भारत में 21 नवंबर की तारीख देश के श्रम क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई, जब वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और पेशागत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पर चार संहिताएं (लेबर कोड) लागू किए गए. ये संहिताएं लागू किया जाना देश में आजादी के बाद से सबसे बड़ा श्रम एवं रोजगार सुधार है.
इन आधुनिक संहिताओं ने दशकों पुराने अंग्रेजों के जमाने के श्रम कानूनों की जगह ली है और जिन्हें मौजूदा फॉर्मलाइजेशन और डिजिटाइजेशन के अनुरूप बनाया गया है. यह कदम 2020 में संसद से श्रम संहिता को पारित कराने के पांच साल उठाया गया है.
एक नजर में जानते हैं कि ये नई संहिताएं श्रम क्षेत्र में कितना असर डालती हैं?
- रोजगार किसी भी तरह का क्यों न हो सभी कर्मचारियों को ऑफर लेटर देना जरूरी है.
- प्रोविडेंट फंड (PF), एम्प्लॉई स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (ESIC) और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ सभी को मिलेंगे, जिसमें गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर भी शामिल हैं.
- न्यूनतम वेतन हर कर्मचारी का कानूनी हक है.
- समय पर और सही वेतन भुगतान की गारंटी.
- पांच साल की जगह एक साल की नौकरी पर ग्रेच्युटी मिलेगी.
- 40 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों के लिए सालाना हेल्थ चेक-अप.
पहली बार न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षित कार्यस्थल स्थितियों को 50 करोड़ कर्मचारियों के लिए पूरी तरह एक समान बनाया गया है, जिसमें गिग, प्लेटफॉर्म और गैर-संगठित कर्मचारी शामिल हैं. CIEL HR के एमडी और सीईओ आदित्य नारायण मिश्रा कहते हैं कि इन सुधारों से फॉर्मलाइजेशन (संगठित क्षेत्र में नियम-कायदे स्पष्टता से लागू होना) मजबूत होगा, महिलाओं की भागीदारी बेहतर होगी और एक जैसा फ्रेमवर्क सुनिश्चित किया जा सकेगा.
Quess Corp के प्रेसिडेंट, वर्कफोर्स मैनेजमेंट लोहित भाटिया के मुताबिक, “पहले जो फायदे सिर्फ टॉप 10-15 फीसद फॉर्मल वर्कफोर्स (संगठित क्षेत्र के कर्मचारी) को मिलते थे, वो इस कदम से बाकी 85 फीसद कर्मचारियों को भी समान रूप से मिल सकेंगे. श्रम संहिताएं सभी के लिए समान रूप से लागू होंगी भले ही कंपनी का साइज या कम्पेनसेशन कुछ भी हो.”
कारोबार में आसानी
TeamLease RegTech के को-फाउंडर और सीईओ ऋषि अग्रवाल कहते हैं, “भारत के श्रम सुधार प्रतिस्पर्धात्मक बदलाव लाने वाले हैं. इन नई संहिताओं के साथ हमने 2040 के दशक में प्रतिस्पर्धा के लिए 1930 के दशक वाले प्रावधान खत्म कर दिए हैं.” दशकों से भारत में उत्पादकता संबंधी फैक्टर—भूमि और श्रम—पुराने कानूनों से बंधे थे. अग्रवाल कहते हैं, “यह सुधार श्रम को काफी हद तक मुक्त करता है.” रिकॉर्ड रखने की जरूरतों में लगभग 70 फीसद कमी आने की उम्मीद है.
श्रम संहिताएं पूरे भारत में “सिंगल रजिस्ट्रेशन, सिंगल लाइसेंस, सिंगल रिटर्न” के जरिये कम्प्लायंस (नियम लागू करने से जुड़ी बाध्यताएं) का बोझ घटाएंगी, और 10 से ज्यादा अलग-अलग फाइलिंग की जगह लेंगी. वेब-बेस्ड इंस्पेक्शन और रैंडमाइज़्ड चेक का इस्तेमाल करके इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर जुर्माने लगाने के बजाय गाइडेंस प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे. Indian Staffing Federation की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुचिता दत्ता कहती हैं कि समान परिभाषा श्रमिक वर्गीकरण को आसान बनाती हैं, जबकि डिजिटल पोर्टल PF, ESIC और वेतन के लिए वन-स्टॉप कम्प्लायंस की सुविधा प्रदान करते हैं. वे आगे बताती हैं, “इस सबसे एडमिनिस्ट्रेटिव खर्च में 30-40 फीसद की बचत हो सकती है, स्किलिंग और प्लेसमेंट के लिए रिसोर्स फ्री हो सकते हैं, और 20-30 लाख फॉर्मल फ्लेक्सी जॉब्स बढ़ सकती हैं.”
अग्रवाल का कहना है कि श्रम संहिताएं प्रोसेस में होने वाली गलतियों के लिए आपराधिक जुर्माने को भी लगभग 80 फीसदी तक कम कर देंगे. वे कहते हैं, “हम आखिरकार सजा से सुविधा की ओर बढ़ रहे हैं. उद्यमियों के लिए फ्लेक्सिबिलिटी और कर्मचारी को सेफ्टी मिलेगी.” नियोक्ता अब फिक्स्ड-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स के जरिए तेजी से अपनी गतिविधियां बढ़ा सकते हैं और ओवरटाइम घंटों के लिए ज्यादा लिमिट के साथ डिमांड साइकिल बना सकते हैं.
गिग वर्कर्स के लिए बड़े फायदे
- पहली बार “एग्रीगेटर”, “गिग वर्कर” और “प्लेटफॉर्म वर्कर” की स्पष्ट परिभाषा तय की गई है.
- एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 फीसद वेलफेयर फंड में कंट्रीब्यूट करना होगा (पेआउट के 5 फीसद तक सीमित).
- राज्यों में PF संबंधी लाभों पोर्टेबिलिटी के लिए आधार-लिंक्ड UAN (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर).
श्रम संहिता ने आखिरकार गिग वर्कर्स को एक पहचान दी है, जिसकी लंबे समय से मांग की जा रही थी. अब नौकरी या राज्य बदलने के साथ भी उन्हें पोर्टेबल बेनिफिट्स, हेल्थ कवरेज और सोशल सिक्योरिटी मिलती रहेगी. वे अपॉइंटमेंट लेटर, एक्सीडेंट इंश्योरेंस और डिसेबिलिटी प्रोटेक्शन के भी हकदार हैं, जिससे सभी तरह के कामों में सम्मान और सुरक्षा आती है. फ्लेक्सी-स्टाफ को पहले ग्रेच्युटी या ESIC बेनिफिट्स नहीं मिलते थे, लेकिन नए नियमों में समान व्यवहार जरूरी है. दत्ता कहते हैं, इससे कार्यबल में फॉर्मल कर्मचारियों की पहुंच 1 फीसदी से बढ़कर लगभग 2-3 फीसदी हो जाएगी, जिससे भारत में तेजी से संगठित और चुस्त श्रम क्षेत्र की तरफ तेजी से बढ़ेगा.
तत्काल प्रभाव से लागू
पुराने कानून रद्द हो गए हैं, और राज्यों को अब अपने नियम-कायदों को अंतिम रूप देना होगा. इनमें से कई अभी ड्राफ्ट फॉर्म में हैं. नियमों के 5-7 दिनों के भीतर अधिसूचित होने की उम्मीद है, और जिन प्रावधानों के लिए नियमों की जरूरत नहीं है, वे तुरंत लागू हो गए हैं. Trilegal में पार्टनर अतुल गुप्ता कहते हैं कि कोई ग्रेस पीरियड नहीं होने के कारण संगठनों को पहले से लागू जरूरी प्रावधानों को जल्द से जल्द रिव्यू करना होगा. गुप्ता कहते हैं, “जहां नियमों के बिना कम्प्लायंस मुमकिन नहीं है, वहां सरकार साफ कर चुकी है कि नए प्रावधान लागू होने की प्रक्रिया पूरी होने के दौरान मौजूदा नियम लागू होंगे.”
कंपनियों को वेतन और ग्रेच्युटी की नई परिभाषा, शिकायतें सुलझाने की जरूरत, यूनियन मान्यता मानक, छुट्टी के प्रावधान, कॉन्ट्रैक्ट लेबर की परिभाषा आदि से जुड़े प्रावधानों पर अमल के लिए HR सिस्टम को अपडेट करना होगा.
गुप्ता कहते हैं कि आने वाले हफ्तों में तस्वीर और साफ होने की उम्मीद है क्योंकि राज्य इन कानूनों को कारोबार लुभाने और उनमें कोई दिक्कत न आने देने की रणनीति के अनुरूप बनाएंगे. वे बताते हैं, “Shops Act जैसे राज्य-स्तरीय कानूनों को बदला नहीं गया है; इसलिए दोनों फ्रेमवर्क एक साथ कैसे काम करते हैं, इसकी कानूनी व्याख्या की जरूरत पड़ेगी.”
CIEL HR के मिश्रा कहते हैं, हालांकि शुरू में नए नियमों पर अमल की लागत बढ़ सकती है लेकिन राज्यों की तरफ से मिलकर काम करना और इन्हें धीरे-धीरे लागू करना जरूरी होगा.

