महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. इस दौरान प्रमुख दलों का चुनावी अभियान जोरों पर है. 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के उत्तर-पश्चिमी जिले धुले में अपनी रैली के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से मुख्य भूमिका संभाली. यह उनकी पार्टी और सत्तारूढ़ महायुति को गति देने के लिए पहली रैली थी, और तय कार्यक्रम के मुताबिक अगले पांच दिनों में वे राज्य भर में और नौ रैलियां करने वाले थे.
पीएम मोदी की ये रैलियां नासिक शहर से लेकर पश्चिमी विदर्भ के अकोला और मराठवाड़ा के नांदेड़ तक, यानी पूरे राज्य भर में होनी थीं. लेकिन जल्द ही इस तय कार्यक्रम में बदलाव देखने को मिला और उनकी रैली 10 नवंबर को झारखंड के बोकारो और रांची में शिफ्ट हो गईं. महाराष्ट्र के अलावा झारखंड दूसरा राज्य है जहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. पीएम मोदी ने यहां चाईबासा और गढ़वा शहर में रैलियों को संबोधित किया.
मौजूदा तय कार्यक्रम के हिसाब से मोदी आज 12 नवंबर को महाराष्ट्र लौटेंगे और विदर्भ, सोलापुर और पुणे में रैलियां करेंगे. 14 नवंबर को वे छत्रपति संभाजी नगर जाएंगे, उसके बाद कोंकण क्षेत्र के रायगढ़ में और फिर मुंबई में एक बड़ी रैली करेंगे. महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों पर जहां 20 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होगा, वहीं 81 सीटों वाले झारखंड में दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. यहां 13 नवंबर को 43 सीटों पर और 20 नवंबर को बाकी 38 सीटों पर वोटिंग होगी.
महाराष्ट्र में सियासी समीकरण की बात करें तो यहां बीजेपी के सहयोगी दलों में एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का अजित पवार गुट शामिल है, इनके अलावा कुछ छोटी पार्टियां भी हैं. बीजेपी कुल 148 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिनमें 75 सीटों पर उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस यहां महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का हिस्सा है, जिसके अन्य मुख्य घटक शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) हैं.
झारखंड में बीजेपी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. यहां उसके सहयोगी दल आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन), जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) हैं जो क्रमश: दस और दो-दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.
बहरहाल, पांच नवंबर को दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ दो बैठकें कीं. इनमें पहली बैठक सहयोगी दलों के साथ चुनावी रणनीति पर फोकस थी. इस दौरान महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के अलावा 49 विधानसभा सीटों और दो लोकसभा क्षेत्रों के उपचुनावों के लिए पार्टी के अभियान योजनाओं पर चर्चा की गई. दूसरी बैठक, व्यापक रणनीति के तहत झारखंड और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में पीएम मोदी की अपील का कैसे फायदा उठाया जाए, इस पर केंद्रित थी.
दरअसल, बीजेपी पिछले महीने हरियाणा चुनावों में मिली अपनी शानदार जीत से सीख ले रही है. इसमें मोदी की रैलियों का रणनीतिक इस्तेमाल, प्रधानमंत्री को 'ओवरएक्सपोज' (अति-जाहिर) न करना और प्रचार अभियान के अंत के करीब उनके कार्यक्रमों से बचना शामिल है. बीजेपी के चुनाव थिंक-टैंक के एक सदस्य ने इंडिया टुडे को बताया कि बड़े नेताओं की रैलियों का रणनीतिक इस्तेमाल पार्टी को यह तय करने में मदद करता है कि मैसेज मतदाताओं तक प्रभावी रूप से पहुंच रहा है और उन पर असर डाल रहा है. हरियाणा में बीजेपी ने यही रणनीति अपनाई थी जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी की रैलियों को प्रचार अभियान के अंत में रखा था.
झारखंड और महाराष्ट्र में बीजेपी बहु-आयामी संचार रणनीति (कम्युनिकेशन स्ट्रेटजी) पर ध्यान दे रही है. पीएम मोदी 'इंडिया' गुट पर जमकर निशाना साधने के अलावा व्यापक मुद्दों पर बात कर रहे हैं. उनके भाषणों में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास की बातें हैं. साथ ही, इसमें उनकी नई अपील "एक हैं तो सेफ हैं" के साथ-साथ गांधी परिवार और कांग्रेस पर हमला भी शामिल है. वहीं दूसरी ओर, जेपी नड्डा, अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा सहित दूसरे स्तर के प्रचारकों के अभियानों में आक्रामक बयानबाजी देखी जा सकती है.
10 नवंबर को मुंबई में बीजेपी का घोषणापत्र जारी करते हुए शाह ने वादा किया कि अगर महायुति सत्ता में लौटी तो राज्य में एक मजबूत धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया जाएगा. इसी तरह, झारखंड में उन्होंने समान नागरिक संहिता (बीजेपी शासित उत्तराखंड की तरह) लाने की बात की थी और आश्वासन दिया था कि आदिवासी लोगों को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा.
नेताओं की तीसरी श्रेणी में स्थानीय क्षत्रप शामिल हैं - जैसे बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, देवेंद्र फडणवीस, सुधीर मुनगंटीवार और चंद्रशेखर बावनकुले. इन्हें अपने-अपने राज्यों में इंडिया ब्लॉक के घटकों के स्थानीय नेतृत्व पर हमला करने का काम सौंपा गया है. चौथी श्रेणी में बीजेपी और संघ परिवार के कार्यकर्ता शामिल हैं, जो मतदाताओं को लुभाने के लिए घर-घर जा रहे हैं.
इन चुनावों में बीजेपी का प्रचार अभियान कम शोर वाला है. महाराष्ट्र में पार्टी अपने सहयोगी मराठा नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखने के लिए बहुत जोर लगाती नहीं दिख रही है और मराठी ब्राह्मण फडणवीस को पार्टी के चेहरे के रूप में पेश कर रही है. बीजेपी का यह भी मानना है कि हरियाणा की तरह इन दोनों राज्यों में भी "संविधान खतरे में है" का इंडिया ब्लॉक का नारा कोई काम नहीं आएगा.
बीजेपी नेताओं का कहना है कि संघ परिवार का प्रचार अभियान "काम कर रहा है". हालांकि बीजेपी ने नव-बौद्ध (अंबेडकरवादी) दलितों के मुकाबले हिंदू दलितों को अधिक टिकट दिए हैं, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि प्रचार अभियान ने दोनों वर्गों का समर्थन हासिल करने में मदद की है.
बीजेपी इस प्रचार अभियान को मोदी बनाम विपक्ष में नहीं बदलना चाहती. साथ ही पार्टी हरियाणा की तरह स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. महाराष्ट्र में बीजेपी थिंक-टैंक का मानना है कि पार्टी के पास इंडिया ब्लॉक की तुलना में महायुति गठबंधन में अधिक क्षत्रपों के कारण बेहतर मौका है. और एमवीए गठबंधन तो शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियों में विभाजन के कारण सहानुभूति वोटों पर ही निर्भर है. वहीं, एमवीए मराठा-दलित-मुस्लिम मतदाता धुरी पर अपनी उम्मीदें टिकाए हुए है.
बीजेपी अपनी नई संचार रणनीति के तहत ओबीसी आबादी के बीच रिवर्स (विपरीत) ध्रुवीकरण, उच्च जाति के हिंदुओं और आदिवासी समुदायों के बीच अपने समर्थन आधार को मजबूत करने और दलितों और मराठों तक अपनी पहुंच जारी रखने का लक्ष्य रख रही है.
झारखंड में रहते हुए मोदी ने आदिवासी गौरव के बारे में बात की और बताया कि कैसे एक आदिवासी दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का 'अपमान' किया गया था जब वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) में थे. इसके अलावा, अन्य बीजेपी नेता आक्रामक रुख अपना रहे हैं और कथित जनसांख्यिकीय बदलाव और बांग्लादेशी घुसपैठियों से आदिवासी समुदायों के लिए 'खतरे' की बात कर रहे हैं. झारखंड की कुल आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 26 फीसद है.
इधर, महाराष्ट्र में पहली रैली से ही मोदी ने ओबीसी और आदिवासी समूहों के बीच विभाजन को "षड्यंत्र" बताकर और "एक हैं तो सेफ हैं" पर जोर देते हुए एजेंडा तय कर दिया. आदित्यनाथ ने अपने विवादास्पद "बटेंगे तो कटेंगे" वाले बयान के साथ और भी आक्रामक लहजा अपनाया. इसका असर यहां तक हुआ कि इसने महायुति के घटकों के बीच भी भौंहें चढ़ा दीं.
जनजातीय समुदायों को लुभाते हुए मोदी ने भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू के चुनाव का श्रेय बीजेपी को दिया और समुदायों को विभाजित करने की कांग्रेस की "खतरनाक साजिश" करार दिया.
झारखंड और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में बीजेपी के अभियान को गति देने के लिए संघ परिवार के 36 सहयोगी संगठन सक्रिय हैं, जो अगस्त से ही जमीन तैयार करने के लिए 25 लोगों की छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं. संघ के सहयोगियों ने महाराष्ट्र में 150,000 से अधिक और झारखंड में 50,000 से अधिक ऐसी बैठकें की हैं, जिनका उद्देश्य कार्यकर्ताओं और बीजेपी समर्थकों दोनों में नई जान फूंकना है.
झारखंड में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासियों की नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ी थी, जिसका एक कारण कथित भ्रष्टाचार के मामले में झामुमो के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी भी थी. जबकि महाराष्ट्र में आरक्षण के मुद्दे पर मराठा और ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया. बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल ने घोषणा की है कि वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपने आंदोलन से समर्थित उम्मीदवारों से अपने नामांकन वापस लेने का आग्रह कर रहे हैं. इससे मराठा, दलित और मुसलमानों के बीच एमवीए के समर्थन आधार में बढ़ोत्तरी हुई है.
बीजेपी को उम्मीद है कि उसका कम शोर वाला अभियान और व्यापक हिंदू एकता का आह्वान मराठा समुदाय को आकर्षित करेगा, ठीक वैसे ही जैसे पार्टी ने हरियाणा में जाट वोटों को एकजुट करने के कांग्रेस के प्रयास का सफलतापूर्वक मुकाबला किया था.
हरियाणा में सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण से पता चलता है कि हर तीन में से एक जाट मतदाता ने बीजेपी का समर्थन किया था, जो सामाजिक रूप से प्रभावशाली इस समूह के बीच कांग्रेस के लिए सीमित एकजुटता को दिखाता है. बीजेपी ने जाटों के बीच अपना आधार बनाए रखा जबकि गैर-जाट समुदायों के बीच एकजुटता हासिल की. क्या यह फॉर्मूला महाराष्ट्र में भी काम कर सकता है? 23 नवंबर को इसका जवाब मिलेगा.