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जॉर्ज सोरोस के नाम पर संसद में हंगामा है क्यों बरपा?

अमेरिकी कारोबारी और निवेशक जॉर्ज सोरोस का नाम भारत में न्यूज मीडिया की बहसों से आगे बढ़कर अब संसद में भी गूंज रहा है. सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस सोरोस के हवाले से एक दूसरे पर कई आरोप लगा रहे हैं

सोरोस मुद्दे पर संसद भवन में प्रदर्शन करते बीजेपी नेता गिरिराज सिंह
सोरोस मुद्दे पर संसद भवन में प्रदर्शन करते बीजेपी नेता गिरिराज सिंह
अपडेटेड 16 दिसंबर , 2024

संसद के शीतकालीन सत्र में सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के बीच जॉर्ज सोरोस और उनकी वित्तीय संस्थाओं पर भारत में राजनीतिक फंडिंग और सरकार को अस्थिर करने के आरोपों के साथ गरमा-गरम बहस चल रही है. दोनों पार्टियों के आरोपों ने एक ऐसी बहस को जन्म दे दिया है, जिसकी वजह से संसद के असल सवाल गायब हो गए हैं.

बीजेपी ने सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी पर जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) से जुड़ी संस्थाओं के साथ संबंध होने का आरोप लगाते हुए एक आक्रामक अभियान चलाया है. उनके आरोपों का मुख्य आधार है सोनिया गांधी का फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स-एशिया-पैसिफिक के सह-अध्यक्ष की भूमिका में होना.

बीजेपी का दावा है कि इस फोरम को सोरोस से वित्तीय मदद मिली है. भगवा पार्टी यह भी आरोप लगाती है कि राजीव गांधी फाउंडेशन, जिसका नेतृत्व सोनिया गांधी करती हैं, ने भी सोरोस-फंडेड संस्थाओं के साथ सहयोग किया है. बीजेपी का कहना है कि ये संस्थाएं कथित रूप से कश्मीर की स्वतंत्रता की मांग जैसे विवादित मुद्दों का समर्थन करती हैं.

बीजेपी के आरोप यहीं नहीं रुकते. पार्टी नेताओं ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष, सलिल शेट्टी की तस्वीरें दिखाकर कांग्रेस और सोरोस के ग्लोबल नेटवर्क के बीच गहरे संबंधों की ओर इशारा किया. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इन संबंधों को 'गंभीर चिंता' का विषय बताया और भारत में विदेशी दखल के खिलाफ राजनीतिक दलों से एकजुट होने की अपील की. बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने तो यह आरोप भी लगाया कि कांग्रेस ने सोरोस से मिली वित्तीय मदद का उपयोग अपने राजनीतिक अभियानों के लिए किया है. निशिकांत दूबे ने यह सवाल भी उठाया कि क्या सोरोस की वित्तीय मदद पाने वालों अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी की गतिविधियों को बढ़ावा दिया. 

बीजेपी का आरोप है कि सोरोस के समर्थन से वे संस्थाएं भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करती हैं, जो देश की एकता और संप्रभुता को कमजोर करने का प्रयास करती हैं.

इसी बीच कांग्रेस सांसद शशि थरूर का भी 15 साल पुराने ट्वीट वायरल होने लगा जिसमें उन्होंने सोरोस को 'पुराना दोस्त' बताया था. इस ट्वीट के फिर से सामने आने के बाद उन्होंने अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस से किसी भी तरह के वित्तीय या राजनीतिक संबंध से इनकार किया. थरूर ने अपने रिश्ते को पूरी तरह से सामाजिक बताया और कहा कि वह सोरोस को यूएन के दिनों से जानते थे, लेकिन उनसे या उनके फाउंडेशन से कभी पैसे नहीं लिए. थरूर ने विवाद को 'बेतुका' बताया और पुराने ट्वीट को सनसनीखेज बनाने के लिए सोशल मीडिया यूजर्स की आलोचना की.

आरोपों को खारिज करते हुए शशि थरूर ने कहा, "चूंकि इस ट्वीट के बारे में इतनी जिज्ञासा है, इसलिए मैं अपने यूएन के दिनों में न्यूयॉर्क के एक ईमानदार अंतरराष्ट्रीय सोच वाले रेजिडेंट (निवासी) के रूप में सोरोस को अच्छी तरह से जानता था. वे सामाजिक लिहाज से एक दोस्त थे: मैंने कभी भी उनसे या उनके किसी फाउंडेशन से अपने या किसी संस्था के लिए एक पैसा नहीं लिया या मांगा नहीं."

थरूर ने आगे कहा, "मुझे उम्मीद है कि इससे उन लोगों को कुछ समझ में आएगा जो 15 साल पुराने बेकार ट्वीट को लेकर बेतुका आरोप लगा रहे हैं. लेकिन ट्रोल फैक्ट्री कैसे काम करती है, यह जानते हुए मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसा नहीं होगा!"

वहीं पार्टी पर लग रहे इन आरोपों को कांग्रेस ने गलत और ध्यान भटकाने की कोशिश बताया. प्रियंका गांधी ने बीजेपी के आरोपों का मजाक उड़ाते हुए इसे अदाणी समूह के विवाद से ध्यान हटाने का एक तरीका बताया. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यह मुद्दा उठाया कि भारत सरकार ने खुद यूनाइटेड नेशंस डेमोक्रेटिक फंड में योगदान दिया है जो सोरोस का समर्थन करता है. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर सोरोस सच में भारत की संप्रभुता के लिए खतरा है तो सरकार ने अब तक उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की.

कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर शामिका रवि को सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से ग्रांट मिली हुई है. हालांकि, रवि ने स्पष्ट किया कि उनका फाउंडेशन से जुड़ाव केवल एक ग्रांट तक सीमित था, जो उनके इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में कार्यकाल के दौरान था.

कौन हैं जॉर्ज सोरोस?

1930 में हंगरी के बुडापेस्ट में पैदा होने वाले जॉर्ज सोरोस एक प्रसिद्ध फाइनेंसियल एनालिस्ट और फिलांथ्रोपिस्ट (परोपकारी) हैं. उनका वित्तीय करियर दशकों तक फैला हुआ है और उन्होंने 1970 में सोरोस फंड मैनेजमेंट की स्थापना की थी.

अमेरिका के नागरिक सोरोस के परोपकारी प्रयासों की शुरुआत 1970 के दशक में हुई और 1984 उन्होंने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) की स्थापना की. OSF 120 से अधिक देशों में सक्रिय है, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और स्वतंत्रता की पहल को बढ़ावा देता है. भारत में OSF 1999 से सामाजिक न्याय, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के कार्यक्रमों में निवेश कर रहा है, जिसमें विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाना शामिल है.

मगर यह सिक्के का सिर्फ एक पहलु है. दूसरा पहलु यह है कि सोरोस की परोपकारी गतिविधियां विवादों से घिरी रही हैं. आलोचक उनपर यह आरोप लगाते हैं कि वे अपने धन का इस्तेमाल देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए करते हैं. उनका कहना है कि सोरोस ऐसा विशेष रूप से पश्चिमी भू-राजनीतिक हितों के साथ जुड़े प्रगतिशील राजनीतिक कारणों को बढ़ावा देने के लिए करते हैं. आलोचक 1997 के एशियाई वित्तीय संकट जैसे दुनिया के बड़े वित्तीय संकटों में सोरोस का हाथ होने की बात करते हुए उन्हें कुछ देशों के लिए आर्थिक अस्थिरता का कारण भी मानते हैं.

सोरोस ने भारत में प्रधानमंत्री मोदी और उनके शासन की खुलकर आलोचना की है. 2023 में सोरोस ने हिन्डनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदाणी समूह के वित्तीय विवाद का जिक्र किया था और कहा था कि यह मोदी की सत्ता की पकड़ को कमजोर कर सकता है, जिससे लोकतांत्रिक ताकतों को बढ़ावा मिल सकता है. सोरोस ने मोदी सरकार की हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे और कश्मीर पर कड़ी नीतियों की भी आलोचना की है. इन टिप्पणियों का बीजेपी नेताओं ने जोरदार विरोध किया, और सोरोस पर भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया. 

भारत में सोरोस का प्रभाव

बीजेपी ने आरोप लगाया है कि सोरोस का प्रभाव केवल परोपकार तक सीमित नहीं है और उनका वित्तीय समर्थन उन संस्थाओं को मिल रहा है जो सरकार की नीतियों की आलोचना करती हैं. बीजेपी नेताओं का कहना है कि सोरोस के कार्यक्रम भारतीय संप्रभुता को कमजोर करने का काम कर रहे हैं और विरोधी दलों के बीच असहमति और बिखराव को बढ़ावा दे रहे हैं.

इन आरोपों को और बल देने के लिए बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस नेताओं और सोरोस-समर्थित संस्थाओं के प्रतिनिधियों के बीच संवाद की तस्वीरें और वीडियो साझा की हैं, जिससे यह साबित हो सके कि यह नेटवर्क भारत को अस्थिर करने और उसकी वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से काम कर रहा है. कांग्रेस नेताओं ने इन आरोपों को एक चाल बताया है, जिसका लक्ष्य सरकार को अदाणी विवाद से बचाना है.

भारत में सोरोस के आलोचकों ने उनके वित्तीय अस्थिरता में हाथ होने के अतीत पर भी सवाल उठाए हैं. उनका मानना है कि सोरोस की परोपकारी गतिविधियां अक्सर एक गहरे राजनीतिक एजेंडे के तहत होती हैं, जो भारत की संप्रभुता को चुनौती देती हैं.

OSF ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि भारत में उसका काम हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने पर केंद्रित है.

इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में कौशिक डेका लिखते हैं कि सोरोस से जुड़ा विवाद वैश्विक परोपकार, घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बीच के समीकरण को दिखाता है. सोरोस मुद्दे ने संसद में मौजूदा तनाव को और बढ़ा दिया है, दोनों सदनों में बार-बार व्यवधान देखने को मिल रहा है. कथित विदेशी हस्तक्षेप पर चर्चा करने पर बीजेपी के जोर देने और अदाणी समूह की जेपीसी जांच की कांग्रेस की मांग से ही संसद भवन पटा पड़ा है और देश के अन्य जरूरी मुद्दों पर बहस ही गायब हो गई है. समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने भी हालिया घटनाक्रम पर निराशा व्यक्त की है और दोनों राष्ट्रीय पार्टियों पर संसदीय कार्यवाही को हाईजैक करने का आरोप लगाया है.

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