देश भर में हजारों छात्र जब हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान आईआईटी-जेईई की तैयारी के लिए जान खपाते हैं तो उनका मकसद महज अच्छी शिक्षा हासिल करना नहीं होता बल्कि उसमें बेहतरीन प्लेसमेंट का सपना भी नुमाया रहता है.
लेकिन क्या हो जब देश के उत्कृष्ट संस्थानों में पहुंचकर भी प्लेसमेंट हाथ न लगे! आईआईटी बॉम्बे से एक ऐसी ही रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बताया गया है कि वर्तमान सत्र के करीब 36 फीसद छात्रों का प्लेसमेंट अब तक नहीं हो पाया है.
रिपोर्ट सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर बेरोजगारी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. चिंताएं जताई जा रही हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 2000 छात्रों ने प्लेसमेंट के लिए खुद को रजिस्टर्ड किया था लेकिन उनमें से 712 छात्रों (करीब 36 फीसद) को अभी भी कंपनियों के बुलावे का इंतजार है.
पिछले साल यानी 2023 में भी करीब 33 फीसद छात्र का प्लेसमेंट नहीं हो पाया था. उस साल 2209 छात्रों ने प्लेसमेंट के लिए अपना नाम दिया था लेकिन उनमें से 1485 छात्रों को ही नौकरी मिली.
आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र और ग्लोबल आईआईटी अलुमनाई सपोर्ट ग्रुप के संस्थापक धीरज सिंह के मुताबिक प्लेसमेंट को लेकर छात्रों की मौजूदा चिंता तब सामने आई है जब परेशान छात्रों ने उनके सामने अपनी शिकायतें रखीं.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सिंह कहते हैं, "कई छात्र अपने भविष्य को लेकर इसलिए चिंतित हैं क्योंकि कोर्स लगभग पूरा कर लेने के बावजूद उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली." छात्रों की चिंताओं पर ध्यान देने के बाद सिंह ने संस्थान की वेबसाइट पर उपलब्ध ऑनलाइन जानकारी, प्लेसमेंट रिपोर्ट, दीक्षांत समारोह का ब्योरा और एनआईआरएफ के साथ संस्थान द्वारा साझा किए गए डेटा को खंगाला और उसे नतीजों के रूप में पेश किया.
सिंह बताते हैं, "उच्च शिक्षा के लिए प्लेसमेंट ड्राइव छोड़ने वाले छात्रों की संख्या निकाल दें तो ग्रेजुएट होने वाले छात्रों और नौकरी पाने वाले छात्रों की संख्या के आधार पर की गई गणना से पता चलता है कि पिछले साल करीब 33 प्रतिशत छात्रों को नौकरी नहीं मिली और इस साल करीब 36 फीसदी छात्रों को अभी तक नौकरी नहीं मिली है." यहां सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि छात्रों को प्लेसमेंट के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वैश्विक आर्थिक मंदी वो प्रमुख वजह है जिसके चलते कंपनियां प्लेसमेंट ड्राइव में हिस्सा लेने से बच रही हैं. इसी की वजह से कई कंपनियां हाई पैकेज ऑफर देने में झिझक रही हैं. एक और मुख्य कारण ये है कि इस बार घरेलू कंपनियां प्लेसमेंट के लिए ज्यादा संख्या में पहुंची जबकि पहले अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या घरेलू कंपनियों से अधिक रहती थी.
मौजूदा समय में नौकरी की किल्लत कितनी है इसको इस बात से भी समझा जा सकता है कि आईआईटी बॉम्बे के सबसे डिमांडिंग कोर्सेज के रूप में प्रसिद्ध कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग ब्रांच के छात्रों का पूरा प्लेसमेंट नहीं हो पाया. अधिकारियों के मुताबिक, आमतौर पर पहले कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग ब्रांच के छात्रों का 100 फीसदी प्लेसमेंट हो जाता था. लेकिन इस साल यह अपने लक्ष्य तक पहुंचने में नाकाम रहा है.
हालांकि आईआईटी बॉम्बे के डायरेक्टर प्रोफेसर सुभासिस चौधरी इन आंकड़ों से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते. इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से उन्होंने कहा, "डेटा की अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की जा सकती है लेकिन प्लेसमेंट प्रक्रिया अभी भी जारी है." प्रो. चौधरी के मुताबिक, प्लेसमेंट का दूसरा चरण जून के अंत तक जारी रहेगा और अभी भी करीब 40 कंपनियों को परिसर का दौरा करना है. बता दें कि प्लेसमेंट का पहला चरण दिसंबर और फरवरी के बाद शुरू हुआ था.
लेकिन क्या सिर्फ आईआईटी बॉम्बे का ही हाल ऐसा है? जवाब है नहीं. देश के और भी टॉप संस्थानों की हालत मौजूदा दौर में कमोबेश ऐसी ही है. इसी साल फरवरी की बात है. प्रतिष्ठित संस्थान बिट्स पिलानी के अलुमनाई रिलेशंस के डीन आर्य कुमार का एक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. इसमें उन्होंने संस्थान के पूर्व छात्रों से इस साल के छात्रों के लिए नौकरी ढूंढ़ने में मदद की गुजारिश की थी.
इससे ठीक एक महीने पहले जनवरी 2024 में देश के प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूलों में से एक आईआईएम लखनऊ ने भी ऐसा ही रुख अपनाया था. संस्थान ने अपने 2011 के अलुमनाई नेटवर्क से मौजूदा बैच के 72 छात्रों की नौकरी सुनिश्चित करने के लिए अनुरोध किया था. ताकि संस्थान की 100 फीसद प्लेसमेंट क्षमता बनी रहे.
यहां अब यह सवाल भी बड़ा अहम हो जाता है कि जब देश के टॉप शैक्षणिक संस्थानों में रोजगार को लेकर ऐसी हालत है तो पूरे देश में बेरोजगारी की स्थिति कैसी है? 26 मार्च को इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट एंड इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन यानी आईएलओ ने भारत रोजगार रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में नौकरी ढूंढ़ना बहुत मुश्किल है. खासकर उन लोगों के लिए जो ग्रेजुएट हैं.
रिपोर्ट बताती है कि भारत में ग्रेजुएट डिग्री वाले युवाओं में बेरोजगारी दर 29.1 फीसद है. जबकि निरक्षर लोगों में यह 3.4 फीसद है. यानी अगर आप ग्रेजुएट हैं तो आपके बेरोजगार रहने की संभावना 9 गुना बढ़ जाती है. युवाओं में बेरोजारी का आलम इस आंकड़े से भी समझा जा सकता है कि साल 2022 में कुल बेरोजगार आबादी में 83 फीसद युवा 15 से 29 साल के बीच थे.
किसी व्यक्ति द्वारा सक्रियता से रोजगार की तलाश किये जाने के बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो यह अवस्था बेरोजगारी कहलाती है. बेरोजगारी को आमतौर पर बेरोजगारी दर के रूप में मापा जाता है. बेरोजगारी दर से आशय है - श्रम बल का वो प्रतिशत जो रोजगारविहीन है.