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गिनी और माली के बाद भारत में 'ज़ीरो-फूड' बच्चों की दर सबसे अधिक! क्यों है ये चिंता की बात?

‘जीरो फूड’ यानी रोजाना की जरूरी कैलोरी के मुताबिक भोजन न मिलना. भारत अपनी जनसंख्या में ऐसे बच्चों की हिस्सेदारी के मामले में बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे है

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
अपडेटेड 8 मार्च , 2024

अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन में ही प्रकाशित होने वाले एक ओपन एक्सेस जर्नल 'जामा नेटवर्क ओपन' ने 12 फरवरी को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें बताया गया था कि पश्चिम अफ़्रीकी देश गिनी और माली के बाद सबसे ज्यादा 'जीरो फूड' बच्चों की दर भारत में है. रिपोर्ट में केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 का हवाला भी दिया गया है.

यह रिपोर्ट 2010 और 2021 के बीच अलग-अलग समय पर 92 निम्न-आय और मध्यम-आय वाले देशों में हुए हेल्थ सर्वे का इस्तेमाल करके तैयार की गई है. इस रिपोर्ट के लिए पॉपुलेशन हेल्थ रिसर्चर एस.वी. सुब्रमण्यम ने रिसर्च की है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय से सुब्रमण्यम और उनके सहयोगियों ओमर कार्लसन और रॉकली किम ने इस पीयर रिव्यूड जर्नल जामा नेटवर्क ओपन (JAMA Network Open) में अपना काम प्रकाशित किया है. सबसे पहले यह समझ लेते हैं कि आखिर 'जीरो-फूड' का कॉन्सेप्ट क्या है?

जैसा कि नाम से जाहिर है, 'जीरो-फूड' बच्चों का मतलब उन बच्चों से है जिन्होंने पिछले 24 घंटों में जरूरी कैलोरी के हिसाब से जरूरी पौष्टिक भोजन न किया हो. इसका मतलब है, वैसा खाना जिससे आपको उतनी कैलोरी नहीं मिलती जितनी मिलनी चाहिए. इसका सीधा असर उन बच्चों के पोषण और उनकी ग्रोथ पर पड़ता है. जीरो-फूड वाले बच्चों की उम्र की बात करें तो इसमें छह महीने से लेकर 24 महीने की उम्र के शिशु शामिल हैं जिन्हें 24 घंटे में दूध या कोई सॉलिड या सेमी-सॉलिड भोजन नहीं मिला है.

जामा नेटवर्क ओपन की इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में जीरो-फूड बच्चों की संख्या 19.3% है, जो गिनी के 21.8% और माली के 20.5% के बाद सबसे अधिक है. यह जानकर और भी ताज्जुब होता है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ दी कांगो, नाइजीरिया और इथियोपिया जैसे तथाकथित गरीब देशों तक में ये आंकड़े भारत से बेहतर हैं. अगर प्रतिशत की बात करें तो जीरो फूड बच्चों की संख्या बांग्लादेश में 5.6%, पाकिस्तान में 9.2%, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ दी कांगो में 7.4%, नाइजीरिया में 8.8% और इथियोपिया में 14.8% है.

इस रिपोर्ट से एक और चौंकाने वाला खुलासा यह सामने आया है कि दुनियाभर में सबसे ज्यादा जीरो फूड बच्चों की संख्या दक्षिण एशिया में है, करीब 80 लाख, और इसमें से 67 लाख बच्चे केवल भारत में हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 92 देशों में छह महीने से कम उम्र के 99% से अधिक जीरो-फूड वाले शिशुओं को स्तनपान कराया गया था. यह दिखाता है कि लगभग सभी बच्चों को 24 घंटे की अवधि के दौरान भी कुछ कैलोरी मिली थी, जिस दौरान वे भोजन से महरूम थे. असल समस्या छह महीने या उससे बड़े शिशुओं के साथ आती है क्योंकि इसके बाद स्तनपान भी बच्चों को जरूरी पोषण नहीं दे पाता. छह महीने के बाद बच्चों को स्तनपान के साथ-साथ खाने के माध्यम से जरूरी प्रोटीन, एनर्जी, विटामिन और मिनरल्स देने की जरूरत होती है.

सुब्रमण्यन और उनके साथियों ने अपने पेपर में बताया है, "आंकड़े से यह जाहिर होता है कि इस मुद्दे के लिए तुरंत ही कोई कदम उठाने की जरूरत है." इनका यह भी कहना है कि जीरो-फूड की अधिकता के सबसे मुख्य कारणों, बच्चों को ढंग से पोषित करने में आने वाली बाधाओं और इसके लिए कौन से सामाजिक-आर्थिक कारण जिम्मेदार हैं, इन्हें जानने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है.

2019 से 2021 के बीच हुए हेल्थ सर्वे डेटा की मदद से ही 2023 में इस डेटा का फर्स्ट एस्टीमेट यानी इस रिसर्च के शुरुआती अनुमान साझा किए गए थे. इस रिपोर्ट में यह बताया गया था कि भारत में हर 10 नवजात शिशुओं में से दो को दिनभर में कुछ भी कैलोरी युक्त भोजन नहीं मिलने का जोखिम बना रहता है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जीरो-फूड बच्चों की संख्या, जो 2016 में 17.2 प्रतिशत थी, वो 2021 में बढ़कर 17.8 प्रतिशत तक पहुंच गई. रिसर्चर सुब्रमण्यन के मुताबिक ये आंकड़े गंभीर 'फूड डेप्रिवेशन' यानी भोजन के अभाव की ओर इशारा करते हैं.

इस रिसर्च के लिए भारत में 59 लाख बच्चों का सर्वे किया गया था जिसमें जीरो-फूड बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में - करीब 27.4 प्रतिशत थी. इसके बाद छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान और असम का नंबर आता है जहां इनकी संख्या क्रमशः 24.6%, 21%, 19.8% और 19.4% है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के कुल 20 राज्यों में जीरो फूड बच्चों की संख्या कम हुई है जिनमें बंगाल भी शामिल है. यहां जीरो फूड बच्चों की संख्या 2016 में 12.1% थी जो 2021 में घटकर 7.5 प्रतिशत पर आ गई है. सबसे शानदार गिरावट गोवा में देखी गई जहां यह संख्या 2016 में 18.9 प्रतिशत से 2021 में 5.1 प्रतिशत पर आ गई.

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