत को क्या मदद मिलेगी?
इस मिशन की सफलता से लंबे समय के लिए भेजे जाने वाले स्पेस मिशन के दौरान आने वाली चुनौतियों के समाधान में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं यह मिशन 2026 में ISRO के इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने वाले ‘गगनयान मिशन’ के लिए भी बड़ी जीत होगी. इसकी मुख्य वजह ये हैं-
- कम से कम संसाधनों का इस्तेमाल करके अंतरिक्ष यात्रा के दौरान ऑक्सीजन का उत्पादन संभव होगा.
- अंतरिक्ष में सहायक जैव-विनिर्माण (बायो मैन्युफैक्चरिंग) की मदद से दवा बनाना संभव होगा.
- इस मिशन की सफलता से दूसरे ग्रहों पर भी जीवन संबंधी जानकारी हासिल करना संभव होगा.
इससे पहले NASA के ‘पॉवरसेल प्रोजेक्ट’ के जरिए भी स्पेस में ‘साइनोबैक्टीरिया’ के बिहेवियर को जानने की कोशिश की गई थी. इस कोशिश की दुनियाभर में तारीफ हुई थी.
भारत की यह कोशिश भी अंतरिक्ष में जीवविज्ञान को आगे बढ़ाने की स्वदेशी रणनीति का ही हिस्सा है. ‘साइनोबैक्टीरिया’ अध्ययन के साथ ही साथ भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुक्ला अंतरिक्ष यात्रा के दौरान छह अन्य प्रयोग भी करेंगे, जिनमें टार्डिग्रेड्स (जलीय जीव) और अंतरिक्ष कृषि पर अध्ययन भी शामिल है.
इस बीच, ISRO ‘गगनयान’ कार्यक्रम के तहत बेहद कम गुरुत्व में सूक्ष्मजीवों के व्यवहार को जानने के लिए मिट्टी के जीवाणु ‘स्पोरोसारसिना पेस्टुरी’ पर अलग से रिसर्च कर रहा है.
Ax-4 के सफल परिणामों से गगनयान और उससे आगे के स्पेस मिशन के लिए सेल्फ-रिलायंट लाइफ सपोर्ट सिस्टम (आत्मनिर्भर जीवन रक्षक प्रणाली) के डिजाइन में मदद मिल सकती है.
इतना ही नहीं अंतरिक्ष में बैक्टीरिया पर अध्ययन करना दवाओं के निर्माण के साथ ही साथ सूक्ष्मगुरुत्व में 3डी-प्रिंटिंग के जरिए अंगों के निर्माण की दिशा में पहला और बड़ा कदम होगा.