फेस्टिव सीजन के बीच उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने GST की दरों में अहम बदलाव किए. उम्मीद थी कि साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, चायपत्ती, बिस्कुट जैसे रोजमर्रा के इस्तेमाल वाले सामान सस्ते होंगे और आमजन को सीधी राहत मिलेगी.
लेकिन बाजार की हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है. इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर को छोड़कर दूसरे ज्यादातर उत्पादों पर अभी तक इस राहत का कोई असर नहीं दिख रहा है. दुकानदार पुराने दामों पर सामान बेच रहे हैं और उपभोक्ता को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है.
27 सितंबर को लखनऊ के अमीनाबाद में एक ग्राहक ने 75 ग्राम का साबुन, 150 ग्राम का टूथपेस्ट और 250 ग्राम चायपत्ती खरीदी. दुकानदार ने साबुन के 24 रुपये, टूथपेस्ट के 110 और चायपत्ती के 150 रुपये मांगे. ग्राहक अजय शुक्ला ने विरोध किया, “सरकार ने GST घटाकर राहत देने की घोषणा की है. साबुन का दाम 21, टूथपेस्ट 99 और चायपत्ती 135 रुपये होना चाहिए. फिर हम ज्यादा क्यों दें?”
दुकानदार और ग्राहक में बहस हुई और अजय बिना सामान लिए लौट गए. पास की ही दुकान पर राजेश नामक ग्राहक ने दस रुपये वाले बिस्कुट के पांच पैकेट खरीदे. दुकानदार ने 50 रुपये मांगे जबकि ग्राहक का कहना था कि नया दाम 45 रुपये होना चाहिए. नतीजा यह हुआ कि सौदा ही नहीं हुआ. यह विवाद सिर्फ दो दुकानों का नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में ग्राहकों और दुकानदारों के बीच आम हो गया है.
टैक्स घटा पर MRP नहीं
GST विशेषज्ञ कार्तिकेय सिंह बताते हैं कि समस्या MRP और रिटेल प्रैक्टिस से जुड़ी हुई है. उनके मुताबिक, “कंपनियां MRP में उत्पादन लागत, परिवहन, पैकेजिंग और टैक्स सब शामिल करती हैं. जब टैक्स घटता है तो MRP भी घटनी चाहिए. लेकिन कंपनियां और रिटेलर इसका फायदा खुद रख लेते हैं. ग्राहक को असल कीमत का पता ही नहीं चलता.” कार्तिकेय एक उदाहरण देते हैं, “किसी दवा का थोक मूल्य 70 रुपये है और MRP 100 रुपये. टैक्स घटने के बाद दवा की कीमत 57 रुपये होनी चाहिए. ईमानदारी से फायदा आगे बढ़े तो ग्राहक को यह 87 रुपये में मिल सकती है. लेकिन दुकानदार MRP 100 रुपये ही वसूलता है. उसके लिए मुनाफा 50 फीसदी से अधिक हो जाता है.”
लखनऊ के नजीराबाद दवा बाजार में कारोबारी संजय कुमार बताते हैं, “हमने 18 फीसदी टैक्स देकर स्टॉक खरीदा था. अब वही दवा 5 फीसदी स्लैब में आ गई है. अगर पुराना स्टॉक सस्ता बेचेंगे तो हमें नुकसान होगा. इसलिए दवा पुरानी दर पर ही बेची जा रही है.” बाजार में करीब 30-40 फीसदी कारोबारियों ने अपना सॉफ्टवेयर अपडेट कर लिया है. लेकिन बाकी 60 फीसदी अब भी पुराने रेट पर काम कर रहे हैं. सीए रवींद्र श्रीवास्तव कहते हैं, “सरकार ने कंपनियों को पुराने स्टॉक पर नई रेट की चिप्पी लगाने की अनुमति दी है ताकि ग्राहक को तुरंत फायदा मिल सके. लेकिन कंपनियों ने ऐसा करने में रुचि नहीं दिखाई. उनकी कोशिश यही रही कि पुराने दाम पर ज्यादा से ज्यादा कमाई हो जाए.”
पुराने स्टॉक का बहना बना रहे दुकानदार
प्रयागराज के बैंककर्मी गगन कुमार का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है. वे बताते हैं, “जैसे ही दाम बढ़ते हैं दुकानदार उसी दिन बढ़ी कीमत वसूलने लगते हैं. लेकिन दाम घटने पर हर जगह बहाना मिलता है कि पुराना महंगा माल पड़ा है. फिर ग्राहक को फायदा क्यों मिलेगा.” कानपुर की गृहिणी रीता वर्मा कहती हैं, “सरकार ने टीवी पर बार-बार विज्ञापन दिया कि सामान सस्ते होंगे. लेकिन आज भी साबुन और टूथपेस्ट पुराने दाम पर ही मिल रहे हैं. दुकानदार से पूछो तो कहता है कि जब नया स्टॉक आएगा तभी दाम घटेंगे.”
स्टेशनरी बाजार में स्थिति और भी उलझी हुई है. कॉपियों के लिए इस्तेमाल होने वाले कागज पर GST शून्य कर दिया गया है. लेकिन पेपर मिलें निर्माताओं से 18 फीसदी टैक्स वसूल रही हैं. कॉपी बनाने वाली कंपनियों ने MRP कम नहीं की. लखनऊ के स्टेशनरी व्यापारी राकेश अग्रवाल कहते हैं, “कागज की खरीद पर हमें टैक्स देना पड़ता है. कॉपी पर छूट दिखाना आसान नहीं है. लेकिन हम भी मानते हैं कि ग्राहक को सस्ते दाम पर कॉपी नहीं मिल रही.”
आगरा के फुटवियर व्यापारी नसीम खान बताते हैं, “हमारे यहां एचएसएन कोड की गड़बड़ी की वजह से कई उत्पाद अभी भी 18 फीसदी स्लैब में दिख रहे हैं. इससे ग्राहक को लाभ नहीं मिल पा रहा.” रेडीमेड कपड़ों पर कुछ छूट जरूर दिखी लेकिन बहुत सीमित. बनारस के व्यापारी विजय मिश्र का कहना है, “2500 रुपये तक के कपड़ों पर टैक्स घटने से हमें राहत मिली. लेकिन थोक व्यापारी ने छूट देने के बजाय अपना मार्जिन बढ़ा लिया. ग्राहकों तक असल फायदा नहीं पहुंचा.”
इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल अपवाद क्यों
इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर में तस्वीर अलग है. यहां कंपनियों ने तुरंत कीमतें घटाकर ग्राहकों को फायदा दिया. मारुति और हुंडई जैसी कंपनियों ने GST घटने के बाद कारों की कीमत 20,000 से 50,000 रुपये तक कम की. टू-व्हीलर कंपनियों ने भी छूट दी जिससे बिक्री में 18 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज की गई. इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स जैसे टीवी, फ्रिज और वॉशिंग मशीन पर भी कंपनियों ने तुरंत छूट दी. नतीजा यह कि इस सेक्टर में GST का असर साफ दिखा.
इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर में GST की दरों में कमी का असर बाकी सेक्टरों की तुलना में कहीं ज्यादा स्पष्ट दिखाई दे रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दोनों उद्योगों का उत्पादन और वितरण ढांचा अपेक्षाकृत संगठित है. विशेषज्ञों का मानना है कि संगठित सप्लाई चेन और ब्रांडेड कंपनियों की उपस्थिति ने टैक्स कटौती का सीधा फायदा उपभोक्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. आटोमोबाइल सेक्टर पर नजर रखने वाले लखनऊ के दिवस चतुर्वेदी बताते हैं, “इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसी इंडस्ट्रीज पूरी तरह टैक्स स्ट्रक्चर पर निर्भर रहती हैं. जब सरकार ने GST दरों को घटाया तो कंपनियों ने तुरंत कीमतों को समायोजित किया, क्योंकि यह सीधे उनकी बिक्री और मार्केट शेयर से जुड़ा था.”
ऑटोमोबाइल क्षेत्र में कंपनियां पहले ही मंदी से जूझ रही थीं, ऐसे में टैक्स रेट कम होने पर उन्होंने कीमतें घटाकर उपभोक्ता को आकर्षित करने की रणनीति अपनाई. यही कारण है कि गाड़ियों की कीमतों में कुछ महीनों के भीतर औसतन 5 से 7 प्रतिशत तक की कमी देखी गई. इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में भी ब्रांडेड कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा काफी सख्त है.
मोबाइल फोन और टीवी जैसे उत्पादों में एक-दो हजार रुपये की कमी भी ग्राहकों को खींचने का बड़ा जरिया बनती है. उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इन कंपनियों ने टैक्स घटने के तुरंत बाद नए ऑफर और छूट योजनाएं पेश कर दीं, जिससे ग्राहकों का भरोसा भी बढ़ा. इसका नतीजा यह हुआ कि इन दोनों क्षेत्रों में GST कटौती का फायदा सीधे ग्राहकों तक पहुंचा और बाजार में बिक्री बढ़ाने का एक ठोस औजार बन गया. इसके विपरीत, असंगठित क्षेत्रों में यही लाभ उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पा रहा.
शिकायतों में इजाफा
GST की दरों में कमी आने के बाद इसका लाभ न मिलने की शिकायतें भी बढ़ी हैं. लखनऊ के व्यापार कर विभाग के अनुसार 22 सितंबर से 26 सितंबर के बीच राज्य में कुल 18,000 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुईं. इनमें से 40 फीसदी शिकायतें दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर थीं. जबकि सिर्फ 12 फीसदी शिकायतें इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल से जुड़ी थीं. यानी जिन सेक्टरों में कीमतें कम हुईं वहां विवाद नहीं हुआ, लेकिन जहां राहत नहीं पहुंची वहां ग्राहकों का गुस्सा सामने आया.
योगी सरकार ने GST राहत उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए कई कदम उठाए. उपभोक्ता हेल्पलाइन 1915 और व्हाट्सएप नंबर 8800001915 शुरू किया गया. जागरूकता अभियान चलाए गए. दुकानदारों को निर्देश दिए गए कि पुराने स्टॉक पर नई कीमत की चिप्पी लगाएं. लेकिन इन प्रयासों का असर सीमित रहा. उपभोक्ता अभी भी शिकायत कर रहे हैं कि बाजार में दाम वही हैं.
GST लागू होने के सात साल बाद भी यह सवाल कायम है कि क्या यह व्यवस्था उपभोक्ता हित में है या सिर्फ कारोबारी वर्ग के लिए मुनाफे का जरिया. जब तक MRP तय करने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी और कंपनियों को सख्ती से जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, तब तक टैक्स दरों में बदलाव का वास्तविक असर जनता तक नहीं पहुंचेगा. इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल अपवाद हैं, लेकिन साबुन, टूथपेस्ट, चायपत्ती, बिस्कुट, दवा और कॉपी जैसे रोजमर्रा के सामानों पर उपभोक्ता को अभी भी राहत का इंतजार है.