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कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट, भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होने की कितनी उम्मीद?

भारत में इसी साल मार्च में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की कटौती के बाद से इनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 25 सितंबर , 2024

बीते दिनों लेबनान में पेजर बम विस्फोट और वॉकी-टॉकी ब्लास्ट की लगातार घटनाएं सामने आई थीं. कथित तौर पर ये इजरायल का अपने विरोधी समूह हिज्बुल्लाह के खिलाफ एक हमला था, जिसकी वजह से पश्चिम एशिया में तनाव लगातार बढ़ा है. इसका एक नतीजा ये भी हुआ कि कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों में तेजी से गिरावट हुई. एक दफा तो ये गिरकर 70 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई. 10 सितंबर को ये कीमतें 69 डॉलर प्रति बैरल थीं, जो पिछले तीन सालों में सबसे कम थीं.

अमूमन ये देखने को मिलता है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होता है तो सरकारें पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाने में जरा भी देर नहीं करतीं. लेकिन जब मूल्य गिरते हैं तो शायद ही कभी उस अनुपात में कमी की जाती है. भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक देश है, और उम्मीद की जा रही है कि वैश्विक बाजार में कीमतों में गिरावट से यहां सकारात्मक असर पड़ेगा. हालांकि, उपभोक्ताओं को असल फायदा तभी मिलेगा जब केंद्र और राज्य सरकारें ईंधन पर करों में कटौती करेंगी. अब सवाल है कि क्या वे ऐसा करेंगी?

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट 2023 की शुरुआत में पूर्वानुमानों के बिल्कुल उलट रही है. ज्यादातर जानकारों ने कहा था कि पूरे साल कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा रहेंगी. लेकिन गिरावट के बाद से ब्रेंट क्रूड तेल की कीमतें धीरे-धीरे बढ़ी हैं और 20 सितंबर को ये 74.69 डॉलर प्रति बैरल पर थीं. विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दर में 50 आधार अंकों की कटौती से तेल की कीमतों में और तेजी आने की उम्मीद है क्योंकि इससे डॉलर कमजोर होगा और डॉलर-बेस्ड वस्तुओं की कीमतें मजबूत होंगी. बैरल कच्चे तेल को मापने की एक इकाई है, और एक बैरल में करीब 159 लीटर आते हैं.

लेकिन यहां सवाल है कि कच्चे तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने के क्या कारण थे? बैंक ऑफ बड़ौदा के एक रिसर्च नोट के मुताबिक, इसके पीछे कई कारक थे. पहला तो यही कि ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) ने 2024 और 2025 में तेल की मांग के अपने पूर्वानुमान में कटौती करने का फैसला लिया. उसने अपने पूर्वानुमान को 21.10 लाख बैरल से घटाकर 20.30 लाख बैरल प्रतिदिन कर लिया. हालांकि, कटौती की यह मात्रा उतनी बड़ी नहीं है, लेकिन कीमतों के लिहाज इसका असर बहुत ज्यादा था.

दूसरा, कच्चे तेल की वैश्विक मांग में गिरावट आई है. इसे आंशिक रूप से विकसित देशों की ग्रोथ रेट से जोड़ा जा सकता है. बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, "हालांकि कोई भी मंदी या स्लोडाउन की बात नहीं कर रहा है, विकसित देशों में पूर्वानुमान सबसे 'स्थिर' हैं." दरों में कटौती से पहले ही मंदी की आशंकाएं थीं. यही वजह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक को ब्याज दर कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यहां मंदी का मतलब है कि तेल की मांग में कमी आएगी.

तीसरा कारक चीन है. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता होने के नाते चीन से उम्मीद से कम व्यापार के आंकड़ों ने आर्थिक स्थिरता की चिंताएं बढ़ा दी हैं. इस एशियाई दिग्गज की आर्थिक दिक्कतें जारी हैं क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन लगातार चौथे महीने सिकुड़ा रहा. पिछले एक साल के दौरान उम्मीद जगी थी कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और रियल एस्टेट क्षेत्र मंदी से बाहर निकलेगा. लेकिन ऐसा परिदृश्य अब दूर की कौड़ी लगता है और बहुराष्ट्रीय कंपनियां धीरे-धीरे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से पीछे हट रही हैं.

चीन ने साल 2023 में 5.2 फीसद की आर्थिक वृद्धि दर दर्ज की थी, लेकिन विश्व बैंक का अनुमान है कि 2024 में वो केवल 4.8 फीसद ही छू पाएगी. धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था का परिणाम है तेल आयात में कटौती. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई में अमेरिकी डॉलर के हिसाब से निर्यात में एक साल पहले की तुलना में केवल सात फीसद की बढ़ोत्तरी हुई, जबकि इसकी उम्मीद 9.7 फीसद की थी. यही नहीं, जून महीने में जहां 8.6 फीसद की बढ़ोत्तरी देखी गई थी, इसके मुकाबले जुलाई में ये कम रहा.

आर्थिक दिक्कतों के अलावा मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि चीन के तेल आयात में कटौती के पीछे की मुख्य वजहों में घरेलू मांग में कमी और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) की बिक्री में उछाल है. ईवी और अक्षय ऊर्जा पर कई देशों के ध्यान देने से भी तेल उत्पादों की मांग में बढ़ोत्तरी पर लगाम लगी है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के मुताबिक, 2023 में बिकने वाली पांच में से करीब एक कार इलेक्ट्रिक थी.

पिछले साल दुनिया भर में करीब 1.40 करोड़ नए ईवी रजिस्टर की गईं, जिससे सड़कों पर उनकी कुल संख्या चार करोड़ हो गई. 2023 में नए ईवी रजिस्ट्रेशन में से करीब 60 फीसद चीन में, 25 फीसद यूरोप में और 10 फीसद अमेरिका में थे. यह वैश्विक ईवी बिक्री का करीब 95 फीसद था. अमेरिका में 2023 में नए ईवी रजिस्ट्रेशन कुल 14 लाख थे, जो 2022 की तुलना में 40 फीसद अधिक है. वहीं, यूरोप में नए ईवी रजिस्ट्रेशन लगभग 32 लाख थे, जो 2022 की तुलना में करीब 20 फीसद ज्यादा थे. भारत में भी ईवी रजिस्ट्रेशन साल दर साल बढ़ा है, और इसकी कुल संख्या 80,000 हो गई है.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में चुनौतियों को दर्शाने वाले आंकड़ों ने भी तेल की कीमतों पर असर डाला है. अगस्त में देश में गैर-कृषि रोजगार में 1,42,000 की बढ़ोत्तरी हुई, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में पिछले सात महीनों से गिरावट देखी जा रही है. बहरहाल, यहां अब उस मूल सवाल पर लौटते हैं कि भारत के लिए क्रूड ऑयल की कम कीमतों का क्या मतलब है? सबनवीस कहते हैं, "वित्त वर्ष 2024 में 6.75 अरब रुपये के कुल आयात में से भारत का तेल बिल 1.80 अरब रुपये था. कीमतों में नरमी से इस आयात बिल को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. यह रुपये की स्थिरता के लिए भी एक कारक होना चाहिए."

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई मुद्रास्फीति (महंगाई) पर इसका प्रभाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि कच्चे तेल की कम कीमत का लाभ कैसे मिलता है. सबनवीस बताते हैं, "जिन उत्पादों की कीमतें बाजार द्वारा निर्धारित होती हैं, उनमें गिरावट आनी चाहिए. जैसे कि एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ). हालांकि, पेट्रोल पंपों पर ईंधन की कीमतें इस बात पर निर्भर करेंगी कि केंद्र और राज्य इसका लाभ देने का फैसला करते हैं या नहीं. सीपीआई महंगाई की दृष्टिकोण से, स्थिर कीमतें या नीचे की ओर बढ़ना ये दो संभावनाएं हैं, जो सरकार के एक्शन पर निर्भर करती हैं."

उन्होंने कहा कि अगर तेल की कीमतें 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहती हैं, तो डब्ल्यूपीआई (थोक मूल्य सूचकांक) महंगाई में गिरावट का रुख देखने को मिलेगा. तेल की कम कीमत का लाभ सरकार के ईंधन सब्सिडी बिल में भी आएगा क्योंकि रसोई गैस और उर्वरक दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. लेकिन ईंधन की कीमतों में कटौती की क्या संभावना है? इस सवाल पर एक्यूट रेटिंग्स एंड रिसर्च के कार्यकारी निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री सुमन चौधरी ने कहा, "चूंकि भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 87 फीसद आयात करता है, इसलिए कीमतों में कोई भी महत्वपूर्ण कमी हमेशा भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात होती है."

हालांकि, मार्च 2024 में दो रुपये प्रति लीटर की कटौती के बाद से खुदरा परिवहन ईंधन की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. दूसरी ओर, पेट्रोल और डीजल के लिए तेल बेचने वाली कंपनियों के मार्जिन में चालू तिमाही में अच्छी बढ़ोत्तरी देखी गई है. चौधरी ने कहा, "इसलिए, हमारा मानना ​​है कि अगर अगले एक या दो महीनों में अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल से नीचे बनी रहती हैं, तो ईंधन की कीमतों में संभवतः 2-4 रुपये प्रति लीटर की कटौती की मजबूत गुंजाइश है. हालांकि, कीमतों में कटौती का फैसला महाराष्ट्र और हरियाणा में आगामी चुनावों से भी प्रभावित हो सकता है."

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