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किस तरह होती है लोकसभा चुनाव में वोटों की गिनती?

मतगणना की प्रक्रिया में सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती की जाती है जिसे रिटर्निंग ऑफिसर की निगरानी में किया जाता है. इसके आधे घंटे के बाद ईवीएम के वोटों की गिनती शुरू होती है

काउंटिंग के दौरान की तस्वीर (फाइल फोटो)
काउंटिंग के दौरान की तस्वीर (फाइल फोटो)
अपडेटेड 3 जून , 2024

करीब 44 दिनों के चुनावी महाकुंभ के बाद 4 जून उस फैसले की तारीख है जब ईवीएम में बंद उम्मीदवारों की किस्मत पर से पर्दा हटेगा. सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती शुरू होने के साथ ही वे रुझान भी मजबूत या कमजोर पड़ने आरंभ हो जाएंगे कि नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री तीसरी बार शपथ लेंगे या नहीं. इस बार 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव सात चरणों में आयोजित हुआ था.

भीषण गर्मी के बावजूद करीब 96.90 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 60 फीसदी से ऊपर लोगों ने प्रत्येक चरण में मतदान किया. पोलिंग के लिए बने दस लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर ईवीएम के जरिए मतदाताओं ने वोट डाले. बहरहाल, इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में मतगणना की प्रक्रिया क्या है, वोटों की गिनती किस तरह की जाती है.

मतगणना के दिन सुबह आठ बजे से काउंटिंग की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. मतदान के बाद स्ट्रांगरूम में सहेज कर रखी गईं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों यानी ईवीएम को फिर से निकाला जाता है. जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी में उन्हें काउंटिंग हॉल तक पहुंचाया जाता है. इस दौरान बेहद कड़ी सुरक्षा का इंतजाम रहता है. इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग सभी भाग लेने वाले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों (पोलिंग एजेंट) की मौजूदगी में ईवीएम को बाहर निकालता है और सील खोली जाती है.

चुनाव आयोग प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए एक रिटर्निंग ऑफिसर (RO) को नियुक्त करता है. रिटर्निंग ऑफिसर पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है कि मतों की गिनती नियमों के अनुसार और निष्पक्ष तरीके से की जाए. RO की सहायता के लिए एक सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (ARO) भी होता है. काउंटिंग की प्रक्रिया में सबसे पहले पोस्टल बैलेट यानी डाक मतपत्रों की गिनती की जाती है. इसे रिटर्निंग ऑफिसर की निगरानी में किया जाता है. इसके आधे घंटे के बाद ईवीएम के वोटों की गिनती शुरू होती है जो सहायक रिटर्निंग ऑफिसर की देखरेख में होती है.

2019 के लोकसभा चुनावों तक डाक मतपत्रों की गिनती ईवीएम की गिनती से 30 मिनट पहले शुरू होती थी. ईवीएम की गिनती पूरी होने से पहले सभी डाक मतपत्रों की गिनती पूरी कर ली जाती थी. लेकिन 2019 के चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने दिशानिर्देशों में बदलाव किया. वजह ये कि इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट सिस्टम (ईटीपीबीएस) की शुरुआत के बाद डाक मतपत्रों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई थी. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पांच बेतरतीब ढंग से चयनित मतदान केंद्रों की वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती अनिवार्य कर दी गई थी.

नतीजतन चुनाव आयोग ने 18 मई, 2019 को सभी मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया कि ईवीएम की गिनती "डाक मतपत्रों की गिनती के राउंड की परवाह किए बगैर जारी रह सकती है". हालांकि विपक्ष ने चुनाव आयोग के इस बदलाव पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने वैधानिक नियमों का हवाला देते हुए पहले पोस्टल बैलेट की काउंटिंग पूरी करने की मांग की है.

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 54ए में यह दर्ज है कि रिटर्निंग ऑफिसर पहले-पहल पोस्टल बैलेट की गिनती कराएगा. अब की जो स्थिति है उसमें डाक मतपत्रों की गिनती ईवीएम की गिनती से 30 मिनट पहले शुरू होती है लेकिन इसे ईवीएम काउंटिंग से पहले पूरा करना जरूरी नहीं है. बहरहाल, किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के तहत जितने भी लोग वोट डालते हैं आमतौर पर उन सभी मतों की गणना एक ही हॉल में होती है. अगर उम्मीदवारों की संख्या अधिक है तो हॉल या टेबल की संख्या बढ़ाई जा सकती है. लेकिन इसके लिए निर्वाचन आयोग की पहले से अनुमति लेनी होती है.

जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 128 और 129 के मुताबिक, मतगणना से जुड़ी जानकारी को गुप्त रखना बहुत जरूरी है. मतगणना से पहले कौन से अधिकारी किस निर्वाचन क्षेत्र की और कितने नंबर की टेबल पर गिनती करेंगे, ये सारी जानकारी पहले नहीं बताई जाती. सुबह पांच से छह बजे के बीच सभी अधिकारियों को मतगणना सेंटर पहुंचना होता है. इसके बाद जिले के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और मतगणना केंद्र के रिटर्निंग ऑफिसर रैंडम तरीके से सुपरवाइजर और कर्मचारी को हॉल नंबर और टेबल नंबर अलॉट करते हैं.

किसी एक मतगणना हॉल में काउंटिंग के लिए 14 टेबल और एक टेबल रिटर्निंग ऑफिसर के लिए लगी होती है. किसी हॉल में इससे ज्यादा टेबल लगाने के नियम नहीं हैं. हालांकि विशेष परिस्थिति में मुख्य निर्वाचन अधिकारी के आदेश पर टेबल की संख्या बढ़ाई जा सकती है. काउंटिंग के लिए राउंड सिस्टम क्या है, इसे ऐसे समझिए कि पहले राउंड में पोस्टल बैलट की गिनती होती है. इसके बाद ईवीएम खुलने का नंबर आ जाता है. एक राउंड में 14 टेबलों पर 14 ईवीएम मशीनें एक साथ खोली जाती हैं. जब इन सभी मशीनों की गिनती पूरी हो जाती है तो पहला राउंड पूरा हो जाता है. अगर पोलिंग बूथों की संख्या ज्यादा होती है तो इनकी संख्या बढ़ भी सकती है.

साफ है जिस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में वोटरों की संख्या जितनी ज्यादा होती है वहां वोटों की गिनती में समय भी ज्यादा लगता है. मतों की गिनती काउंटिंग सुपरवाइजर और काउंटिंग असिस्टेंट के द्वारा की जाती है.

अब सवाल उठता है कि यह गणना कैसे होती है. दरअसल, ईवीएम के कंट्रोल यूनिट में एक "रिजल्ट" बटन होता है जिसमें उस निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक उम्मीदवार को मिले मतों की संख्या का डेटा होता है. इसके अलावा उस निर्वाचन क्षेत्र से कितने उम्मीदवारों ने चुनाव में हिस्सा लिया था, इसकी भी जानकारी मौजूद रहती है. इस बटन को जब दबाया जाता है तो ये सारी जानकारियां सामने आ जाती हैं. ये जानकारी बीप की ध्वनि के साथ प्रत्येक उम्मीदवार के लिए बारी-बारी से प्रदर्शित होती है.

मतगणना के दौरान सभी टेबलों पर हर उम्मीदवार की ओर से एक एजेंट होता है. वहीं एक एजेंट रिटर्निंग ऑफिसर के पास बैठता है. इस तरह एक हॉल में किसी भी उम्मीदवार की ओर से 15 से ज्यादा एजेंटों को मौजूद रहने की अनुमति नहीं दी जाती. विशेष परिस्थिति में टेबल की संख्या बढ़ाए जाने पर एजेंटों की संख्या बढ़ सकती है. उम्मीदवार खुद अपने एजेंट चुनता है और स्थानीय निर्वाचन अधिकारी से अप्रूव करवाता है. निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के प्रारूप -18 में इस तरह के नियुक्ति की बात कही गई है. मतगणना एजेंटों की लिस्ट नाम और फोटो सहित काउंटिंग की तारीख से तीन दिन पहले जारी की जाती है.

ईवीएम पर वोट की गिनती पूरी होते ही उसके आंकड़े इन एजेंटों को भी बता दिए जाते हैं. सभी राउंड के आंकड़े जब रिटर्निंग ऑफिसर दर्ज कर लेता है तो वह इसकी जानकारी इन मतगणना एजेंटों को दे देता है. इस तरह हर वोट की जानकारी इन एजेंटों के पास रहती है. सभी राउंड पूरे हो जाने के बाद जीत-हार का कुल आंकड़ा जारी कर दिया जाता है. इन आंकड़ों को ये एजेंट हर राउंट के हिसाब से उनको मिले आंकड़े से मिला लेते हैं. कोई आपत्ति होने पर रिटर्निंग ऑफिसर या फिर निर्वाचन अधिकारी से शिकायत भी कर सकते हैं.

ईवीएम मतों की गणना के बाद रैंडम तरीके से किन्हीं पांच वीवीपैट (वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स) मशीनों की पर्ची के साथ इनका मिलान किया जाता है. चुनाव आयोग ने ईवीएम में मतदाताओं का भरोसा कायम करने के लिए 2013 में इसकी शुरुआत की थी. वीवीपैट, ईवीएम के कंट्रोल यूनिट और बैलट यूनिट दोनों से केबल के जरिए जुड़ा रहता है. इस मशीन में किसी भी दल को दिए गए वोट की पर्ची दर्ज होती है. यह मतदान के समय मतदाता को करीब सात सेकेंड तक दिखाई जाती है. इसके बाद इसे मशीन में कलेक्ट कर लिया जाता है.

इस लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने चुनाव आयोग से मांग की थी कि सभी ईवीएम मशीनों के साथ वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाए. लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग ने ये अपील खारिज कर दी थी. फिलहाल पुराने नियम के मुताबिक हर लोकसभा क्षेत्र की एक-एक विधानसभा सीट से पांच रैंडम तरीके से चयनित वीवीपैट मशीनों की पर्चियों के साथ ईवीएम मतों का मिलान किया जाएगा. बहरहाल, वीवीपैट की काउंटिंग के सत्यापन के लिए काउंटिंग हॉल में अलग से टेबल लगाई जाती है जहां इन पर्चियों का मिलान ईवीएम के मतों से किया जाता है.

मतगणना की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव आयोग की ओर से जीते हुए प्रत्याशी को प्रमाण पत्र दिया जाता है. यह प्रमाण पत्र जिला निर्वाचन अधिकारी यानी डीएम की ओर से जारी किया जाता है.

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