भारत के करीब 1.3 करोड़ किराना स्टोर देश के खुदरा कारोबार की रीढ़ हैं और ये तय करते हैं कि मोहल्ले-मोहल्ले तक में दैनिक उपयोग की वस्तुएं पहुंचें. बीते कुछ अरसे से इन्हें क्विक कॉमर्स और ऑनलाइन डिलिवरी प्लेटफॉर्म से तगड़ी चुनौती मिली रही है इसके बावजूद भी किराना व्यापारियों के हौसले कम नहीं हुए और वे मैदान में टिके हुए हैं.
इतनी अहम भूमिका निभाने के बावजूद किराना वालों के लिए कर्ज लेना चुनौतीपूर्ण है. वे अब भी स्थानीय कर्जदाता या सामानों के डिस्ट्रीब्यूटर से मिलने वाले अनौपचारिक कर्ज पर निर्भर हैं जिनकी ब्याज दरें काफी ऊंची होती हैं. भारत में किराना स्टोर्स को अभी भी 20 लाख रुपए के कर्ज की जरूरत होने का अनुमान है.
अध्ययन बताते हैं कि औपचारिक कर्ज किसी दुकान का कामकाज सालाना 35 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं यानी इतनी ग्रोथ दे सकते हैं. इसके बावजूद किराना स्टोर वालों को बैंक से कर्ज मिलना क्यों मुश्किल होता है? डिजिटल टेक्नोलॉजी के मार्फत वित्तीय समावेशन के काम में जुटे वैश्विक गैर सरकारी संगठन एक्सियोन के सीनियर डायरेक्टर (प्रोडक्ट डेवलपमेंट) देबदूत बनर्जी कहते हैं, “बहुत सारे छोटी दुकानों के मालिक सावधि कर्ज लेते हैं या सूदखोरों से ऊंचे ब्याज पर रकम उठाते हैं. विडंबना यह है कि जिन लोगों को आसान ऋण की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, उन्हें वह नहीं मिलता. रोजाना के कामकाज चलाने के लिए उन्हें जिस पूंजी की ज़रूरत होती है, उसे पूरा करने के लिए उन्हें आखिरकार दीर्घकालिक कर्जों का सहारा लेना पड़ता है, जिससे और भी समस्याएं पैदा होती हैं."
इंपैक्ट इन्वेस्टर फर्म कैस्पियन के पार्टिसिपेशन ऐंड ऑपरेशंस वाइस प्रेसिडेंट प्रेमा जायसवाल के अनुसार, “ऐसा नहीं है कि कर्ज उपलब्ध नहीं है. दरअसल, किराना दुकान मालिकों तक कर्ज पहुंचाने का ढांचा टूटा हुआ है.” वे अपनी बात आगे बढ़ाती हैं, "किराना दुकानों में उपलब्ध अधिकांश डेटा अस्पष्ट होता है—हस्तलिखित रसीदें और खाता-बही का सत्यापन मुश्किल होता है. इससे ऋणदाताओं के लिए उनकी साख का आकलन करना मुश्किल हो जाता है.”
हालांकि, बढ़ता डिजिटल लेन-देन, जीएसटी फाइलिंग और बैंक स्टेटमेंट जैसे वैकल्पिक डेटा तक पहुंच के साथ, भारत में एम्बेडेड सप्लाई चेन फाइनेंसिंग धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है. छोटे व्यवसायों के लिए सप्लाई चेन फाइनेंस प्रदाता फर्म कैशइनवॉइस के को-फाउंडर श्रीनिवास कसार कहते हैं, "यह मॉडल नकदी प्रवाह और लेन-देन के आंकड़ों पर निर्भर करता है और बड़े खरीदारों को अपने छोटे विक्रेताओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर ऋण प्रदान करने की अनुमति देता है."
कासर कहते हैं, "किराना दुकानों को कर्ज तब उपलब्ध होना चाहिए जब उन्हें जरूरत हो खासकर ज्यादा डिमांड वाले सीजन में. यहीं पर सप्लाई चेन फाइनेंसिंग के जरिये पिरामिड के निचले हिस्से में मौजूद वंचित वर्ग के लिए कर्ज की कमी को पूरा किया जा सकता है. "
ऋण सुलभ बनाने में तकनीक की भूमिका बढ़ती जा रही है. जायसवाल बताती हैं कि परंपरागत रूप से, किराना दुकान वालों को कर्ज देने की लागत ज़्यादा रही है, इसकी एक वजह कई दुकानों का डिजिटल क्रेडिट इतिहास का न होना है. वे कहती हैं, "आपको दुकान पर जाकर इन्वेंट्री की जांच करनी होगी, बिक्री का सत्यापन करना होगा, जाहिर है इसके लिए एक व्यक्ति की जरूरत होती है. इस काम में समय लगता है और पक्षपात की गुंजाइश भी बनी रहती है." वे कहती हैं, "अब, ऐप-आधारित डिजिटल ऋण के साथ, इस पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाया जा सकता है. इससे ऋणदाताओं की परिचालन लागत कम हो जाती है और ऋण ज़्यादा सुलभ हो जाता है."
बनर्जी एक पायलट प्रोजेक्ट को याद करते हैं जिसमें एक्सियन ने बेसिक फोन के ज़रिए आपातकालीन ऋण सुविधा शुरू की थी. इसमें कर्ज लेने वाले को बस लोन शब्द और आवश्यक राशि के साथ एक एसएमएस भेजना था. बनर्जी कहते हैं, "हमें एहसास हुआ कि कुछ लोगों के लिए टाइप करना भी मुश्किल था. तब लगा कि वित्तीय शिक्षा भी उतनी ही ज़रूरी है. कर्ज लेने वालों को यह समझना ज़रूरी है कि उन्हें कब और कितना ऋण चुकाना है. लोन में उनसे क्या अपेक्षाएं हैं. यह शिक्षा ऋणदाताओं के जरिये उन्हें मिलनी चाहिए."
जायसवाल एक चेतावनी भी देती हैं: मार्केटप्लेस मॉडल आशाजनक है, हालांकि यह अभी भी विकसित हो रहा है. वे कहती हैं, "मोबाइल और डेटा की बढ़ती पहुंच के कारण, यह ईकोसिस्टम पहले से कहीं ज़्यादा तैयार है. लेकिन इसके सही मायने में कारगर होने के लिए, हमें डिजिटल टूल्स और अच्छे क्रेडिट व्यवहार के बारे में अधिक जागरूकता की जरूरत है. यही एकमात्र तरीका है जिससे सभी क्षेत्रों के किराना मालिकों को औपचारिक ऋण उपलब्ध हो सकता है."