
एक ऑफिस फ्लोर जिसमें सौ से ज्यादा लोग बैठकर काम कर रहे हों, अगर आपको दो लोग बिल्कुल कोने में दबी ज़बान में कुछ बात करते दिखें तो इससे दो ऐसे रिएक्शन पैदा होते हैं जो एक दूसरे से जुड़े होते हैं. पहला, कि आपको एक विकट बेचैनी होगी कि आख़िर ये दोनों बात क्या कर रहे हैं. दूसरी, इसी बेचैनी से जुड़ी एक इच्छा मन में उपजेगी कि काश ये ‘क्लोज सर्किट’ बातचीत आप सुन पाते. इसी इच्छा से मानवता के इतिहास में जासूसी की विधा का जन्म हुआ. रहस्य जानने का क्लासिक आर्ट!
इससे पहले कि आगे बढ़ें एक इस क्लासिक आर्ट के बारे में एक मज़ेदार बात समझते चलते हैं. जैसे एक सधा हुआ आर्टिस्ट हर मेंटल प्रॉम्प्ट को आर्ट में कन्वर्ट करने के लिए सीरियस अटेम्प्ट नहीं करता, वैसे ही अपनी तरफ बुलाते हर राज़ को फ़ाश करने की ख्वाहिश इंसान को ले डूबती है. और इसके सुबूत हमारे अपने बुज़ुर्ग लिख गए हैं. थिएटर यानि नाटक पर सबसे पहला और संभवतः आख़िरी भी ठोस वैज्ञानिक काम भरतमुनि ने किया.
नाटक को बाक़ायदा एक शास्त्र मानकर उसका राई रत्ती समझाया है भरतमुनी ने. और आज भी नाटक के लिए सबसे ठोस रेफरेंस के तौर पर भरतमुनी के लिखे नाट्यशास्त्र की ही बात की जाती है. इस नाट्यशास्त्र में भरतमुनी ने ‘रहस्य’ के तत्व को नाटक के मूल तत्वों में से एक माना है. इसके उदाहरण के तौर पर एक ऐसे किरदार ‘शाटक’ की कल्पना की गई है जिसे सिर्फ और सिर्फ रहस्य ही रोमांचित करते थे. किसी वजह से शाटक को ऐसी ताकत मिल जाती है जिससे वो दूसरों की बातें सुन सकता था. ये ताकत मिलने के कुछ ही दिनों बाद शाटक आत्महत्या कर लेता है.
भरतमुनी ने ‘शाटक’ के बहाने यह समझाने की कोशिश की थी कि दूसरों की बातें ना सुन सकना असल में मानव का वरदान है, नहीं तो दूसरे आपके बारे में क्या बात करते हैं अगर ये आप सुन लें तो ‘शाटकगति’ ही उपाय बचेगा. ये तो हुई जासूसी के शौक़ की बात, जहां आपका मन करता है कि बातें सुनें.
लेकिन, जब ये आपके पेशे की ज़रूरत बन जाती है तब? तरीके निकालने होते हैं, तकनीक खोजनी होती है. क्या आपने कभी सोचा कि कोई ऐसा फोन कॉल या मैसेज हो, जिसे कोई हैक न कर सके, जासूसी न कर सके, और जिसे कोई भी तीसरा व्यक्ति किसी भी हाल में सुन ना सके? भारत ने ऐसा ही एक कमाल का आविष्कार किया है! रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली ने मिलकर एक ऐसी तकनीक बनाई है, जो हवा में एक किलोमीटर से ज़्यादा दूरी तक पूरी तरह ‘सुरक्षित संदेश’ भेज सकती है. इस तकनीक को कहते हैं क्वांटम कम्युनिकेशन, और यह भारत के लिए निश्चित तौर पर एक उपलब्धि है. आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि यह उपलब्धि है क्या और क्यों इतनी खास है.

क्वांटम कम्युनिकेशन किसी जादू से कम नहीं
वैसे तो अब चिट्ठियों का दौर है नहीं. लेकिन फिर भी कल्पना करने में हर्जा ही क्या है, तो कल्पना करें कि आप अपने दोस्त को एक टॉप सीक्रेट चिट्ठी भेजना चाहते हैं, लेकिन डाकिया या कोई और उसे पढ़ने की कोशिश करे तो चिट्ठी अपने आप गायब हो जाए! क्वांटम कम्युनिकेशन कुछ ऐसा ही करता है. यह एक ऐसी तकनीक है जो बहुत छोटे कणों, जिन्हें क्वांटम कण कहते हैं, का इस्तेमाल करती है. ये कण इतने खास हैं कि अगर कोई इन्हें किसी भी तरह से छूने या देखने की कोशिश करता है, तो वे तुरंत बदल जाते हैं, और हमें पता चल जाता है कि कोई जासूसी कर रहा है.
उदाहरण के लिए, मान लीजिए आप अपने बैंक खाते का पासवर्ड किसी को भेज रहे हैं. आजकल के इंटरनेट दौर में हैकर्स उस पासवर्ड को चुरा सकते हैं. लेकिन क्वांटम कम्युनिकेशन में पासवर्ड को ऐसे भेजा जाता है कि अगर कोई बीच में झांकने की भी कोशिश करे, तो पासवर्ड अपने आप बेकार हो जाता है. यानी आपका मैसेज है सौ फीसद सीक्रेट.
IIT दिल्ली में हुआ ये जादू!
IIT दिल्ली के कैंपस में DRDO और IIT की टीम ने यह एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने हवा में, बिना किसी तार या केबल के, एक किलोमीटर से ज़्यादा दूरी तक एनक्रिप्टेड मैसेज भेजा. इसे फ्री-स्पेस क्वांटम कम्युनिकेशन कहते हैं. इस एक्सपेरिमेंट में दो क्वांटम कणों को इन्टैन्गल्ड पोजीशन में रखा गया. इसका मतलब है कि ये कण एक-दूसरे से कुछ इस तरह जुड़े थे कि अगर एक कण में कोई बदलाव हुआ, तो दूसरे में भी तुरंत बदलाव हो जाएगा चाहे वो कितनी दूर हो. इसे समझने के लिए एक मिलिट्री फ़ॉर्मेशन की मदद से कोशिश करते हैं.
क्या आपने कभी वीवीआईपी मूवमेंट देखा है? अगर आप दिल्ली में हों और कभी आपको बेवजह सड़क का ट्रैफिक रोककर खड़े पुलिसवाले दिखाई दें तो ये इसी मूवमेंट का एक इशारा है. इसका मतलब कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यों के गवर्नर और मुख्यमंत्री जैसी कोई ‘वीवीआईपी’ हस्ती का रूट क्लियर रखने के लिए ट्रैफिक रोका गया है. हो सकता है आपने ध्यान ना दिया हो, लेकिन अगली बार जब इस तरह का रूट क्लियरेंस प्रोटोकॉल लगा हो तो ख़ाली रखी गई सड़क के किनारे ध्यान से देखें. आपको ट्रैफिक की तरफ मुंह और वीवीआईपी रूट की तरफ पीठ किए सुरक्षाबलों के हथियारबंद जवान दिखाई देंगे.
इस वीवीआईपी रूट में खुली सड़क की तरफ से कोई भीतर ना घुस आए इसलिए ये जवान तैनात रहते हैं. अब थोड़ा ध्यान और दें तो आपको इन जवानों की तैनाती में एक ज़ाहिर दिख रहा पैटर्न दिखाई देगा. ये जवान इस तरह तैनात होते हैं कि हर जवान अपने दाएं और बाएं तैनात जवान को देख सकता है. इस बेहद पुराने लेकिन कमाल के कारगर फ़ॉर्मेशन को ‘लेफ्ट राइट फ़ॉर्मेशन’ कहा जाता है. एक जगह तैनात जवान का सिर एक सौ अस्सी डिग्री तक घूम सकता है. उसकी ड्यूटी के तीन साइट पॉइंट्स हैं. ज़ीरो डिग्री पर बाएं के जवान को देखना, नब्बे डिग्री पर सामने के एरिया को देखना और एक सौ अस्सी डिग्री पर दाएं खड़े अपने साथी जवान पर नज़र रखना.
अब ये समझिए कि इस फ़ॉर्मेशन की तकनीक से कई किलोमीटर के खुले एरिया को सिंगल टाइम सिक्योर किया जा सकता है. जवान को क्लियर इंस्ट्रक्शन होते हैं कि अगर उसे अपने दाएं और बाएं खड़े जवानों में से कोई भी नहीं दिखाई दे रहा तो इसका मतलब है ‘रेड अलर्ट’. जवान को बिना अपनी जगह छोड़े कमांड को रिपोर्ट करना होगा और इसे कमांड सेंटर इसे सिक्योरिटी ब्रीच मानकर एक्शन में आ जाएगा. और वीवीआइपी काफ़िला सुरक्षित रहेगा.

बस यही है क्वांटम कणों की इन्टैन्गल्ड पोजीशन. यानि क्वांटम इन्टैन्गलमेंट. जैसे ही एक कण के अगले या पिछले कण से किसी भी तरह की छेड़छाड़ की जाएगी, इन कणों की पीठ पर सवार मैसेज अपने आप ग़ायब हो जाएगा.
DRDO और IIT दिल्ली का कमाल का सफर
ये कमाल DRDO के एक खास प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसका नाम है फोटोनिक टेक्नोलॉजीज़ फॉर फ्री-स्पेस QKD. इसे IIT दिल्ली के प्रोफेसर भास्कर कन्सेरी और उनकी टीम ने बनाया है. DRDO ने इस प्रोजेक्ट को पैसा और सपोर्ट दिया और IIT ने अपनी स्मार्ट रिसर्च से इसे हकीकत बनाया. इस एक्सपेरिमेंट को देखने के लिए DRDO के बड़े अधिकारी, जैसे डायरेक्टर जनरल और डायरेक्टर SAG, और IIT दिल्ली के डीन मौजूद थे. DRDO ने देशभर में 15 ऐसे सेंटर्स बनाए हैं, जहाँ IITs और दूसरे बड़े संस्थानों के साथ मिलकर नई-नई तकनीकें बनाई जा रही हैं.
पहले भी दिखा चुके हैं जलवा
यह पहली बार नहीं है जब DRDO और प्रोफेसर भास्कर की टीम ने क्वांटम कम्युनिकेशन में कमाल किया हो. 2022 में उन्होंने विंध्याचल और प्रयागराज के बीच तारों के ज़रिए भारत का पहला क्वांटम कम्युनिकेशन लिंक बनाया था. फिर 2024 में 100 किलोमीटर लंबे टेलीकॉम केबल के ज़रिए सुरक्षित संदेश भेजा. अब हवा में यह प्रयोग दिखाता है कि भारत क्वांटम तकनीक में कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.
क्यों है ये इतना ज़रूरी?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे “भविष्य के युद्ध का हथियार” कहा. उन्होंने बताया कि ये तकनीक भारत को डिजिटल दुनिया में और मज़बूत बनाएगी. DRDO के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत और IIT दिल्ली के डायरेक्टर प्रोफेसर रंगन बनर्जी ने भी इसे भारत की तकनीकी ताकत का प्रतीक बताया.
क्वांटम कम्युनिकेशन से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के बदलने वाले रुख पर जम्मू कश्मीर पुलिस के रिटायर्ड सीनियर अफ़सर शफ़क़त बेग कहते हैं, “आतंकवाद के खिलाफ दस में से आठ ऑपरेशन सिर्फ इसलिए नाकाम हो जाते हैं क्योंकि हमारा कम्युनिकेशन लीकेज टेरेरिस्ट ग्रुप्स को फायदा पहुंचाता है. अगर इस तरह की तकनीक कश्मीर के कनफ्लिक्ट ज़ोन में इस्तेमाल की जाए तो मैं दावे के साथ कह सकत हूँ कि हमारी फ़ोर्स का सक्सेस रेट कई गुना बढ़ जाएगा. दुनिया भर से जुटाई हुई महंगी तकनीक जब टेरेरिस्ट के लिए बेकार हो जाएगी तो इसका सीधा फायदा हमें ग्राउंड ऑपरेशन में मिलेगा”

ये तकनीक कई तरह से खास है-
हैकिंग से आज़ादी: आज के फोन या इंटरनेट को हैक करना मुमकिन है, लेकिन क्वांटम कम्युनिकेशन को नहीं. यह क्वांटम मैकेनिक्स के नियमों पर काम करता है, जो इसे अटूट और अचूक बनाते हैं.
पहाड़ों और शहरों में आसानी: तारों की ज़रूरत न होने से इसे कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे उत्तराखंड के पहाड़ या मुंबई जैसी घनी आबादी वाले शहर.
बैंक और सेना के लिए वरदान: सेना के सीक्रेट मैसेज, बैंक के लेन-देन, या सरकारी डेटा को ये पूरी तरह सुरक्षित रखेगा.
क्वांटम इंटरनेट का सपना: ये तकनीक भविष्य में एक ऐसा इंटरनेट बना सकती है, जो पूरी तरह सुरक्षित और सुपरफास्ट हो.
भारत का “क्वांटम ड्रीम”
यह उपलब्धि भारत के नेशनल क्वांटम मिशन का हिस्सा है, जिसके लिए सरकार ने 6,000 करोड़ रुपये दिए हैं. इस मिशन का लक्ष्य 2031 तक क्वांटम तकनीक में भारत को दुनिया का लीडर बनाना है. भविष्य में इस तकनीक को और लंबी दूरी तक ले जाया जाएगा, और इसे सेना, बैंक, और टेलीकॉम में इस्तेमाल किया जाएगा. सपना ये है कि एक दिन भारत में ऐसा क्वांटम नेटवर्क हो जो पूरे देश को जोड़े. जैसे आज वाई-फाई हर घर में है वैसे ही क्वांटम इंटरनेट हर जगह हो सकता है जो सुरक्षित और तेज़ हो.