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भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा, लेकिन यह उपलब्धि फीकी क्यों है?

वर्ल्ड इक्वेलिटी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत के एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 40 प्रतिशत संपत्ति है और आर्थिक रूप से निचले तबके के 50 प्रतिशत लोगों के पास महज तीन प्रतिशत संपत्ति है

सबसे तेज रफ्तार से बढ़ती रहेगी इंडियन इकोनॉमी
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अपडेटेड 2 जून , 2025

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमानों के अनुसार भारत इस साल के अंत तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. लेकिन टॉप 5 में आने के बाद भी भारत को अभी विकसित देश बनने में वक्त लगेगा. भारत ने अभी जापान को पीछे छोड़ा है लेकिन शीर्ष 2 स्थानों पर काबिज देशों से वह काफी पीछे है और वही असली चुनौती है.

नीति आयोग के सीईओ बी.वी. आर. सुब्रमण्यम ने मई 2025 के आखिर में नीति आयोग की बैठक के बाद मीडिया को बताया कि भारत ने जापान को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चौथा स्थान हासिल कर लिया है. उन्होंने कहा, “भारत अब ढाई से 3 साल में जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर आने की तैयारी में है. आइएमएफ के आंकड़ों के अनुसार भारत अब चार ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था बन जाएगा. यह सिर्फ अमेरिका चीन और जर्मनी से पीछे है. ” 

आईएमएफ ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बताया है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आईएमएफ ने जो अनुमान जाहिर किए हैं वे डॉलर में हैं और डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर-मजबूत से मुमकिन है कि साल के अंत तक आने वाले अंतिम आंकड़ों पर भी इसका असर पड़े.

बहरहाल, चौथे या पांचवें स्थान से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि भारत और जापान की अर्थव्यवस्था के बीच फर्क दशमलव के अंकों में है. फर्क पड़ता है उन बातों से जो वास्तविक रूप से अर्थव्यवस्था के टॉप 5 में होने की निशानी होती हैं. विश्व की टॉप 5 की अर्थव्यव्स्थाओं में भारत और चीन ही सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले हैं और चीन इस वक्त 19.23 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है. इससे ऊपर अमेरिका है जिसकी अर्थव्यवस्था का आकार 30.50 ट्रिलियन डॉलर है.

भारत की प्रति व्यक्ति आय 2880 डॉलर यानी ढाई लाख रु. से कुछ कम है. दूसरी तरफ जापान की आबादी करीब 12 करोड़ (2023 ) और प्रति व्यक्ति आय 33.90 हजार डॉलर अर्थात 29 लाख रुपए से अधिक है. प्रति व्यक्ति आय़ के मामले में अमेरिका (89.11 हजार डॉलर), चीन (13.69 हजार डॉलर) और जर्मनी (55.19 हजार डॉलर) भारत से काफी आगे हैं. 

वर्ल्ड इक्वेलिटी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत के 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 40 प्रतिशत संपत्ति है और आर्थिक रूप से निचले तबके के 50 प्रतिशत लोगों के पास महज 3 प्रतिशत संपत्ति है. संपत्ति का लोगों की आय से सीधा संबंध है. ये अंतर नागरिकों की जीवनशैली से लेकर आर्थिक हैसियत तक तय करता है. इस मोर्चे पर भारत काफी पीछे दिखता है. अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि जीडीपी बराबर हो जाने से ये नहीं हो जाता कि सभी क्षेत्रों में बराबरी हो गई. औसतन एक भारतीय ज्यादा गरीब है एक जापानी के मुकाबले. जापान हेल्थ, एजुकेशन, अनुसंधान में हमसे बहुत आगे है. जनकल्याण के मामले में भारत अनेक देशों से काफी पीछे है. जापान में भारत के मुकाबले बेरोजगारी काफी कम है.

लेकिन पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम भारत की प्रगति से संतुष्ट नजर आते हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा, “2013-14 के 1438 डॉलर के मुकाबले भारत की प्रति व्यक्ति आय 2024 में दोगुनी होकर 2880 डॉलर सालाना हो गई है. 2003 में प्रति व्यक्ति आय महज 543 डॉलर थी. यूपीए सरकार के दौर में प्रति व्यक्ति आय 2.64 गुना बढ़ी थी जबकि एनडीए के कार्यकाल के दौरान में इसके बढ़ने की रफ्तार दोगुनी से थोड़ी कम रही.” चिदंबरम भारत के आर्थिक हालात से वाकिफ हैं और जानते हैं कि अर्थव्यवस्था किस रफ्तार से बढ़ेगी. लेकिन ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां भारत बहुत पीछे है.

जापान दुनिया के सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले देशों में 1991 से 34 साल तक पहले नंबर पर रहा और हाल ही में जर्मनी से पिछड़कर दूसरे स्थान पर आया है. कर्ज देने वाले देशों की सूची में भारत का नामोनिशान नहीं है. इस वक्त विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का आकलन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ वार के असर को समेटे बगैर हुआ है. 2025 के अंत तक ट्रंप टैरिफ का असर विभिन्न देशों पर आंकड़ों के रूप में हमारे सामने आएगा और यह किस स्तर का होगा इसका अनुमान अभी लगाया नहीं जा सकता क्योंकि खुद अमेरिका की अर्थव्यवस्था कथित तौर पर मंदी से गुजर रही है. और अगर चीन से मैन्युफैक्चरिंग शिफ्ट होकर भारत आती है तो भारत की संभावनाएं थोड़ी बेहतर हो सकती हैं क्योंकि तब निर्यात भी बढ़ सकता है.

लेकिन असली चुनौती भारत के लिए दुनिया की शीर्ष 2 अर्थव्यवस्थाओं से है. हम अमेरिका और चीन से बहुत ज्यादा पीछे हैं. हो सकता है अगले दो-तीन साल में भारत जर्मनी को भी पीछे छोड़ दे लेकिन इसके बाद का सफर काफी मुश्किल है. इसके लिए भारत को भगीरथ प्रयासों की जरूरत होगी जो रोजगार, निर्यात, मैन्युफैक्चरिंग के रूप में व्यापक तौर पर दिखने चाहिए.

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