scorecardresearch

गगनयान-1 से अंतरिक्ष में मक्खियां क्यों भेज रहा भारत; कुत्ता, बंदर समेत 5 जीवों को स्पेस भेजने की कहानी

गगनयान मिशन के तहत मक्खियों के स्पेस भेजे जाने से पहले भी कई जीव अंतरिक्ष की यात्रा कर वापस धरती पर लौट चुके हैं

भारत अंतरिक्ष में मक्खियों को भेजेगा (सांकेतिक तस्वीर)
भारत अंतरिक्ष में मक्खियों को भेजेगा (सांकेतिक तस्वीर)
अपडेटेड 11 फ़रवरी , 2025

भारत जल्द ही पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान गगनयान-1 के जरिए कुछ मक्खियों को अंतरिक्ष पर भेजने की तैयारी कर रहा है. इस मिशन को अंजाम देने के लिए मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च यानी TIFR के साइंटिस्ट दिन-रात काम कर रहे हैं.

हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी इंसान के अलावा दूसरे जीवों को अंतरिक्ष भेजने की तैयारी हो रही है. 67 साल पहले 1957 में सोवियत संघ ने अपने स्पेश मिशन स्पूतनिक- 2 के जरिए लाइका नाम की एक कुतिया को अंतरिक्ष भेजा था.

इसके बाद बंदर, चूहा और चिंपैंजी जैसे जीवों को भी वहां भेजा गया. इन जिंदा जीवों के स्पेस में भेजे जाने की दिलचस्प कहानी जानते हैं…

कितनी मक्खियों को और क्यों अंतरिक्ष में भेज रहा है भारत?

भारतीय साइंटिस्ट जिन मक्खियों को अंतरिक्ष पर भेजने की तैयारी कर रहे हैं, उनका नाम वैज्ञानिक नाम ‘ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर’ है. ये आमतौर पर फल और सब्जियों पर बैठने वाली मक्खियां हैं.

असल में मक्खियों में 77 फीसदी जीन्स ऐसे होते हैं, जो इंसानों की बीमारियों की वजह बनते हैं. मक्खियों का एक्सक्रीटरी सिस्टम यानी उत्सर्जन तंत्र बहुत हद तक इंसानों जैसा होता है. अगर इन मक्खियों को अंतरिक्ष में रहने पर स्टोन की दिक्कत आती है, तो इससे एस्ट्रोनॉट्स को होने वाले किडनी स्टोन (पथरी) की बीमारी की स्टडी करने में आसानी होगी.

मक्खियों पर ये भी रिसर्च की जाएगी कि वे अंतरिक्ष में हो रहे जैविक परिवर्तनों और तनावों से खुद को किस तरह बचाने की कोशिश करती हैं. इस मिशन से जुड़े उल्लास कोल्थुर नाम के एक साइंटिस्ट बताते हैं, “मक्खियों पर होने वाली इस रिसर्च से अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य, भोजन और दवा से जुड़ी नई संभावनाओं के बारे में पता चलेगा.”

वैज्ञानिकों का कहना है कि गगनयान मिशन की पहली उड़ान अगले साल भेजी जाएगी, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष यान से पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजकर उन्हें सुरक्षित वापस लाने की कोशिश होगी.

मक्खियों से पहले दूसरे जीवों को अंतरिक्ष में भेजे जाने का किस्सा

1957: ‘लाइका’ नाम की कुतिया की अंतरिक्ष यात्रा

साल 1957 की बात है. अक्टूबर की 4 तारीख को अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर के दफ्तर में गहमागहमी थी. प्रेस रूम में पत्रकार अपने तीखे सवालों के साथ तैयार खड़े थे. टीवी पर हेडलाइंस चल रही थीं.

सोवियत रूस से हार गया अमेरिका. दरअसल, स्पेस रेस में सोवियत रूस ने पहली बाजी मार ली थी. स्पूतनिक-1 नाम से दुनिया का पहला आर्टिफिशियल सैटेलाइट लॉन्च हो चुका था. रूसी भाषा के स्पूतनिक शब्द का मतलब होता है 'हमसफर'.  

इस सफल लॉन्चिंग के 30 दिन के भीतर अमेरिका ने स्पूतनिक- 2 नाम से एक और सैटेलाइट लॉन्च कर दिया. इस बार फर्क सिर्फ इतना था कि इस सैटेलाइट के साथ लाइका नाम की कुतिया को भी स्पेस भेजा जा रहा था.

स्पेस मिशन का इंसानी शरीर पर क्या प्रभाव होगा, ये जानने के लिए 3 साल की लाइका को चुना गया, जिसका 5 किलो वजन था. सफेद और भूरे रंग की लाइका ने भौंकना शुरू किया तो इसका नाम लाइका रखा गया था. हालांकि, 10 नवंबर को सैटेलाइट की बैट्री खत्म होने की वजह से उसे वापस धरती पर नहीं लाया जा सका और अंतरिक्ष में ही उसकी मौत हो गई.

1961: जब चिम्पैंजी को भेजा गया था अंतरिक्ष

31 जनवरी 1961 को हैम नाम के एक चिम्पैंजी को स्पेस में भेजा गया था. चिम्पैंजी ऐसी प्रजाति है, जिसे इंसानों के बाद सबसे बुद्धिमान माना जाता है. हैम पहला चिम्पैंजी था, जिसने अंतरिक्ष यात्रा की थी. इस चिम्पैंजी के बाद ही इंसान का अंतरिक्ष का सफर शुरू हुआ था.

चिंपैंजी को अंतरिक्ष में यह जांचने के लिए भेजा गया था कि वहां इंसान के शरीर पर किस तरह के असर हो सकते हैं. हैम का जन्म 1957 में हुआ था और इसके बाद अमेरिकी एयरफोर्स बेस पर उसकी ट्रेनिंग हुई.

पहले उस चिम्पैंजी का नाम #65 (हैशटैग 65) और चैंग था. अंतरिक्ष से धरती पर लौटने के बाद उसे हैम नाम दिया गया. 18 महीने की ट्रेनिंग के बाद करीब साढ़े तीन साल के हैम को कंटेनर में बांधकर जनवरी 1961 में अंतरिक्ष के लिए रवाना किया गया.

हैम नामक चिम्पैंजी अंतरिक्ष यात्रा पर जाने वाला दुनिया का पहला जानवर था
हैम नामक चिम्पैंजी अंतरिक्ष यात्रा पर जाने वाला दुनिया का पहला जानवर था

उड़ान के दौरान दबाव के कारण हैम के कैप्सूल को नुकसान पहुंचा था, लेकिन हैम के स्पेस सूट ने उसे बचा लिया और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा. धरती पर लौटते वक्त हैम का कैप्सूल 130 किमी की दूरी पर अटलांटिक महासागर में जा गिरा.

उसे बचाने के लिए कुछ ही घंटे में एक जहाज मौके पर पहुंचा. हैरानी की बात ये है कि इतने देर बाद भी वह जिंदा था. फिर उसे कैप्सूल से निकाला गया. उस वक्त उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी, जिसे फोटोग्राफर ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। कुछ लोग इसे खुशी की तो कुछ चिंता और भय की मुस्कान बताते हैं.

अंतरिक्ष से वापसी के बाद हैम को 1963 में वॉशिंगटन के नेशनल जू में रखा गया. इसके बाद नॉर्थ कैरोलिना के चिड़ियाघर भेज दिया. 19 जनवरी 1983 को हैम की मौत हो गई. उसे अंतरिक्ष में भेजना एक ऐसा कामयाब प्रयोग था, जिसने अंतरिक्ष में इंसान के जाने के रास्ते खोल दिए.

1968: जब अंतरिक्ष पर भेजा गया कछुआ

सोवियत संघ ने ‘जोंड’ नाम से एक यान को स्पेस में भेजा था. 5 सितंबर 1968 को इस यान के जरिए एक कछुए को अंतरिक्ष भेजा गया था. बाद में वैज्ञानिकों ने बताया कि कछुए के शरीर का करीब 10 फीसद भार कम हो गया था. हालांकि जब कछुए की धरती पर वापसी हुई तो पता चला कि अब उसकी भूख पहले से बेहतर हो गई थी.

जांच में यह भी पता चला कि घर पर रहने वाले ज्यादातर कछुओं की तरह अंतरिक्ष से लौटकर आए कछुए की भी जिंदगी भी सामान्य थी. हालांकि, कछुए के लीवर में कुछ समस्याएं जरूर देखने को मिली थीं.

1972: चूहों के अंतरिक्ष में घूमने की यात्रा

साल 1972 में अंतरिक्ष यात्री रोनाल्ड इवांस के साथ पांच चूहों ने चंद्रमा की यात्रा की थी. इसके बाद साल 2014 में नासा ने भी आरआर-1 मिशन के तहत चूहों को अंतरिक्ष में भेजा था. इस मिशन में चूहों के व्यवहार को रिकॉर्ड किया गया था.

चूहों की न्यूरोकाग्निटिव (सोचने और फैसले लेने की क्षमता) प्रक्रिया मानव के समान होती है. जीवित जीवों पर माइक्रोग्रेविटी के प्रभाव को अच्छी तरह समझने के लिए ही चूहों को अंतरिक्ष भेजा जाता रहा है. वेबसाइट 'स्पेस डॉट कॉम' के मुताबिक, 2014 से पहले भी अंतरिक्ष में चूहे भेजे जाते रहे हैं, लेकिन इस बार भेजे गए चूहे वहां 30 से 90 दिनों तक रहे. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आईएसएस) की मुख्य वैज्ञानिक जूली रॉबिंसन ने बताया था, “इससे अंतरिक्ष मिशनों पर लंबी अवधि के लिए जानवरों के अध्ययन का समय मिलेगा. अब तक लगभग 35 अध्ययनों में चूहों को अंतरिक्ष भेजा जा चुका है.”  

वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में पाया था कि अंतरिक्ष में युवा चूहे जमीन पर अपने साथी चूहों की तुलना में अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय थे. युवा समूह के चूहों ने एक नया व्यवहार भी दिखाना शुरू कर दिया, जिसे वैज्ञानिक "रेस-ट्रैकिंग" कहते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि वो पिंजरे के चारों ओर चक्कर लगाने लगते थे. सभी चूहे समूह में एक साथ इस तरह करते थे. साथ ही इसके अलावा जो आम व्यवहार चूहों का धरती पर रहता है, वैसा अंतरिक्ष में भी देखने को मिला.

1976: स्पेस में मछली भेज चुका है USSR

साल 1976 में सोवियत यूनियन ने स्पेस में एक जेब्राफिश भेजी थी. इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने स्पेस में रहने के बाद मछली के व्यवहार में बदलाव पाया था. इसके बाद 2012 में अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने भी मूल रूप से जापान में पाई जाने वाली एक मछली अंतरिक्ष में भेजी थी. नासा ने माइक्रोग्रैविटी का समुद्री जीवों पर क्या असर होता है, ये जानने के लिए ऐसा किया था.

अंतरिक्ष पर बंदर और कुतिया के अलावा ये जीव भी भेजे गए हैं
अंतरिक्ष पर बंदर और कुतिया के अलावा ये जीव भी भेजे गए हैं

अब 2025 में चीन भी अपने स्पेस मिशन के तहत अंतरिक्ष में जेब्रा फिश को भेजने की तैयारी कर रहा है. इनके जरिए चीन वैज्ञानिक स्पेस के माहौल में वर्टीब्रेड्स प्राणी (जिनमें रीढ़ की हड्डी और सिर का कंकाल होता है) की मांसपेशियों और कंकाल विकास की जानकारी जुटाकर उस पर रिसर्च करना चाहते हैं. 

Advertisement
Advertisement