पहले दो दौर की वार्ता विफल रहने के बाद 15 फरवरी को किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच चंडीगढ़ में तीसरी बैठक हुई थी. इस मीटिंग में किसान संगठनों की ओर से जगजीत डल्लेवाल और सरवन सिंह पंढेर समेत 14 किसान नेताओं ने हिस्सा लिया, जबकि केंद्र की तरफ से केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के अलावा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और नित्यानंद राय शामिल है.
इस बैठक के बाद अर्जुन मुंडा ने जानकारी दी कि बातचीत 'सकारात्मक' रही और अगली बैठक 18 फरवरी को होगी. इस जानकारी का सीधा मतलब है कि दोनों पक्ष अभी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं. एक दिन पहले इनके बीच वर्चुअल बैठक भी हुई थी. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी समेत बाकी मांगें मनवाने के लिए किसान 13 फरवरी से ही हरियाणा की शंभू बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
यहां हरियाणा पुलिस ने 7 लेयर की बैरिकेडिंग और आंसू गैस के गोले छोड़कर तीन दिनों से आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोका हुआ है. किसानों की प्रमुख मांग है- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर सभी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बनाना.
19 नवंबर, 2021 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन 'विवादित' कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी तो साथ में उन्होंने कहा था, "जीरो बजट खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने, एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने और ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा."
वे तीन कानून थे- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, किसान (सशक्तीकरण व संरक्षण) समझौता मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) अधिनियम 2020.
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के बाद दिसंबर में किसानों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया था. इसके करीब 7 महीने बाद सरकार ने जुलाई 2022 में एक समिति का गठन किया. इस बारे में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 18 जुलाई, 2022 को अधिसूचना दी गई. यह समिति प्रधानमंत्री मोदी के विजन के अनुरूप प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश की जरूरत के मुताबिक फसल चक्र को बदलने और एमएसपी को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए स्थापित की गई थी. हालांकि इसकी शर्तों में एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी शामिल नहीं थी.
इस समिति में 26 सदस्य हैं जिसके अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल हैं. जबकि अन्य सदस्यों में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र, दो कृषि अर्थशास्त्री, एक पुरस्कार विजेता किसान, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के अलावा अन्य किसान संगठनों के पांच प्रतिनिधि, किसान सहकारी समितियों के दो प्रतिनिधि, कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) का एक सदस्य, कृषि विश्वविद्यालय या संस्थानों से तीन सदस्य, भारत सरकार के पांच सचिव, चार राज्यों के चार अधिकारी और कृषि मंत्रालय से एक संयुक्त सचिव शामिल हैं.
सरकार ने समिति से सुझाव देने के लिए कहा है कि कैसे सिस्टम को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाकर देश के किसानों के लिए एमएसपी उपलब्ध कराया जा सकता है. इसके अलावा पैनल से वे सिफारिशें भी मांगी गई हैं कि घरेलू और निर्यात अवसरों का लाभ उठाकर कैसे किसानों को उनकी उपज का अधिकतम फायदा उपलब्ध कराया जा सकता है और कृषि विपणन प्रणाली को मजबूत बनाया जा सकता है.
पैनल में अब तक क्या प्रगति हुई?
18 जुलाई, 2022 को जब कृषि मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की थी तो विषय वस्तु के रूप में तीन बिंदुओं को चिह्नित किया था. एमएसपी, प्राकृतिक खेती और फसल विविधता. समिति के गठन के बाद पहली बार इन बिंदुओं पर 22 अगस्त, 2022 को बैठक हुई. कृषि मंत्रालय के मुताबिक, समिति उसे सौंपे गए मामलों पर नियमित आधार पर बैठक कर रही है.
समिति द्वारा अब तक 6 मुख्य बैठकें और 31 उप-समूह कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं. मंत्रालय की 18 जुलाई की अधिसूचना में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि संजय अग्रवाल समिति के कार्यकाल की अंतिम समय-सीमा क्या होगी. इसलिए समिति इस समय बंधन से परे है कि उसे अमुक दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी.