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मुंबई हाईकोर्ट ने कहा-'कानूनी हद में रहे ED'; क्यों इस ताकतवर एजेंसी पर लगाया 1 लाख जुर्माना?

मुंबई हाईकोर्ट ने केंद्र की सबसे ताकतवर एजेंसियों में से एक ED यानी प्रवर्तन निदेशालय पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है और साथ ही कानूनी दायरे में रहकर काम करने की भी सलाह दी है

मुंबई हाईकोर्ट ने ED पर लगाया जुर्माना
मुंबई हाईकोर्ट ने ED पर लगाया जुर्माना
अपडेटेड 22 जनवरी , 2025

जनवरी की 21 तारीख को मुंबई हाईकोर्ट ने ED पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है.  साथ ही कहा कि केंद्रीय एजेंसियां ​​लोगों को परेशान करके कानून अपने हाथ में नहीं ले सकतीं.

दरअसल, मुंबई में एक सिविल मुकदमे मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाने पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते वक्त हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि सरकारी एजेंसियों को कड़ा संदेश जाना चाहिए कि उन्हें कानूनी दायरे में रहकर ही अपना काम करना है. 

किस मामले में कोर्ट ने ED के खिलाफ ये फैसला सुनाया है? 

मुंबई के एक एक रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन के खिलाफ एक प्रॉपर्टी खरीदार गुल अचरा ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी. इसमें रियल एस्टेट डेवलपर पर धोखाधड़ी और समझौता तोड़ने के आरोप लगाया गया था. 

पुलिस ने इसे सिविल मामला बताकर क्रिमिनल केस दर्ज करने से मना कर दिया था. इसके बाद खरीदार अछरा ने अंधेरी मजिस्ट्रेट अदालत का दरवाजा खटखटाया. अछरा ने कोर्ट में मुंबई पुलिस से एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देने की अपील की. 

इसके बाद अंधेरी कोर्ट ने विले पार्ले पुलिस को मामले की जांच करने का निर्देश दिया. इस बीच विले पार्ले पुलिस ने फाइलें ED को भेज दीं. कुछ समय बाद ED ने भी इस मामले की जांच शुरू कर दी. जब यह सब हो रहा था, तब अछरा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कब्जे का प्रमाण पत्र मांगा और उन्हें  यह प्रमाण पत्र मिल गया.

दूसरी तरफ ईडी ने जांच शुरू करते ही कथित तौर पर अछरा की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि जैन ने उनके साथ धोखाधड़ी की. ED के मुताबिक धोखाधड़ी के आरोप लगने के कुछ दिनों बाद ही रियल एस्टेट डेवलपर जैन ने अंधेरी में दो फ्लैट और एक गैराज खरीदा था. इस बुनियाद पर ED ने इन संपत्तियों को "अपराध की आय" बताकर इसे कुर्क करने की इजाजत दे दी. 

इस आदेश के खिलाफ जैन मुंबई हाईकोर्ट पहुंचे. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि ED ने इस मामले की गहराई से जांच किए बिना मनी लॉन्ड्रिंग और आपराधिक प्रक्रिया शुरू कर दी. 

जैन के वकील केविक सेतलवाड़ ने दावा किया कि शिकायतकर्ता गुल अछरा के साथ विवाद एक व्यावसायिक संपत्ति के लिए ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (OC) हासिल करने में देरी से शुरू हुआ था. ऐसे में यह पूरा मामला सिविल केस का है न कि मनी लॉन्ड्रिंग का है.

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

मुंबई हाईकोर्ट में जस्टिस मिलिंद जाधव की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. जस्टिस मिलिंद जाधव ने सुनवाई पूरी होने के बाद कहा कि अछरा को मजिस्ट्रेट के पास जाने का अधिकार था, लेकिन वहां उन्होंने मुंबई पुलिस के इस बयान को छिपा लिया, जिसमें कहा गया था कि ये विवाद सिविल मामले से जुड़ा है. 

पीठ ने कहा कि केवल वादा, समझौता या अनुबंध के उल्लंघन को आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं माना जा सकता है. जब तक कि इसमें कोई दूसरा स्पष्ट मामला इससे जुड़ा नहीं है. पीठ ने कहा, "इस मामले में IPC की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत आरोप का कोई आधार नहीं है."

इसके बाद फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा, “चूंकि मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर था, इसलिए विले पार्ले पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज मामला निरस्त किया जाता है. साथ ही ED भी इस मामले में केस नहीं दर्ज कर सकता.” 

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने भी ED को लगाई थी फटकार 

इससे पहले 26 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के लंबे समय जेल काटने पर जिंता जताते हुए कहा था कि PMLA कानून को टूल नहीं बनने दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “ED में चल रहे मुकदमे को निपटाने में हो रही देरी और जमानत देने में कड़े मानक एक साथ नहीं चल सकते.”

कोर्ट ने कहा था कि पीएमएलए की धारा 45 (1)(3) जैसे जमानत के कड़े प्रावधान का इस्तेमाल आरोपी को बिना ट्रायल के बहुत लंबे समय तक जेल में रखने के लिए नहीं हो सकता. ये प्रावधान मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर जमानत देने की संवैधानिक अदालतों की शक्तियों को नहीं छीन सकते. 
 

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