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दिल्ली के AQI को कोई 500 बताता है तो कोई 1500...असली बात क्या है?

नवंबर के तीसरे हफ्ते में अमेरिकी दूतावास के आंकड़ों ने दिल्ली का AQI 1500 से ऊपर दिखाया जो भारत सरकार के आंकड़ों के तीन गुने से ज्यादा था

सर्दियों में दिल्ली का प्रदूषण से हुआ बुरा हाल
सर्दियों में दिल्ली का प्रदूषण से हुआ बुरा हाल
अपडेटेड 21 नवंबर , 2024

दिल्ली में सर्दियों के साथ वायु प्रदूषण ने भी दस्तक दे दी है और दूरदर्शी लोग भी कुछ ख़ास दूरी के आगे नहीं देख पा रहे. एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) दिल्ली की जनता के लिए कीवर्ड सरीखा हो गया.

ऐसे में शेयर मार्केट की तरह जब लोग सुबह दिल्ली का AQI चेक करते हैं तो कहीं उन्हें 500 दिखता है तो कहीं 1500. इसके पीछे का खेल क्या है और कैसे एक ही जगह की वायु गुणवत्ता के माप में सीधे तीन गुना अंतर आ जा रहा है?

नई दिल्ली के चाणक्यपुरी के AQI को लेकर अमेरिकी दूतावास ने रिपोर्ट जारी की तो पूरी दुनिया की भौहें उधर तन गईं. इसके मुताबिक दिल्ली का AQI 1500 से ऊपर था और जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के डेटा (करीब 450) की तुलना में काफी ऊपर रहा. कई दूसरे प्लेटफ़ॉर्म ने भी AQI की रीडिंग को CPCB रीडिंग से काफी अलग बताया है, जबकि वे अमेरिकी दूतावास वाले मानकों का ही इस्तेमाल करते हैं.

एक स्विस कंपनी IQAir के डेटा ने 18 नवंबर को 1,500 से ज्यादा AQI का खतरनाक स्तर दिखाया. यह आंकड़ा पारंपरिक भारतीय AQI सीमा 500 से कहीं ज्यादा था. इससे अब अलग-अलग मॉनिटरिंग सिस्टम की सटीकता और विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, IQAir अपने रियल टाइम AQI डेटा के लिए जाना जाता है. यह CPCB के मानकों से उलट AQI रीडिंग पर कोई ऊपरी सीमा नहीं लगाता. IQAir का यह तरीका प्रदूषण के स्तर पर भले ही एक नया नजरिया देता हो मगर इसने भारत की वायु गुणवत्ता की निगरानी की सीमाओं को भी उजागर किया है. IQAir के चौंका देने वाले आंकड़ों ने लोकल AQI मूल्यांकन के तरीके में सुधार पर बहस छेड़ दी है.

क्यों होता है AQI का डेटा अलग?

AQI के डेटा के अंतर को समझने से पहले हमें समझना होगा कि पॉल्यूटैंट मास कंसंट्रेशन क्या होता है. पॉल्यूटैंट मास कंसंट्रेशन हवा में प्रदूषक की मात्रा है, जिसे आमतौर पर माइक्रोग्राम या मिलीग्राम प्रति घन मीटर में मापा जाता है. यह हमें बताता है कि हवा में धूल या रसायन जैसे प्रदूषक कितने मौजूद हैं. यह माप वायु की गुणवत्ता (एयर क्वालिटी) तय करने में मदद करता है और इसी के इस्तेमाल से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की गणना की जाती है.

पॉल्यूटैंट मास कंसंट्रेशन को AQI में बदलने के लिए भारत के दिशा-निर्देश इसके अपने 'ब्रेकपॉइंट' पर आधारित हैं, जो WHO के मानकों जितने सख्त नहीं हैं. ये ब्रेकपॉइंट तय करते हैं कि एक्यूआई रीडिंग कब एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में बदल जाती है. भारत की AQI प्रणाली स्थानीय डेटा और स्वास्थ्य अध्ययनों को ध्यान में रखकर बनाई गई है. हालांकि, समस्या यह है कि भारत में AQI की सीमा 500 है, भले ही प्रदूषण का स्तर अक्सर इस सीमा से अधिक रहता हो.

AQI रीडिंग में अंतर अलग-अलग एजेंसियों के अपने तरीकों के कारण भी हो सकता है. जैसे, IQAir सेंसर-आधारित मॉनिटरिंग का इस्तेमाल करता है, जो रियल टाइम डेटा प्रदान करता है और वायु गुणवत्ता में तेज़ी से होने वाले बदलावों को कैप्चर करता है. हालांकि, इस सेंसर के नतीजों में गलतियों की आशंका भी बढ़ जाती है.

इसके विपरीत, CPCB प्रदूषण विश्लेषकों का इस्तेमाल करता है जो ज्यादा सटीक, भले ही थोड़ी देर से नतीजे मुहैया कराते हैं.

AQI यह समझने में मदद करता है कि वर्तमान में हवा कितनी प्रदूषित है या इसके और प्रदूषित होने का क्या पूर्वानुमान है. भारत का आधिकारिक पर्यावरण निगरानी निकाय CPCB, AQI रीडिंग को अधिकतम 500 पर सीमित करता है, जो "गंभीर" प्रदूषण स्तर को दर्शाता है. इस स्तर पर, लोगों को घर के अंदर रहने और शारीरिक गतिविधि (तेज सांस लेने से बचने के लिए) कम से कम करने की सलाह दी जाती है.

इसके विपरीत, अंतर्राष्ट्रीय मंच और वेबसाइट अक्सर एक ही जगह के लिए 1,000 से अधिक AQI रीडिंग की रिपोर्ट करते हैं, जिससे लोग हैरान रह जाते हैं. ये अंतर प्रदूषक मापने की तकनीक, डेटा सोर्स और कम्प्यूटेशनल मॉडल में अंतर के कारण उपजते हैं.

उदाहरण के लिए, CPCB मुख्य रूप से सरकारी स्वामित्व वाले निगरानी स्टेशनों पर निर्भर करता है. वहीं विदेशी प्लेटफ़ॉर्म सैटेलाइट इमेजरी, निजी सेंसर और पूर्वानुमान मॉडल से डेटा एकीकृत कर सकते हैं. इसके अलावा, PM2.5, PM10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ग्राउंड-लेवल ओजोन जैसे प्रदूषक मेट्रिक्स में अंतर होने से भी AQI की रीडिंग्स में असमानता पैदा होती है.

तो किस AQI के डेटा को सही मानें?

एक्यूआई मेट्रिक्स की जटिलता अक्सर भ्रम की स्थिति पैदा करती है, खासकर जब अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना की जाती है. अमेरिका में PM2.5 के लिए डेली कंसंट्रेशन 15 µg/m³ (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) है, जबकि भारत में इसे 60 µg/m³ पर सेट किया गया है. इसी तरह, PM10 के लिए, अमेरिकी मानक स्वीकार्य स्तर को 45 µg/m³ पर सीमित करता है, जबकि भारत में यह 100 µg/m³ है. इसकी वजह से भी जो डेटा आपको भारत में 500 दिखता है, अमेरिकी मानकों के मुताबिक वो दो-तीन गुना ज्यादा होता है.

पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी इंडिया टुडे से बात करते हुए इस तुलना को सरल बनाने के लिए एक उदाहरण देती हैं. वे AQI की तुलना सेंसेक्स या निफ्टी जैसे शेयर बाजार सूचकांकों से करती हैं. सूचकांक अलग-अलग तरीकों के कारण अलग-अलग संख्याएं प्रदर्शित कर सकते हैं, वे अंततः सामान डेटा से प्राप्त होते हैं. ठीक इसी तरह अलग-अलग तरीकों के कारण AQI अलग-अलग हो सकता है, लेकिन वे समान डेटा पर आधारित हैं. PM2.5 और PM10 का स्तर एक जैसा रहता है, क्योंकि वे सीधे पॉलयूटैंट कंसंट्रेशन को मापते हैं, चाहे AQI प्रणाली कोई भी हो.

वायु गुणवत्ता को बेहतर ढंग से समझने के लिए, AQI के बजाय PM2.5 कंसंट्रेशन पर ध्यान दें, क्योंकि अलग-अलग देशों में उपयोग किए जाने वाले अलग-अलग फ़ार्मुलों के कारण एक्यूआई डेटा अलग हो सकता है. PM2.5 का स्तर पॉलयूटैंट कंसंट्रेशन का बेहतर डेटा प्रदान करता है और इसका स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है. PM2.5 में मामूली वृद्धि, जैसे कि 10 µg/m³ की वृद्धि, भी उच्च मृत्यु दर से जुड़ी होती है.

लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए, हमें ऐसे वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों की मांग करनी चाहिए जो PM2.5 के स्तर और AQI स्कोर, दोनों को दिखाती हों. यह लोगों को वायु प्रदूषण के बारे में बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकता है.

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