भारत से आयात पर टैरिफ में भारी वृद्धि की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा ने देश के शेयर बाजारों को झकझोर दिया है और निर्यातकों को मुसीबत में डाल दिया है. ऐसे में विश्लेषकों का अनुमान है कि इस कदम का अल्पावधि में भारत की वृद्धि पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा.
हालांकि इस घोषणा को कई लोग बातचीत के वाशिंगटन के नए हथकंडे के रूप में देख रहे हैं, इसलिए उनको उम्मीद है कि अब से तीन हफ्ते से भी कम समय में नया टैरिफ लागू होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई आम सहमति बन जाएगी.
एक के बाद एक कई धमकियां देने के बाद ट्रंप ने 7 अगस्त को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसमें अमेरिका पहुंचने वाले भारतीय आयात पर 25 फीसदी का अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया. इस तरह भारतीय वस्तुओं पर लगाया गया अमेरिका का कुल शुल्क 50 फीसदी हो गया. यह अतिरिक्त टैरिफ कच्चे तेल के लिए रूस पर भारत की अत्यधिक निर्भरता के कारण लगाया गया "जुर्माना" है. रूस की फरवरी 2022 से यूक्रेन के साथ जंग जारी है और अमेरिका हथियारों के जरिए यूक्रेन की मदद करता है.
इससे पहले, ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी "जवाबी टैरिफ" लगाने की घोषणा की थी जो 7 अगस्त से लागू हो गए. इनका उद्देश्य कथित तौर पर भारत के साथ अमेरिका के बड़े व्यापार घाटे को कम करना है. आदेश में कहा गया है कि 25 फीसदी का अतिरिक्त नया टैरिफ 27 अगस्त से लागू होगा.
वित्त वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका को 77.5 अरब डॉलर (6.79 लाख करोड़ रुपये) मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया और उससे 42.2 अरब डॉलर (3.7 लाख करोड़ रुपये) मूल्य की वस्तुओं का आयात किया. इससे भारत को 35.3 अरब डॉलर (3.09 लाख करोड़ रुपये) का ट्रेड सरप्लस मिला.
हालांकि भारतीय उद्योग जगत को उम्मीद थी कि दोनों देशों के बीच इस समय द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर जो बातचीत चल रही है, उसमें अमेरिका 25 फीसदी के जवाबी शुल्क को कम कर देगा. लेकिन अतिरिक्त टैरिफ बड़े झटके के रूप में आए हैं और इनसे निर्यातकों के बीच बेहद अनिश्चितता पैदा हो गई है.
गोल्डमैन सैक्स के एक रिसर्च नोट में कहा गया है कि सभी छूटों के बाद भारतीय आयातों पर कुल प्रभावी टैरिफ लगभग 32 फीसदी होगा. अमेरिकी घोषणा के जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार "अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी" जिससे संकेत मिलता है कि भारत ट्रंप के दबाव के आगे झुकने को कतई इच्छुक नहीं है.
भारत ने हमेशा यही कहा है कि रूस से कच्चे तेल का आयात उसके "राष्ट्रीय हित" में है. 2022 से भू-राजनीति के तूफान का केंद्र बना रूस अमेरिका के वित्तीय प्रतिबंधों से बच गया और वह दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं - चीन और भारत - के लिए तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है.
दिलचस्प बात यह है कि चीन भारत की तुलना में रूस से अधिक तेल खरीदता है और पहले अमेरिका के साथ तीखे टैरिफ युद्ध में लगा हुआ था, लेकिन उसे भारत पर लगाए गए टैरिफ से कम यानी 30 फीसदी का ही भुगतान करना पड़ेगा.
रूस उस समय भारत को रियायती दरों पर कच्चे तेल की आपूर्ति कर रहा था जब कच्चे तेल की कीमतें ऊंची थीं. इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं है कि भारत, जो अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है, ने वित्त वर्ष 25 में रूस से अपने कच्चे तेल का 35.8 फीसदी खरीदा. अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता इराक (19.9 फीसदी), सऊदी अरब (13.6 फीसदी), यूएई (9 फीसदी) और अमेरिका (4.3 फीसदी) रहे.
असल में ट्रंप का रुख भारत को अमेरिका से अधिक तेल खरीदने के लिए कहने वाला लगता था. अप्रैल और मई 2025 में भारत के कच्चे तेल के आयात में अमेरिका का हिस्सा 8 फीसदी (औसतन) था. वित्त वर्ष 25 में भारत का तेल आयात बिल 143 अरब डॉलर (12.5 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया और इससे 24.4 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात हुआ जिसकी औसत कीमत 586 डॉलर (लगभग 51,500 रुपये) प्रति टन थी.
ट्रंप टैरिफ का असर आर्थिक वृद्धि पर पड़ेगा. गोल्डमैन सैक्स ने पहले अनुमान लगाया था कि 25 फीसदी टैरिफ का भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पूरे साल में लगभग 0.3 फीसदी का सीधा प्रभाव पड़ेगा. उसका अनुमान है कि अगर अमेरिका 25 फीसदी का अतिरिक्त जुर्माना और लगा देता है तो जीडीपी पर कुल प्रभाव 0.6 फीसदी होगा. उसने एक रिसर्च नोट में कहा है, "यह अनुमान भारत के वस्तु निर्यात कारोबार पर आधारित है जो अमेरिका की मांग में जीडीपी का लगभग 4 फीसदी है."
जैसी कि आशंका थी, अतिरिक्त टैरिफों ने भारतीय शेयर बाजारों को हिला दिया. बीएसई सेंसेक्स 7 अगस्त को दिन के कारोबार में 527 अंक गिर गया जबकि निफ्टी 170 अंक. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के एक रिसर्च नोट में कहा गया है, "विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगातार बिकवाली और अमेरिका-भारत के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव से बाजार के मनोबल पर असर पड़ने की संभावना है. टैरिफ में बढ़ोतरी से कपोड़ा, चमड़ा, रत्न और आभूषण, ऑटो कलपुर्जे, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन और इस्पात जैसे निर्यात वाले प्रमुख क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है."