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भारत की रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स योजना कैसे चीन की मनमानी पर रोक लगा सकती है?

भारत सरकार की 7,280 करोड़ रुपये की यह योजना ऐसे समय आई है जब चीन ने रेयर अर्थ मिनरल के निर्यात पर सख्त नियम लागू किए हैं

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दक्षिण भारत में रेयर अर्थ मिनरल के बड़े भंडार हैं
अपडेटेड 27 नवंबर , 2025

यह आपके इलेक्ट्रिकल व्हीकल (EV) को चलाने के लिए बेहद अहम है लेकिन शायद ही आपने कभी इस पर ध्यान दिया हो. यही एक चीज फाइटर प्लेन F-35 को भी कारगर बनाती है. ये है रेयर अर्थ मैग्नेट जो पवन चक्कियों से लेकर स्मार्टफोन और लैपटॉप तक हमारे रोजमर्रा की दुनिया के लिए बहुत जरूरी हो चुकी हैं.   

दुनिया की अगली विकास यात्रा इन्हीं रेयर अर्थ मैग्नेट्स पर निर्भर है, और 26 नवंबर को भारत ने इनका घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की का खुलासा किया है. चीन का रेयर अर्थ मैग्नेट्स के उत्पादन पर लगभग एकाधिकार है. बीजिंग वैश्विक बाजार के लगभग 90 फीसदी हिस्से को नियंत्रित करता है और इस प्रभुत्व का इस्तेमाल भू-राजनीतिक फायदे उठाने में करता है. 

भारत सरकार की 7,280 करोड़ रुपये की यह योजना ऐसे समय आई है जब चीन ने रेयर अर्थ मिनरल के निर्यात पर सख्त नियम लागू किए हैं. इससे भारतीय उद्योगों के लिए आपूर्ति चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं. इसी बीच 26 नवंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स (REPM) के लिए पूरी तरह स्वदेशी विनिर्माण इकोसिस्टम स्थापित करने की योजना को मंजूरी दी है.

यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया और यह सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में बड़ा कदम है. 

भारत की रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स योजना आखिर है क्या? 

इस पहल का लक्ष्य एक स्वदेशी सप्लाई चेन बनाना है जो NdPr (नियोडिमियम–प्रासियोडिमियम) ऑक्साइड को उच्च-प्रदर्शन वाले सिन्टर्ड (ऊंचे दबाव में किसी पदार्थ का ठोस स्वरूप में बदलना) NdFeB (नियोडिमियम–आयरन–बोरॉन) मैग्नेट्स में बदल दे. ये मैग्नेट्स इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV), पवन टर्बाइनों, डिफेंस डिवाइस, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और मेडिकल इमेजिंग उपकरणों में भारी मात्रा में इस्तेमाल होते हैं.

सरकार की तरफ से आई जानकारी के मुताबिक इस पहल से भारत में पहली बार एकीकृत REPM विनिर्माण सुविधाएं स्थापित होंगी. सरकार ने 6,000 MTPA (मीट्रिक टन प्रति वर्ष) REPM उत्पादन क्षमता का लक्ष्य रखा है. योजना को अगले 7–10 वर्षों में कैपिटल सब्सिडी, वायबिलिटी गैप फंडिंग और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव्स के मिश्रण से लागू किया जाएगा.

यह योजना रेयर अर्थ ऑक्साइड्स को धातुओं में, धातुओं को मिश्रधातुओं में और मिश्रधातुओं को तैयार REPM में बदलने वाली एकीकृत सुविधाओं को सहायता देगी. रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स दुनिया के सबसे मजबूत व्यावसायिक मैग्नेट्स हैं और अधिकांश हाई-परफॉर्मेंस डिवाइसों में इनका कोई व्यवहारिक विकल्प नहीं है. 

एक मध्यम आकार की इलेक्ट्रिक कार में 1–2 किलो NdFeB मैग्नेट्स लगते हैं, जबकि एक 3-मेगावॉट की ऑफशोर पवन टरबाइन में लगभग 600 किलो की जरूरत पड़ती है. भारत ने 2030 तक 30 फीसदी इलेक्ट्रिक व्हीकल अपनाने और रिन्यूएबल ऊर्जा क्षमता में आक्रामक विस्तार का लक्ष्य रखा है, इसलिए अगले दशक में इन मैग्नेट्स की मांग तेजी से बढ़ने वाली है. 

वर्तमान में भारत अपनी अधिकांश रेयर अर्थ मिनरल आयात करता है; चीन वैश्विक रिफाइंड मैग्नेट उत्पादन का 90 फीसदी से ज्यादा और खनन उत्पादन का लगभग 70 फीसदी नियंत्रित करता है. भारत में रेयर अर्थ मिनरल ऐसे स्रोत जहां से इसे हासिल करना आसान है, दक्षिणी हिस्से में हैं. यह भी हैरानी की बात है कि दुनिया के पांचवें सबसे बड़े रेयर अर्थ भंडार (लगभग 69 लाख टन रेयर अर्थ ऑक्साइड) होने के बावजूद भारत वैश्विक उत्पादन में केवल एक फीसदी का योगदान देता है. भारत के ऐसे संसाधनों का केंद्र दक्षिण भारत में हैं :

•  केरल में कोल्लम-अलप्पुझा-कन्याकुमारी तटीय पट्टी में सबसे समृद्ध मोनाजाइट बेल्ट हैं; यहां भारतीय रेयर अर्थ्स लिमिटेड के चवारा और मनवलकुरिची में बड़े संयंत्र हैं. 
•  मोनाजाइट एक लाल-भूरे रंग का फॉस्फेट खनिज है जिसमें सेरियम, लैंथेनम, नियोडिमियम जैसे रेयर अर्थ तत्व और थोरियम के साथ मिलते हैं; यह समुद्र तट और नदी की रेत में पाया जाता है. 
•  ओडिशा के गंजाम, बालासोर और मयूरभंज जिले, खासकर छत्रपुर मिनरल सैंड बेल्ट में 30 लाख टन से ज्यादा भारी खनिज संसाधन होने का अनुमान है. 
•  आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विशाखापत्तनम और कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र तथा तमिलनाडु के तूतीकोरिन, तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिले अन्य प्रमुख स्थान हैं. हालांकि राजस्थान, बिहार और झारखंड में भी छोटे-छोटे भंडार मिले हैं.

रेयर अर्थ मिनरल निकालना इतना मुश्किल क्यों है?

मोनाजाइट में थोरियम और यूरेनियम होने के कारण इसे रेडियोएक्टिव खनिज माना जाता है और इसका संचालन परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के सख्त निगरानी में होता है.

17 अलग-अलग रेयर अर्थ तत्वों को अलग करने के लिए सैकड़ों चरणों की सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन प्रक्रिया चाहिए, जिसमें भारी मात्रा में एसिड खर्च होता है और बड़ी मात्रा में विषैले व रेडियोएक्टिव कचरे का उत्पादन होता है. 

एक टन रेयर अर्थ ऑक्साइड बनाने में 70–100 टन खतरनाक टेलिंग्स बच जाती हैं. इस कार्यक्रम की निगरानी संयुक्त रूप से परमाणु ऊर्जा विभाग, खान मंत्रालय और नीति आयोग करेंगे. नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत REPM पर कहते हैं, “बहुत दिनों तक वैश्विक सप्लाई चेन्स ने हमारी रफ्तार तय की. अब भारत अपने नियम खुद तय करेगा और घर में ही लंबी अवधि की तकनीकी ताकत बनाएगा.” 

7,280 करोड़ रुपये की इस योजना से भारत न सिर्फ लंबी अवधि का रेयर अर्थ इकोसिस्टम बनाएगा, बल्कि चीन के गले की फंदे से भी बाहर निकलेगा.

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