अप्रैल की 22 तारीख को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला असल में पाकिस्तान की उस फिर से तैयार की गई आतंकी रणनीति को सामने लाता है, जो वह 2019 के बाद से भारत के खिलाफ अमल में ला रहा है. 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान के आर्टिकल-370 को खत्म कर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था.
22 अप्रैल को खूबसूरत बैसरन घास के मैदान जिसे 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहा जाता है, में हुए नरसंहार की जिम्मेदारी 'द रेसिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है. यह पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा (LET) का एक प्रॉक्सी आतंकी समूह है. इस हमले की दुनिया भर में कड़ी निंदा हुई है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि आतंकियों और उनके समर्थकों को पकड़कर उन्हें ऐसी सजा दी जाएगी जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते.
विश्लेषकों का कहना है कि कश्मीर घाटी में सख्त सुरक्षा अभियानों ने आतंकियों को पस्त किया है. इसकी वजह से पाकिस्तान ने अब अपने प्रॉक्सी आतंकी युद्ध को पीर पंजाल रेंज के दक्षिणी हिस्से यानी जम्मू क्षेत्र में कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए रिडायरेक्ट किया है. ऐतिहासिक रूप से इस इलाके में सैनिकों की आवाजाही कम रही है और यह अपेक्षाकृत शांत माना जाता है.
पिछले तीन से चार वर्षों में इस रणनीतिक बदलाव ने कश्मीर में सुरक्षा बलों और नागरिकों पर घातक हमलों को बढ़ावा दिया है. पहलगाम नरसंहार इस हिंसा में एक भयावह बढ़ोत्तरी का प्रतीक है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमला बताता है कि पाकिस्तान का आर्टिकल-370 के खात्मे के बाद के चरण में जम्मू और कश्मीर में उभरती स्थिरता और पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्था को बाधित करने का पूरा इरादा है.
इस हमले के पीछे LET कमांडर सैफुल्लाह कसूरी का हाथ होने का संदेह है, जिसे स्थानीय और पाकिस्तानी ऑपरेटिव्स के एक समूह द्वारा अंजाम दिया गया है. पिछले साल जम्मू और कश्मीर के लोगों ने नई सरकार चुनने के लिए वोटिंग की थी, और इससे पहले गर्मियों में संसदीय चुनाव भी हुए थे.
पहलगाम हमले ने पाकिस्तान के साथ पुराने सीमाई तनाव को फिर से बढ़ा दिया है. नियंत्रण रेखा (LoC) पर गोलीबारी का भड़कना यह बताता है कि 2021 का युद्धविराम समझौता दोनों सेनाओं के बीच अब खंडित हो चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की मजबूत प्रतिक्रिया, जिनमें 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करना, बॉर्डर को सील करना और आतंकवाद विरोधी अभियानों को तेज करना शामिल है, एक नए टकराव के चरण का संकेत देता है, भले ही सुरक्षा बल बैसरन के अपराधियों की तलाश कर रहे हों.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि TRF को पाकिस्तान में आतंकी हैंडलर्स ने एक 'शैडो' (छद्म) संगठन के रूप में शुरू किया था, जिसमें LET, हिजबुल मुजाहिदीन (HM) और अन्य उग्रवादी समूहों के कैडर का इस्तेमाल किया गया था. इसमें जम्मू और कश्मीर में 'ओवर ग्राउंड वर्कर्स' का सक्रिय समर्थन था. TRF जैसे उप-समूहों का उद्देश्य कश्मीर में आतंकवाद को 'घरेलू'/'स्वदेशी'/'मूल' चेहरा देना है.
पाकिस्तान के 'डीप स्टेट' ने कई अन्य आतंकी समूह भी बनाए हैं, जैसे द पीपल्स एंटी-फासिस्ट फोर्स (PAFF), जॉइंट कश्मीर फ्रंट (JKF) और जम्मू और कश्मीर गजनी फोर्स (JKGF). विशेषज्ञों का कहना है कि आतंकी संगठनों के नाम बदलने का उद्देश्य उनके इस्लामी निशान को छिपाना है. यह पाकिस्तान को अपनी संलिप्तता से इनकार करने का फायदा भी देता है, जबकि जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद को घरेलू विद्रोह के रूप में बताने की कोशिश की जाती है.
रणनीति में एक और बदलाव के तहत, हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने पूरे कश्मीर को अपने इलाके के रूप में दिखाने वाला मैप जारी करना शुरू किया है. पड़ोसी देश ने नई प्रवृत्ति के तहत जम्मू-कश्मीर को "भारत द्वारा 'अवैध' रूप से कब्जा किया गया जम्मू-कश्मीर" कहना शुरू किया है. पहले वो सिर्फ 'भारत द्वारा कब्जा किया गया कश्मीर' कहता रहा था.
नए आतंकी संगठन कब बने, क्या कर रहे हैं?
2019 में स्थापित TRF ने पिछले दो सालों में 'घरेलू आंदोलन' के रूप में प्रमुखता हासिल की है. हालांकि इसकी सभी गतिविधियों में LET की पूरी छाप मौजूद रहती है. LET ऐसा आतंकी संगठन है, जो भारत में कुछ सबसे घातक हमलों के लिए जिम्मेदार है. TRF सुरक्षा बलों और नागरिकों पर हमलों की योजना बनाने, हथियारों का समन्वय और ट्रांसपोर्ट, आतंकवादियों की भर्ती और उनकी घुसपैठ, साथ ही हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी में शामिल रहा है.
वहीं PAFF, जो जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का एक प्रॉक्सी संगठन है, और जिसकी स्थापना 2019 में हुई थी. यह आतंकवादी भर्ती और हथियार प्रशिक्षण के लिए युवाओं को कट्टरपंथी बनाने का काम तो करता ही है, साथ ही, यह सुरक्षा बलों, राजनेताओं के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में काम करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों को धमकाने का काम करता है. इसके अलावा, यह जम्मू-कश्मीर और बाहर आतंकी हमलों को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया पर नैरेटिव चलाने में शामिल रहा है.
JKGF, 2020 में एक आतंकी संगठन के रूप में सामने आया और यह प्रतिबंधित आतंकी संगठनों, जैसे LeT, JeM, तहरीक-उल-मुजाहिदीन और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी से अपने कैडर लेता है. यह घुसपैठ की कोशिशों, नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी और आतंकी हमलों में शामिल रहा है, साथ ही सुरक्षा बलों को धमकी देने और जम्मू-कश्मीर में प्रचार अभियानों को चलाने में भी इसकी भूमिका है.
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान सेना एक नाजुक स्थिति में है, जो आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के खतरों का सामना कर रही है. तालिबान समर्थित आतंकवादी समूहों और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के बढ़ते हमलों से पाकिस्तानी सेना में डर बना हुआ है. नतीजतन, कुछ खुफिया अधिकारियों ने इस आशंका से इनकार नहीं किया है कि पहलगाम हमला इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) द्वारा भारत के साथ सीमित संघर्ष को उकसाने और इस तरह घरेलू मोर्चे पर पाकिस्तान सेना की डगमगाती छवि को बेहतर करने के लिए प्लान किया गया था.
पाकिस्तान सेना की लीडरशिप में हताशा फैली हुई है. इसे पाक के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के एक बयान से समझा जा सकता है. देश से बाहर पाकिस्तानियों की एक सभा को संबोधित करते हुए जनरल मुनीर ने उन्हें देश का राजदूत कहा और उनकी "श्रेष्ठ विचारधारा और संस्कृति" की याद दिलाई.
लेकिन उनके बयानों ने भारतीयों, खासकर हिंदू बहुसंख्यक के प्रति नस्लीय द्वेष को भी उजागर किया. उन्होंने कहा, "आपको अपने बच्चों को निश्चित रूप से पाकिस्तान की कहानी सुनानी चाहिए. हमारे पूर्वजों का मानना था कि हम हर पहलू में हिंदुओं से अलग हैं. हमारे धर्म, रीति-रिवाज, परंपराएं, विचार और चाहतें अलग हैं. यही टू-नेशन (भारत-पाकिस्तान) थ्योरी का आधार था."